scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेशपाम तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को मोदी सरकार का बढ़ावा क्यों पहुंचा सकता है पर्यावरण को नुकसान

पाम तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को मोदी सरकार का बढ़ावा क्यों पहुंचा सकता है पर्यावरण को नुकसान

उम्मीद जताई जा रही है कि राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम मिशन से, खाद्य तेलों के लिए आयात पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी. लेकिन पाम तेल की खेती की प्रकृति को देखते हुए चिंता जताई जा रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: मोदी सरकार के पाम तेल को बढ़ावा देने से पर्यावरण को लेकर चिंता जताई जाने लगी है, ख़ासकर उत्तरपूर्व और अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह के लिए, वो दो क्षेत्र जिन्हें देश में खाद्य तेल उत्पादन के लिए चिन्हित किया गया है.

लेकिन राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम मिशन (एनएमईओ-ओपी) को उम्मीद है कि, इससे खाद्य तेलों के लिए आयात पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी- भारत खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है, जिसकी आधे से अधिक आपूर्ति मलेशिया और इंडोनेशिया से, पाम तेल के आयात से होती है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्कीम के लिए 11,000 करोड़ रुपए का बजट मंज़ूर किया है, जिसमें पाम तेल उत्पादन में तीन गुना वृद्धि का महात्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है.

लेकिन सरकार के इस क़दम से, ताड़ की खेती की प्रकृति और सरकार द्वारा इसके लिए चिन्हित किए गए क्षेत्रों की जैव विविधता को देखते हुए, पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं बढ़ गईं हैं.

पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं

चिंता जताई जा रही है कि ताड़ जैसी बहुत अधिक पानी पीने वाली फसलें, जो उष्णकटिबंधीय इलाक़ों में सबसे अच्छी उगती हैं, पानी की कमी पैदा कर देंगी, और उत्तरपूर्व तथा अंडमान के जैव विविधता वाले इको-सेंसिटिव ज़ोन्स में, वन क्षेत्र में तेज़ी से कमी आएगी.

भारत के चार जैव विविधता हॉटस्पॉट्स पाम तेल महत्वाकांक्षी क्षेत्रों में आते हैं, जिनमें से दो उत्तपपूर्व (भारत-बर्मा क्षेत्र) और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह (सुंदरवन क्षेत्र) में आते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी थी कि सरकार का तेल पाम मिशन, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद के ये कहने के बावजूद लॉन्च किया गया, कि जैव विविधता संपन्न क्षेत्रों में बाग़ान से ‘बचना चाहिए’, जब तक उनके असर का और आगे अध्ययन न हो जाए.

फिर ये समस्याएं भी हैं कि ताड़ तेल बाग़ान ख़राब वन होते हैं.

रिपोर्ट्स के अनुसार, ताड़ तेल बाग़ान में वृद्धि ने इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे दक्षिण पूर्वी देशों में, समृद्ध उष्णकटिबंधीय ईकोसिस्टम्स की जगह ले ली है, और इस प्रक्रिया में एकल कृषि- यानी ‘हरे रेगिस्तानों’ ने, स्थानीय जानवरों और पौधों को तबाह कर दिया है.

2020 में मलेशिया में एक स्टडी में पता चला, कि प्राकृतिक वन ताड़ तेल की एकल खेती की अपेक्षा कार्बन को ज़्यादा पकड़ते हैं. स्टडी में पता चला कि ताड़ तेल बाग़ान की तुलना में, वनों में टोटल ईकोसिस्टम कार्बन (टीईसी) की मात्रा 287 टन प्रति हेक्टेयर थी, जब कि ताड़ बाग़ानों में कार्बन की ये मात्रा, केवल 60.30 से 76.44 टन प्रति हेक्टेयर थी. टीईसी से पता चलता है कि पेड़-पौधों में कार्बन डायोक्साइड सोखने की क्षमता कितनी है.

इंडोनेशिया के साथ मिलकर मलेशिया में, विश्व भर के पाम तेल का 85-90 प्रतिशत उत्पादन करता है.

भारत का राष्ट्रीय पाम तेल मिशन

राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम तेल मिशन (एनएमईओ-ओपी) को उम्मीद है, कि खाद्य तेलों के लिए भारत की आयात पर निर्भरता ख़त्म हो जाएगी.

मिशन के तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तर्ज़ पर, एक निश्चित मूल्य का भुगतान किया जाएगा. जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी, कि बाज़ार में उतार-चढ़ाव की सूरत में पाम तेल किसानों को, मूल्यों के इस अंतर का ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ (डीबीटी) के ज़रिए भुगतान कर दिया जाएगा.

स्कीम के तहत रोपण सामग्री सहायता को भी, 12,000 रुपए प्रति हेक्टयर से बढ़ाकर 29,000 रुपए प्रति हेक्टेयर कर दिया जाएगा, और पुराने बाग़ान को फिर से जीवित करने के लिए, 250 रुपए प्रति पौधे की विशेष सहायती दी जाएगी. सरकार ने कहा कि वो मासिक आधार पर एक फॉर्मूला मूल्य तय करेगी, जो कच्चे पाम तेल के बाज़ार मूल्यों का 14.3 प्रतिशत होगा.


यह भी पढ़ें : कोविड वर्ष में UP ने 3 बार Midday Meal का राशन भेजा, लेकिन कुछ छात्र अभी भी इसके मिलने का इंतजार कर रहे हैं


इस तरह के बहुत से प्रोत्साहनों की ज़रूरत इसलिए है, कि ताड़ वृक्षों पर तेल निकालने के लिए तैयार फल, रोपण के 4-5 साल बाद ही आते हैं, जिसकी वजह से छोटे किसानों के लिए, इनकी खेती करना संभव नहीं हो पाता.

इसके अलावा, अनुमानों के अनुसार पाम से अन्य तिलहनी फसलों के मुक़ाबले, प्रति हेक्टेयर 10-46 गुना ज़्यादा ज़्यादा तेल मिलता है, इसलिए इसकी खेती में सबसे ज़्यादा संभावनाएं होती हैं.

एनएमईओ-ओपी के अंतर्गत सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक, अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को ताड़ खेती में लाना है, जिससे इसका कुल क्षेत्र बढ़कर 10 लाख हेक्टेयर हो जाएगा. इसके अलावा, ताड़ तेल उत्पादन का लक्ष्य भी बढ़ाकर, 2025-26 तक 11.20 लाख टन, और 2029-30 तक 28 लाख टन करना है.

ये आंकड़े भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआर) के आंकलन पर आधारित हैं, जिसने कहा था कि देश में 28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ताड़ की खेती की संभावनाएं हैं.

रोपण सामग्री की कमी को पूरा करने के लिए, बीज उद्यानों को 80 लाख रुपए प्रति 15 हेक्टेयर दिए जाएंगे, जिसे उत्तरपूर्व और अंडमान में बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया जाएगा. उत्तरपूर्व और अंडमान्स में उद्योगों को पूंजी सहायता भी दी जाएगी.

एनएमईओ-ओपी का वित्तीय परिव्यय 11,040 करोड़ रुपए है, जिसमें केंद्र का हिस्सा 8,844 करोड़ और राज्यों का 2,196 करोड़ है.

पाम तेल की ज़रूरत

देश में खाद्य तेलों की सालाना मांग क़रीब 2.5 करोड़ टन है, जिसमें से 1.3 करोड़ टन की ज़रूरत आयात से पूरी होती है. इन आयातों में 55 प्रतिशत हिस्सा पाम तेल का होता है, जिसकी वजह से भारत दुनिया में पाम तेल का सबसे बड़ा आयातक बन गया है.

आयत पर इतनी भारी निर्भरता, देश को अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बना देती है, जैसा कि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देखा गया.

पिछले एक साल में पाम तेल के दाम 60 प्रतिशत से अधिक बढ़कर, 1 जून 2021 को 138 रुपए प्रति किलोग्राम पहुंच गए, जो 1 जून 2020 को 86 रुपए प्रति किलो थे- पिछले 11 वर्षों में ये इसके सबसे ऊंचे दाम थे.

पाम तेल पर सरकार का ख़ास ज़ोर इसलिए भी है, कि इसका बहुत तरह से प्रयोग होता है, जिसमें व्यवसायिक और घरेलू दोनों इस्तेमाल शामिल हैं. पाम तेल की क़ीमतों ने वनस्पति की लागत बढ़ा दी, जो उससे निकाला जाने वाला एक सस्ता घी-बटर विकल्प होता है, जिमें मुख्य रूप से कम आय वाले घरों में इस्तेमाल किया जाता है.

संभावित रास्ता

लेकिन इस बात की उम्मीद है कि देश में पाम तेल का, काफी मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है.

अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकॉलजी एंड इनवायरमेंट के सेंटर फॉर इनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट के फेलो और कनवीनर, डॉ सिद्दप्पा सेट्टी आर ने दिप्रिंट से कहा, ‘एक समाधान ये होगा कि पाम तेल की खेती कृषि भूमि पर की जाए, अगर किसान इसके लिए तैयार हों और सरकार इसे प्रोत्साहन दे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे विचार में, मानव-निर्मित ताड़ के रोपण को वन की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ख़ासकर अगर वो वन आवरण की जगह लेने जा रहा है, क्योंकि वो उस स्तर की जैव विविधता को सहारा नहीं दे सकता’.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया, कि ये देखते हुए कि भारत में ताड़ के रोपण को वन की परिभाषा में शामिल किया गया है, वन आवरण में संभावित कमी का कोई हिसाब नहीं रखा जाएगा.

पाम तेल और उसके उत्पादों की व्यापक प्रकृति के कारण, इससे बचना मुश्किल साबित हो सकता है.

लेकिन, ये ज़रूर संभव है कि ऐसे पाम तेल उत्पाद ख़रीदे जाएं, जो प्रमाणित रूप से स्थायी हों. राउण्ड टेबल ऑन सस्टेनेबल पाम ऑयल, नैतिक पाम तेल उत्पादन के लिए विश्व की सबसे बड़ी संस्था है, जो सामाजिक तथा पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार उत्पादन के लिए, पाम तेल को स्थायी प्रमाणित करती है, और विभिन्न उत्पादों के लिए उपभोक्ता इसके लेबल को चुन सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments