नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने विचार पेश किया है, कि ‘हंसने के कर्त्तव्य’ को संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के अध्याय में शामिल किया जाना चाहिए, और ‘हास्यमय होने के सहसंबद्ध अधिकार’ को, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत रख दिया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की एक सदस्यीय बैंच ने, 17 दिसंबर के हास्य और व्यंग से भरे अपने फैसले में- जिसमें उन्होंने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) या सीपीआई(एमएल) पदाधिकारी मथिवणन के खिलाफ मुक़दमे को ख़ारिज कर दिया- नए अधिकार और कर्त्तव्य को लाने पर विचार किया. मथिवणन के खिलाफ एक फेसबुक कैप्शन के लिए, भारतीय दंड संहिता के ‘आपराधिक साज़िश’, ‘राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ और ‘षडयंत्र द्वारा अपराधिक धमकी’ से जुड़े प्रावधानों के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था. मथिवणन ने कोर्ट में याचिका दायर करके, एफआईआर को रद्द करने की गुहार लगाई थी.
पोस्ट में 62 वर्षीय नेता ने सितंबर में, तमिलनाडु के सिरुमलाई हिल्स के अपने दौरे की पारिवारिक तस्वीरें लगाईं थीं. मज़ाक़िया लगने की कोशिश में उन्होंने तस्वीरों के साथ लिख दिया ‘शूटिंग अभ्यास के लिए सिरुमलाई का एक दौरा’. वादिपट्टी पुलिस ने नेता के खिलाफ अपने आप से एक एफआईआर दर्ज कर ली.
किसी भी अपराध की चार अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, जस्टिस स्वामीनाथन ने लिखा कि शीर्षक लिखने के पीछे, सिर्फ हास्य पैदा करने की मंशा थी, और फरियादी का राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का कोई इरादा नहीं था.
‘ऊंची दहलीज’ की ज़रूरत
संविधान में एक नया अधिकार और कर्त्तव्य शामिल किए जाने के अपने सुझाव के समर्थन में, प्रसिद्ध हास्यरस लेखकों और कार्टूनिस्टों का नाम लेते हुए, जज ने अपने फैसले में कहा: ‘जग सुरैया, बाची करकारिया, ईपी उन्नी और जी संपत…अगर उनमें से कोई, या किसी भी हास्य लेखक या कार्टूनिस्ट ने इस फैसले को लिखा होता, तो काल्पनिक लेखक ने मौलिक कर्त्तव्यों की सूची में, हंसने का एक और कर्त्तव्य जोड़ दिया होता’.
कोर्ट ने कहा कि (किसी अपराध को अंजाम देने की) तैयारी को दंडित करने वाले प्रावधानों की दहलीज ऊंची होनी चाहिए. उसने कहा कि मौजूदा केस उस ‘ऊंची दहलीज’ को नहीं पहुंचता.
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, ‘फेसबुक देखने वाला कोई भी विवेकी और सामान्य व्यक्ति इस पर हंस दिया होगा’.
याचिका पर राज्य के विरोध को ख़ारिज करते हुए, बेंच ने एफआईआर को रद्द कर दिया, और उसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग क़रार दिया.
अपने आदेश में, जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि ‘हंसने के कर्त्तव्य’ को संविधान के अंश 4-ए में शामिल किया जा सकता है, जिसमें भारत की गरिमा और संप्रभुता बनाए रखने जैसे, मौलिक कर्त्तव्यों का प्रावधान किया गया है.
जज ने आगे कहा कि ऐसे ‘हास्यमय होने के अधिकार को’ संविधान की धारा 19(1)(ए) के तहत दिए गए, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत रखा जा सकता है.
अनुच्छेद में प्रावधान है कि ‘सभी नागरिकों के पास बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा’. ये अधिकार अनुच्छेद 19(2) में दिए गए ‘उचित प्रतिबंधों’ के आधीन होगा. अतीत में इस प्रावधान का मतलब ‘प्रेस की आज़ादी’, और ‘सूचना के अधिकार’ की गारंटी के तौर पर निकाला जाता रहा है.
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‘एक अंतिम होली काउ’
भारत में बोलने की आज़ादी पर लगी बहुत सी बंदिशों का संज्ञान लेते हुए, जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा, ‘मज़ाक़िया होना एक बात है, लेकिन किसी दूसरे का मज़ाक़ उड़ाना बिल्कुल अलग बात है… ‘किस पर हंसें?’ एक गंभीर सवाल है’. उन्होंने कहा कि हास्य व्यक्तिपरक होता है, और लोगों तथा क्षेत्रों के हिसाब से बदलता है.
सिलसिलेवार उपमाएं देकर जज ने हास्य की ज़द से दूर रहने वाले विषयों के लिए ‘होली काउ’ शब्द का इस्तेमाल किया, और कहा कि ऐसे प्रतिबंधित क्षेत्र किस तरह सबके लिए अलग हैं.
कोर्ट ने कहा, ‘पूरे भारत में, एक अंतिम पवित्र चीज़ है, और वो है राष्ट्रीय सुरक्षा’.
जज ने कहा कि केरल में मार्क्स और लेनिन किसी भी आलोचना या व्यंग की सीमा से परे हैं, और इसी तरह पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र में टैगोर, शिवाजी, और सावरकर जैसी हस्तियां व्यंग के दायरे से बाहर हैं.
जस्टिस स्वामिनाथन के फैसले में कहा गया, ‘कोई उनका मज़ाक़ उड़ाने की हिम्मत नहीं कर सकता’.
जज ने मार्क्सवादी कट्टरपंथियों पर भी कटाक्ष किया, और कहा कि ‘आंदोलनकारी, चाहे वास्तविक हों या फर्ज़ी, हास्य की आदत के लिए नहीं जाने जाते’. उन्होंने ये भी कहा कि ऐसा लगता है कि ये पोस्ट सीपीआई(एमएल) नेता का ‘हास्य का पहला प्रयास था’.
परेशान करने वाली प्रवृत्ति
जज ने कहा कि हर आपराधिक मामले में रिमांड मांगने की पुलिस की प्रवृत्ति परेशान करने वाली है, और मजिस्ट्रेट को पुलिस को ऐसी कस्टडी देते समय, सभी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के प्रति आश्वस्त होना चाहिए.
मथिवणन के मामले में पुलिस रिमांड से इनकार करने के, वादिपट्टी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णय की सराहना करते हुए, कोर्ट ने कहा कि 62 वर्षीय नेता जेल जाने से ‘बाल-बाल’ बच गए.
‘हास्यमय होने के अधिकार’ की ये बात ऐसे समय आई है, जब कलात्मक स्वतंत्रता और हास्य का विरोध बढ़ता जा रहा है.
कुछ महीने पहले ही, एक स्टैण्ड-अप हास्य कलाकार मुनव्वर फारूक़ी, कथित रूप से ‘हिंदू देवी-देवताओं’ का अपमान करने के आरोप में एक महीने से अधिक समय जेल में बंद रहे. पिछले कुछ महीनों में, कार्यक्रम- स्थल पर तोड़-फोड़ की आशंका का हवाला देते हुए, फारूकी के बहुत से शो रद्द कर दिए गए हैं.
अक्षत जैन, दिल्ली के NLU में लॉ के छात्र हैं और दिप्रिंट में इंटर्न हैं
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