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Saturday, 4 May, 2024
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पुणे ज़ू में रेसक्यु सेंटर चलाने वाला NGO क्यों है सरकारी जांच के घेरे में

'कुप्रबंधन' पर वन्यजीव वार्डन परांजपे की रिपोर्ट की जांच करने वाला पैनल इस सप्ताह निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकता है. इंडियन हर्पेटोलॉजिकल सोसाइटी, जो केंद्र का प्रबंधन करती है, गड़बड़ी से इनकार किया है.

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नई दिल्ली: पुणे स्थित एक एनजीओ महाराष्ट्र वन विभाग की जांच के दायरे में है, जिसे शहर के चिड़ियाघर में रेसक्यु सेंटर के मैनेजमेंट का काम सौंपा गया था. इस पर आरोप है कि इसने कथित वन्यजीव कुप्रबंधन और अपने आधिकारिक रिकॉर्ड में “क्लियर मिसमैच” किया है.

जबकि राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क एंड वाइल्डलाइफ रिसर्च सेंटर को पुणे नगर निगम द्वारा चलाया जाता है, इंडियन हर्पेटोलॉजिकल सोसाइटी (आईएचएस) 15 सालों से अपने बचाव केंद्र – वाइल्ड एनिमल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (डब्ल्यूएआरआरसी) का मैनेजमेंट कर रही है.

पुणे जिले के ऑनरेरी वाइल्ड लाइफवार्डन, आदित्य परांजपे की एक रिपोर्ट के अनुसार, कटराज में चिड़ियाघर के बचाव केंद्र ने पिछले दो सालों में 612 जंगली जानवरों – जिनमें रसेल वाइपर, कोबरा और अन्य जहरीले सांप शामिल हैं – को उनके निवास स्थान से बाहर छोड़ा है. दिप्रिंट ने यह रिपोर्ट देखी है.

आमतौर पर, भविष्य में किसी भी संघर्ष से बचने के लिए रेसक्यु किए गए जानवरों को उनके घरेलू क्षेत्र में छोड़ा जाता है.

अप्रैल में सौंपी गई परांजपे की रिपोर्ट में 328 जानवरों के रिकॉर्ड में कथित खामियां पाई गईं, जिनमें चित्तीदार बिल्लियां, कोबरा, बार्न उल्लू और पैंगोलिन शामिल हैं. उस में यह भी दावा किया कि दो लकड़बग्घे और दो मृगों को उनके निवास स्थान के बजाय चिड़ियाघर के भीतर छोड़ दिया गया था.

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राज्य वन विभाग ने दावों की जांच के लिए जून में एक जांच समिति का गठन किया. यह स्थापित किया जाने वाला दूसरा ऐसा पैनल है, पहला पैनल अप्रैल में स्थापित किया गया था.

उप वन संरक्षक महादेव मोहिते ने दिप्रिंट को बताया कि समिति को शुक्रवार तक अपनी रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है, जिसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी.

उन्होंने आगे कहा: “जानवरों के रिकॉर्ड में स्पष्ट मेल नहीं खाते हैं. क्या राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क के अधिकारी भी कुप्रबंधन का हिस्सा थे, यह उनकी प्रतिक्रिया के आकलन के बाद स्पष्ट हो जाएगा.”

परांजपे ने कहा कि वन विभाग वर्तमान में चिड़ियाघर के निदेशक राजकुमार जाधव की प्रतिक्रिया का आकलन कर रहा है. “मैं सुनिश्चित करूंगा कि वे (वन विभाग) कार्रवाई करें. अगर कुछ नहीं किया गया तो मैं खुद जिला अदालत में एफआईआर दर्ज कराऊंगा.”

वन्यजीव वार्डन ने आगे कहा कि अभी तक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जानवरों की तस्करी की गई थी, लेकिन गायब रिकॉर्ड संदिग्ध हैं. “एनजीओ ने हमें उन्हें संदेह की नजर से देखने के पर्याप्त कारण दिए हैं क्योंकि इन रिकॉर्ड्स को अपडेट करना उतना मुश्किल नहीं है.”

डब्ल्यूएआरआरसी में अधिकांश जानवर, जो अब बंद हैं, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अनुसूची I प्रजातियां हैं, और उन्हें एक अलग सुविधा दी गई है. अधिनियम की अनुसूची I में लुप्तप्राय प्रजातियां शामिल हैं जिन्हें कठोर सुरक्षा की जरूरत है और उन्हें अवैध शिकार, हत्या, व्यापार आदि से सुरक्षा दी जाती है.

एक टेलीफोनिक बातचीत में, चिड़ियाघर के निदेशक जाधव ने दिप्रिंट को बताया: “मेरा हर कार्य आधिकारिक ढांचे के तहत और जानवरों के कल्याण के लिए किया गया है. यहां कुछ भी अवैध नहीं था. वन अधिकारी चाहते थे कि हम इन जानवरों (कथित तौर पर चिड़ियाघर के भीतर छोड़े गए दो लकड़बग्घे और दो मृग) को ले जाएं क्योंकि यह बहुत स्पष्ट था कि उन्हें जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता था. पिछले हफ्ते, मैंने डीसीएफ में अपने स्थानांतरण के संबंध में सभी दस्तावेज सामने रखें हैं.”

जाधव ने आगे कहा कि चिड़ियाघर ने पिछले साल केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) को पत्र लिखकर “इन जानवरों – जिन्हें वापस जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता – को वैज्ञानिक उपयोग, प्रदर्शनी उद्देश्यों या प्रजनन के लिए रखने की अनुमति मांगी थी.”

उन्होंने कहा: “हम सीजेडए से मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. इन जानवरों को अब जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि वे चिड़ियाघर के जानवरों के आदी हो चुके हैं.”

आईएचएस के ट्रस्टी और डब्ल्यूएआरआरसी के क्यूरेटर श्रीराम शिंदे ने दिप्रिंट को फोन पर बताया कि एनजीओ ने अप्रैल में वन विभाग को पत्र लिखकर वादा किया था कि अगर उनके रिकॉर्ड में कोई खामियां हैं तो उन्हें ठीक किया जाएगा.

रिकॉर्ड गायब होने और जानवरों को जंगल में वापस छोड़ने की गलत प्रथाओं से संबंधित आरोपों के बारे में विशेष रूप से पूछे जाने पर शिंदे ने कहा: “ऐसा कुछ नहीं हुआ है.” हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि चिड़ियाघर ने सीजेडए से स्पष्ट मंजूरी नहीं मिलने के बावजूद केंद्र से दो लकड़बग्घा और दो मृग ले लिए थे.


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‘विचित्र, अवैध’

घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों के अनुसार, जबकि आईएचएस द्वारा कुप्रबंधन की छिटपुट रिपोर्टें पहले भी सामने आई थीं, परांजपे द्वारा महाराष्ट्र सरकार के कैप्टिव वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल पर रिकॉर्ड का विश्लेषण करने के बाद समस्या का पूरा दायरा स्पष्ट हो गया.

राज्य वन विभाग द्वारा दो साल पहले लॉन्च किए गए इस पोर्टल का उद्देश्य बंदी बनाए गए और बचाए गए जंगली जानवरों पर नज़र रखना है.

परांजपे ने कहा, “यह प्रणाली राज्य के किसी भी बचाव केंद्र में लाए गए प्रत्येक जानवर पर नज़र रखने में मदद करती है.” उन्होंने कहा, “बचावकर्ताओं को रिपोर्ट करना होगा कि क्या किसी जानवर का इलाज खेत में किया गया था या केंद्र में भर्ती कराया गया था. उन्हें कब और कहाँ रिहा किया गया है, इसका रिकॉर्ड या तस्वीरों के साथ मौत का विवरण अपलोड करना होगा.”

इसके माध्यम से परांजपे को सैकड़ों रेसक्यु किए गए जानवरों के कथित रूप से लापता होने और अन्य को उनकी घरेलू सीमा के बाहर छोड़े जाने के रिकॉर्ड मिले.

परांजपे ने दिप्रिंट को बताया, “हमने पाया कि चार जंगली जानवरों – दो लकड़बग्घे और दो मृग – को निदेशक से अपेक्षित अनुमति लिए बिना जंगल में छोड़ने के बजाय चिड़ियाघर में ले जाया गया था.”

उन्होंने दावा किया कि कैद में रहने के दौरान मृगों का संसर्ग हुआ और वे गर्भवती हो गईं. उन्होंने कहा, “यह बिल्कुल विचित्र और अवैध है.”

अप्रैल में विभाग की पहली जांच करने वाले पुणे के तत्कालीन उप वन संरक्षक तुषार चव्हाण ने अपने निष्कर्षों पर एक विस्तृत रिपोर्ट महाराष्ट्र के मुख्य वन्यजीव वार्डन को सौंपी थी. इस रिपोर्ट के अनुसार, जिसे प्रिंट ने एक्सेस किया था, वन अधिकारियों ने पाया कि 129 जानवर – जिनमें तेंदुए, चिंकारा, चार सींग वाले मृग और सियार शामिल हैं – तीन महीने से लेकर 10 साल तक “विस्तारित कैद” में हैं.

चव्हाण की रिपोर्ट में “अधूरे” रिकॉर्ड के दो उदाहरण भी दिए गए हैं. पहला जून 2022 और अगस्त 2022 में दो जंग लगी चित्तीदार बिल्लियों को केंद्र में भर्ती कराए जाने के बारे में है. रिपोर्ट के अनुसार, कैप्टिव वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट सिस्टम पर उनके लिए ऐंट्री में दोनों जानवरों की एक ही तस्वीर है, जो मर चुके थे.

दूसरा उदाहरण पैंगोलिन और मगरमच्छों के कथित गायब रिकॉर्ड से संबंधित है. रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि इनमें से कई को कथित तौर पर डब्ल्यूएआरआरसी में भर्ती कराया गया था, लेकिन कोई डेटा ऐंट्री नहीं हैं.

इस बीच, जून में वन विभाग की दूसरी जांच में पाया गया कि आईएचएस केंद्र में 643 जानवर थे, जिनमें से 490 को दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता थी और वे वापस जंगल में छोड़े जाने के लिए भी अनुपयुक्त हो सकते थे. इनमें काले हिरण, तेंदुए और पक्षियों और रेंगने वाले कीड़ों की कई प्रजातियां शामिल थीं.

आईएचएस ट्रस्टी और डब्ल्यूएआरआरसी क्यूरेटर श्रीराम शिंदे, जिनका पहले हवाला दिया गया था, ने कहा कि एनजीओ ने मई में बचाव केंद्र को बंद करने का फैसला किया था.

शिंदे ने कहा, “हमारे नेतृत्व नीलिमकुमार खैरे (कार्यकारी निदेशक) और अनिल खैरे (दिवंगत अध्यक्ष) केंद्र चला रहे थे. अक्टूबर में अनिल खैरे की जान चली गई और इस नुकसान का उनके भाई नीलिमकुमार खैरे पर गहरा असर पड़ा. उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हुआ, जिसके कारण वह अब आईएचएस चलाना जारी नहीं रखना चाहते थे.”

ट्रस्ट ने उसी महीने पुणे नगर निगम को पत्र लिखकर केंद्र को बंद करने के अपने इरादे बता दिए थे, उन्होंने कहा, कुछ विदेशी पक्षी अभी भी सुविधा में हैं क्योंकि चिड़ियाघर की “उन्हें रखने में रुचि है और इस बारे में सीजेडए को सूचित किया है.”

उन्होंने आगे कहा, “पिछले हफ्ते, सीजेडए जानवरों का जायजा लेने आया था और हम उनकी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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