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Friday, 26 April, 2024
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क्या होती है कैबिनेट समिति, क्यों किया जाता है इसका गठन ?

मोदी सरकार ने 6 कैबिनेट समितियों का गठन किया था और उसमें दो और कैबिनेट समितियों का गठन किया है. जिससे समिति की कुल संख्या आठ हो गयी है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को छह नई कैबिनेट समितियो को पुनर्गठन किया है. इस बार उन्होंने दो नई समितियों को जोड़ा है. ऐसी कुल 8 समितियां बनाई गई है. कम समितियों का गठन कर पीएम मोदी ने 2014 के ‘मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस’ के फार्मूले को इस सरकार में भी दोहराया है. वहीं पीएम मोदी ने नेहरु युग की याद को भी ताजा कर दिया है. 1948 में सरकार द्वारा केवल रक्षा और आर्थिक समितियां ही बनाई गई थी. स्वतंत्रता के बाद से ही ऐसी समितियां कमजोर हुआ करती थी.

कैबिनेट समिति का गठन कौन करता है और वे क्या करते हैं

कैबिनेट समिति का गठन या तो सीधे प्रधानमंत्री कर सकते हैं या कैबिनेट कर सकती है. पीएम अधिकांश समितियों के प्रमुख होते हैं. प्रधानमंत्री यह भी निर्णय ले सकते हैं कि जिन मामलों की चर्चा विशिष्ट कैबिनेट समिति में हुई है उसकी चर्चा मुख्य कैबिनेट में भी की जा सकती है.

कैबिनेट समिति की मुख्य भूमिका सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि से संबंधित महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर विचार-विमर्श करना और अंतिम रूप देना है. जिसमें कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री शामिल होते हैं.

सामान्य हाउसकीपिंग मुद्दे से संबंधित समितियों का उद्देश्य नियुक्ति और आवास से संबंधित मामलों को निपटाना है.

लेकिन स्थायी समितियों का टर्म गवर्नमेंट ट्रांसक्शन नियम 1961 में परिभाषित किया गया है. कैबिनेट समितियां अस्थायी हैं. मुख्य निर्णयों पर विचार-विमर्श करने के अलावा, ये समितियां सरकार को अपने नेताओं के साथ-साथ अपने सहयोगियों को भी अच्छी जिम्मेदारी देने में मदद करती हैं. यदि पीएम चाहते हैं, तो वे उन सांसदों को शामिल कर सकते हैं जो विशेष आमंत्रित सूची के तहत कैबिनेट में नहीं हैं.

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क्या कैबिनेट समितियों के गठन की कोई सीमा है

नहीं, क्योंकि वे अस्थायी समितियां हैं, जिनमें कोई निश्चित सीमा नहीं होती है. सरकार विशेष रूप से प्रधानमंत्री जरूरत के आधार पर जितनी चाहें उतनी समितियां स्थापित कर सकती हैं. इस तरह की समितियां मूल रूप से मुख्य कैबिनेट से भार उठाने के लिए बनाई जाती हैं. जो हर मंत्रालय से संबंधित नीति पर चर्चा करती है और निर्णय लेती है, और निर्णय लेने में तेजी लाती है.


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1948 में पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान, केवल दो कैबिनेट समितियां बनाई थीं- राजनीतिक और आर्थिक समिति. इसके बाद सूची में तीन और समितियां जोड़ी गई- जिनमें सुरक्षा, नियुक्तियां और आवास समिति थी.

70 के दशक के अंत में इंदिरा गांधी के काल में ऐसी समितियों की संख्या बढ़ गई थी.

1994 में जब पीवी नरसिम्हा राव पीएम थे, तब 13 कैबिनेट समितियां थीं.

मनमोहन सिंह सरकार, जो कि 2004 से 2014 के बीच दस वर्षों तक सत्ता में थी. उनके समय में 12 कैबिनेट समितियां थीं.

हालांकि, 2014 में जब मोदी ने पीएम के रूप में पदभार संभाला. तो उन्होंने अधिकांश समितियों को ख़त्म कर दिया और सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक मामलों, संसदीय मामलों, नियुक्तियों और आवास सहित प्रमुख छह समितियों को बरकरार रखा.

हालांकि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी ने दो नई समितियों को जोड़ा- निवेश और विकास और रोजगार और कौशल विकास.

हालांकि, निवेश पर समिति पूरी तरह से नयी नहीं है. 2013 में भी सरकार ने परियोजना कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए निवेश पर कैबिनेट समिति का गठन किया था. हालांकि, 2014 में मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया था.

कौन कैबिनेट समिति का प्रमुख होता है और कितने सदस्य इसका हिस्सा हो सकते हैं

प्रधानमंत्री संसदीय मामलों और आवास को छोड़कर सभी कैबिनेट समितियों की अध्यक्षता करते हैं. संसदीय मामलों और आवास समितियों को परंपरागत रूप से गृह मंत्री नेतृत्व करते हैं.

पुनर्गठित कैबिनेट समितियों में गुरुवार को मोदी संसदीय मामलों और आवास को छोड़कर सभी छह समितियों के प्रमुख हैं. जिसकी अध्यक्षता गृह मंत्री अमित शाह करेंगे.

कैबिनेट समिति में सदस्यों की संख्या दो से बारह के बीच हो सकती है. उदाहरण के लिए कैबिनेट की नियुक्ति समिति हमेशा प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के नेतृत्व में होती है. आर्थिक और संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समितियाँ आमतौर पर बड़ी होती हैं.

राजनीतिक मामलों और आर्थिक मामलों की मौजूदा कैबिनेट समिति में 12 सदस्य हैं.

कैबिनेट कमेटी में मुख्य मुद्दों पर चर्चा/ निर्णय लिया जाता है. कैबिनेट समितियों द्वारा कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. जब से वो अस्तित्व में आये.

उदाहरण के लिए, मोदी के पहले कार्यकाल में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने 58,000 करोड़ रुपये के राफेल विमान सौदे को आगे बढ़ाया.

2014 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2014-15 सीजन के लिए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंजूरी दी थी.

अतीत में भी इस तरह की समितियों ने महत्वपूर्ण सुरक्षा कारणों पर विचार-विमर्श किया था. 1999 में कारगिल युद्ध के निर्माण में सुरक्षा और राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति की संयुक्त बैठक में कारगिल की स्थिति को देखते हुए भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था.

2003 में, सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति(सीसीएस ) ने भारत के परमाणु सिद्धांत के संचालन में हुई प्रगति पर चर्चा की थी.

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