नई दिल्ली : अभी तीन महीने पहले, कैबिनेट सचिव के रूप में सिन्हा के तीसरे विस्तार के लिए 60 साल के नियम को संशोधित किया गया था – एक पद जिस पर वह चार साल से अधिक समय तक रहे जिससे वह इतिहास में सबसे लंबे समय तक रहने वाले कैबिनेट सचिव बन गए.
पिछले सप्ताह, अपने तीन महीने के विस्तार से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर तरह से शक्तिशाली और विश्वसनीय प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने प्रधानमंत्री कार्यालय से इस्तीफा देने की इच्छा व्यक्त की. माना जा रहा है कि यह सिन्हा की जगह बनाने के लिए किया गया.
शुक्रवार को सिन्हा को पीएमओ में विशेष ड्यूटी पर अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था. अब उन्हें अतिरिक्त प्रधान सचिव के रूप में पदभार संभालने के लिए स्लेट किया गया है.
तो एसा क्या है जो 42 साल के करियर वाले इस आईएएस अधिकारी को मोदी सरकार में इतना महत्वपूर्ण बताता है? उनके सहयोगी कहते हैं कि उनके पेट में बात पचती है, वे बहुत काबिल हैं और नतीजे पर उनका फोकस रहता है.
एक सेवानिवृत आईएएस अधिकारी कहते हैं, ‘वे बहुत ही काबिल अधिकारी है’. ये अधिकारी सिन्हा के बैचमेट हैं. कहते हैं, ‘केबिनेट सचिव होते हुए जो भी काम प्रधानमंत्री ने सौंपा है. उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ किया है.’
‘और उनके पास से कोई बात बाहर नहीं जाती, इस आदत से भी मदद मिली. इस सरकार में आपकी क्षमता के साथ अगर किसी चीज़ की अहमियत है तो वे है विचारशील होना और बात न फैलाना. और सिन्हा में दोनों गुण हैं.’
सिन्हा क्यों अपने काम के लिए सही आदमी हैं?
सिन्हा 1977 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के अधिकारी हैं और बाकी अपने समकक्ष नौकरशाहों की तरह उनको पहले मोदी के साथ, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, के साथ काम करने का कोई अनुभव नहीं था.
बल्कि यूपीए सरकार में उनके पास तीन प्रमुख मंत्रालयों का 10 साल तक जिम्मा रहा था. उनके समकक्ष उनको एक खुशमिजाज़, कामकाजी और साफ-सुथरा अधिकारी मानते थे. 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें एक साल के ज्यादा तक ऊर्जा सचिव बने रहने दिया था.
मोदी सरकार के पहले साल में सिन्हा के नेतृत्व में ऊर्जा मंत्रालय ने एक रिकॉर्ड 22,566 मेगावाट कैपेसिटी में बढ़ोत्तरी की थी. साथ ही सबसे ज्यादा ट्रांसमिशन लाइनों में बढ़ोत्तरी और सब स्टेशन क्षमता बढ़ाई थी.
और इस काम के लिए सिन्हा को पुरस्कृत भी किया गया- उन्हें 2015 में कैबिनेट सचिव बनाया गया – जो कि आईएएस की वरिषठतम पॉजिशन है.
कैबिनेट सचिव रहते हुए, उनकी जीएसटी तैयार करने में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने में अहम भूमिका रही.
उर्जित पटेल के आरबीआई के गवर्नर बनाए जाने में भी उनकी अहम भूमिका रही क्योंकि वो उस कमेटी के प्रमुख थे जिसका काम था रघुराम राजन के स्थान पर नये गवर्नर को खोजना.
उत्तर प्रदेश काडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कहते हैं कि ‘इस सरकार में प्रधानमंत्री के विश्वास प्राप्त नौकरशाह आगे बढ़ जाते हैं… इस सरकार की यही कार्यशैली रहीं है. इसलिए उनकी पीएमओ में पदोन्नति कोई आश्चर्य की बात नहीं.’
‘ये इसलिए भी तार्किक है क्योंकि कैबिनेट सचिव होते हुए उनकी भूमिका विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय करने की थी तो माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में भी वे यही काम करेंगें. ‘
‘एक अलग, डिलीवरी देने वाला अधिकारी’
सिन्हा को उनके सहयोगियों या मीडिया के साथ घुलमिल कर नहीं रहने के लिए जाना जाता है. बिजली मंत्रालय में सिन्हा के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘उनकी कार्यशैली ऐसी है कि वह अपने काम को लेकर तटस्थ रहते हैं.’ ‘वह केवल डिलिवर करने पर ध्यान देते हैं.
सिन्हा की बहन, रश्मि वर्मा, जो एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ भिड़ने के लिए जाना जाता है, जब वह कपड़ा सचिव के रूप में तैनात थीं, इस नतीजे के परिणामस्वरूप, वर्मा बाद में सचिव के रूप में पर्यटन मंत्रालय चली गई थीं.
पीएमओ में दो पीके
हर तरह संभावना जताई जा रही है कि सिन्हा पीएम के अतिरिक्त प्रधान सचिव नियुक्त किए जाएं, पीएमओ में अन्य पी.के. मिश्रा की जगह. उनसे नृपेंद्र मिश्रा का पीएमओ में पॉलिसी का काम लेने की उम्मीद है. पी.के. मिश्रा के प्रधान सचिव के रूप में कार्यभार संभालने की उम्मीद है.
एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पीके मिश्रा वरिष्ठता में सिन्हा से 5 साल बड़े हैं. इसलिए उनकी नियुक्ति वरिष्ठता के क्रम को प्रभावित कर सकती है. लेकिन इसके इतर पीके मिश्रा उसी तरह काम कर सकते हैं जिस तरह नृपेंद्र मिश्रा करते थे.
हालांकि पीके मिश्रा पहले से ही नियुक्तियों से जुड़े फैसले लेते आ रहे हैं. प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहते हुए वो इन कामों से जुडे़ रहेंगे. प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा का अचानक से इस्तीफा देना कई सवाल खड़े करता है लेकिन मिश्रा ने कहां है कि स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने ऐसा किया है. मिश्रा काफी दिनों से मधुमेह के शिकार हैं और उनकी उम्र भी काफी हो गई है. हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय में 365 दिनों का काम रहता है. पीके मिश्रा अभी दबाव में नृपेंद्र मिश्रा से ज्यादा काम कर सकते हैं
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