scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशमहाराष्ट्र में Covid से मरने वालों की संख्या से कोविड सहायता राशि पाने वाले परिजनों की संख्या ज़्यादा क्यों है

महाराष्ट्र में Covid से मरने वालों की संख्या से कोविड सहायता राशि पाने वाले परिजनों की संख्या ज़्यादा क्यों है

आंकड़ों के इस अंतर को महाराष्ट्र का राहत और पुनर्वास विभाग नजरअंदाज कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञ इस फर्क को कोविड से मरनेवाले सभी लोगों को गिनती में शामिल नहीं करने के तौर पर देखते हैं.

Text Size:

मुंबई: महाराष्ट्र में 25 फरवरी तक कोविड से हुई मौत की आधिकारिक संख्या 1,43,675 हो गई है. हालांकि, राज्य सरकार ने कोविड से मरने वाले लोगों के परिजनों को दी जाने वाली सहायता राशि के लिए 1,54,500 आवेदनों को मंजूरी दी है. हालांकि, यह संख्या आधिकारिक रूप से हुई मौतों से आठ फीसदी ज़्यादा है. सरकार मृतकों के परिजनों को 50,000 रुपये की सहायता राशि दे रही है.

हालांकि, आंकड़े के इस फर्क को राज्य के राहत और पुनर्वास विभाग के अधिकारी खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं. कोविड से जुड़ी सहायता राशि के आवंटन की जिम्मेदारी इसी विभाग की है. अधिकारी के मुताबिक, सहायता राशि के लिए मंजूर किए गए आवेदनों की संख्या ज़्यादा है, क्योंकि पिछले साल अक्टूबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के दायरे को बढ़ा दिया था.

विशेषज्ञों का भी मानना है आंकड़े के इस फर्क को इस तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए कि राज्य में कोविड से मरने वाले सभी लोगों को गिनती में शामिल नहीं किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर, 2021 को कोविड की वजह से मरने वाले लोगों के निकट परिजन को 50,000 रुपये की सहायता राशि देने की मंजूरी दी थी. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इसका सुझाव दिया था.

कोर्ट ने मुआवजे के दायरे को बढ़ाते हुए कहा था कि कोविड जांच में संक्रमित पाए जाने या चिकित्सकीय जांच में संक्रमण की पुष्टि होने के 30 दिन के भीतर अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो वह व्यक्ति सहायता राशि पाने के योग्य होगा. चाहे मौत अस्पताल के बाहर हुई हो.


यह भी पढ़ें: कोविड से सीख लेकर मोदी सरकार AI को बड़े पैमाने पर देगी बढ़ावा, देशभर में करेगी बीमारियों की निगरानी


साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि आवेदन जमा होने के 30 दिनों के भीतर सहायता राशि आवंटित कर देनी चाहिए.

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई गाइडलाइन को स्वीकार करते हुए 26 नवंबर, 2021 को गवर्नमेंट रिजॉल्यूशन (जीआर) जारी किया.

जीआर में कहा कि ऐसे मृतक जिनका आरटी-पीसीआर परीक्षण में और / या चिकित्सकीय जांच में कोविड संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी उनके परिजन सहायता राशि पाने के योग्य होंगे. साथ ही, चिकित्सकीय जांच या टेस्ट में कोविड संक्रमित होने की पुष्टि के 30 दिनों के भीतर जिन लोगों की मौत होती है उनके परिजन सहायता राशि पाने की दावेदारी करने के योग्य होंगे.

नाम नहीं छपने की शर्त पर राहत और पुनर्वास विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुआवजा पाने का दायरा बढ़ने के बाद, आवेदन पाने वालों की संख्या बढ़ी है.

अधिकारी ने कहा, ‘हम सहायता राशि देने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं, इसमें डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर किया जाना है इसलिए सावधानीपूर्वक स्क्रूटनी किए जाने की ज़रूरत है.’

आवेदनों की कम संख्या और सहायता राशि आवंटन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महीने की शुरुआत में महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों की खिंचाई की थी. महाराष्ट्र में 60,000 से ज्यादा आवेदनों को नामंजूर किया गया है.

कोर्ट की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार से कहा था, ‘आप परोपकार नहीं कर रहे हैं. कल्याणकारी राज्य होने के नाते यह आपकी जिम्मेदारी बनती है.’

राज्य के राहत और पुनर्वास मंत्री विजय वड्डेटीवार ने दिप्रिंट से कहा कि आवंटन को तेज करने के लिए वह काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसमें देरी हो रही है क्योंकि राशि के वितरण से पहले, योग्य दावेदारों की अंतिम सूची बनानी होगी. लेकिन, हम इसमें तेजी लाने की दिशा में काम कर रहे हैं.’

आवेदन बनाम आधिकारिक तौर पर हुई मौतें

राहत एवं पुनर्वास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सहायता राशि के लिए अब तक 2.38 लाख से ज़्यादा आवेदन किए गए हैं. इनमें से 2.23 लाख से ज़्यादा आवेदनों की स्क्रूटनी की गई है. जबकि, 69,001 आवेदनों को खारिज कर दिया गया है. साथ ही, इनमें से 26,373 आवेदनों को शिकायत निवारण समितियों (जीआरसी) को भेजा गया है. जीआरसी में हर आवेदक की अपील पर विचार किया जाएगा.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट

विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, दावों के खारिज होने की मुख्य वजह डुप्लिकेशन (एक मृतक के नाम पर एक से ज़्यादा आवेदन) है. इसके अलावा, कथित तौर पर ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कोविड से मरने वाले के परिवार के एक से ज़्यादा सदस्यों ने सहायता राशि पाने की कोशिश की है.

दिप्रिंट से एक अधिकारी ने कहा, ‘उदाहरण के लिए किसी परिवार में कई बच्चे हैं और सभी अपने पिता की मृत्यु होने के बाद आवेदन कर रहे हैं, डुप्लिकेशन को रोकने के लिए हमें किसी एक नाम को ही अंतिम रूप से चुनना होगा.’

अधिकारी के मुताबिक, गलत जानकारी देने की वजह से आवेदन खारिज हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे मामले में आवेदनों की फिर से स्क्रूटनी की जाएगी. फिलहाल, 15,000 से ज्यादा आवेदनों की स्क्रूटनी की जा रही है.

अधिकारी ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से तैयार की गई सूची में मृतक का नाम होने पर दावे को तुरंत मंजूर कर लिया जाता है. हालांकि, अगर नाम आईसीएमआर की ओर से जारी सूची में नहीं है, तो संबंधित डॉक्टर की ओर से दी गई आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट के साथ ही कुछ दूसरे दस्तावेज पेश करने के बाद आवेदक के दावे पर विचार किया जा सकता है और मामले पर कार्रवाई की जा सकती है. आईसीएमआर सभी राज्यों में कोविड से हुई मौतों से जुड़े रिकॉर्ड रखता है.

सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में कोविड की वजह से 25 फरवरी तक 1,43,675 लोगों की मौत हुई है. पिछले साल मई महीने में राज्य कोविड की दूसरी लहर की चपेट में था. इस दौरान सरकार ने कई हफ्ते पहले हुई मौत को शामिल करके ‘डेटा का समन्वय’ किया था. जिसके बाद मरने वालों की संख्या काफी बढ़ गई थी. सरकार ने दावा किया था कि यह देरी से की गई रिपोर्ट का मामला है न कि रिपोर्ट नहीं करने का.

दिप्रिंट को विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अब तक राहत और पुनर्वास विभाग की ओर से 900 करोड़ रुपये से ज़्यादा की सहायता राशि योजना के लिए आवंटित करने का प्रावधान किया गया है. इनमें सबसे ज्यादा पुणे डिवीजन को 254 करोड़ रुपये की राशि दी गई है. वहीं, कोंकण डिवीजन को 253 करोड़ रुपये दिए गए हैं.

इसे अंडर रिपोर्टिंग नहीं कहा जा सकता: आईएमए महाराष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष

यह पूछने पर कि सहायता राशि के लिए मंजूर किए गए आवेदन और राज्य में मरने वाले लोगों की संख्या का फर्क मरने वालों को गिनती में शामिल नहीं करने का नतीजा तो नहीं है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर अविनाश भोंडवे ने कहा कि वह ऐसा नहीं कहेंगे.

उन्होंने कहा कि आवंटन की प्रक्रिया की स्क्रूटनी की जाने की ज़रूरत है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह विसंगति प्रशासनिक भूल का नतीजा हो सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि आवेदक के परिवार के सदस्य का आरटी-पीसीआर न हुआ हो, लेकिन वह कोविड की वजह से मरा हो, ऐसे में उसका नाम आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज नहीं होगा या डेथ रजिस्ट्री सही न हो.’

उन्होंने कहा कि कुछ मरीज उसी समय तुरंत टेस्टिंग नहीं करवाते हैं, ऐसे में अगर उनकी मौत हो जाती है, तो मृत्यु प्रमाणपत्र पर चिकित्सकीय तौर पर कोविड लिखा जाना चाहिए, लेकिन मरने वाले की जानकारी आइसीएमआर की रजिस्ट्री में दर्ज नहीं होती है क्योंकि उन्होंने कोविड टेस्ट नहीं करवाई होती है. डॉक्टर भोंडवे ने कहा, ‘तो ऐसे में इस तरह के दावे भी सामने आते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पहली और दूसरी लहरों के कोविड मरीज़ों के कानों में अब भी महसूस होती है गूंज, डॉक्टरों ने जताई चिंता