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Wednesday, 3 September, 2025
होमदेशदिल्ली हाई कोर्ट ने तसलीम अहमद को 2020 हिंसा मामले में जमानत देने से क्यों किया इनकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने तसलीम अहमद को 2020 हिंसा मामले में जमानत देने से क्यों किया इनकार

अहमद को 19 जून, 2020 को गिरफ़्तार किया गया था और मुक़दमे में कोई ख़ास प्रगति नहीं होने के कारण वह हिरासत में है. उसने ज़मानत मांगने के लिए स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन बताया था.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने तस्लीम अहमद की ज़मानत याचिका खारिज कर दी है. वह 2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी है. यह याचिका मुख्य रूप से ट्रायल में हो रही देरी के आधार पर दायर की गई थी. अदालत ने कहा कि लंबे समय तक ट्रायल लटकने के लिए पुलिस या अदालत नहीं, बल्कि आरोपी ज़िम्मेदार हैं.

जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड देखा और पाया कि चार्ज पर बहस बार-बार आरोपी की मांग पर टाली गई. अदालत ने यह भी कहा कि कुछ सह-आरोपी, जो पहले से ज़मानत पर हैं, जैसे छात्र कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इक़बाल तनहा, ने भी कार्यवाही में देरी की, जिससे हिरासत में रह रहे आरोपियों को नुकसान हुआ.

अदालत ने कहा कि ट्रायल में देरी का बड़ा कारण आरोपी ही हैं और केवल लंबे समय तक जेल में रहना, सख्त यूएपीए कानून के तहत ज़मानत का आधार नहीं हो सकता. अहमद पर यूएपीए के तहत आरोप है कि उसने 2020 के दंगों की बड़ी साजिश में हिस्सा लिया था.

बेंच ने मंगलवार को अपने 37 पन्नों के आदेश में कहा, “तेज़ ट्रायल मौलिक अधिकार है. लेकिन अगर आरोपी खुद ट्रायल में देरी करे और फिर ज़मानत मांगे, तो यह स्वीकार्य नहीं है. ऐसा करने से कानून का उद्देश्य खत्म हो जाएगा, क्योंकि आरोपी एक तरफ ट्रायल को खींचेगा और दूसरी तरफ ज़मानत के लिए दलील देगा.”

अदालत ने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट के केए नजीब मामले में भी यह साफ है कि सिर्फ देरी ज़मानत का आधार नहीं हो सकती. इस मामले में ज्यादातर देरी के लिए आरोपी ज़िम्मेदार हैं, न कि अभियोजन की लापरवाही.”

अहमद को 19 जून 2020 को गिरफ़्तार किया गया था. उनका कहना था कि बिना ट्रायल में प्रगति के पांच साल जेल में रहना उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. उनकी तरफ से वकील ने सुप्रीम कोर्ट के के.ए. नजीब फैसले का हवाला दिया, जिसमें यूएपीए मामलों में लंबी कैद पर ज़मानत दी गई थी.

लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि नजीब का फैसला तब लागू नहीं होता, जब देरी आरोपी की वजह से हो.

ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड और अन्य आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं से पता चला कि कुछ आरोपी जांच जारी रहने का हवाला देकर चार्ज पर बहस टालते रहे. जबकि सभी आरोपियों में सहमति थी कि कार्यवाही आगे बढ़नी चाहिए, फिर भी बहस बार-बार टली.

ट्रायल कोर्ट ने इन देरी पर “चिंता” भी जताई थी. हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता अहमद ने भी अपने चार्ज पर बहस 4 अप्रैल से ही शुरू की, और वह भी तब, जब यह ज़मानत अपील पहले से चल रही थी.

UAPA में ज़मानत के कड़े नियम

यूएपीए की धारा 43डी(5) के तहत ज़मानत नहीं दी जा सकती अगर आरोप “प्राइमा फेसी सच” पाए जाते हैं. हाईकोर्ट की बेंच ने दोहराया कि इस प्रावधान की वजह से ज़मानत अपवाद है, नियम नहीं. अदालत ने कहा कि सिर्फ लंबी हिरासत और देरी, बिना मामले की मेरिट देखे, रिहाई का आधार नहीं हो सकते.

“प्राइमा फेसी सच” का मतलब भी 2019 के वाताली केस से दोहराया गया कि— “ऊपरी तौर पर, सबूतों से आरोपी की संलिप्तता अपराध में दिखनी चाहिए. सबूत इतने अच्छे और पर्याप्त होने चाहिए कि दिए गए तथ्य या तथ्यों की कड़ी से अपराध साबित हो सके, जब तक कि उन्हें किसी और सबूत से चुनौती या खारिज न किया जाए.”

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का आरोप है कि 2020 के दंगे दिसंबर 2019 में संसद से नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पास होने के बाद रची गई “गहरी साजिश” का हिस्सा थे. जांचकर्ताओं के अनुसार, मुस्लिम-बहुल इलाकों में 23 धरना स्थल बनाए गए ताकि सड़कों को रोका जा सके और भीड़ को कानून के खिलाफ जुटाया जा सके. इसी से फरवरी 2020 की हिंसा भड़की, जिसमें 53 लोगों की मौत हुई.

अहमद पर भारतीय दंड संहिता, आर्म्स एक्ट, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाने का अधिनियम और यूएपीए की कई धाराओं के तहत भी आरोप हैं, जिनमें आतंकवाद से जुड़ी धाराएं भी शामिल हैं.

ज़मानत पर फैसला लेते समय हाईकोर्ट ने जगतर सिंह जोहल बनाम एनआईए और नईम अहमद खान बनाम एनआईए मामलों का हवाला दिया. इन मामलों में कहा गया था कि लंबी कैद अकेले ही ज़मानत का आधार नहीं हो सकती, खासकर गंभीर अपराधों जैसे आतंकवाद और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में। अपराध की गंभीरता को भी देखना ज़रूरी है.

अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार अन्य आरोपियों की ज़मानत अर्जी की स्थिति भी देखी.

कुछ आरोपी जैसे कलिता, नरवाल और तनहा को 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाद में साफ किया कि उन आदेशों को अन्य यूएपीए मामलों में नज़ीर नहीं माना जाएगा. अन्य जैसे कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां को 2022 में ज़मानत मिली. लेकिन मुख्य आरोपी जैसे आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन अब भी जेल में हैं.

हाईकोर्ट ने मंगलवार को शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफ़ा-उर-रहमान, अतर खान, मीरन हैदर, शादाब अहमद, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की ज़मानत अर्जी भी खारिज कर दी.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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