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Monday, 7 July, 2025
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दिल्ली की अदालत ने संजय भंडारी को भगोड़ा आर्थिक अपराधी क्यों घोषित किया

कोर्ट ने हथियार कारोबारी का यह तर्क खारिज कर दिया कि यूके में गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण याचिका से रिहाई के साथ गैर-जमानती वारंट की कार्रवाई पूरी हो गई थी और इससे उन्हें भारत में कानूनी कार्यवाही से राहत मिल जाती है.

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नई दिल्ली: यूके में गिरफ्तारी और भारत सरकार के प्रत्यर्पण अनुरोध से राहत मिलने के बाद भी दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को लंदन स्थित हथियार डीलर और बिजनेसमैन संजय भंडारी को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित कर दिया. अदालत ने उनकी उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि गैर-जमानती वारंट (NBW) उनके यूके में गिरफ्तारी और वहां प्रत्यर्पण से छूट मिलने के बाद निष्प्रभावी हो गया है.

जिला जज संजीव अग्रवाल ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि प्रत्यर्पण में असफलता का मतलब यह नहीं है कि आरोपी (भंडारी) भारत में कानूनी कार्रवाई से बच जाएगा. यह केवल आरोपी को मुकदमे का सामना कराने के लिए एक ज़रिया था. इसी तरह, 2018 के भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून के तहत कार्यवाही भी ऐसे आर्थिक अपराधियों को मजबूर करने का एक तरीका है, जिन पर 100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है.

यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका पर चल रहा था, जो दिसंबर 2019 में कानून की धारा 4, 10 और 12 के तहत दायर की गई थी. यह कानून उन लोगों के खिलाफ लाया गया था जो टैक्स चोरी और बैंक फ्रॉड जैसे गंभीर आर्थिक अपराधों में शामिल हैं.

यह कार्रवाई इनकम टैक्स विभाग की दिसंबर 2018 में दायर शिकायत के आधार पर शुरू हुई थी, जो उन्होंने ब्लैक मनी एक्ट की धारा 51 के तहत दर्ज कराई थी. इसके साथ ही, ईडी ने भी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत जांच शुरू की थी.

ईडी ने अदालत को बताया कि दिल्ली की एक अदालत ने 2019 में भंडारी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था और उन्हें दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की जांच में भी उद्घोषित अपराधी घोषित किया गया था.

ईडी और इनकम टैक्स विभाग की जांच के आधार पर भारत सरकार ने अप्रैल 2020 में यूके सरकार को दो प्रत्यर्पण अनुरोध भेजे थे, जिन्हें जून 2020 में यूके के होम सेक्रेटरी ने मंजूरी दी थी.

इसके बाद नवंबर 2022 में यूके के एक डिस्ट्रिक्ट जज ने मामले को यूके के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को भेजा था, जिन्होंने जनवरी 2023 में प्रत्यर्पण की अनुमति दी थी. लेकिन 28 फरवरी 2024 को यूके हाई कोर्ट ने भारत की अपील को खारिज कर दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील पर भी रोक लगा दी.

भंडारी के वकील ने दलील दी कि वह यूके में रहने का अधिकार रखते हैं, इसलिए वह कानून की धारा 2(1)(f) के तहत नहीं आते, जो उन आरोपियों पर लागू होती है जो भारत लौटने से इनकार करते हैं.

इस पर अदालत ने कहा, “यह दलील बेबुनियाद है। प्रत्यर्पण में असफलता से कोई फर्क नहीं पड़ता. आरोपी को भारत लाने के लिए प्रत्यर्पण सिर्फ एक तरीका था. भले ही वह नाकाम रहा हो, इसका मतलब यह नहीं कि आरोपी निर्दोष हो गया या भारतीय कानून से बच गया.”

जज अग्रवाल ने कहा, “भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून की कार्यवाही आरोपी को भारत लौटने के लिए मजबूर करने का एक और तरीका है — जैसे कि उसकी संपत्ति को जब्त करना, उसे नागरिक मामलों में पक्ष रखने से रोकना आदि. यह उन लोगों पर लागू होता है जिन पर 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक के आर्थिक अपराध का आरोप है और जो भारत लौटने से इनकार करते हैं.”

भंडारी के इस तर्क को भी अदालत ने खारिज कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी 2021 में एनबीडब्ल्यू के आधार पर हो चुकी है, इसलिए अब वारंट प्रभावी नहीं है और कानून लागू नहीं होता.

जज ने कहा, “यह दलील भी गलत है. भले ही आरोपी की गिरफ्तारी 31.10.2019 को जारी एनबीडब्ल्यू के तहत हुई हो, जो प्रत्यर्पण कार्यवाही की शुरुआत के लिए था, लेकिन वह वारंट अभी भी वैध है. उसे प्रत्यर्पण शुरू करने के लिए नहीं बल्कि आरोपी को मुकदमे का सामना करने के लिए जारी किया गया था.”

अब अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय से कहा है कि वह भंडारी की संपत्तियों की जब्ती की कार्यवाही एफओई एक्ट 2018 के तहत आगे बढ़ाए.

भंडारी अब भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित होने वाले 16वें व्यक्ति बन गए हैं। इससे पहले इस सूची में नीरव मोदी, विजय माल्या, नितिन संदेसरा, चेतन संदेसरा, उनकी पत्नी दीप्ति और हितेशकुमार नरेंद्रभाई पटेल जैसे नाम शामिल हैं। जनवरी 2019 में विजय माल्या को पहला FEO घोषित किया गया था. सूत्रों के मुताबिक, अब तक सात मामलों में संपत्तियां जब्त की जा चुकी हैं.

पुरानी तारीख के दस्तावेज, फर्जी कंपनियां और लंदन की संपत्तियां

संजय भंडारी के खिलाफ पूरी कार्यवाही की शुरुआत 2016 में हुई थी, जब इनकम टैक्स विभाग ने अप्रैल 2016 में नई दिल्ली स्थित उनके घर पर छापा मारा था.

छापे के दौरान, विभाग को कथित रूप से ऐसे दस्तावेज़ मिले जिनसे पता चला कि भंडारी ने कई विदेशी कंपनियां और संपत्तियां बना रखी थीं, जिनके असली मालिक वही थे.

इसके बाद विभाग ने दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट को भी रोका और भंडारी से जुड़े वकीलों के यहां भी छापे मारे ताकि उनके आर्थिक साम्राज्य की गहराई को समझा जा सके.

कोर्ट में दाखिल अभियोजन शिकायत में इनकम टैक्स विभाग ने आरोप लगाया कि भंडारी दुबई की कंपनियों की मालिकाना स्थिति को पीछे की तारीखों में दिखाकर ट्रांसफर करने की योजना बना रहे थे ताकि ब्लैक मनी एक्ट, 2015 के तहत टैक्स से बचा जा सके.

विभाग ने यह भी आरोप लगाया कि भंडारी ने एक स्कीम बनाई जिसमें उन्होंने 2006 से UAE स्थित अलरहमा ट्रस्ट के एकमात्र ट्रस्टी के रूप में खुद को नियुक्त किया. इसका उद्देश्य था – एक, 2015 में ब्लैक मनी एक्ट लागू होने से पहले की तारीख में मालिकाना हक़ दिखाना, और दूसरा, मालिकाना हक़ को व्यक्तिगत न दिखाकर ट्रस्टी के रूप में पेश करना.

बाद में, मार्च 2015 में भंडारी ने यह ट्रस्टीशिप अपने भरोसेमंद सहयोगी और ब्रिटिश नागरिक सुमित चड्ढा को ट्रांसफर कर दी.

ईडी ने कोर्ट को भंडारी द्वारा अपने सहयोगियों या बेनामी लेन-देन के ज़रिये खरीदी गई संपत्तियों और कंपनियों की पूरी लिस्ट सौंपी, जिसमें लंदन की दो संपत्तियां भी शामिल हैं. इनमें से एक ब्रायनस्टन स्क्वायर में थी जिसे 2010 में बेचा गया, लेकिन भंडारी ने इसे अपनी इनकम टैक्स फाइलिंग में नहीं दिखाया.

ईडी का यह भी आरोप है कि इसी प्रॉपर्टी का नवीनीकरण बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा ने करवाया था और बिक्री से पहले वाड्रा वहीं रुके थे. बाद में यह संपत्ति बढ़ी हुई कीमत पर बेची गई.

ईडी ने अपने जवाब में दावा किया कि 2017-18 के असेसमेंट ईयर में भंडारी की अघोषित विदेशी आय करीब ₹655 करोड़ थी, जिस पर 30% टैक्स की दर से ₹196 करोड़ का टैक्स बनता है.

इसके जवाब में भंडारी ने तर्क दिया कि इस अघोषित विदेशी आय का मूल्यांकन अलग-अलग समय में बदलता रहा है — फरवरी 2020 में आय ₹220.91 करोड़ और जुर्माना ₹66 करोड़ बताया गया, अगले महीने यह बढ़कर 655 करोड़ रुपये और टैक्स 196 करोड़ रुपये हुआ, फिर जुलाई 2020 में यह 487 करोड़ रुपये आय और 146 करोड़ रुपये टैक्स बताया गया, और आखिर में सुनवाई के दौरान यह 191 करोड़ रुपये आय और 57.3 करोड़ रुपये टैक्स में बदल गया.

भंडारी के वकीलों ने कहा, “इतने बदलते आंकड़े खुद ही बताते हैं कि ईडी का केस गलत है. कानून के तहत 100 करोड़ रुपये से अधिक के अपराध के बिना कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती. जब ईडी खुद भी पक्के तौर पर नहीं बता पा रही कि अपराध 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का है या नहीं, तो यह केस इसी आधार पर खारिज कर देना चाहिए.”

हालांकि, जज ने माना कि एजेंसियों द्वारा भंडारी की अघोषित आय के आंकड़े बार-बार बदले गए, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जब ईडी ने यह याचिका दाखिल की थी तब उसके पास पर्याप्त सबूत थे जिससे यह माना जा सके कि अपराध की कुल राशि 100 करोड़ रुपये से अधिक है. साथ ही उन्होंने यह भी दर्ज किया कि 23 मार्च 2020 को अंतिम असेसमेंट में भंडारी की अघोषित विदेशी आय 655 करोड़ रुपये और उस पर टैक्स 196 करोड़ रुपये आंका गया.

जज अग्रवाल ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि कार्यवाही के दौरान ये आंकड़े नहीं बदलने चाहिए थे, क्योंकि इससे इनकम टैक्स अधिकारियों की इस मामले में अनिश्चितता जाहिर होती है. लेकिन इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि जब ईडी ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून की धाराओं के तहत यह याचिका दाखिल की, तब उसके पास ऐसा पर्याप्त आधार था जिससे माना जा सके कि आरोपी एक भगोड़ा आर्थिक अपराधी है और अपराध की राशि 100 करोड़ रुपये से अधिक है. यह अंतिम रूप से तय भी हो गया जब 23.03.2020 को ब्लैक मनी एक्ट की धारा 10(4) के तहत भंडारी की कुल अघोषित विदेशी आय 655 करोड़ रुपये और टैक्स 196 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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