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Monday, 4 November, 2024
होमदेशअस्पतालों में बेड की तलाश में क्यों दर-दर भटक रहे हैं दिल्ली के कोरोना संक्रमित मरीज

अस्पतालों में बेड की तलाश में क्यों दर-दर भटक रहे हैं दिल्ली के कोरोना संक्रमित मरीज

उपचार और बेड की परेशानियां सिर्फ एलएनजेपी अस्पताल तक ही सीमित नहीं है. भय की कहानियां और मरीजों की भर्ती और जांच में आ रही दिक्कतों से राष्ट्रीय राजधानी के कई परिवार निराशा में हैं.

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नई दिल्ली: कोविड-19 मामलों के लिए राष्ट्रीय राजधानी में सबसे ज्यादा 2000 बिस्तरों वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के बाहर तजिंदर सिंह चार अस्पतालों से लौटाए जाने के बाद अपने एक रिश्तेदार को भर्ती कराने के लिए यहां चक्कर काट रहे हैं.

सिंह ने कहा था, ‘मेरे बहनोई को करीब सात दिनों से बुखार और सांस लेने में दिक्कत आ रही है. हम किसी सोर्स के जरिए यहां बेड के लिए कोशिश कर रहे हैं. लेकिन दो घंटे हो गए फिर भी अब तक बेड नहीं मिल पाया है.’

ऐसे ही बेड की जुगत में कई लोगों की जाने जा चुकी हैं. मुर्दाघर के बाहर, भूपेश गुप्ता जो अपने 40 वर्षीय भाई को पांच अस्पतालों में ले जाने के बाद एलएनजेपी आए लेकिन उनके भाई कमल की तबीयत खराब होती चली गई और अचानक से उसकी मौत हो गई.

भूपेश ने कहा, ‘बीती शाम उसने हमें फोन कर कहा कि उसे यहां से ले जाएं क्योंकि उसका ठीक उपचार नहीं हो रहा है और न ही ऑक्सीजन मिल पा रहा है. आज सुबह हमें बताया गया कि उसकी मृत्यु हो गई.’ ‘यहां आने से पहले हम उसे पांच अस्पतालों में ले गए लेकिन किसी ने कोविड की जांच नहीं की.’

उपचार और बेड की परेशानियां सिर्फ एलएनजेपी अस्पताल तक ही सीमित नहीं है. भय की कहानियां और मरीजों की भर्ती और जांच में आ रही दिक्कतों से राष्ट्रीय राजधानी के कई परिवार निराशा में हैं.

नीतियों पर सवाल

बुधवार को 31,309 मामलों के साथ कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए बदलती नीतियों ने दिल्ली के स्वास्थ्य ढांचे पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं और यहां के लोगों को लाचार कर दिया है.

पिछले एक हफ्ते में, अरविंद केजरीवाल सरकार ने छह निजी और दो सार्वजनिक प्रयोगशालाओं को बंद कर दिया, जिनकी प्रतिदिन 4,000 परीक्षणों की क्षमता है, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशानिर्देशों को तोड़ा था.

शनिवार 6 जून को घोषणा की गई थी कि अगर कोई भी अस्पातल संभावित कोविड मरीज का इलाज नहीं करता तो उसपर कार्रवाई होगी. फिर 8 जून को उपराज्यपाल ने सरकार के उस आदेश को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि शहर के निजी और सार्वजनिक अस्पतालों में सिर्फ दिल्लीवालों का इलाज होगा.


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आदेश उस समय आ रहे हैं जब राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में ढील दी जा रही है और केंद्र-राज्य के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है. मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि 50 प्रतिशत मामलों के स्रोत का पता नहीं चल पा रहा है लेकिन एलजी से बैठक के बाद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, ‘केंद्र के अधिकारियों ने कहा है कि दिल्ली में सामुदायिक संक्रमण नहीं फैला है.’

दिल्ली में अब तक 905 लोगों की जान चुकी है और रोज करीब 1200 लोग संक्रमित हो रहे हैं. सिसोदिया ने कहा कि जुलाई के अंत तक शहर में करीब 5.5 लाख मामले हो जाएंगे जिसके लिए 80 हजार बेड की जरूरत होगी. मौजूदा समय में राज्य, केंद्र और निजी अस्पतालों को मिलाकर दिल्ली में 8,975 बेड हैं.

मंगलवार को दिल्ली सरकार ने अपने आदेश में अस्पतालों और निजी सुविधा केंद्रों को कहा कि वो अपने मुख्य द्वार पर फ्लैक्स बोर्ड पर खाली पड़े बेड की जानकारी दें.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था संसाधन केंद्र के पूर्व निदेशक और इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. संजय कुमार ने कहा कि मरीज और डॉक्टर सरकार के अव्यवस्थित फैसलों का खामियाजा भुगतेंगे.

उन्होंने कहा, ‘सभी दिशानिर्देशों और आदेशों के, जो रोज बदल रही हैं, इससे गलत जानकारी लोगों के बीच जा रही है. जिससे उनके मन में भय बढ़ रहा है. आपके पास पहले से ही ऐसे लोग हैं जो जांच कराने और भर्ती होने के लिए जूझ रहे हैं. सरकार को संवेदनशील होना पड़ेगा और इस संकट से निकलने के लिए योजना बनानी पड़ेगी.’

दिप्रिंट ने दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य मंत्री से इसपर बात करनी चाही लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उन्होंने किसी भी फोन कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया.

अस्पतालों के बीच की भागा-दौड़ी

अस्पतालों में बिस्तरों की किल्लत न हो और सरकारी अस्पतालों पर से दबाव को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने 25 मई को आदेश दिया था कि निजी अस्पतालों को अपने 20 प्रतिशत बेड को कोविड मरीजों के लिए आरक्षित करना होगा.

पिछले हफ्ते दिए आदेश में सरकार ने तीन निजी अस्पतालों- श्री गंगाराम अस्पताल, सरोज सुपर स्पैशिएलिटी अस्पताल और मूलचंद अस्पताल को अपने सारे बेड्स को कोविड मरीजों के लिए रखने को कहा था. लेकिन अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने इस आदेश का पालन नहीं किया और न ही उनसे ये नीति बनाने से पहले कोई चेतावनी या सलाह ली गई थी.

100 प्रतिशत कोविड सुविधाओं वाले मूलचंद अस्पताल के प्रशासनिक सूत्रों ने बताया, ‘हमारे यहां अभी भी गैर-कोविड मरीज हैं और हम नहीं जानते कि उनके साथ क्या करें. इस घोषणा से हम अनजान थे. हमारे यहां डायलिसिस के मरीज, गर्भवती महिलाएं हैं. उनके साथ क्या करना है हमें इसका समाधान निकालना है.’

श्री गंगाराम में, जहां 675 बिस्तरों में से 80 प्रतिशत कोविड रोगियों के लिए है, एक सूत्र ने कहा कि जब तक सुविधाएं पूरी तरह तैयार नहीं होती, मरीजों को सरकारी अस्पतालों में रेफर करना जारी रखना होगा.


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अस्पताल के सूत्र ने कहा, हमें अचानक से 505 बेड्स को आरक्षित करना पड़ा. इसके लिए फ्लोर को तय करना, एयर कंडीशनिंग की व्यवस्था करना और पर्याप्त कर्मचारियों को लगाना शामिल है. यह 24 घंटे में नहीं होगा.’ ‘ इसमें हफ्ता भर या 10 दिन लगेंगे तभी हम और मरीजों को भर्ती कर सकते हैं. तब तक, हमें उन्हें कहीं और रेफर करना होगा.’

दिल्ली सरकार ने पिछले हफ्ते गंगा राम अस्पताल पर टेस्टिंग नियमों को तोड़ने के कथित आरोप में एफआईआर दर्ज करायी थी. इसकी परीक्षण प्रयोगशाला, जिसमें प्रति दिन 300 परीक्षण करने की क्षमता है, शनिवार से सभी परीक्षण बंद हो गए हैं. जैसा कि यह परीक्षण नहीं कर सकता है, यह सरकारी नियमों के अनुसार, कोविड-19 रोगियों को भर्ती नहीं कर सकता है या गैर-कोविड रोगियों पर ऑपरेट नहीं कर सकता है.

सूत्रों ने कहा, ‘ज्यादातर फोन कॉल जो हमारे पास आ रहे हैं वो टेस्टिंग के हैं. सरकारी नियमों के कारण हम लोगों को लौटा रहे हैं और न ही उन्हें भर्ती कर पा रहे हैं.’

सरोज सुपर स्पैशियलिटी अस्पताल जो तीसरा अस्पताल है जिसे कोविड इलाज के लिए बदला गया है, वहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉ धीरज मलिक ने दिप्रिंट को बताया कि निजी अस्पतालों के लिए कर्मचारियों की कमी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक थी.

उन्होंने कहा, ‘निजी अस्पतालों में उतने स्टाफ नहीं हैं जितने की सरकारी में है जैसे कि रेजिडेंट्स और सीनियर रेजिडेंट्स आदि. हममें से ज्यादातर डॉक्टर 60 साल से ज्यादा के हैं जिन्हें पहले से ही डायबिटीस और दिल की बीमारी है. स्टाफ भी कोविड मरीजों का इलाज करने से डर रहे हैं. यह भी एक कारण है कि निजी अस्पातल क्यों मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भेज रहे हैं.’

संक्रमण बढ़ने के कारण कोविड बेड तैयार करने में देरी हो रही है, जिससे सार्वजनिक अस्पतालों पर अधिक दबाव पड़ रहा है. एलएनजेपी की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रितु सक्सेना ने उस दर पर असंतोष व्यक्त किया जिस पर निजी अस्पताल मरीजों को रेफर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘मरीजों को लौटाना एक बड़ी बात होती है. लेकिन निजी अस्पताल क्यों नहीं कोविड मरीजों का इलाज कर रहे हैं. जैसे ही मरीज पॉजिटिव निकलता है वो उन्हें एलएनजेपी रेफर कर देते हैं. क्या एलएनजेपी दिल्ली में अकेला अस्पताल है?’

राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल, शहर की नोडल सुविधा है, जिसके सभी 200 बेड भरे हुए हैं. दिल्ली कोरोना एप के अनुसार- जिसे 2 जून को बिस्तरों की खोज को आसान बनाने के लिए लॉन्च किया गया था- उसमें आरएमएल के 12 बेड्स को खाली बताया जा रहा है, लेकिन इसे 6 जून से अपडेट नहीं किया गया है. आरएमएल की जनसंपर्क अधिकारी स्मृति तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि अस्पताल रोगियों को लौटाने के लिए मजबूर है.

उन्होंने कहा, ‘एप वास्तविक समय के अनुसार अपडेट नहीं रहता है लेकिन हमारे सारे बेड भर चुके हैं. मरीजों को लौटाते वक्त हमें बुरा लगता है लेकिन हम और कर भी क्या सकते हैं? हम किसी और अस्पताल के बारे में नहीं बता सकते लेकिन आरएमएल निजी अस्पतालों से रेफर किए गए मरीजों को भर्ती नहीं कर सकता.’

‘क्षमता को नहीं बढ़ाया’

इंडियन अकेडमी ऑफ पब्लिक हेल्थ के डॉ कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि दिन प्रतिदिन कोविड से निपटने के लिए दिल्ली सरकार की नीति अस्पष्ट होती जा रही है. सरकार ने आदेश दिए थे कि जांच सिर्फ लक्षण वाले मरीजों की ही होगी लेकिन सोमवार को एलजी ने फैसला पलट दिया.

उन्होंने कहा, ‘क्षमता बढ़ाने की जगह वो इसे और घटा ही रहे हैं. बीमारी के हर चरण में, राज्य की क्षमता और परीक्षण को बढ़ाने की योजना तैयार की जानी चाहिए. लेकिन उन्होंने प्रतिगामी कदम उठाया.’

डॉ लाल पैथ लैब्स ने दिप्रिंट को बताया कि जांच करने की इजाजत लेना काफी समय लेने वाली प्रक्रिया है.

डॉ लाल पैथ लैब्स के वरिष्ठ मैनेजर डॉ श्रेय मल्होत्रा ने कहा, ‘हम 15 दिन पहले परीक्षण के लिए तैयार थे, लेकिन दो जिलों को छोड़कर इसकी अनुमति नहीं थी. हमने सरकार को दूसरे जिलों के लिए अपने आरटी-पीसीआर एप को सक्रिय करने के लिए लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.’


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सरकारी रेगुलेशन के बिना, कुछ निजी लैब और अस्पताल भी अपने विवेक पर परीक्षण और उपचार प्रदान कर रहे हैं. सरोज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में प्रवेश के लिए न्यूनतम 3 लाख रुपये और 40,000 रुपये या 50,000 रुपये का अग्रिम शुल्क लिया जाता है. इस बारे में पूछे जाने पर, डॉ मलिक ने कहा कि यह ‘कुछ भी गलत नहीं’ था. उन्होंने कहा कि अस्पताल आर्थिक रूप से कमजोर रोगियों के लिए 15 से 20 मुफ्त बेड प्रदान कर रहा था.

कुमार के मुताबिक इस स्थिति से अच्छी तरह निपटने के लिए निगरानी और संचार जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य के कोविड-19 टास्क फोर्स के सामने सभी हितों का प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए और निजी एजेंसियों को सभी फैसलों का हिस्सा होना चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. अगर ऐसा होता और व्यवस्थित ढंग से सब कुछ किया जाता तो शायद दिल्ली का स्वास्थ्य ढांचा इतने दबाव में नहीं होता.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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