नई दिल्ली: मोहाली की एक अदालत ने 2018 के बलात्कार के एक मामले में इस महीने खुद को पादरी कहने वाले बजिंदर सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
इस सजा में बलात्कार के अपराध को साबित करने वाली मेडिकल रिपोर्ट, पादरी के साथ पीड़िता की तस्वीरें और उसकी गवाही जैसे पुख्ता सबूतों को ध्यान में रखा गया है. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश विक्रांत कुमार की बेंच ने कहा कि अदालत को अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहना चाहिए और बलात्कार से संबंधित मामलों में संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
28 मार्च को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश विक्रांत कुमार की पीठ ने पादरी को अपराध के लिए दोषी ठहराया और 1 अप्रैल को सजा की अवधि घोषित की. साथ ही कहा कि उसके साथ कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए. दोनों आदेशों को दिप्रिंट ने देखा है.
अदालत ने कहा, “बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है, बल्कि यह अक्सर अभियोक्ता के पूरे व्यक्तित्व को विचलित कर देता है. बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है और इसलिए अभियोक्ता की गवाही को पूरे मामले की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए और ऐसे मामलों में, अन्य गवाहों की भी जांच न करना अभियोजन मामले में गंभीर कमी नहीं हो सकती है, खासकर जहां गवाहों ने अपराध होते नहीं देखा हो.”
चुंकि कथित पादरी का समाज में अच्छा प्रभाव था और वह पीड़िता पर दबाव डाल सकता था, इसलिए अदालत ने पादरी के उस तर्क को नकार दिया कि उसके खिलाफ मामले में विरोधाभास थे. अगर ऐसा होता भी तो अदालत ने कहा: “विरोधाभास और विसंगतियां अभियोजक के मुख्य बयान को प्रभावित नहीं करतीं. पादरी बजिंदर सिंह अभियोक्ता और बलात्कार पीड़िता की मानसिक स्थिति पर प्रभुत्व रखते थे.” कोर्ट आगे कहा कि विरोधाभास होना तय है और यह मामले की जड़ को प्रभावित नहीं करता है.
अदालत ने कहा कि इन छोटे विरोधाभासों के कारण अभियोजन पक्ष के सबूतों को नकारा नहीं किया जा सकता, और साक्ष्य को पूरी तरह से देखा जाना चाहिए.
अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता की गवाही “विश्वसनीय और भरोसेमंद” थी. पादरी के इस बचाव को खारिज करते हुए कि महिला ने उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया था, अदालत ने कहा कि वह झूठे आरोप लगाने का कोई मकसद साबित करने में विफल रहा है.
अदालत ने पूछा कि अगर यह जबरन वसूली थी, तो जब ऐसा हो रहा था, तो उसने किसी अधिकारी के पास अलग से शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई. अदालत घरेलू कामगार पीड़िता की याचिका पर कार्रवाई कर रही थी, जिसने 2018 में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि सिंह ने उसे चंडीगढ़ के अपने फ्लैट पर बुलाया और उसे चाय दी, जिसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई.
यह घटना सितंबर 2017 में हुई थी. पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा कि पादरी ने उसके साथ मारपीट की और फिर उसके साथ बलात्कार किया. हालांकि पादरी के वकीलों ने बताया कि महिला द्वारा अपनी शिकायत दर्ज कराने में आठ महीने की देरी हुई, लेकिन अदालत ने कहा कि यह स्वीकार्य है क्योंकि ऐसे मामलों में पीड़ित और उनके परिवार आमतौर पर परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने जैसे नतीजों के डर से मामले की रिपोर्ट करने में हिचकिचाते हैं.
पीड़िता ने अदालत को यह भी बताया कि हालांकि वह शुरू में हिचकिचा रही थी, लेकिन उसने एक वकील पुष्पा सलारिया की मदद ली, जिसने उसे एफआईआर दर्ज कराने में मदद की. अपनी शिकायत के बाद, उसने अदालत को बताया कि सिंह ने उसे व्हाट्सएप पर जान से मारने की धमकियां भेजना शुरू कर दिया.
एफआईआर दर्ज होने के बाद, सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन बाद में उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया.
मोहाली की अदालत ने सिंह के मामले में दो आदेश दिए: बलात्कार के लिए उसकी सजा के संबंध में 67-पेज का निर्णय जो 28 मार्च को सुनाया गया था, और सजा के संबंध में 1 अप्रैल को पारित सात-पेज का आदेश.
अपने आदेश से, अदालत ने पंजाब के पादरी को ईसाई धर्म प्रचारक के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करके बलात्कार, आपराधिक धमकी और स्वेच्छा से चोट पहुंचाने जैसे जघन्य अपराध करने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
उनकी सजा का आधार अप्रैल 2018 में पीड़िता की मेडिकल जांच के बाद एक मेडिकल रिपोर्ट थी, जिसमें कहा गया था कि उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था.
हालांकि सिंह ने इस आधार पर नरमी और दया की प्रार्थना की कि वह अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला है, लेकिन अदालत का मानना था कि उसने एक गंभीर अपराध किया है और मामले में कोई भी ऐसा कारक नहीं है जो उसे कमतर कर सके.
इस अदालत ने कहा, “जिस अपराध के लिए दोषी को दोषी ठहराया गया है, उसकी गंभीरता को देखते हुए, वह नरमी का हकदार नहीं है. वर्तमान मामले में कोई भी ऐसा कारक नहीं है जो उसे कमतर कर सके.”
बजिंदर सिंह के खिलाफ मामला
पीड़िता ने बताया कि 2017 में उसके साथ बलात्कार करने से पहले सिंह ने उसे अपने साथ यूके ले जाने का वादा करके बहलाया था. अपने घर पर बलात्कार करने के एक महीने बाद, पीड़िता ने कहा कि उसने फिर से एक कार में उसके साथ बलात्कार किया और उसे धमकाया और ब्लैकमेल किया, यह कहते हुए कि उसने उसे बेहोशी की हालत में वीडियो बना लिया है. पीड़िता के अनुसार, उसने उससे 4 लाख रुपये की जबरन वसूली की.
शर्म के कारण और जान से मारने की धमकियों के कारण, पीड़िता ने कहा कि वह आठ महीने तक इस घटना के बारे में शिकायत करने से हिचकिचाती रही.
एक अन्य घटना में, जो पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से कुछ दिन पहले हुई थी, पीड़िता ने आरोप लगाया कि पादरी के गुंडों ने उसे एक जगह बुलाया, उसे कार में बिठाया और उसे पीटना शुरू कर दिया तथा उसे गलत तरीके से छूना शुरू कर दिया.
नए साल 2018 की पूर्व संध्या पर, पीड़िता ने अपनी याचिका में कहा, उसने सिंह से हाथ जोड़कर अपनी वीडियो रिकॉर्डिंग मांगी थी, जिसमें उसने विनती की थी कि वह अब और नहीं सह सकती, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
जुलाई 2018 में, महिला द्वारा पुलिस से संपर्क करने के बाद, पादरी के खिलाफ बलात्कार, धोखाधड़ी, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने, अश्लील कृत्यों पर रोक, आपराधिक धमकी और इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील कंटेंट प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसके बाद सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.
अपना मामला रखते हुए, पादरी ने अदालत में तर्क दिया कि वह निर्दोष है और घरेलू नौकरानी उससे पैसे ऐंठ रही है.
अदालत ने क्या फैसला दिया?
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पादरी के खिलाफ केवल तीन अपराध ही सफलतापूर्वक साबित किए जा सके, बलात्कार, आपराधिक धमकी और स्वेच्छा से चोट पहुंचाना, अदालत ने बताया कि जबरन वसूली, इलेक्ट्रॉनिक रूप से अश्लील कंटेंट का प्रसारण और धोखाधड़ी जैसे अपराध साबित नहीं किए जा सके.
एक बलात्कारी “एक असहाय महिला की आत्मा को अपमानित और अपवित्र करता है”, अदालत ने अपने आदेश में कहा, साथ ही कहा कि ऐसे मामलों में, पीड़ित और उनके परिवार मामले की रिपोर्ट करने के लिए आगे आने में हिचकिचा सकते हैं. यह बात पादरी के उस आरोप के जवाब में कही गई थी जिसमें उसने कहा था कि पीड़िता ने अपनी शिकायत बहुत देर से दर्ज कराई.
अदालत ने कहा कि देरी का अभियोजन पक्ष के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह में सुप्रीम कोर्ट के 1996 के फैसले को याद करते हुए, जिसमें उसने कहा था कि “अदालतों को सबूतों का मूल्यांकन करते समय इस तथ्य के प्रति सजग रहना चाहिए कि बलात्कार (यौन उत्पीड़न) के मामलों में, कोई भी स्वाभिमानी महिला अपने सम्मान के खिलाफ अपमानजनक बयान देने के लिए अदालत में आगे नहीं आएगी.”
अदालत ने कहा कि ऐसे अपराधों में कोई भी व्यक्ति बलात्कार का झूठा आरोप नहीं लगाएगा, क्योंकि भारतीय समाज में कोई महिला किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगाएगी क्योंकि उसे इसके परिणामों के बारे में पूरी जानकारी है.
अदालत ने कहा, “अगर वह झूठी पाई जाती है, तो समाज उसे जीवन भर तिरस्कार की दृष्टि से देखेगा.”
इसके अलावा, मोहाली अदालत ने अप्रैल 2018 में पीड़िता की मेडिकल जांच की रिपोर्ट पर भी विचार किया, जिसमें पता चला कि उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था. पादरी के वकील द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए कि महिला का मामला विरोधाभासों से भरा हुआ था, अदालत ने कहा कि “विरोधाभास और विसंगतियां अभियोक्ता के मूल संस्करण को नहीं हिला सकतीं.”
अदालत ने यह भी कहा कि पादरी ने यह नहीं कहा था कि यह कृत्य सहमति से किया गया था, बल्कि इसके बजाय उसने आरोपों को पूरी तरह से नकार दिया था. अदालत ने सिंह को शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई, साथ ही 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने कहा कि जुर्माना अदा न करने पर पादरी को छह महीने और सश्रम कारावास की सजा होगी. इसके अलावा, उसे आपराधिक धमकी और महिला को जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए एक-एक साल की सजा सुनाई गई.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: शैव और वैष्णव पर आपत्तिजनक बयान के बाद DMK मंत्री पोनमुड़ी को पार्टी पद से हटाया गया