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Wednesday, 20 November, 2024
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सार्वजनिक कलह के बावजूद अन्नाद्रमुक के बीजेपी से अलग होने की संभावना क्यों नहीं है?

AIADMK के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि तमिलनाडु में पार्टी सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सहयोगी दल के साथ बनी हुई हैं. उधर बीजेपी खुद को 'प्रमुख विपक्षी दल' के रूप में गढ़ती दिख रही है.

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चेन्नई: तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और भाजपा के बीच बहुत तनाव चल रहा है. दक्षिण भारत की इस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यह एक ‘मजबूरी वाला गठबंधन’ जो शायद 2024 के लोकसभा चुनाव तक ही चल पाएगा, और कम से कम इसकी वजह सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता नहीं है.

पिछले हफ्ते तमिलनाडु में इन दो सहयोगियों के बीच सार्वजनिक रूप से वाकयुद्ध छिड़ चुका है. इसके बाद से राजनीतिक पर्यवेक्षक यह सवाल करने लगे हैं कि क्या गठबंधन में सब ठीक है.

दोनों दलों के बीच कलह, पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में सामने आई, जब अन्नाद्रमुक के संगठन सचिव सी. पोन्नईयन ने भाजपा को लताड़ा और केंद्र सरकार पर ‘तमिल विरोधी’ नीतियों का पालन करने का आरोप लगाया.

उन्होंने गठबंधन को ‘चुनावी समझौता’ बताया और आरोप लगाया कि भाजपा तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के बलबूते आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है.

इस कार्यक्रम में कथित तौर पर पार्टी के पदाधिकारियों के बीच इसे लेकर सहमति नजर आई लेकिन वे इसे लेकर ज्यादा मुखर नहीं थे. मगर इस वे इस बात से सहमत नजर आए कि भाजपा राज्य में प्रमुख विपक्ष की कमान अन्नाद्रमुक से छीनने की कोशिश कर रही है.

दिप्रिंट से बात करते हुए अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने स्वीकार किया कि पार्टी के पास गठबंधन में बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. अगर वह 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने स्वयं के एक मजबूत प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बिना, चुनावों में प्रासंगिक बने रहना चाहती है, तो उसे यह गठबंधन निभाना ही होगा.

अन्नाद्रमुक के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘लोकसभा चुनाव में आपको पीएम उम्मीदवार की जरूरत होती है और मोदी आज मजबूती से खड़े हुए हैं.’

नेता ने कहा, ‘अन्नाद्रमुक किसे प्रोजेक्ट करने जा रही है? आप चाहे इसे पसंद करें या न करें, लेकिन लोकसभा चुनाव हम भाजपा के बिना नहीं लड़ सकते हैं और न ही भाजपा हमारे बिना. यह मजबूरी का गठबंधन है’

जब पोन्नइयन से आपस में हुई उस बहस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मतभेदों के बावजूद दोनों पक्षों के बीच ‘सौहार्दपूर्ण संबंध’ हैं.

मतभेद नए नहीं हैं. अप्रैल-मई 2021 में विधानसभा चुनावों में अपनी हार के ठीक बाद, अन्नाद्रमुक नेता और पूर्व कानून मंत्री सी.वी. शनमुगम भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर काफी मुखर थे, जिसकी वजह से उनके अल्पसंख्यक वोटों में कमी आई थी. उस साल दिसंबर में अन्नाद्रमुक ने प्रमुख अल्पसंख्यक नेताओं, नीलोफर काफिल और पूर्व श्रम मंत्री अनवर राजा को भी निष्कासित किया था. राजा कथित तौर पर भाजपा के साथ गठबंधन के खिलाफ थे.

अन्नाद्रुमुक के एक नेता ने प्रिंट को बताया, ‘इस समय जो अन्नाद्रुमुक की हालत है, क्या हम इस स्थिति में हैं कि अगर बीजेपी से गठबंधन तोड़ दें तो सारे अल्पसंख्यक कतार में खड़े होकर हमें वोट डाल देंगे? नहीं. जो भी अतिरिक्त वोट हमें भाजपा से मिलते हैं, उन्हें भी हम इस हिसाब से गंवा देते हैं.’

हालांकि सत्तारूढ़ द्रमुक, जो परंपरागत रूप से इस गठबंधन को निभाता आया है, के लिए सबसे बड़ी चुनौती भाजपा की खुद को स्थापित करने की कोशिश है. अन्नाद्रमुक के लिए यह एक कड़वी गोली के समान है.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए भाजपा विधायक नैनार नागेंद्रन से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. नागेंद्रन ने पिछले हफ्ते अन्नाद्रमुक की निष्कासित नेता वीके शशिकला को पार्टी से जुड़ने के लिए आमंत्रित करने पर काफी सुर्खियां बटोरीं थीं.

नैरेटिव पर वर्चस्व की लड़ाई

भाजपा और अन्नाद्रमुक को अक्सर ‘असहज सहयोगी’ यानी जबरदस्ती के बंधन में बंधे सहयोगियों के तौर पर भी जाना जाता है. आम तौर पर अपने मतभेदों पर दोनों दल मौन साधे रहते हैं. लेकिन पिछले सप्ताह सी पोन्नईयन के भाजपा पर तीखे हमले किए, जिसमें शिकायतों की एक लंबी सूची नजर आई.

उन्होंने भाजपा पर राज्य में अन्नाद्रमुक के प्रभाव को कम करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. यहां तक कि पार्टी कार्यकर्ताओं से भाजपा के ‘दोहरे मानदंडो’ को जनता के सामने उजागर करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने का भी आग्रह किया गया.

तमिलनाडु के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई यह कहते हुए इस तरह के विचारों को काटते हैं कि भाजपा राज्य में तेजी से बढ़ रही है और ‘मुख्य विपक्षी पार्टी’ की जगह ले रही है क्योंकि वह ‘डीएमके से सीधे तौर पर टकरा रही है.’

आक्रामक तरीके से स्थितियों से निपटने का अन्नामलाई का यह अंदाज विशेष रूप से द्रमुक के खिलाफ, राज्य में भाजपा के बढ़ते वर्चस्व का सिर्फ एक पहलू है.

मद्रास विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रामू मणिवन्नन ने इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में टिप्पणी की: ‘ अन्नामलाई नहीं बल्कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपनी सारी सरकारी मशीनरी के साथ तमिलनाडु में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रही है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, सी. पोन्नईयन ने इस बात पर भी जोर दिया कि तमिलनाडु में भाजपा की नीतियां और सिद्धांत राष्ट्रीय स्तर पर समान नहीं हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय जरूरतें, तमिलनाडु की क्षेत्रिय जरूरतों से अलग हैं. अगर तमिलनाडु में बीजेपी अपनी नीतियां और सिद्धांतों को बदलती है, अगर वे तमिलनाडु के लोगों की आकांक्षाओं के लिए लड़ना शुरू कर देते हैं, तो उन्हें फायदा होगा.’

भाजपा के साथ अपनी पार्टी के संबंधों के बारे में पूछे जाने पर, पोन्नईयन ने कहा कि संबंध ‘सौहार्दपूर्ण’ हैं और प्रधान मंत्री के रूप में मोदी का प्रदर्शन ‘उच्च स्तर’ का रहा है.


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‘ अगर मैडम होती तो…’

लड़ाई यह भी है कि मुद्दों को लेकर कौन अपने पक्ष में बेहतर माहौल बना पाता है.

अन्नाद्रमुक के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि पार्टी ने भाजपा को जगह दी है.

उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से हमने मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी जगह भाजपा को सौंप दी है’ वह आगे कहते हैं, ‘मौजूदा समय में, तमिलनाडु में सक्रिय राजनीति में मुद्दों पर बोलने में भाजपा बहुत अच्छा कर रही है. जमीन स्तर पर तो मैं नहीं कह सकता लेकिन हां, कागजों पर और मीडिया के जरिए वे एक विपक्षी दल की तरह काम कर रहे हैं.’

अन्नाद्रमुक नेता द्वारा कही गई बात का एक उदाहरण सप्ताहांत में अन्नामलाई की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी, जिसमें उन्होंने डीएमके सरकार पर मातृ पोषण किट खरीदने के लिए टेंडर जारी करने में एक खास प्राइवेट कंपनी का पक्ष लेने का आरोप लगाया था. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री एम. सुब्रमण्यम ने इन दावों का खंडन किया और कहा कि योजना के लिए अभी बोली लगाने की स्कीम को बंद नहीं किया गया है.

वरिष्ठ अन्नाद्रमुक नेता ने दिप्रिंट को बताया,, ‘अन्नामलाई ने द्रमुक मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को सूचीबद्ध किया था. यह ऐसा मसला था जिसे मुख्य विपक्षी दल के रूप में हमारी तरफ से उठाया जाना चाहिए था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर मैडम (दिवंगत पार्टी अध्यक्ष जे. जयललिता) होतीं, तो वह ऐसा ही करतीं.’

आंतरिक दरार

अन्नाद्रमुक के भीतर आंतरिक दरार भाजपा के साथ टकराव को और बढ़ा रही है.

उदाहरण के लिए, पार्टी समन्वयक और पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने यह कहकर भाजपा का साथ दिया कि पोन्नईयन का बयान उनके व्यक्तिगत विचारों को दर्शाता है. हालांकि, पूर्व सीएम, अन्नाद्रमुक नेता और संयुक्त समन्वयक एडप्पादी के. पलानीस्वामी भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष वी.पी. दुरईसामी की इस टिप्पणी पर कि पार्टी विपक्ष की भूमिका ठीक से नहीं निभा रही है, जम कर बरसे.

अन्नाद्रमुक से निष्कासित नेता वी.के. शशिकला ने एक सप्ताह पहले पार्टी में वापसी की अटकलों को खारिज कर दिया. तो वहीं भाजपा ने अपने विधायक नैनार नागेंद्रन के साथ आग में घी डालने का काम करते हुए, सुझाव दे डाला कि भाजपा में शामिल होने के लिए उनका स्वागत है.

उन्होंने कहा, ‘अगर अन्नाद्रमुक पूर्व अंतरिम महासचिव को दोबारा नहीं लेना चाहती तो हम उनका भाजपा में स्वागत करेंगे. हम यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रहे हैं कि वह भाजपा में शामिल हों क्योंकि इससे पार्टी को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी.’ हालांकि अन्नामलाई ने इस मामले पर नागेंद्रन के विचारों को व्यक्तिगत बताते हुए उन्हें खारिज कर दिया.

‘ मतभेद अभी और बढ़ेंगे’

चेन्नई के राजनीतिक शोधकर्ता रवींद्रन दुरईसामी का मानना है कि दोनों दल 2024 के चुनावों तक इस तरह से आपस में भिड़ते और झगड़ते रहेंगे. उन्होंने द प्रिंट को बताया, ‘क्योंकि बीजेपी अब सीटों के बड़े हिस्से पर दावा करेगी.’

पोन्नईयन की टिप्पणियों के तुरंत बाद भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई ने कथित तौर पर कहा: ‘आप 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को आगे बढ़ते देखेंगे. यहां पार्टी लोकसभा की 25 सीटों पर जीत हासिल करेगी. बीजेपी तमिलनाडु में तेजी से आगे बढ़ रही है.’

दुरईसामी ने कहा, ‘अन्नाद्रमुक को अपनी शर्तों पर भाजपा की जरूरत है, भाजपा को अपनी शर्तों पर अन्नाद्रमुक की जरूरत है. दोनों में आपसी संशय है. आज दोनों पार्टी जिस स्थिति में हैं, उस अंतराल को पाट पाना मुश्किल हैं. यह अंतर काफी गहरा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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