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Friday, 26 April, 2024
होमदेशडब्ल्यूएचओ की नई जानकारी- हवा में ट्रांसमिशन को ख़ारिज नहीं किया सकता पर छोटी बूंदें अब भी सबसे बड़ा ख़तरा 

डब्ल्यूएचओ की नई जानकारी- हवा में ट्रांसमिशन को ख़ारिज नहीं किया सकता पर छोटी बूंदें अब भी सबसे बड़ा ख़तरा 

200 वैज्ञानिकों के एक खुला पत्र लिखकर, हवाई ट्रांसमिशन एडवाइज़रीज़ में संशोधन करने की मांग के बाद, डब्लूएचओ ने कोविड संक्रमण पर 10 पेज का एक ताज़ा ब्रीफ जारी किया है.

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बेंगलुरू: कोविड-19 संक्रमण का बुनियादी स्रोत अभी भी बड़ी ड्रॉपलेट्स हैं, हालांकि एयरोसोल और फोमाइट के संक्रमण को ख़ारिज नहीं किया जा सकता. ये बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने बृहस्पतिवार को अपने नए साइंटिफिक ब्रीफ (जानकारी) में कही, जिसमें वायरस संक्रमण के बारे में मालूम हर जानकारी का सारांश दिया गया है.

डब्ल्यूएचओ ने ये ब्रीफ तब जारी की है जब 200 एक्सपर्ट्स ने एजेंसी को एक खुला पत्र लिखकर, इसकी हवाई  ट्रांसमिशन गाइडलाइन्स में संशोधन की मांग की.

दस पन्नों के ब्रीफ में, जिसमें सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के सभी संभव स्रोतों की खोज की गई, विश्व स्वास्थ्य एजेंसी ने माना, कि ख़ासकर भीड़ भरी और कम हवादार जगहों पर, एयरोसोल संक्रमण को ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

एयरोसोल्स आकार में 5 माइक्रो मीटर से कम, या एक मिलीमीटर के पांच हज़ारवें हिस्से से भी छोटे होते हैं. वैसे तो ड्रॉपलेट्स भी हवा में हो सकते हैं, लेकिन कोविड के संदर्भ में हवाई संक्रमण से मतलब बुनियादी तौर पर एयरोसोल ट्रांसमिशन से होता है.

एयरोसोल्स कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और दूर तक फैलते हैं ख़ासकर अंदर की उन जगहों पर, जो हवादार नहीं होतीं.

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वैज्ञानिकों को संदेह है कि सार्स-सीओवी-2, एयरोसोल्स के ज़रिए भी फैल सकता है, जो सिर्फ बोलने या सांस से हवा खींचने से भी पैदा हो जाते हैं. अपने पत्र में एक्सपर्ट्स ने हवाई या एयरोसोल संक्रमण को, कुछ सुपर-स्प्रेडर घटनाओं का कारण बताया था.


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‘कुछ घटनाएं ट्रांसमिशन के दूसरे साधनों से भी समझी जा सकती हैं’

डब्ल्यूएचओ के ताज़ा डॉक्युमेंट में उन प्रयोगों को माना गया जिनमें बात करने या गाने जैसी क्रिया के दौरान, एयरोसोल्स को रिलीज़ होते दिखाया गया था लेकिन साथ ही कहा गया कि एयरोसोल ट्रांसमिशन के साथ, सार्स-सीओवी-2 वायरस का होना प्रमाणित नहीं किया गया.

उसमें आगे कहा गया कि हालांकि अस्पतालों में एयरोसोल पैदा करने वाली गतिविधियों के बाद, हवा में वायरस का पता लगा लेकिन वो व्यवहार्य नहीं पाया गया.

मंगलवार को, डब्ल्यूएचओ के संक्रमण रोकथाम और नियंत्रण की टेक्निकल लीड, बेंडेटा एलेग्रांज़ी ने खुले पत्र में उठाई गई चिंताओं के बारे में कहा था कि, ‘कुछ सबूत उभर रहे हैं लेकिन वो निश्चित नहीं हैं’. उन्होंने ये भी कहा था, ‘सार्वजनिक जगहों पर, ख़ासकर भीड़ भरी, बंद और कम हवादार जैसी बहुत विशेष जगहों में, हवाई संक्रमण की संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता’.

नई जानकारी में एजेंसी ने कहा कि कुछ रिपोर्ट्स मिली हैं, जिनमें ये बात कही गई है, कि एयरोसोल ट्रांसमिशन ने बीमारी को फैलाया था लेकिन उन्हें वायरस फैलने के दूसरे साधनों से समझा सकता है, ‘जिनमें गाने के अभ्यास, रेस्ट्रॉन्ट या फिटनेस क्लासेज़ शामिल हैं’.

सुपर-स्प्रेडर की कुछ घटनाएं हुई हैं- वॉशिंगटन की एक कॉयर प्रेक्टिस में, और चीन के रोस्ट्रॉन्ट्स में- जिन्हें एयरोसोल ट्रांसमिशन से जोड़ा गया है.

डब्ल्यूएचओ ने कहा, ‘इन घटनाओं में, ख़ासकर भीड़ भरी और कम हवादार इंडोर लोकेशंस में, अगर लोग लंबे समय तक रहें, तो कम दूरी के एयरोसोल ट्रांसमिशन की संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता लेकिन इन क्लस्टर्स की विस्तृत जांच से पता चलता है कि इनमें इंसान से इंसान को हुए संक्रमण को, ड्रॉपलेट और फोमाइट ट्रांसमिशन से भी समझा जा सकता है’.

फोमाइट ट्रांसमिशन तब होता है जब कोई स्वस्थ इंसान किसी दूषित सतह के वायरस के संपर्क में आ जाता है.

एजेंसी ने ये भी समझाया कि सही फासला रखने, या मास्क लगाने के उपाय न करने से भी संक्रमण और तेज़ी से फैला होगा.

अपने पत्र में वैज्ञानिकों ने एयरोसोल ट्रांसमिशन के अपने सबूतों की तुलना, फोमाइट ट्रांसमिशन के सुबूतों से की और आरोप लगाया कि डब्ल्यूएचओ फोमाइट्स पर ज़्यादा ज़ोर देता है, इसके बावजूद कि इसके ट्रांसमिशन का बुनियादी साधन होने के सबूत नहीं हैं. उन्होंने कहा कि माइक्रो-ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन के सबूत ‘अधूरे’ हैं, ठीक वैसे, जैसे बड़े ड्रॉपलेट और फोमाइट ट्रांसमिशन के हैं.

डब्ल्यूएचओ की ब्रीफ में, फोमाइट ट्रांसमिशन के सबूत की कमी को मानते हुए कहा गया, कि वायरस के सतहों पर बैठने के लगातार सबूत मिलने के बावजूद, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि इस दौरान, वायरस इस तरीक़े से इंसानों के बीच फैला हो, क्योंकि जो लोग संक्रमित सतह के संपर्क में आए, वो संक्रमित लोगों के संपर्क में भी आए थे.


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सिफारिशें

संक्रमण को रोकने के लिए डब्ल्यूएचओ ने टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेटिंग की सिफारिशें जारी रखी हैं. उसने कहा कि बिना लक्षण वाले मरीज़ दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं और जिनमें लक्षण हैं वो मुख्यत: ड्रॉपलेट्स और क़रीबी संपर्क से, दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं.

एजेंसी ने ये भी कहा कि तुरंत ज़रूरत है कि आगे शोध किया जाए जिससे एयरोसोल ट्रांसमिशन की जांच हो सके और इससे जुड़ी मिसालों को समझा जा सके.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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