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Saturday, 21 December, 2024
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कौन हैं लखीमपुर खीरी के सिख? जानिए उनके इतिहास, मूल निवास और आजीविका के बारे में

उत्तर प्रदेश में तराई क्षेत्र, जिसका लखीमपुर खीरी भी एक हिस्सा है, में रह रहे ज्यादातर सिख परिवार विभाजन के बाद ही इस क्षेत्र में बसे हैं. उनमें से ज्यादातर खेती-बाड़ी के धंधे में लगे हैं.

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नई दिल्लीः लखीमपुर खीरी कांड में मृत चारों किसान – नछत्तर सिंह (60), लवप्रीत सिंह (20), दलजीत सिंह (35) और गुरविंदर सिंह (19) – उन सिख किसान परिवारों से सम्बंधित थे जो विभाजन के बाद इस क्षेत्र में चले आये थे.

लखीमपुर खीरी जिला पूरे उत्तर प्रदेश में सिखों की सबसे बड़ी आबादी का केंद्र है, जिनमें से अधिकांश कृषक समुदाय से संबंधित हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सिखों की कुल आबादी 6,43,500 है और उनमें से 94,388 लखीमपुर खीरी जिले में हीं में बसे हैं. हालांकि, वे इस जिले में भी अल्पसंख्यक ही हैं और यहां की आबादी का सिर्फ 2.63 प्रतिशत हिस्सा हैं.

दिप्रिंट ने उत्तर प्रदेश राज्य के इन सिखों की उत्पत्ति और इतिहास का पता लगाने की कोशिश की है.


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उत्तर प्रदेश में सिख

विभाजन के बाद सिखों की एक बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश चली आई और यहां के तराई बेल्ट के विभिन्न जिलों में बस गई.

‘मिनी पंजाब’ के रूप में विख्यात तराई बेल्ट, नेपाल सीमा पर हिमालय के दक्षिण में एक दलदली क्षेत्र है जो पश्चिम में सहारनपुर से पूर्व में कुशीनगर तक फैला है और इसमें नलिताल, पीलीभीत, रामपुर, बिजनौर और लखीमपुर खीरी जैसे जिले शामिल हैं.

1963 की जनगणना के अनुसार, पचास के दशक में यूपी में सिखों की आबादी में 43.58 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जो 1951 में 1,97,612 से बढ़कर 1961 में 2,83,737 हो गई.

इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सिखों का यह प्रवासी व्यवहार यहां की जमीन की उर्वरा क्षमता से प्रेरित था, जो स्वतंत्रता से पहले बंजर पड़ी हुई थी.

सिख किसानों की पहली बस्ती साल 1952 में स्थापित की गई थी, जब पंजाब के शरणार्थियों को प्रति परिवार 12 एकड़ जमीन दी गई थी. हालांकि, उस समय केवल उन्हीं लोगों को जमीन दी गई थी जिनके पास पहले से ही अपने मूल निवास स्थान में कुछ एकड़ जमीन थी.

अंशु मल्होत्रा, प्रोफेसर और कपनी चेयर फॉर सिख एंड पंजाब स्टडीज, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सांता बारबरा, ने दिप्रिंट को बताया, ‘1947 में भारत और पंजाब के विभाजन के बाद, ऐसे लोगों को क्षतिपूर्ति के रूप में पंजाब और यूपी के कुछ हिस्सों में जमीन दी गई, जिन्हें पश्चिम पंजाब में अपनी जमीन को त्यागना पड़ा था. इस तरह बड़ी संख्या में पंजाबी लोग और सिख समुदाय (उनमें से भी जाट सिख जो औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक पंजाब में जमींदार के रूप स्थापित थे) के लोगों के पास यहां की जमीन पर मालिकाना हक़ है.‘

इस सब के बीच, रायसिखों के एक वर्ग की तरह के निचली जाति के सिख यहां के श्रमिक बल में शामिल हो गए क्योंकि उन्हें अपनी खुद की जमीन नहीं मिली थी. कुछ रायसिखों ने भी स्थानीय जनजातियों जैसे थारस और बुक्सास, जो तराई के मूल निवासी थे, से सिखों की एक अन्य निचली जाति समुदाय के मजहबी के साथ मिलकर जमीन खरीदी.

2019-20 में पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में लखीमपुर खीरी का सर्वाधिक योगदान रहा था. राज्य के कृषि, मत्स्य पालन और वानिकी क्षेत्र में 2019-20 में 12,414.40 करोड़ रुपये के कुल योगदान के साथ सिख किसानों ने लखीमपुर खीरी जिले को राज्य के कृषि उत्पादन में सबसे अधिक योगदान देने वाले जिलों में से एक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.


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कथित तौर पर उग्रवाद का आरोप

हालांकि उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में रहने वाले कई सिख परिवार अपनी उत्पत्ति को विभाजन से जोड़ कर देखते हैं, मगर इस क्षेत्र को अक्सर सिख ‘आतंकवादियों’ के लिए ‘ऑपरेशन का आधार केंद्र‘ भी कहा जाता रहा है, खासकर 1980-90 के दशक के दौरान.

साल 1986 में, एक कथित तौर पर आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत इस इलाके के 6.5 लाख सिख परिवारों पर पुलिस छापे मारे गए थे. हालांकि उन छापों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया था, फिर भी इस क्षेत्र के सिख किसानों ने कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपी सरकार पर उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में व्यवहार करने का आरोप लगाया था.

1990 के दशक के बाद से इस क्षेत्र से कई हिंसक घटनाएं भी सामने आई हैं, जिसमें 1991 में पीलीभीत में हुई वह कुख्यात मुठभेड़ भी शामिल है जिसमें यूपी पुलिस द्वारा तीन अलग-अलग ‘मुठभेड़ों’ में 10 सिख मारे गए थे.

शुरू-शुरू में इन 10 सिखों की पहचान उग्रवादी के रूप में की गई थी, लेकिन बाद में पता चला कि वे सामान्य तीर्थयात्री थे, जो पवित्र स्थलों से वापस लौट रहे थे. 2016 में, 47 पुलिस अधिकारियों को इन हत्याओं के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

2017 में, पंजाब पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद-रोधी दस्ते द्वारा चलाये गए संयुक्त अभियान ने इस आशंका को बल दिया कि प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकवादी समूह, बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई), के आतंकवादी उत्तर प्रदेश में सिखों के वर्चस्व वाले जिलों में रह रहे थे.

बाद में इस समूह के दो सदस्यों को लखीमपुर खीरी से गिरफ्तार किया गया था.


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कृषि कानूनों पर यहां की प्रतिक्रिया

उत्तर प्रदेश के सिख किसान तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल शुरू हुए किसानों के विरोध का हिस्सा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के सिख बहुल इलाके में किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं, जो राज्य की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जबकि चावल और गेहूं यहां की प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं. अन्य फसलों में बाजरा, मक्का, रेपसीड और सरसों शामिल हैं.

पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती के प्रति एक तरह का कृषि संकट पैदा हो गया है. यह संकट प्रमुख रूप से तीन मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता है – काफी समय से अपरिवर्तित कीमतें, काफी देर से या किश्तों में भुगतान, और खेती की लागत में बेतहाशा वृद्धि.

गन्ना किसानों ने पहले भी इस संकट को लेकर विरोध किया है, खास तौर पर गन्ने के स्टेट अद्विसेड प्राइस (एसएपी), जो 2017-18 से ही अपरिवर्तित बना हुआ है, में बढ़ोत्तरी न किये जाने को लेकर.

2021 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने गन्ने की कीमत को 325 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 350 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था. मगर किसान नेता और भारतीय किसान संघ के प्रमुख राकेश टिकैत ने इस कदम को किसानों के साथ किया गया एक बड़ा मजाक बताया.

उत्तर प्रदेश में सिख आबादी को तराई क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है, और इनकी संख्या को इस क्षेत्र में चुनाव परिणामों को किसी भी पक्ष में झुकाने के लिए पर्याप्त है.

2018 में, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख नेता सुखबीर सिंह बादल ने भी इसके राजनीतिक महत्व को स्वीकार किया था और कहा था कि ‘सिख राज्य (यूपी) में 700000 से भी अधिक वोटों के भाग्य को नियंत्रित करते हैं.’

(इस खबर को अग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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