नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को बचाने की भूमिका के लिए पाकिस्तान और चीन दोनों को निशाना बनाया. हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया.
जयशंकर ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में कुछ उदाहरण इससे बेहतर नहीं हो सकते जितना इसका आतंकवाद पर प्रतिक्रिया है. जब सुरक्षा परिषद का एक मौजूदा सदस्य खुलेआम उसी संगठन (टीआरएफ) की रक्षा करता है जो पहलगाम जैसे बर्बर आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेता है, तो यह बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता के लिए क्या संदेश देता है?”
उन्होंने कहा, “इसी तरह, अगर आतंकवाद के पीड़ितों और अपराधियों को अब वैश्विक रणनीति के नाम पर बराबर ठहराया जा रहा है, तो दुनिया और कितनी निंदक हो सकती है? जब आत्मघोषित आतंकवादी प्रतिबंध प्रक्रिया से बचाए जाते हैं, तो इससे जुड़े लोगों की ईमानदारी पर क्या सवाल उठता है?” जयशंकर ने कहा, हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया.
पाकिस्तान, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का अस्थायी सदस्य है, ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा वाले संयुक्त राष्ट्र के बयान में लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) का कोई उल्लेख न होने का श्रेय खुद को दिया है. पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री इशाक डार ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में टीआरएफ का नाम रोकने की इस कोशिश का जश्न भी मनाया था.
भारत ने यह कायम रखा है कि 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई थी, के पीछे टीआरएफ का हाथ था. पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र में टीआरएफ के अस्तित्व से इनकार किया है और यह दावा किया है कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) — जिसे संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही प्रतिबंधित संगठन घोषित कर रखा है — अब निष्क्रिय है.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद, टीआरएफ ने सोशल मीडिया पर इसकी जिम्मेदारी ली थी. हालांकि, कुछ दिनों बाद उसने यह बयान वापस ले लिया और कहा कि यह पोस्ट एक “संचार त्रुटि” थी, जो भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा की गई “संगठित साइबर घुसपैठ” का नतीजा थी.
यूएनएससी के सदस्य देशों द्वारा प्रतिबंध सूची में शामिल आतंकवादियों को बचाने के मुद्दे को भारतीय विदेश मंत्री ने उस समय उठाया जब बीजिंग पर यह आरोप लगा कि उसने भारत के उन प्रयासों को रोक दिया, जिनमें व्यक्तिगत आतंकवादियों को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध सूची में शामिल करने की कोशिश की गई थी. हाल के वर्षों में चीन ने कथित तौर पर भारत के उन प्रस्तावों को रोका है, जिनमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े पांच व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने की बात थी.
हालांकि, उन कठिनाइयों के बावजूद जो नई दिल्ली को यूएनएससी से इन संगठनों से जुड़े व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगवाने में आ रही हैं, भारत को कुछ देशों से सहयोग मिला है जिन्होंने टीआरएफ को आतंकवादी इकाई के रूप में मान्यता दी है. इस साल जुलाई में अमेरिका ने टीआरएफ को ‘विदेशी आतंकवादी संगठन’ (एफटीओ) की सूची में शामिल किया और इसे ‘विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी’ (एसडीजीटी) घोषित किया.
इसके अलावा, जुलाई में यूएनएससी की 1267 प्रतिबंध समिति ने अपने मॉनिटरिंग टीम (एमटी) की रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें टीआरएफ को पहलगाम हमले से जोड़ा गया था. यह रिपोर्ट भारत के प्रयासों के बाद सामने आई. भारत लगातार 1267 प्रतिबंध समिति को टीआरएफ की गतिविधियों से जुड़ी जानकारी देता रहा है. 2024 में कम से कम दो बार भारत ने एमटी को टीआरएफ के बारे में जानकारी दी.
हाल के वर्षों में, टीआरएफ और ‘पीपल अगेंस्ट फासिस्ट फ्रंट’ जैसे संगठन, जो जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं, को इस्लामाबाद से समर्थन मिला है. पाकिस्तान ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को स्थानीय रूप देने का भ्रम पैदा किया जा सके.
‘प्रक्रिया ही दंड है’ और संयुक्त राष्ट्र सुधार
जयशंकर भारत पोस्ट द्वारा जारी एक खास डाक टिकट के जारी करने के कार्यक्रम में बोल रहे थे. यह डाक टिकट संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में जारी किया गया है, जिसे ‘यूएन डे’ के रूप में जाना जाता है. इस अवसर पर विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) सिबी जॉर्ज और संचार मंत्रालय के डाक विभाग की सचिव वंदिता कौल भी उपस्थित थीं.
अपने भाषण में विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में जारी गतिरोध की आलोचना की. उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया स्वयं सुधार में बाधा बन गई है और बहसें “अधिक ध्रुवीकृत” हो गई हैं.
जयशंकर ने कहा, “इसकी निर्णय प्रक्रिया न तो इसके सदस्य देशों को दर्शाती है और न ही वैश्विक प्राथमिकताओं को संबोधित करती है. इसकी बहसें अब अधिक ध्रुवीकृत हो गई हैं और स्पष्ट रूप से ठहर गई हैं. किसी भी सार्थक सुधार को स्वयं सुधार प्रक्रिया के माध्यम से रोका जा रहा है. अब वित्तीय सीमाएं भी एक अतिरिक्त चिंता के रूप में उभर आई हैं. संयुक्त राष्ट्र को बनाए रखना और साथ ही उसके पुनर्निर्माण का प्रयास करना हम सभी के सामने एक बड़ी चुनौती है.”
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यों को ध्यान में रखते हुए सुधार की मांग की है. वर्तमान में यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं.
इन पांच में से चार देश द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सहयोगी शक्तियों (Allied Powers) का हिस्सा थे. संयुक्त राष्ट्र ने 1971 में बीजिंग को चीन की आधिकारिक सरकार के रूप में मान्यता दी थी. उसी वर्ष चीन ने यूएनएससी में वह पांचवां स्थान संभाला, जो तब तक ताइवान प्रशासन के पास था.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसके गठन के अस्सी साल बाद भी बहुत कम सुधार हुए हैं. इस बीच भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है और साथ ही यह विश्व की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. इसी तरह, यूएनएससी की स्थायी सदस्यता में दक्षिण अमेरिका या अफ्रीकी देशों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. स्थायी सदस्य किसी भी प्रस्ताव को वीटो करने का अधिकार रखते हैं.
जयशंकर ने कहा, “फिर भी, ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर हम आशा नहीं छोड़ सकते.” उन्होंने जोड़ा, “चाहे यह कितना भी कठिन क्यों न हो जाए, बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता मजबूत रहनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र, चाहे उसमें कितनी भी खामियां हों, इस संकट के समय में उसे समर्थन मिलना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय सहयोग में हमारा विश्वास दोहराया जाना चाहिए, बल्कि उसे और नया किया जाना चाहिए. इसी भावना के साथ हम सभी इस अवसर को मनाने के लिए एकत्र हुए हैं और एक बेहतर दुनिया बनाने का प्रयास कर रहे हैं.”
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थिति स्पष्ट की, जबकि अमेरिका—राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में—इस संगठन और बहुपक्षवाद की आलोचना करता रहा है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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