नई दिल्ली: वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने से कुछ महीने पहले मनमोहन सिंह ने कहा था कि उनका नेतृत्व कमजोर नहीं है और इतिहास उनके प्रति मीडिया द्वारा उस समय कही गई बातों की तुलना में कहीं अधिक दयालु होगा.
मनमोहन सिंह ने जनवरी 2014 में दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘मैं यह नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं… मैं ईमानदारी से यह मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक दयालु होगा…. राजनीतिक मजबूरियों के बीच मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है, जो मैं कर सकता था.’’
सिंह 10 साल तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे और 26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रधानमंत्री का पद संभाला.
मनमोहन ने अपने अंतिम संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘‘…परिस्थितियों के अनुसार मैं जितना कर सकता था, उतना मैंने किया है… यह इतिहास को तय करना है कि मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है. ’’
मनमोहन ने उन सवालों का जवाब देते हुए यह बात कही थी, जिनमें कहा गया था कि उनका नेतृत्व ‘कमजोर’ है और कई अवसरों पर वह निर्णायक नहीं रहे.
सिंह ने इस संवाददाता सम्मेलन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर तीखा हमला बोला था और मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल में 2002 में हुए गुजरात दंगों का भी जिक्र किया था.
उस समय भाजपा ने मोदी को एक मजबूत नेता के रूप में पेश किया था, और लोकसभा चुनावों से पहले कमजोर नेतृत्व के मुद्दे को लेकर सिंह पर निशाना साधा था.
सिंह ने कहा था, ‘‘अगर आप प्रधानमंत्री की ताकत का आकलन अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोष नागरिकों के सामूहिक नरसंहार का नेतृत्व करने से करते हैं, तो मैं इसमें विश्वास नहीं करता…. मुझे नहीं लगता कि इस देश को अपने प्रधानमंत्री से इस तरह की ताकत की जरूरत है.’’
उन्होंने कहा था, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि अगला प्रधानमंत्री संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) से होगा… नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए विनाशकारी होगा…मैं ईमानदारी से मानता हूं कि नरेन्द्र मोदी जो कह रहे हैं, वह पूरा नहीं होने वाला है.’’
उन्होंने कहा कि संप्रग-1 और संप्रग-2 में प्रधानमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकाल ने कांग्रेस की गठबंधन सरकार चलाने की क्षमता को प्रदर्शित किया और इस धारणा को दूर किया कि यह पार्टी गठबंधन नहीं चला सकती. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में कुछ समझौते किए गए, लेकिन वे ‘‘राष्ट्रीय समस्याओं पर नहीं, बल्कि कम महत्व वाले मुद्दों पर’’ थे.
जब सिंह से कांग्रेस के भीतर उनके नेतृत्व के बारे में ‘‘नकारात्मक’’ धारणाओं के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, ‘‘प्रधानमंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान सामने आई किसी भी विषम स्थिति के कारण किसी ने भी मुझसे पद छोड़ने के लिए नहीं कहा.’’
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