scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशअविश्वास, अपराधबोध, पछतावा, मनोरंजन - जब एक कोविड रिपोर्टर खुद को कोरोना पॉजिटिव पाता है

अविश्वास, अपराधबोध, पछतावा, मनोरंजन – जब एक कोविड रिपोर्टर खुद को कोरोना पॉजिटिव पाता है

हमने किसी को भी छुआ नहीं था, जितनी बार हम कर सकते थे उतनी बार सैनिटाइज करते थे,लोगों से कम से कम 1 मीटर दूर खड़े रहते थे और फिर भी हम बच नहीं सके.

Text Size:

वडोदरा: कोविड-19 महामारी से दुनिया का रुकना एक अजीब ऐहसास है. मास्क और दस्ताने पहनने और काम करते समय दूरी बनाए रखने से कोरोना नहीं होता है. यह तब बेकार हो जाता जब आप कोरोना पॉजिटिव आ जाते है.

जब 29 अप्रैल, को हमारी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो हमें वडोदरा सर्किट हाउस से बाहर निकाल दिया गया. जहां हम रह रहे थे और दूसरे क्वारंटाइन में स्थानांतरित हो गए. जब हम सीढ़ियों से उतरे, तो डॉक्टर और कर्मचारी इधर-उधर हो गए हमारे सिर शर्म से लटक गए, क्योंकि हम एम्बुलेंस में चढ़ गए थे, जिसकी व्यवस्था हमारे लिए की गई थी. कुछ ही घंटों में, पत्रकारों और जनता के रूप में हमारी भूमिकाएं उलट गईं.

वडोदरा में हाई स्पीड रेल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में, ड्राइवर अनिल कपूर स्क्रीन करता हुआ स्टाफ। फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

स्वाभाविक रूप से, पहली भावना, मामूली अविश्वास में से एक है, वहां से बाहर जाने का जोखिम उठाने के बावजूद और परीक्षण के पॉजिटिव होने की संभावना को स्वीकार करते हुए निदान के क्षण ने हमें सुरक्षा प्रदान की. लेकिन, हम तीनों – हमारे शानदार फोटोग्राफर प्रवीण जैन, ड्राइवर अनिल कपूर और मैं जल्दी-जल्दी मोटिवेशन से गुजरे. अविश्वास के बाद डर की एक सीमा आई और फिर पछतावा हुआ, जाने-अनजाने में हमने इसे कितने लोगों ने इसको फेस किया? अब कितनी कहानियां अनकही रह जाएंगी? और फिर, आखिरकार हमने मनोरंजन की भावना के साथ अपनी परिस्थितियों का इलाज करने का फैसला किया.

दो सप्ताह बिताने के बाद राजस्थान और गुजरात में कोविड -19 महामारी कैसे सामने आई. अब हम अगले दो सप्ताह समय बिताएंगे और अपने सिस्टम से वायरस के निकलने का इंतजार करेंगे. यह बताने के लिए एक और कहानी होगी.

ये सब कैसे शुरू हुआ

27 अप्रैल की रात, जब हम अहमदाबाद से वड़ोदरा आए (लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर) – प्रवीण ने थोड़ा बुखार महसूस करने की शिकायत की और मैंने देखा कि अनिल को थोड़ी खांसी हुई थी.

‘यदि आप बुखार महसूस कर रहे हैं, तो कोई रिपोर्टिंग न करें. यह कोविड-19 हो सकता है. मैंने प्रवीण से कहा, उन्होंने तड़कते हुए कहा, क्यों कोरोनोवायरस के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचे? चिंता करने से पहले सुनिश्चित करें.’

प्रवीण को वडोदरा स्थित एक रिपोर्टर से एक संदेश मिला, जिसने कहा कि सरकार अगले दोपहर शहर में पत्रकारों के लिए एक परीक्षण शिविर आयोजित कर रही है. 28 तारीख को दोपहर 12:45 बजे, हम उस साइट पर गए जहां पत्रकारों के एक छोटे समूह को परीक्षण किया था.

कोविद -19 क्वारंटाइन केंद्र में दोपहर के भोजन के बाद हज़मट सूट में काम करने वाले कर्मचारी । फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

कई लोग प्रवीण के रोब में थे और सही भी थे. मैंने उन्हें और अनिल को केवल दो सप्ताह पहले ज्वाइन किया. 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद उनकी यात्रा शुरू हो गई थी, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश को कवर किया था. स्थानीय मीडिया के पत्रकारों ने प्रवीण से साक्षात्कार के लिए संपर्क किया यह पूछने के लिए कि ग्राउंड पर रहने का उनका अनुभव कैसा था.

चौबीस घंटे बाद, उन्हें (और हम दोनों को) वायरस को दूर-दूर तक फैलाने के लिए आरोप लगाया गया. परीक्षण काफी हद तक असमान था. गला और नाक के स्वैब के साथ छिद्रित और परिधीय किया गया और फिर घर भेज दिया गया, लेकिन इसके बाद के घंटे अनिश्चितता से भरे हुए थे कि क्या हम कोविड-19-पॉजिटिव हो सकते हैं या नहीं. हल्का बुखार प्रवीण को महसूस हुआ था, जो जल्दी से कम हो गया था शायद यह थकावट से रहा हो – वह एक महीने से अधिक समय से ग्राउंड पर थे.

उसी कॉरिडोर के अंत में खड़े लोग । फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

हमे यह सोचकर आश्चर्य हुआ कि वायरस कितना करीब था. हमने किसी को भी छुआ नहीं था या लोगों को खांसते हुए देखा था. हमने जितनी बार भी बात की थी, जहां भी संभव हो उन लोगों से कम से कम एक मीटर की दूरी पर बने हुए थे और अब हमने किसी लक्षण के थोड़े से सुझाव पर खुद का परीक्षण किया और परिणाम आने तक अपने दिन की योजनाओं को रद्द कर दिया.

यदि परिणाम नेगेटिव आते तो हमने ‘अतिरिक्त सतर्क’ रहने की कसम खाई और हाइड्रेटेड रहने के लिए ओआरएल और फ्रूट रखने का फैसला किया था. दुर्भाग्य से परिणाम ने हमारी सभी योजनाओं को ख़राब कर दिया.

अगले दो सप्ताह

हमें वडोदरा के हाई स्पीड रेल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में रखा गया है. यहां सुविधा अच्छी, सुव्यवस्थित और स्वच्छ है. हजमत सूट में डॉक्टरों और नर्सों द्वारा भोजन और दवा हमें परोसी जाती है. कोई भी हमारे कमरे में आने की हिम्मत नहीं करता है और हमें जो कुछ भी चाहिए वह हमारे दरवाजे के बाहर छोड़ दिया जाता है.

महामारी से पहले, इस सुविधा केंद्र का काम भारत के भविष्य के उच्च गति रेलवे कर्मचारियों के लिए एक प्रशिक्षण मैदान के रूप में काम करना था. अब यह हम तीनों सहित कोविड-19 के दर्जनों रोगियों की मेजबानी करता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments