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Monday, 25 November, 2024
होमदेशव्हाट्सएप चैट्स, 36 'सांप्रदायिक' लेख- पत्रकार कप्पन के खिलाफ चार्जशीट में UP पुलिस ने इन चीज़ों का दिया हवाला

व्हाट्सएप चैट्स, 36 ‘सांप्रदायिक’ लेख- पत्रकार कप्पन के खिलाफ चार्जशीट में UP पुलिस ने इन चीज़ों का दिया हवाला

मथुरा की अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लिया है, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए हैं, जो कि किसी भी आपराधिक मुकदमे का शुरुआती चरण ही माना जाता है.

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नई दिल्ली: एक साल पहले 5 अक्टूबर 2020 को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन सहित चार लोगों को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वे एक दलित युवती के कथित सामूहिक बलात्कार और उसकी मौत के बाद हाथरस जा रहे थे. उत्तर प्रदेश पुलिस को संदेह था कि चारों आरोपियों ने हाथरस में अशांति फैलाने की योजना बनाई थी.

इस साल 3 अप्रैल को यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की पांच सदस्यीय टीम ने कप्पन और सात अन्य आरोपियों के खिलाफ मथुरा की एक अदालत में 5,000 पेज का आरोप पत्र दायर किया, जिसमें आलम, मसूद अहमद और अतीक-उर-रहमान को पत्रकार के साथ गिरफ्तार किया गया था, जबकि के.ए रऊफ शरीफ, मोहम्मद दानिश, अनसद बदरुद्दीन और फिरोज खान को बाद में गिरफ्तार किया गया था.

उन पर हाथरस की घटना के बाद राष्ट्रद्रोह और कथित तौर पर राज्य में हिंसा भड़काने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है.

मथुरा की अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लिया है, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए हैं, जो कि किसी भी आपराधिक मुकदमे का शुरुआती चरण ही माना जाता है.

कोर्ट में दायर आरोपपत्र के कुछ हिस्सों को दिप्रिंट ने हासिल किया है, जिसके मुताबिक कप्पन और सात अन्य के खिलाफ मामला बनाने के लिए 36 न्यूज आर्टिकल, व्हाट्सएप चैट और ग्रुप चैट, सोशल मीडिया पोस्ट के अलावा 55 गवाहों—जिसमें 40 से ज्यादा पुलिसकर्मी हैं- के बयानों का हवाला दिया गया है.

इस बीच, आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को अभी तक आरोपपत्र की कोई प्रति नहीं मिली है और उन्होंने इसके लिए मथुरा की कोर्ट में आवेदन दायर कर रखा है.


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‘शरजील इमाम कौन है’ और अन्य लेख

आरोपपत्र में कई केस डायरी शामिल हैं और उनमें से एक के साथ संलग्न एक नोट में 36 न्यूज आर्टिकल की सूची है जो कथित तौर पर कप्पन के लैपटॉप में मिले थे और जिसे कप्पन ने खुद लिखा था.

नोट के अनुसार, ये लेख मूलत: मलयालम में लिखे गए थे और फिर जांच के लिए इनका अनुवाद कराया गया था. इसमें कहा गया है कि ऐसा लगता है कि ये लेख न्यूज पोर्टल अजीमुखम को भेजे गए थे.

इसके बाद नोट में इन लेखों के बारे में अलग-अलग टिप्पणियां की गई है. उदाहरण के तौर पर उनके कंप्यूटर पर ‘एएमयू स्टोरी पार्ट टू’ शीर्षक वाली पहली फाइल में उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में 2019 के सीएए विरोधी प्रदर्शनों संबंधी रिपोर्ट थी.

नोट में कहा गया है, ‘लेख में मुस्लिम युवकों को पीड़ित बताया गया है, जिन्हें पुलिस ने पीटा था और जिन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया था.’ इसमें आगे यह भी कहा गया है कि लेख में स्पष्ट रूप से ‘मुसलमानों को उकसाने’ वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है.

इस नोट के साथ संलग्न एक अन्य लेख में दावा किया गया है कि तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज में एक समागम करने और मार्च 2020 में कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के संबंध में लगाए गए आरोप ‘मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की साजिश’ का हिस्सा थे.

केस डायरी में दिल्ली दंगों पर कप्पन की रिपोर्ट को ‘पत्रकारिता के सिद्धांतों के विपरीत’ करार दिया गया, जिसमें कहा गया था कि वह ‘समुदाय में अशांति फैलाने के लिए सांप्रदायिक रिपोर्टिंग’ में शामिल थे.

इसमें भीमा कोरेगांव के आरोपी दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनी बाबू के एक इंटरव्यू का भी हवाला दिया गया है क्योंकि इसमें कथित तौर पर ‘हनी बाबू को पीड़ित के रूप में दिखाने का प्रयास किया गया है.’

अन्य लेखों में सीएए के विरोध प्रदर्शनों पर लिखे गए आर्टिकल के अलावा दिल्ली दंगों में एफआईआर, शाहीन बाग से ‘82 वर्षीय दादी’ का इंटरव्यू और ‘शारजील इमाम कौन है’ शीर्षक वाला एक लेख शामिल है.

केस डायरी में कहा गया है, ‘सिद्दीकी कप्पन के लेखों को काफी हद तक सांप्रदायिक की श्रेणी में रखा जा सकता है. दंगों के दौरान जब समाचार पत्र में एक विशेष समुदाय के नाम के साथ घटनाओं की जानकारी प्रकाशित की जाती है, तो सांप्रदायिक भावनाएं भड़क उठती हैं.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘जिम्मेदार पत्रकार इस तरह की सांप्रदायिक रिपोर्टिंग नहीं करते लेकिन सिद्दीकी कप्पन सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को भड़काने के लिए रिपोर्टिंग कर रहे थे… जो कि पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) का एजेंडा है- मुस्लिमों का भड़काना, सांप्रदायिक दंगे कराना और देश की नुकसान पहुंचाना और छवि खराब करना. कुछ लेख माओवादियों और कम्युनिस्टों के प्रति सहानुभूति जताने के लिए भी लिखे गए.’

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) केरल का एक मुस्लिम संगठन है.


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‘बतौर पत्रकार यह उनका कर्तव्य है’

हालांकि, कप्पन के वकील विल्स मैथ्यू ने जोर देकर कहा कि चूंकि कप्पन एक पत्रकार हैं, इसलिए वह हर तरह के लोगों से बात करते हैं. ‘यह उनका कर्तव्य है.’

मैथ्यू ने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्होंने प्रेस काउंसिल के किसी नियम या मानदंडों का उल्लंघन नहीं किया है. आरोप जो भी हों, अगर हम पत्रकारिता से जुड़ें कर्तव्यों और भारतीय प्रेस परिषद के नियमों के दायरे में रखकर इनकी जांच करते हैं, तो ये किसी अपराध की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएंगे… उदाहरण के तौर पर यदि कोई पत्रकार आतंकवाद पर कहानी करता है और बहुत सारे लोगों से मिलता है तो क्या यह अपराध है?’

अन्य छह आरोपियों के वकीलों ने भी बताया कि आरोपपत्र की एक प्रति हासिल करने के लिए इस साल मई में मथुरा की कोर्ट में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 207 के तहत के लिए उन्होंने आवेदन दायर किया था, जिसके तहत पुलिस रिपोर्ट की प्रति मुहैया कराना अनिवार्य है, लेकिन आवेदन अभी तक लंबित है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में तीन आरोपियों– रहमान, मसूद और आलम का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने दिप्रिंट को बताया कि हाल में एक सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने भी ‘मौखिक तौर पर माना कि आरोपियों के खिलाफ दायर आरोपपत्र की प्रति मुहैया न कराना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का सरासर उल्लंघन है.’

मथुरा की कोर्ट में कप्पन को छोड़कर बाकी आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता मधुवन दत्त ने कहा कि इन सभी आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह, एंटी-टेरर लॉ, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत लगाए गए आरोपों को साबित करने वाला कोई साक्ष्य नहीं है.

दत्त ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस सरकार ने कानून की एक अलग व्याख्या अपनाई है. अगर कोई समाज के किसी भी कमजोर वर्ग जैसे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति या महिलाओं के खिलाफ अन्याय को उजागर करता है, तो वे इसे कानून-व्यवस्था की स्थिति को खराब करने या लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का प्रयास करार दे देते हैं.’


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व्हाट्सएप, फेसबुक चैट, कॉल डेटा रिकॉर्ड

आरोपपत्र के सैकड़ों पन्नों में इस मामले में शामिल लोगों के कॉल डेटा रिकॉर्ड, उनके व्हाट्सएप और फेसबुक चैट के साथ-साथ आरोपियों के बैंक खाते का विवरण और पीएफआई पदाधिकारियों के खातों में लेनदेन का ब्योरा दिया गया है.

आरोपपत्र में शामिल कप्पन के व्हाट्सएप संदेशों में ‘हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सशक्तिकरण का एजेंडा’ शीर्षक वाला एक लंबा मैसेज भी है, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), नागरिकता पर राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी), राजनीतिक ढांचे में पसमांदा और अन्य मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के अलावा ओबीसी मुसलमानों की भागीदारी, जाति आधारित जनगणना, कानून का शासन लागू करने और महिलाओं, किसानों और भूमिहीन मजदूरों के सशक्तिकरण की भी बात करता है.

यह टेक्स्ट कथित तौर पर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. अनीस अंसारी की तरफ से लिखा गया था और उनकी तरफ से भारतीय मुस्लिम फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म्स (आईएमपीएआर) के बैनर तले आयोजित किए गए एक वेबिनार का हिस्सा था.

चार्जशीट में शामिल किए गए कई अन्य व्हाट्सएप मैसेज भीमा कोरेगांव मामले में अदालत के आदेश सहित विभिन्न मुद्दों पर आरोपी की तरफ से साझा की गई न्यूज रिपोर्ट हैं.

साथ में संलग्न दस्तावेजों में उन व्हाट्सएप ग्रुप को भी सूचीबद्ध किया गया है जिनसे कप्पन जुड़े थे. इसके सदस्यों की पूरी सूची इसमें लगाई गई है. इन लिस्ट के साथ ‘कप्पन रिलेशन विद एसडीपीआई केएनएमपी मेंबर्स व्हाट्सएप ग्रुप’, ‘कप्पन रिलेशन विद एसडीपीआई पूकोलमड ब्रांच व्हाट्सएप ग्रुप’ और ‘कप्पन रिलेशन विद मीडिया पॉपुलर फ्रंट व्हाट्सएप ग्रुप’ जैसे शीर्षक दर्ज किए गए हैं.

कप्पन के इंस्टाग्राम अकाउंट और उनके फेसबुक अकाउंट के स्क्रीनशॉट भी चार्जशीट के साथ संलग्न किए गए हैं. संलग्न पोस्ट में से एक में कहा गया है, ‘बाबरी मस्जिद आत्महत्या कर रही थी!!! #न्यायिककारसेवा.’

हालांकि, आरोपपत्र में साइबर सेल की तरफ से 18 अक्टूबर का एक कम्युनिकेशन भी शामिल है, जिसने केवल रहमान के फेसबुक प्रोफाइल को फ्लैग किया था जिसमें कहा गया था कि वह ‘राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ हैं.

इस कम्युनिकेशन में कहा गया है, ‘कोई अन्य आपत्तिजनक, सांप्रदायिक या जाति से संबंधित पोस्ट या वीडियो नहीं मिला है.’


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एक जैसे गवाहों के बयान

गवाहों के बयानों के तौर पर केस डायरी में हाथरस के निवासी तीन चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं.

7 नवंबर को दिए गए बयानों में आरोप लगाया गया है कि कप्पन और रहमान उस दिन हाथरस के बुलगढ़ी गांव के बाहर भीड़ को भड़काने की कोशिश कर रहे थे, जब पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार किया गया था.

हालांकि, हाथरस मामले में पीड़िता का 30 सितंबर को सुबह 2:25 बजे जबरन अंतिम संस्कार कर दिया गया, जबकि चारों आरोपियों को हाथरस पहुंचने से पहले ही 5 अक्टूबर को मथुरा के एक टोल प्लाजा पर गिरफ्तार किया गया था.

एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि कप्पन और रहमान उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने कथित तौर पर हिंसा भड़काने की कोशिश की. यद्यपि पहले उसे उनकी पहचान के बारे में नहीं पता था लेकिन उसने बयान दर्ज होने से एक दिन पहले उन्हें पहचान लिया था, जबकि पुलिस दोनों को लेकर आई थी.

प्रत्यक्षदर्शी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है, ‘ये लोग (कप्पन और रहमान) भी भीड़ में शामिल थे. वे जाति के आधार पर भीड़ को ठाकुरों और पुलिसकर्मियों को मारने के लिए कहकर भड़का रहे थे. वे भीड़ में मौजूद कुछ लोगों को पैसे भी दे रहे थे, लेकिन जब लोग उनके आसपास जमा होने लगे तो वे वहां से हट गए.’

चार्जशीट में मथुरा के मांट टोल प्लाजा प्रभारी ज्ञानेंद्र सिंह सोलंकी का बयान भी शामिल है.

इस बयान में कहा गया है कि जब आरोपी व्यक्तियों की कार को चेकिंग के लिए रोका गया तो उन्होंने कहा था, ‘हम पीड़िता को न्याय दिलाने हाथरस जा रहे हैं और उसे न्याय मिलने के बाद ही लौटेंगे.’’

सोलंकी के मुताबिक, ‘ड्राइवर आलम को छोड़कर अन्य लोगों के पास 1,717 पर्चे थे जो समाज में नफरत फैलाने, जातिगत हिंसा का कारण बनने और सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ने के संबंध में थे. उनसे घटनास्थल और थाने में हुई बातचीत से पता चला कि आलम के अलावा बाकी तीनों ही पीएफआई के सहयोगी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के सक्रिय सदस्य हैं.

चार्जशीट के साथ 40 से अधिक पुलिस अधिकारियों के बयान भी संलग्न किए गए, हालांकि, उनमें से ज्यादातर समान थे और 1,717 पर्चे की बरामदगी, आरोपियों के दिए बयानों और उन पर पीएफआई और सीएफआई से जुड़े होने के आरोपों का उल्लेख करने पर ही केंद्रित थे.


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क्या जांच पूरी हो गई है?

चार्जशीट के साथ संलग्न 2 अप्रैल 2021 की आखिरी केस डायरी में कहा गया है कि अधिकारियों को कमल के.पी. और कुछ अन्य के खिलाफ भी प्रथम दृष्टया साक्ष्य मिले हैं और उनके खिलाफ जांच अभी जारी है.

डायरी में यह भी उल्लेख है कि पीएफआई अधिकारियों के खिलाफ यूएपीए की धारा 43एफ के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि उन पर सहयोग करने से इनकार कर देने का आरोप है.

इस कानून की धारा 43एफ किसी भी अपराध की जांच कर रहे अधिकारियों को संबंधित सूचना मुहैया कराना अनिवार्य बनाता है और जानकारी न देने पर जुर्माना के साथ या बिना जुर्माने अधिकतम तीन साल की जेल की सजा हो सकती है.

हालांकि, चार्जशीट के अंतिम संक्षिप्त ब्योरे में किसी लंबित जांच का उल्लेख नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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