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Friday, 3 May, 2024
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‘मोरेन’ क्या है, इसके गिरने से सिक्किम की दक्षिण ल्होनक झील में कैसे आई बाढ़ और यह क्यों बनी हुई है खतरा

3 अक्टूबर को सिक्किम में एक भीषण बाढ़ आई जब दक्षिण ल्होनक हिमनद झील के किनारें टूट गए. विशेषज्ञों और सिक्किम सरकार के अधिकारियों ने बताया कि झील अभी भी ख़तरा बनी हुई है.

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गंगटोक: 3 अक्टूबर को सिक्किम में एक भीषण बाढ़ आई जब दक्षिण ल्होनक हिमनद झील के किनारें टूट गए, लेकिन यह खतरा यही नहीं टला. विशेषज्ञों और सिक्किम सरकार के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि झील अभी भी ख़तरा बनी हुई है.

बता दें कि अब तक 89 लोगों की जान जा चुकी है और 100 लोग लापता हैं. हालांकि कोई औपचारिक मूल्यांकन नहीं किया गया है, राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि इस कारण कई हजार करोड़ रुपये के भौतिक बुनियादी ढांचे को नुकसान हुआ है.

इस विनाशकारी घटना को ग्लैसिअल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के रूप में वर्णित किया गया है, जो तब होती है जब ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलें अचानक टूट जाती हैं.

लेकिन इस सैलाब के बावजूद, सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि बाढ़ के बाद से दक्षिण ल्होनक झील का क्षेत्रफल केवल मामूली रूप से कम हुआ है. इससे पता चलता है कि GLOF से इंकार नहीं किया जा सकता है.

सिक्किम सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों, जिन्होंने एक यूरोपीय उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग मिशन, सेंटिनल-2 से सैटेलाइट तस्वीरों का आकलन किया, ने कहा कि झील का क्षेत्र 26 सितंबर को 167 हेक्टेयर से थोड़ा कम होकर 6 अक्टूबर को 144 हेक्टेयर रह गया.

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विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख निदेशक धीरेन जी. श्रेष्ठ ने कहा कि एक मोरेन – असंगठित बोल्डर, तलछट, मलबे और बर्फ की एक संरचना होती है, जो अभी भी झील में पानी को रोके हुए है. उन्होंने कहा, “क्षेत्र कम होने के बावजूद झील काफी हद तक बरकरार है.”

Graphic by Soham Sen, ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन, दिप्रिंट द्वारा

उनके अनुसार, अभी के लिए ऐसा लगता है कि खतरा कम हो गया है क्योंकि बड़ी मात्रा में पानी बह चुका है, जिससे झील में पानी का स्तर नीचे आ चुका है, लेकिन जीएलओएफ का खतरा अभी भी बना हुआ है.

श्रेष्ठ ने बताया, “ग्लेशियर के पिघलने और उत्तरी ल्होनक ग्लेशियर से प्रवाह के कारण झील का आकार और बढ़ जाएगा.”

भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक आशिम सत्तार, जिन्होंने 2019 में दक्षिण ल्होनक झील की खतरे की क्षमता का आकलन किया था, ने इस पर सहमति दी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि 3 अक्टूबर के विस्फोट ने झील में पानी कम कर दिया है, जो मुख्य रूप से दक्षिण ल्होनक ग्लेशियर द्वारा पोषित होता है, लेकिन संभावना है कि भविष्य में झील में पानी के स्तर बढ़ सकता है.

विशेष रूप से, सहकर्मी-समीक्षा पत्रिका जियोमॉर्फोलॉजी में प्रकाशित 2021 के पेपर में, सत्तार और सात अन्य सह-लेखकों ने दक्षिण ल्होनक झील के भविष्य के जीएलओएफ खतरे का विवरण दिया.

उन्होंने कहा कि “अत्यधिक गतिशील उच्च-पर्वतीय वातावरण में पानी की बढ़ती मात्रा इस झील को जीएलओएफ जोखिम प्रबंधन के लिए प्राथमिकता बनाती है.” उन्होंने यह भी पाया कि “झील के खड़ी ढलानों की ओर विस्तार के कारण जीएलओएफ की संवेदनशीलता बढ़ जाएगी, जिसे हिमस्खलन के संभावित शुरुआती क्षेत्र माना जाता है.”

पत्रिका ने आगे चेतावनी दी कि सबसे बड़े शहर चुंगथांग सहित घाटी की कई बस्तियां “ज्यादा जोखिम में हैं.”


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3 अक्टूबर को आखिर हुआ क्या था?

3 अक्टूबर को जो हुआ उसकी अभी भी जांच चल रही है और सिक्किम सरकार अभी तक इसे GLOF घटना कहने से बच रही है, लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों कुछ जानकारी प्रदान करते हैं.

वी.पी. पाठक, सिक्किम के मुख्य सचिव ने दिप्रिंट को बताया कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का उपलब्ध डेटा संभावित कारण के रूप में बादल फटने का समर्थन नहीं करता है. क्योंकि बादल फटने की घटना के लिए कम समय में बहुत अधिक वर्षा होना आवश्यक है.

पाठक ने दिप्रिंट को बताया, “हालांकि हमें यह पता लगाने के लिए और अध्ययन करने की जरूरत है कि इसका कारण क्या था, हमारे वैज्ञानिकों ने सेंटिनल-2 सैटेलाइट की तस्वीरों को देखने के बाद कहा है कि दक्षिण ल्होनक झील के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर मोरेन का किनारा टूटा है.”

मोरेन की लंबाई लगभग 600 मीटर, ऊंचाई 225 मीटर और चौड़ाई 150 मीटर थी.

श्रेष्ठ ने बताया, “सैटेलाइट की तस्वीरों से हमें पता चला है कि मोरेन झील के सबसे गहरे हिस्से में गिर गया और इसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में पानी बह गया है.”

उन्होंने कहा, “पानी ज्यादा बह जाने के कारण झील के पर ज्यादा चौड़ा और गहरा हो गया है, लेकिन हमें झील की गहराई और मात्रा का पता लगाना होगा. पानी की बढ़ी हुई मात्रा से जीएलओएफ या इसी तरह की स्थिति का खतरा भी बढ़ जाएगा, क्योंकि झील के किनारे, विशेष रूप से उसका उत्तरी साइड नाजुक है.”

सत्तार ने भी पुष्टि की कि 3 अक्टूबर को हिमनद झील का विस्फोट लेटरल मोरेन में हुआ था.

उन्होंने कहा, “इसने झील के गहरे हिस्से को प्रभावित किया, जिससे तेज़ तरंगें पैदा हुईं, जिससे अंततः झील का बहुत पानी बह गया और वह गहरा हो गया.”

जियोलॉजिस्ट अब झील की मात्रा, मोरेन स्थिरता और इसके अन्य हिस्सों में संभावित विस्थापन का आकलन करने के महत्व पर जोर देते हैं.

सिक्किम विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश कुमार रंजन ने दिप्रिंट को बताया कि 6 अक्टूबर की सैटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है कि दक्षिण ल्होनक झील का आउटलेट 3 अक्टूबर से पहले की तुलना में अधिक गहरा और चौड़ा हो गया है.

उन्होंने कहा, “आउटलेट से पानी बाहर जा रहा है लेकिन साथ ही पानी जमा भी हो गया है. सैटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है कि उत्तरी ल्होनक झील के सामने एक अन्य झील का पानी भी दक्षिणी ल्होनक झील में मिल रहा है.”

रंजन ने कहा कि इसीलिए झील की गहराई का व्यापक आकलन करना महत्वपूर्ण है. जियोलॉजिस्ट ने यह भी बताया कि साथ ही सरकार को क्षेत्र में अन्य संभावित खतरनाक हिमनद झील संरचनाओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, “डीएसटी के उत्कृष्टता केंद्र के तहत हमारा विभाग वर्तमान में सिक्किम हिमालय में ग्लेशियर अनुसंधान पर काम कर रहा है, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में जीएलओएफ के लिए यहां कई अन्य हिमनद झीलें हैं. सरकार को आकलन करने और पानी को निकालने जैसे उपाय करने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को जानमाल के नुकसान को कम करने के लिए नदी तलों पर बड़े पैमाने पर हो रहे अतिक्रमण पर भी ध्यान देना चाहिए.

पहले से दी जा रही थी चेतावनी

श्रेष्ठ ने कहा कि राज्य सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों की एक टीम पानी की मात्रा मापने के लिए 13-14 सितंबर को दक्षिण ल्होनक झील पर एक अभियान पर गई थी.

टीम ने बाथमीट्री सर्वेक्षण करने के लिए एक रिमोट-नियंत्रित नाव भेजी थी, जो गहराई मापने और पानी के नीचे की विशेषताओं को मैप करने के लिए आयोजित की गई थी और उसने पाया कि दक्षिण ल्होनक झील के थूथन (ग्लेशियर का केंद्र) के पास पानी लगभग 120 मीटर गहरा था.

श्रेष्ठ ने कहा, “पहले से चेतावनी देने की प्रणाली स्थापित करने की तैयारी के लिए अध्ययन किया जा रहा है.”

वैज्ञानिक लंबे समय से दक्षिण ल्होनक झील पर पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दे रहे है.

इस साल मार्च में पेश की गई एक रिपोर्ट में, जल संसाधनों पर संसदीय स्थायी समिति ने जीएलओएफ खतरों की निगरानी के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी तंत्र पर जोर दिया.

इसने भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लिए चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता पर भी जोर दिया, यह देखते हुए कि ऐसी अधिकांश मौजूदा प्रणालियां केवल व्यक्तिगत आपदाओं से निपटती हैं.

उदाहरण के लिए, भारत मौसम विज्ञान विभाग के पास भारी वर्षा और बादल फटने के लिए अलर्ट और चेतावनी जारी करने की एक प्रणाली है, लेकिन इसके पास जीएलओएफ, हिमस्खलन या भूस्खलन जैसी अन्य आपदाओं के लिए कोई चेतावनी प्रणाली नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया कि “इन आपदाओं से या तो अन्य एजेंसियां निपटती हैं या उनके लिए कोई चेतावनी प्रणाली मौजूद नहीं है. एकीकृत तरीके से इन आपदाओं से निपटने के लिए, एक वास्तविक समय समन्वित तंत्र के माध्यम से एक मल्टी-हज़ार्ड वॉर्निंग प्रणाली स्थापित की जा सकती है, जिसमें एक एजेंसी को अधिकारियों, हितधारकों और जनता को लगातार निगरानी और चेतावनी और अलर्ट जारी करने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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