इंदौर: कुछ ही महीने पहले, मध्य प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले शहर इंदौर के कुछ निवासियों ने एक महिला के खिलाफ सोशल मीडिया अभियान शुरू किया जिसने एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले स्टारबक्स कॉफी के कप को शहर के चौराहों में से एक पर फेंक दिया था. ज्ञात हो की स्टारबक्स कॉफी अपने ग्राहकों के नाम उनके कप पर लिख देती है.
इस के पीछे का विचार उस महिला को कूड़ा फैलने पर पश्चाताप का एहसास करवाने का था. जल्द ही इस अभियान का वांछित प्रभाव सामने आया और कुछ ही दिनों बाद वह महिला स्टारबक्स आउटलेट पर आई और अपने किये की माफी भी मांगी.
हालांकि, इंदौर में यह परंपरा बराबर से बनी हुई है. इस शहर के सतर्क निवासियों, फेरीवालों, रिक्शा और ऑटोरिक्शा चालकों के बारे में कई सारी संदिग्ध प्रमाणों वाली कहानियां मशहूर हैं जो सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकते पाए जाने वाले लोगों को उनकी गलती बताते रहते हैं.
इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, ऐसी ही एक घटना में एक व्यस्त सड़क पर झाड़ू से लैस एक सफाई मित्र ने सड़क पर चलते हुए ऑटोरिक्शा को रोक दिया था क्योंकि उसने इस पर सवार यात्री को प्लास्टिक का रैपर फेंकते देखा था. बाद में उस यात्री को सड़क से वह रैपर उठाने को कहा गया.
नगर आयुक्त प्रतिभा पाल के अनुसार, इंदौर को लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किए जाने के पीछे का राज निवासियों में इसी स्तर की जागरूकता और साथ ही उच्च स्तर की सार्वजनिक भागीदारी है.
पिछले हफ्ते, मोदी सरकार द्वारा घोषित स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में इंदौर ने लगातार पांचवें वर्ष अपना ख़िताब बरकरार रखा.
पाल ने कहा, जिन्होंने पिछले मई में इंदौर के नगर आयुक्त के रूप में पदभार संभाला था, ‘लोगों की मानसिकता बदल गई है. अगर वे अपने चारों ओर किसी भी तरह का कचरा या किसी को सार्वजनिक रूप से कूड़ा डालते हुए देखते हैं तो वे खुद उसका विरोध करने के लिए आगे आते हैं.’
लोगों की इस प्रवृत्ति के लाभ पूरे शहर में दिखाई दे रहे हैं – सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा-करकट मिलना दुर्लभ बात है; और इसी तरह थूकने की आदत भी नदारद है. कहीं भी कूड़े के ढेर नहीं लगे हैं और सड़कें एवं फुटपाथ एकदम बेदाग हैं. आसपास कोई आवारा जानवर भी नहीं घूम रहे हैं और शहर की दीवारों से होर्डिंग गायब हैं.
इन सब के कारण जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार के अलावा के अन्य लाभ भी सामने आ रहे हैं
पाल ने कहा, ‘स्थायी संपत्ति की दरों में वृद्धि हुई है. निवेशक आ रहे हैं. शहर का चहुंमुखी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास हो रहा है.’
इंदौर अन्य भारतीय शहरों के लिए भी एक सीखने लायक सबक हो सकता है कि इन मानकों को हासिल किया जा सकता है. आखिरकार, यह सारा बदलाव सिर्फ सात साल पहले ही तो आना शुरू हुआ था
इससे पहले, जैसा कि यहां के निवासी बताते हैं, 30 लाख से अधिक लोगों की आबादी वाली मध्य प्रदेश की यह व्यावसायिक राजधानी किसी भी अन्य भारतीय शहर की तरह थी.
61 वर्षीय नूतन संवत्सर, एक सेवानिवृत्त शिक्षक जो व्यस्त बापट स्क्वायर के पास रहती हैं, का कहना है, ‘कचरे के ढेर हमेशा ओवरफ्लो वाले हालत में रहते थे. अगर उस वक्त किसी ने मुझे बताया होता तो एक दिन यह शहर वैसा ही दिखेगा जैसा कि यह अब है, तो मुझे उस पर कतई विश्वास नहीं होता.’
लेकिन एक वृद्धिशील कचरा कम करने की नीति, कचरे को अलग-अलग करने पर दिए गए जोर, और मानसिकता में बदलाव के संयोजन ने इंदौर को वह सब हासिल करने के लिए प्रेरित किया है जो कभी असंभव लगता था.
यह सब कैसे शुरू हुआ?
भारत का सबसे स्वच्छ शहर बनने की दिशा में इंदौर के सफर की शुरुआत 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश को स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन शुरू करने के कुछ महीने बाद हुआ.
शहर के तत्कालीन नगर आयुक्त मनीष सिंघल ने इंदौर को पटरी पर लाने के लिए इसे एक चुनौती के रूप में लिया.
इसके जब केंद्र सरकार ने 2016 में देश के शहरों और कस्बों में सफाई, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य वृत्ति (हाइजीन) का वार्षिक सर्वेक्षण – स्वच्छता सर्वेक्षण- शुरू किया, तो इसने इस मिशन को आवश्यक गति प्रदान की.
सिंघल ने सबसे पहले स्वच्छता के आंतरिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.
सिंघल ने दिप्रिंट को बताया , ‘हमने घर-घर कचरा एकत्रित करने वाले वाहनों के अपने बेड़े का निर्माण किया. हमने उस म्युनिसिपल वर्कशॉप (नगरपालिका कार्यशाला) को मजबूत किया, जहां पुराने वाहन मरम्मत के लिए जाते हैं. हमने सफाई कर्मचारियों की अपनी टीम को मजबूत किया और उनकी क्षमता का निर्माण किया.’
आज के दिन में इंदौर नगर निगम के पास 1,500 वाहनों का बेड़ा है और 11,000 सफाई कर्मचारियों (जिनमें से कुछ एक निजी ठेकेदार द्वारा नियोजित हैं) की एक टीम है.
एक बार इस टीम के तैयार हो जाने बाद, आईएमसी ने उन्हें घर-घर जाकर कचरा संग्रहण के लिए तैनात किया. पाल बताती हैं कि नगर निकाय के प्रयासों का अनुपालन करने हेतु शहर को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक साल में सिर्फ एक लक्ष्य रखा .
वे कहती हैं ‘2015 में, हमने सिर्फ घर-घर जाकर कूड़ा एकत्रित करने के बारे में बात की थी. शुरू में लोगों को संदेह था. इसलिए, हमने दो वार्ड को प्रायोगिक आधार पर चुना. इसके परिणाम बहुत अच्छे थे. जब लोगों ने देखा कि घर का कचरा उठाने के लिए नगर निगम के वाहन रोजाना आ रहे हैं, तो उन्हें अगला कदम – सूखे और गीले कचरे को अलग करना – उठाने के लिए राजी करना काफी आसान था.
2016 के अंत तक आईएमसी शत-प्रतिशत रूप से घर-घर जाकर कचरे का संग्रह कर रही थी.
तीसरे वर्ष में, आईएमसी ने ‘कचरे को कम करने, इसके पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण’ (रिड्यूस, रियूज और रीसायकल) पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि चौथा वर्ष घरेलू खाद के निर्माण (होम कम्पोस्टिंग) को बढ़ावा देने के बारे में था.
पांचवें वर्ष यानि कि 2019 में, आईएमसी ने लोगों से नदियों या जल निकायों में खुलने वाले किसी भी सीवर कनेक्शन को बंद करने के लिए कहा. प्रतिभा पाल ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य था कि हम अपने जल निकायों को गंदा नहीं होने देंगे… हमने सतह को साफ कर दिया है, इस बार हम अपने जल निकायों को साफ रखेंगे.’
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इंदौर को सबसे स्वच्छ भारतीय शहर बनाने के पीछे किस तरह का प्रयास किया गया था?
पाल के अनुसार, इस पूरी श्रृंखला की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी कचरे का उसके स्रोत पर ही पृथक्करण (अलग किया जाना) था.
पाल कहती हैं, ‘हम अपने कचरे को किस तरह अलग-अलग तरीके से अलग करते हैं, कैसे उसक मूल्यवर्धन करते हैं और उसका रीसायकल करने की क्षमता बढ़ाते हैं, इस बारे में एक सुनहरा नियम है. इंदौर की शुरुआत कचरे को दो तरह से अलग करने से हुई थी, जो आज बढ़कर छह प्रकार की हो गई है.’
कचरा इकठ्ठा करने वाले वाहनों के पड़ोस के स्तर से प्रसंस्करण केंद्र तक की आवाजाही पर नज़र रखने के लिए एक नियंत्रण-सह-कमांड केंद्र स्थापित किया गया था.
कचरे को अलग करने के बाद इसे छंटाई के लिए गारबेज ट्रांसफर स्टेशन (जीटीएस) में ले जाया जाता है. जीटीएस में, कचरे को मशीनों से दबा कर छोटा कर दिया जाता है और फिर इस प्लास्टिक के बड़े से कैप्सूल में डाल दिया जाता है.
इन कैप्सूलों का अंतिम गंतव्य वह ट्रेंचिंग ग्राउंड है जहां अहमदाबाद स्थित एनईपीआरए (नेप्रा) रिसोर्स लिमिटेड ने भारत के सबसे बड़े ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट) संयंत्रों में से एक की स्थापना की है.
नगरपालिका अधिकारियों द्वारा कड़ी निगरानी के साथ-साथ उनके द्वारा की जाने वाली सख्त कार्रवाई, जिसमें भारी जुर्माना और कर्तव्य में लापरवाही के लिए निलंबन भी शामिल है, ने यह सुनिश्चित किया है कि इस सारे कार्यक्रम में कहीं कोई खामी न रहे.
आईएमसी में कार्यरत एक मुख्य स्वच्छता निरीक्षक अजीत कल्याण ने कहा, ‘निगरानी बहुत सख्त हो गई है. नियंत्रण रेखा की छह परतें होती हैं और सबका लक्ष्य पहले स्थान पर बने रहना है. इसलिए, हमें हर साल उसी तरह का प्रयास करते रहना होगा और वही कड़ी मेहनत करनी होगी.
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इंदौर की इस स्वच्छता यात्रा के नायक
इंदौर की स्वच्छता यात्रा में कई नायक हैं.
निरपवाद रूप से, सबसे पहले तो इंदौरवासी ही आते हैं; इस शहर के वे लोग जिन्होंने अपने शीर्ष स्थान को बनाए रखने के लिए अपने पुरे दृष्टिकोण को ही बदल दिया है.
पाल ने कहा, ‘जो कुछ भी हुआ वह एक सांस्कृतिक बदलाव है. इंदौर निवासी अब इस शहर को साफ रखने को निजी जिम्मेदारी के रूप में लेते हैं’
नायकों का दूसरा समूह 11,000 सफाई मित्रों की टीम है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं.
साड़ी पहने, झाडू पकड़े हुए (कुछ ने गमबूट और मास्क भी पहने होते हैं) ये सफाई मित्र इंदौर की सड़कों पर सर्वव्यापी रूप से दिखती हैं .
वे अहले सुबह से लेकर देर रात तक काम पर लगे रहते हैं. सफाई मित्र पालियों में काम करते हैं – पहली पाली सुबह 6.30 बजे शुरू होती है, और आखिरी पाली रात 10 बजे शुरू होती है जो सुबह 7 बजे समाप्त होती है. रात की पाली में महिलाएं 25 के समूहों में काम करती हैं और उनके पास काम की देखरेख और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दो पुरुष पर्यवेक्षक होते हैं.
उनमें से अधिकांश स्वेच्छा से रात की पाली में काम कर रही हैं क्योंकि उनका कहना है कि इस वजह से उन्हें दिन के समय अपने परिवार और बच्चों के साथ रहने की अनुमति मिल जाती है. और वे पुरे गर्व के साथ आपको बताती हैं कि उन्होंने भी इंदौर के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में प्रदर्शन में भूमिका निभाई है.
वार्ड नंबर 33 में कार्यरत एक सफाई मित्र रेखा रतन ने कहा, ‘यह बात हमें खुशी देती है कि इंदौर हमारे कारण भी नंबर एक पर आया है.’
पाल कहती हैं कि नायकों का तीसरा समूह वे राजनीतिक प्रतिनिधि हैं जो दृढ़ता से इस सब के पीछे खड़े रहे हैं और कड़े फैसलों को लागू करने में प्रशासन का समर्थन किया.
वे आगे कहती हैं, ‘चौथा नायक है – प्रशासन. हमारी यात्रा इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है.’
शीर्ष पर मौजूद एक मजबूत सिविल सेवा नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया है कि कचरे का पृथक्करण, संग्रहण और प्रसंस्करण के पूरे चक्र का सावधानीपूर्वक पालन किया जाए.
यह सिर्फ कचरा पृथक्करण और प्रसंस्करण तक ही सीमित नहीं है.
सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं को हटाने के लिए भी व्यापक अभियान चलाया गया. 2015 से 2018 के बीच शहर के नगर आयुक्त रहे इंदौर के जिला कलेक्टर मनीष सिग्नल ने कहा कि इस दौरान लगभग 40,000 आवारा मवेशियों को सड़कों से हटाया गया. उन्होंने कहा, ‘दुधारू पशुओं को पंचायत क्षेत्रों में ले जाया गया और उन्हें वहीँ रखा गया.’
इंदौर में लगभग 2.5 लाख की चलायमान आबादी है जो रोज़ाना अपने काम के सिलसिले में यात्रा करते हैं. आईएमसी ने प्रत्येक 200 मीटर के बाद सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया, जिनका काफी अच्छी तरह से रखरखाव किया जाता है. पाल ने कहा, ‘शौचालय साफ होने पर लोगों को उनके इस्तेमाल के लिए बार-बार सोचने की जरूरत नहीं है.’
प्रशासन द्वारा अपनाये गए इसी बहुआयामी दृष्टिकोण ने शहर में सर्वांगीण सफाई सुनिश्चित की है.
आईएमसी ने स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने और स्रोत पर ही इसे अलग – अलग करने के महत्व के बारे में उन्हें समझाने के लिए अपने ‘सॉफ्ट स्किल्स’ का उपयोग करने के लिए गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को भी शामिल किया.
सिंघल कहते हैं, ‘इन एनजीओ ने आईएमसी और जनता के बीच एक सेतु का काम किया. हमने महसूस किया कि कई बार, लोगों को समझाने और प्रेरित करने के लिए हमारे पास सॉफ्ट स्किल्स की कमी हो सकती है. यहां, एनजीओ को समुदाय को उत्प्रेरित (कम्युनिटी ट्रिगरिंग) करने की जिम्मेदारी दी गई थी. इसने एक प्रमुख भूमिका निभाई.’
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कैसे इंदौर अपने तमगे को कायम रखने में कामयाब रहा है?
पाल के अनुसार, इंदौर मॉडल के स्थायित्व का मुख्य कारण यह है कि इसमें कोई कोताही नहीं है.
वे कहती हैं, ‘घर-घर कचरा संग्रहण का कार्य 100 प्रतिशत स्तर पर है. जो भी कचरा एकत्र किया जाता है वह छंटाई और 100 प्रतिशत प्रसंस्करण के पूरे चक्र से गुजरता है’
पृथक्करण का कार्य ठीक से नहीं होने पर नगर निगम के कर्मचारी कूड़ा उठाने से मना कर देते हैं.
पाल ने कहा ‘इस स्थायित्व का प्रमुख कारण जनता के बीच कचरे को अलग करने के प्रति जागरूकता है. यदि पृथक्करण की गुणवत्ता अच्छी है, तो कचरे की गुणवत्ता में भी स्वतः सुधार होता है और निजी क्षेत्र के लोग सामने आते हैं.’
अब यह व्यवस्था इतनी अच्छी तरह से स्थापित हो गई कि आम आदमी को इस प्रक्रिया की आदत हो गई है. इंदौर ने यह भी दिखाया है कि स्वच्छ रहने के लिए बहुत ज्यादा राशि खर्चना नहीं पड़ता.
आईएमसी के 5,000 करोड़ रुपये के वार्षिक बजट में से लगभग 1,200 करोड़ रुपये स्वच्छता के लिए आवंटित किए गए हैं. इसी में वेतन एवं अन्य विविध व्यय भी शामिल हैं.
सिंघल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे परिचालन एवं रखरखाव की लागत में केवल 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.’
इंदौर महानगर पालिका ने यह भी दिखाया है कि यदि प्रदान की जा रही सेवा अच्छी है तो लोग इसके लिए भुगतान करने से भी कतराते नहीं हैं.
आईएमसी घर-घर कूड़ा जाकर कूड़ा उठाने के लिए इंदौर निवासियों से नाममात्र का उपयोगकर्ता शुल्क (यूजर चार्ज) वसूलती है. झुग्गी-झोपड़ियों में यह शुल्क 60 रुपये प्रति घर प्रति माह है जबकि मध्यम वर्ग के इलाकों में 90 रुपये प्रति घर प्रति माह और संपन्न इलाकों में 150 रुपये प्रति घर प्रति माह तक का शुल्क लगता है.
आईएमसी ने पिछले वित्त वर्ष में यूजर चार्ज से करीब 240 करोड़ रुपये कमाए. पाल ने कहा ’यूजर चार्ज के माध्यम से हमारी वसूली पिछले साल 86 प्रतिशत थी. इसमें किसी की कोई अनिच्छा नहीं है. जनता खुश है और उनमें गर्व की भावना है .’
सभी के लिए फायदे का सौदा
भारत में स्वच्छता क्षेत्र में पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल बहुत अधिक सफल नहीं रहा है. आम तौर पर माना जाता है कि राजनीतिक हस्तक्षेप और परिचालन संबंधी मुद्दों के परिणामस्वरूप कई निजी खिलाड़ी इस कार्य से बाहर हो गए.
लेकिन इंदौर में यह निर्बाध रूप से काम करता दिख रहा है.
अहमदाबाद स्थित नेप्रा रिसोर्स मैनेजमेंट ने यहां 43 करोड़ रुपये की लागत से 4.5 एकड़ भूमि पर भारत की सबसे बड़ी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा स्थापित की है.
कंपनी ने इस संयंत्र के संचालन और रखरखाव के लिए 2018 में IMC के साथ 14 साल का समझौता किया, जहां अब हर दिन 400 मीट्रिक टन सूखे कचरे को संसाधित किया जाता है.
यह दोनों पक्षों के लिए फायदे का सौदा है.
नेप्रा जहां प्रसंस्करण हेतु सूखे कचरे की आपूर्ति के लिए आईएमसी को प्रति वर्ष लगभग 1.5 करोड़ रुपये की रॉयल्टी का भुगतान करती है, वहीं प्रसंस्करण के बाद पुनर्चक्रित आपशिष्ट (रीसाइकल्ड वेस्ट) को बेचकर यह हर महीने लगभग 1.5 करोड़ रुपये से 1.6 करोड़ रुपये कमाती है.
नेप्रा के सिटी ऑपरेशंस (इंदौर) के प्रमुख वीरेंद्र माने ने कहा कि कंपनी अब अपनी लागत कमा ली है. वे कहते हैं, ‘हमने इंदौर को 100 प्रतिशत कचरे के स्रोत पर ही पृथक्करण के कारण चुना. लोग कचरे को स्रोत पर ही अलग कर रहे हैं, जो इस समय किसी अन्य शहर में नहीं हो रहा है.’
कुवैत स्थित नेशनल क्लीनिंग कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी इंटरनेशनल वेस्ट मैनेजमेंट के सीईओ मोहन पांडे का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है. इस कंपनी ने 2016 में आईएमसी से रात के समय झाड़ू लगाने (नाइट स्वीपिंग) का ठेका लिया था. पांडे ने कहा कि उन्होंने इंदौर में परियोजना शुरू करने का फैसला यहां की कार्य संस्कृति और ‘राजनीतिक हस्तक्षेप की कमी’ के कारण लिया. उन्होंने कहा, ‘आईएमसी बहुत सहायक है. उन्होंने एक पॉइंट पर्सन को नियुक्त किया है, जिससे हमारे लोग किसी भी समस्या के मामले में संपर्क कर सकते हैं. ‘
पांडे, जिनकी कंपनी संयक्त अरब अमीरात, कतर, तुर्की, अमेरिका और फिलीपींस सहित कई अन्य देशों में भी काम करती है, ने कहा कि इंदौर में किसी तरह का कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है.
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