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Friday, 26 April, 2024
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क्या है NSCN(K) का निकी सुमी गुट, जिसने मोदी सरकार के साथ युद्ध विराम समझौते पर दस्तख़त किए हैं

NSCN(K) का निकी सुमी गुट पिछले साल गठित किया गया था, जब विद्रोही ग्रुप NSCN-K के नेतृत्व में मतभेद पैदा हो गए थे.

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नई दिल्ली: बुधवार को मोदी सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के) के निकी सुमी गुट के साथ, एक युद्धविराम समझौते पर दस्तख़त कर दिए.

ये समझौता 8 सितंबर से एक साल की अवधि के लिए प्रभावी हो गया, और इस गुट के 200 से अधिक काडर्स, 83 हथियारों के साथ शांति प्रक्रिया में शामिल हो गए.

गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया, ‘भारत सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (के) निकी गुट से साथ एक युद्धविराम समझौता कर लिया है, जो 8 सितंबर 2021 से एक वर्ष की अवधि के लिए प्रभावी होगा, और इस गुट के 200 से अधिक काडर्स, 83 हथियारों के साथ शांति प्रक्रिया में शामिल हो गए’.

इससे पहले, भारत सरकार ने अगस्त 2019 में एनएलएफटी (एसडी) के साथ एक समझौता किया था, जिसके तहत 88 काडर्स 44 हथियारों के साथ, त्रिपुरा में समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए थे. जनवरी 2020 में, बोडो समझौते पर हस्ताक्षर होने के साथ, विद्रोही गुटों के 2,250 से अधिक काडर्स, जिनमें नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैण्ड (एनडीएफबी) के सभी गुट शामिल थे, 423 हथियारों और भारी मात्रा में गोला बारूद के साथ, असम में सरेंडर करके मुख्यधारा में आ गए थे.

23 फरवरी को, असम के भूमिगत कार्बी गुट के 1,040 लीडर्स-काडर्स ने, 338 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद 4 सितंबर को कार्बी-आंगलॉन्ग समझौते पर दस्तख़त हुए.

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दिप्रिंट आपको बताता है कि निकी सुमी-एनएससीएन (के) गुट क्या है, और नागा शांति वार्त्ता में उसकी क्या भूमिका है.

NSCN(K) के बारे में सब कुछ

नागालैण्ड विद्रोही गुट एनएससीएन (के) का गठन 1988 में एसएस खापलांग ने, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड छोड़ने के बाद किया था, जहां उसके इशक चीशी सू और थुइंगलेग मुईवा के साथ मतभेद हो गए थे.

पिछले कुछ सालों में, कई गुट एनएससीएन (के) से निकलकर अलग हुए हैं. उनमें हैं एनएससीएन (के)-निकी सुमी, एनएससीएन (रिफॉर्मेशन), एनएससीएन (के)-खांगो, एनएससीएन (नियोपाओ कोनयक-कितोवी) और एनएससीएन (के-यंग-ऑन्ग).

सरकार पहले ही एनएससीएन (एनके), एनएससीएन (आर), और एनएससीएन (के)-खांगो के साथ युद्धविराम समझौते कर चुकी थी.

निकी सुमी गुट, जिसने बुधवार को समझौते पर दस्तख़त किए, तब वजूद में आया जब 2019 में एनएससीएन (के) के सैन्य कमांडर सुमी को, नेतृत्व के साथ मतभेदों के चलते, एनएससीएन (के) से निष्कासित कर दिया गया था.

सुमी ने, जिसका ताल्लुक़ सेमा जनजाति से है, एनएससीएन (के) के सैन्य सलाहकार के तौर पर सेवाएं दी थीं, और वो खापलांग का भरोसेमंद था. 2015 में, मणिपुर के चंदेल ज़िले में भारतीय सेना के 18 जवानों की हत्या में वो मुख्य अभियुक्त था. उस हमले से कुछ पहले ही खापलांग गुट ने अपने युद्धविराम को तोड़ने का फैसला किया था. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने ऐसी सूचना देने वाले के लिए, 10 लाख रुपए इनाम देने का ऐलान किया था, जिससे उसकी गिरफ्तारी हो सके.

पिछले दिसंबर, सुमी ने एक बयान में ऐलान किया था, कि वो नागा शांति मसले के ‘जल्द समाधान’ के लिए क़दम उठाएगा.

उसने कहा था, ‘एनएससीएन/जीपीआरएन पिछले तमाम वर्षों में, नागा समस्या के एक सम्मानित और स्वीकार्य राजनीतिक समाधान के लिए संघर्ष करती रही है. एनएससीएन/जीपीआरएन लंबे समय से चले आ रहे इस मसले के जल्द समाधान के लिए, नागा लोगों की जबरदस्त भावनाओं से भी भली भांति वाक़िफ है.

लेकिन गुट ने नागा नेशनल पोलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजीज़) में शामिल होने का कोई संकेत नहीं दिया था, जो सात संगठनों का ग्रुप है, जिसकी केंद्र सरकार के साथ बातचीत चल रही है. लेकिन, इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार, इस बात की संभावना है कि उन्हें एनएनपीजीज़ में शामिल होने के लिए कहा जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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