नई दिल्ली: 2022 के केंद्रीय बजट में घोषित ‘डिजिटल यूनिवर्सिटी’ की इस साल अगस्त तक स्थापना के लिए शिक्षा मंत्रालय और विभिन्न हितधारक साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
अभी भी शुरूआती चरण में बनी हुई इस योजना को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का भी समर्थन प्राप्त है. सोमवार की सुबह एक वेबिनार में यह कहते हुए कि यह ‘सीटों की कमी वाली समस्या का समाधान’ करेगा, उन्होंने इसमें शामिल हितधारकों से इस यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) की स्थापना की प्रक्रिया में और तेजी लाने के लिए कहा .
सरकार की योजना विभिन्न विश्वविद्यालयों को एक साथ लाने और फिर एक डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने की है, जो छात्रों को एक सिंगल यूनिट (एकल इकाई) के रूप में नामांकित कर सकेंगे. यह यूनिवर्सिटी एक साथ कई तरह की योग्यताओं की पेशकश करेगा जिसमें सर्टिफिकेट कोर्स (प्रमाणपत्र कार्यक्रम), डिप्लोमा, डिग्री आदि शामिल हैं.
प्रधान मंत्री द्वारा किये गए सम्बोधन के बाद उच्च स्तरीय अधिकारियों, शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ हुए एक पैनल डिस्कशन ने उन अवसरों और चुनौतियों की पहचान की गई जो एक डिजिटल यूनिवर्सिटी पेश कर सकती है.
जैसा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा प्रस्तावित किया गया है, इस यूनिवर्सिटी में सीटों की संख्या की कोई सीमा नहीं होगी और 12 वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाला कोई भी युवा इसमें नामांकन के लिए सक्षम होगा. यह एक ऐसा उपाय है जो और ज्यादा अवसरों को खोलने और भारत के डिग्री कोर्स में नामांकन के आंकड़ों को बढ़ावा देने में मदद करता है. अगले 15 वर्षों में 18-23 वर्ष के युवाओं के लिए इसे 50 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य है.
दूसरी ओर, इसकी वजह से सामने आने वालीं कुछ चुनौतियों में स्थिर डिजिटल कनेक्टिविटी, उपकरणों की उपलब्धता, छात्रों का ध्यान आकर्षित करना और ऑनलाइन सामग्री की वितरण शैली आदि शामिल हैं.
सामूहिक परिचर्चा
ढाई घंटे तक चली इस चर्चा के प्रतिभागियों में केंद्रीय उच्च शिक्षा सचिव के. संजय मूर्ति, यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे, आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रोफेसर वी. कामकोटि और एनजीओ पीरामल ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन स्वाति ए. पीरामल, सहित कई अन्य लोग शामिल थे.
सरकार ने इस वेबिनार के दौरान उभर कर आए सुझावों पर कार्रवाई के लिए अगले छह महीने से एक साल तक की समयसीमा तय की है.
चर्चा के दौरान, यूजीसी ने प्रस्ताव दिया कि डिजिटल यूनिवर्सिटी में सीटों की संख्या और ऑनलाइन कार्यक्रमों की संख्या की कोई ऊपरी सीमा नहीं होगी. 12वीं कक्षा पास करने वाला कोई भी युवा इसमें प्रवेश के लिए पात्र होगा.
चर्चा के दौरान जगदीश कुमार ने कहा, ‘विश्वविद्यालयों में लागू वर्तमान प्रवेश प्रणाली एलिमिनेशन (छांटे जाने) पर आधारित है … कई अच्छे छात्र अपनी पसंद के कॉलेज में इस वजह से प्रवेश पाने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने कक्षा 12 में कितने (कम) अंक लाएं हैं. [एक] डिजिटल विश्वविद्यालय के साथ, हम इस समस्या को हल करने में सक्षम होंगे … जो कोई भी कक्षा 12 पास कर चुका है, वह अपनी पसंद के पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकेगा.’
उन्होंने कहा कि आयोग एडटेक (शिक्षा प्रोद्यौगिकी) कंपनियों के साथ सहयोग के बारे में भी एक और क्लॉज़ (शर्त) जोड़ने पर काम कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘उच्च शिक्षा संस्थान अपने प्लेटफार्म के माध्यम से छात्रों के लिए कोई भी प्रोग्राम पेश करने हेतु एडटेक कंपनियों के साथ सहयोग करने में सक्षम होंगे. हम इसे नियमन का हिस्सा बनाने पर काम कर रहे हैं.’
यह विश्वविद्यालय को अपने स्वयं के नियमों तहत संचालित किया जाना है, जो अन्य चीजों के साथ यह भी तय करेगा कि कौन से संस्थान डिजिटल सिस्टम का हिस्सा हो सकते हैं, और वे कौन-कौन से पाठ्यक्रम पेश कर सकते हैं.
चर्चा के अंत में साझा की गई एक प्रस्तुति (प्रेजेंटेशन), जिसकी एक प्रति दिप्रिंट ने भी देखी है, के अनुसार यूजीसी अगले दो महीनों के भीतर डिजिटल विश्वविद्यालय के लिए एक नियामकीय ढांचा तैयार करेगा.
सरकार ने इसके लिए पीरामल फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग मांगा है जिन्होंने शिक्षा के लिए जमीन पर काम किया है और इसकी योजना उनके अनुभवों से सीख कर इसे लागू करने की है.
नामांकन अनुपात में सुधार
एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे का विचार सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो – जीईआर), जो कॉलेज स्तरीय शिक्षा में भाग लेने वाले 18-23 आयु वर्ग की जनसंख्या के प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है, को अगले 15 वर्षों में 50 प्रतिशत तक ले जाना है.
अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (आल इंडिया सर्वे ऑफ़ हायर एजुकेशन – एआईएसएचई) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्तमान जीईआर लगभग 27 प्रतिशत है.
एआईएसएचई रिपोर्ट 2019-20 और यू-डीआईएसई – यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (जो सरकार द्वारा बनाया गया स्कूलों के बारे में एक डेटाबेस है) की उसी वर्ष के लिए जारी एक रिपोर्ट को भी इस चर्चा में प्रस्तुत किए गया था और इनके आंकड़ों से पता चलता है कि जैसे-जैसे छात्र उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते हैं, एजुकेशन सिस्टम (शिक्षा प्रणाली) में उनकी संख्या में कम होती जाती है.
इन आंकड़ों से पता चलता है कि कक्षा 8 के स्तर पर जहां 215 लाख छात्र थे, वहीं स्नातक स्तर पर यह संख्या घटकर 84.65 लाख रह गई. और इस प्रेजेंटेशन के अनुसार अधिकांश स्नातक स्तर के छात्र कला, विज्ञान और वाणिज्य में स्नातक की डिग्री की और जाते हैं, और बहुत कम संख्या में छात्र इंजीनियरिंग, प्रबंधन (मैनेजमेंट) और कंप्यूटर एप्लिकेशन का विकल्प चुनते हैं.
इस प्रेजेंटेशन में आगे कहा गया है कि इस वजह से ‘स्नातक डिग्री के बारे में फिर से कल्पना करने’ और इसे ‘रोजगार उन्मुख पाठ्यक्रम’ बनाये जाने की आवश्यकता है.
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