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Wednesday, 8 May, 2024
होमदेशबिना कार वाले कैंसर-किडनी मरीज़ों का लॉकडाउन में हाल बेकार, हो रही कई असुविधाएं

बिना कार वाले कैंसर-किडनी मरीज़ों का लॉकडाउन में हाल बेकार, हो रही कई असुविधाएं

एम्स में किडनी के मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टर संजय अग्रवाल का कहना है कि जिनके पास हॉस्पिटल कार्ड है उन्हें पुलिस नहीं रोकती और ना ही बस वाले लाने से मना करते हैं.

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नई दिल्ली: किडनी की बीमारी से जूझ रहे 49 साल के ब्रह्म देव यादव दिल्ली से संगम विहार में रहते हैं. डायलिसिस के लिए उन्हें एम्स जाना होता है. उन्होंने कहा, ‘अपनी गाड़ी नहीं होने की कमी आज पता चल रही है, आज जानलेवा हो रही है.’

संपूर्ण लॉकडाउन के चलते इन दिनों देशभर में गाड़ियां बसों के परिचालन पर भी रोक है. ब्रह्मदेव की मानें तो कई बार घंटे में एकाध बस आती है. ज़्यादातर बस वाले ले जाने में आनकानी करते हैं.

लॉकडाउन के बाद अपनी गाड़ी न होने का मलाल कई मरीजों को है. किडनी और कैंसर के जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज़ों को घर से निकलने पर न तो गाड़ी नहीं मिल रही है और अगर लंबे इंतजार के बाद एकआध बस मिल भी जाए तो वह उस रूट की नहीं होती है. और भटकते-भटकते अस्पताल पहुंच भी जाएं इलाज इतना महंगा हो चुका है कि जेब ही कटी जा रही है.

कोरोनावायरस संक्रमण के बीच बता दें कि लगभग सभी सरकारी अस्पतालों के ओपीडी भी बंद कर दिए गए हैं. एम्स अस्पताल का ओपीडी तो पहले ही बंद किया जा चुका था, शुक्रवार को लोकनायक और जीबी पंत अस्पताल का ओपीडी भी बंद कर दिया गया है. दिप्रिंट ने गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों का हाल जाना और इन मरीजों ने अपनी समस्याओं को साझा किया है.

अपनी गाड़ी न होने वाले मरीजों का हाल बेहाल

अपनी गाड़ी न होने से मरीजों का हाल बेहाल हो चुका है, लॉकडाउन होने से भी इसका असर मरीजों पर पड़ रहा है. गाड़ी न होने का मलाल सिर्फ यादव को नहीं बल्कि उनके जैसे कई किडनी और कैंसर के मरीज़ों का भी हो रहा है. यहां तक कि एंबुलेंस भी कोविड-19 के मरीजों के लिए ही काम कर ही हैं. एक मरीज़ ने बताया कि 102 पर कॉल करने पर ‘एंबुलेस’ नहीं आती. एंबुलेंस वाले कहते हैं कि सारा ज़ोर कोविड- 19 पीड़ितों पर है.

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यादव ने बताया कि सिर्फ गाड़ियों की परेशानी नहीं हो रही है बल्कि डायलिसिस की प्रक्रिया में काम आने वाले डायलायज़र की भी कीमत बढ़ गई है. पहले ये 1100 रुपए में मिलता था लेकिन अब ये 1500 का हो गया है.

दिल्ली में अपने 55 साल के चाचा अजय कुमार का इलाज करवा रहे सत्यम विशाल ने कहा, ‘8 मार्च को हमने उन्हें एम्स के इमरजेंसी में भर्ती कराया. डॉक्टरों ने कहा कि इनकी दोनों किडनियां ख़राब हैं. जल्द से जल्द से डायलिसिस की जरूरत है. ये एम्स में नहीं हो पाएगा क्योंकि मशीन बहुत कम मरीजों बहुत ज्यादा हैं.’ सत्यम चाचा के साथ बिहार से दिल्ली किडनी का इलाज कराने आए हैं.

फिर वो सफदरजंग और आरएमएल गए लेकिन वहां भी यही स्थिति यही थी. उन्होंने गंगाराम हॉस्पिटल में चाचा का डायलिसिस करवाया. आगे का इलाज वो एक चैरिटेबल अस्पताल अहिंसा धाम से करवा रहे हैं जहां डायलिसिस के तो 1500 लगते है लेकिन लॉकडाउन के कारण उन्हें प्राइवेट एम्बुलेंस के लिए 2000 रुपए देने पड़ते हैं.

वहीं, मैक्स हॉस्पिटल में डायलिसिस करवा रहे एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वहां ना तो सैनिटाइज़र होता है और ना हो सोशल डिस्टेंसिंग. प्राइवेट कोचिंग चलाने वाले इस मरीज़ ने कहा कि डायलिसिस का ख़र्च बहुत ज़्यादा और लॉकडाउन में धंधा मंदा है. ऐसे में सरकारी मदद नहीं मिलने पर स्थिति जानलेवा हो सकती है.

हालांकि, एम्स में किडनी के मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टर संजय अग्रवाल का कहना है कि जिनके पास हॉस्पिटल कार्ड है उन्हें पुलिस नहीं रोकती और ना ही बस वाले लाने से मना करते हैं. मगर वो ये भी कहते हैं कि जिनके पास अपनी गाड़ी नहीं है, ऐसा हो सकता है कि उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हो.

कुछ मरीज़ों की ऐसी शिकायत भी है कि एक तो डायलिसिस के लिए समय पाना कठिन है. अगर समय मिल जाता है और किसी कारणवश वो समय से नहीं पहुंच पाते तो उनका स्लॉट किसी और को दे दिया जाता है क्योंकि मशीनें कम और मरीज़ ज़्यादा हैं.

इस पर अग्रवाल कहते हैं कि स्लॉट मिलने में कोई दिक्कत नहीं है. हां, मरीज़ के पसंद स्लॉट मिलने में परेशानी हो सकती है. उन्होंने ये भी कहा कि जो हमेशा के मरीज़ हैं उनका समय किसी और को नहीं दिया जाता क्योंकि डायलिसिस एक इमरजेंसी की प्रक्रिया है और इसी वजह से कोरोना महामारी के बीच भी ये जारी है.

वो ये डर भी जताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट और एक राज्य से दूसरे राज्य का संपर्क बंद है ऐसे में डायलिसिस के लिए सामान मिलना मुश्किल हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘प्राइवेट वाले डायलिसिस से जुड़ी चीज़ें पहले से ख़रीद के रखते थे, सरकारी हॉस्पिटल को भी इसकी तैयारी कर लेनी चाहिए.’

उन्होंने ये भी कहा कि सरकार को इसमें लगने वाले कच्चे माल और तैयार प्रोडक्ट की कमी मत हो. उन्हें ट्रांसपोर्ट करने में भी रुकावट मत आए क्योंकि डायलिसिस एक इमरजेंसी सेवा है और चीज़ें नहीं होने की स्थिति में इसे रोका नहीं जा सकता है.

मरीजों का हाल सिर्फ देश की राजधानी में ही बुरा नहीं बना हुआ है बल्कि नागरपुर में कैंसर का इलाज करा रहीं कल्पना की परेशानी कार नहीं है बल्कि कोरोना संक्रमण का डर है.

नागपुर के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में ब्रेस्ट कैंसर इलाज करवा रहीं 66 साल की कल्पना शस्त्री को अडवांस स्टेज कैंसर है. उन्होंने कहा कि उनकी सर्जरी हो चुकी हैै लेकिन सर्जरी के साथ ही कोरोना शुरू हो गया. उन्हें हर 15 दिन में किमोथेरेपी करवानी होती है.
अपनी गाड़ी से सफर करने वाली शास्त्री का कहना है कि पुलिस वाले इलाज का कार्ड दिखाने पर परेशान नहीं करते. हालांकि, उन्होंने ये बताया कि कोरोना महामारी की वजह से उन्हें घर से बाहर तक कई गुना ज़्यादा परहेज और सावधानी बरतनी पड़ रही है.
दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में डॉक्टर स्वरूपा का भी यही कहना है कि जिनकी अपनी गाड़ी नहीं है उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘कीमो और रेडियो थेरेपी बिल्कुल तय समय से ही करनी होती है. हम ऐसे मरीज़ों को एक सर्टिफिकेट देते हैं. ऐसा कोई मामला नहीं आया जिसमें ऐसे मरीज़ों को किसी ने रोका हो.’
मेरठ के एक मरीज़ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उस मरीज़ के पास अपनी गाड़ी नहीं है और उसे आने में दिक्कत है. ऐसे में थेरेपी रुकना जानलेवा साबित हो सकती है. उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों में उनके हॉस्पिटल ने कोशिश की है कि ऐसे मरीज़ों को आस-पास रहने की जगह दिलवा दी जाए.
डॉक्टर स्वरूपा ने कहा, ‘अभी के माहौल में इन्हें कोरोना से संक्रमण का भी डर है. हमें दोनों में बैलेंस बिठाना पड़ रहा है. कोरोना होने की स्थिति मेें कैंसर का इलाज तुरंत रोकना पड़ेगा. फिर कोरोना के इलाज के बाद उसके कैंसर का इलाज हो सकता है.’ उन्होंने कहा कि हालांकि इसके बावजूद उनके यहां हर दिन 100 मरीज़ों को पास दिया जा रहा है.
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