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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशक्या बात है! पंजाबियों को बटर चिकन पसंद नहीं है, मीट उपभोग में पंजाब देश में निचले पायदान पर

क्या बात है! पंजाबियों को बटर चिकन पसंद नहीं है, मीट उपभोग में पंजाब देश में निचले पायदान पर

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चिकन उपभोग के मामले में हरियाणा और राजस्थान के साथ पंजाब सबसे निचले पांच राज्यों में से एक है. हालांकि, पंजाबी दूध और डेयरी उत्पादों का अधिक मात्रा में उपभोग करते हैं.

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रोम: पंजाब की लोकप्रिय संस्कृति देखकर ऐसा लग सकता है कि पंजाब में मीट खाने वालों की संख्या बहुत ज़्यादा होगी, लेकिन तथ्य एक बहुत अलग तस्वीर पेश करते हैं. नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि देश में चिकन और अंडा खाने वालों में की सूची में पंजाबियों की संख्या सबसे कम है.

हालांकि, वे दूध और दुग्ध उत्पादों का काफी मात्रा में सेवन करते हैं. जिस आदत की वजह से उनकी जेब पर काफी ज्यादा बोझ पड़ता है.

पिछले महीने सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23, भारतीय परिवारों द्वारा विभिन्न खाद्य पदार्थों की खपत का विवरण प्रदान करता है, जिसमें यह डेटा भी शामिल है कि भारतीय अपने प्रोटीन की ज़रूरत का कहां से पूरा करते हैं.

सर्वेक्षण के अनुसार, पंजाब में एक औसत व्यक्ति एक महीने में लगभग 205 ग्राम चिकन खाता है, जो बिहार में इसी अवधि के दौरान खपत की जाने वाली मात्रा – लगभग 518 ग्राम – का लगभग आधा है . अंडों के मामले में भी, एक औसत पंजाबी एक महीने में तीन अंडे खाता है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा चार है.

वास्तव में, चिकन की खपत के मामले में पंजाब अपने पड़ोसी राज्यों हरियाणा और राजस्थान के साथ सबसे निचले पांच राज्यों में से एक है, जहां चिकन की औसत प्रति व्यक्ति मासिक खपत क्रमशः 133 ग्राम और 85 ग्राम है. ये राज्य बहुत अधिक अंडे भी नहीं खाते हैं. एक व्यक्ति एक महीने में मुश्किल से दो-तीन अंडो की खपत करता है.

मुर्गी और अंडे की खपत के मामले में गुजरात भी निचले पांच राज्यों में शामिल है, जहां प्रति व्यक्ति प्रति माह दो अंडे और 145 ग्राम चिकन की खपत होती है. राष्ट्रीय औसत चार अंडे और 410 ग्राम चिकन प्रति माह है.

भारत के पूर्वोत्तर और दक्षिणी हिस्सों में चिकन और अंडे की प्रति व्यक्ति खपत सबसे अधिक है. औसतन, पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में प्रति व्यक्ति आठ अंडे की मासिक खपत दर है. पांच दक्षिणी राज्यों में यह संख्या छह है.

जब चिकन की बात आती है, तो दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के लोग पंजाब में खपत की गई मात्रा से तीन गुना अधिक मात्रा का उपभोग करते हैं. दक्षिण में चिकन की खपत 681 ग्राम प्रति माह और पूर्वोत्तर में 684 ग्राम प्रति माह है.

देश में चिकन के शीर्ष उपभोक्ताओं में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गोवा, सिक्किम, त्रिपुरा और केरल शामिल हैं.

प्रोटीन का वैकल्पिक स्रोत

हालांकि मांस और अंडे की कम खपत करने वाले उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्य दूध और दूध उत्पादों के ज़रिए अपनी प्रोटीन आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. उदाहरण के लिए, दूध की खपत के मामले में, हरियाणा सूची में सबसे ऊपर है, जहां एक औसत व्यक्ति हर महीने लगभग 12 लीटर दूध का उपभोग करता है, उसके बाद पंजाब (11), हिमाचल प्रदेश (10), राजस्थान (10) और जम्मू और कश्मीर (नौ) का स्थान आता है.

दूध की खपत के लिए अखिल भारतीय औसत प्रति व्यक्ति प्रति माह लगभग पांच लीटर है.

दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत दोनों इस मामले में पीछे हैं, जहां औसत दूध की खपत क्रमशः चार लीटर और दो लीटर है. केरल में, दूध की प्रति व्यक्ति मासिक खपत तीन लीटर, तेलंगाना और कर्नाटक में चार-चार लीटर और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पाँच-पाँच लीटर है.

भारत के दूध-उपभोग वाले क्षेत्र में दूध से बने उत्पाद पनीर की भी खूब खपत होती है. पंजाब में, औसत व्यक्ति हर महीने लगभग 117 ग्राम पनीर खाता है. यही आँकड़ा जम्मू और कश्मीर में 172 ग्राम, उत्तराखंड में 106.5 ग्राम, ओडिशा में 98 ग्राम, हरियाणा में 92 ग्राम और बिहार और उत्तर प्रदेश में क्रमशः 87 और 85 ग्राम है.

राजस्थान में लोग – जहाँ अंडे और मांस की खपत सबसे कम है – एक महीने में बमुश्किल 35 ग्राम पनीर खाते हैं.

जेब पर भारी पड़ते हैं दूध और दुग्ध उत्पाद

लेकिन मांस के स्थान पर दूध का उपयोग उत्तरी राज्यों के लोगों की जेब पर भी भारी पड़ता है. हरियाणा में दूध और दूध उत्पादों पर होने वाला व्यय उनके मासिक भोजन व्यय का 37.4 प्रतिशत है.

इसी तरह, दुग्ध-उपभोग करने वाले अन्य राज्यों में, दूध पर होने वाले खर्च भोजन पर होने वाले कुल व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

राजस्थान में भोजन पर होने वाले मासिक व्यय का 34.3 प्रतिशत और पंजाब में 33.5 प्रतिशत दूध और उसके उत्पाद हैं. दिल्ली में, भोजन पर होने वाले मासिक व्यय का 28.6 प्रतिशत हिस्सा दूध और उसके उत्पादों पर खर्च होता है. इसके विपरीत, बिहार में लोग अपने भोजन व्यय का 18 प्रतिशत दूध पर और 11 प्रतिशत अंडे, मांस और मछली पर खर्च करते हैं.

भारत में औसतन, दूध और दूध उत्पादों पर मासिक भोजन व्यय का 18.2 प्रतिशत और अंडे, मांस व मछली पर 10.8 प्रतिशत खर्च होता है.

दिप्रिंट ने पहले बताया था कि राष्ट्रीय पोषण संस्थान के डेटाबेस के अनुसार, दाल और पनीर प्रोटीन दक्षता (प्रति ग्राम प्रोटीन, किलोकैलोरी और वसा) के मामले में अपने वजन से कम है.

ग्रामीण भारत में मांस की खपत बढ़ रही है

सर्वेक्षण में एक और मुख्य बात यह थी कि ग्रामीण भारत में अंडे, मांस और मछली पर खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, इन वस्तुओं पर मासिक व्यय दूध और दूध पर होने वाले खर्च से थोड़ा अधिक है.

2011-12 में, जब पिछली बार HCES आयोजित किया गया था, तब मांस, अंडे और मछली ग्रामीण भारत के मासिक खाद्य बजट का लगभग 9 प्रतिशत और शहरी भारत के 8.6 प्रतिशत थे. 2022-23 तक, ग्रामीण क्षेत्रों में यह हिस्सा बढ़कर 18.1 प्रतिशत हो गया, हालाँकि यह शहरी क्षेत्रों में 9.1 प्रतिशत पर काफी हद तक समान रहा.

2011-12 में ग्रामीण भारत के मासिक खाद्य बिलों में दूध और दूध उत्पादों का हिस्सा लगभग 18 प्रतिशत था, जो 2022-23 में घटकर 17.5 प्रतिशत हो गया. हालाँकि, शहरी क्षेत्रों में यह उसी अवधि में 10.3 प्रतिशत से बढ़कर 18.4 प्रतिशत हो गया.

ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि भारत में दूध की खपत का आय के स्तर से संबंध है.

HCES आय वितरण में 12 अंशों या वर्गों पर डेटा देता है. डेटा से पता चलता है कि जैसे-जैसे शहरी क्षेत्रों में आय का स्तर बढ़ता है, दूध और उसके उत्पादों पर खर्च किए जाने वाले खाद्य बिलों का हिस्सा काफी बढ़ जाता है. दूसरे शब्दों में, अमीर भारतीय चिकन की तुलना में दूध और उसके उत्पादों पर अधिक खर्च करते हैं.

दिप्रिंट ने दूध और उसके उत्पादों पर खर्च और अंडे, मांस व मछली पर खर्च के अनुपात की गणना की. सबसे कम अंशों में, कुछ समानता है. यानी, आय के स्तर के मामले में निचले पांच प्रतिशत परिवारों में, शहरी क्षेत्रों में दूध पर खर्च अंडे, मांस व मछली पर खर्च का 1.44 गुना है.

वितरण के शीर्ष पांच प्रतिशत में, दूध पर खर्च (खाद्य व्यय का 14.7 प्रतिशत) अंडे, मछली और मांस (6.14 प्रतिशत) पर खर्च का 2.4 गुना था.

ग्रामीण क्षेत्रों में, दूध और उसके उत्पादों पर निचले 5 प्रतिशत परिवारों का खर्च अंडे, मांस और मछली पर खर्च से केवल 1.24 गुना अधिक था. शीर्ष पांच प्रतिशत में, दूध पर खर्च (खाद्य बिल का 18 प्रतिशत) अंडे, मांस और मछली (11.26 प्रतिशत) से केवल 1.65 गुना अधिक था.

(निखिल रामपाल सी-वोटर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो हैं.)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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