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Thursday, 25 April, 2024
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हैंडपंप काम के नहीं, कुएं सूखे हैं- ‘बुंदेलखंड में कोरोना से भी बड़ा है पानी का संकट’

लगभग दो दर्जन बुंदेलखंड के गांवों के लिए, पानी की कमी ज्यादातर समय एक मुद्दा रही है, लेकिन कोविड -19 ने इस परेशानी को और बढ़ा दिया है जब हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी हैं. लेकिन गांव के कुएं और हैंड पंप सब सूख चुके हैं.

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झांसी: पूरा देश जहां एक ओर कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो वहीं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के लिए कोविड-19 से ‘बड़ी’ समस्या है- पानी की समस्या. यहां जल समस्या चरम पर है.

ग्रामीण लॉकडाउन में भी कई-कई किलोमीटर दूर पानी लेने जाने को मजबूर हैं. एक दो नहीं बल्कि ‘दो दर्जन गांव’ पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. कई गांव में टैंकर के जरिए पानी की सप्लाई होती है लेकिन पैसे देकर ही पानी मिल पाता है.

वहीं टैंकर से पानी लेते वक्त जिस तरह रोजाना भीड़ जुटती है उससे सोशल डिस्टेंसिंग की भी धज्जियां उड़ रही हैं.

जिला प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू होने के बाद लगभग 40,000 प्रवासी झांसी लौट आए हैं. जबकि कोरोनावायरस को लेकर कोई ब्रेक-अप उपलब्ध नहीं है, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 15,000 से अधिक लोग पानी से कमी वाले गांवों में वापस आ गए हैं.

झांसी शहर से सटे एक दर्जन से अधिक गांव में लोग कोरोना संकट से ज्यादा बड़ा ‘जल संकट’ को बता रहे हैं.

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सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन गांवों में बड़ी संख्या में श्रमिक वापस लौटे हैं जिससे जल संसाधनों पर तनाव बढ़ गया है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने हालांकि, दिप्रिंट को बताया कि इस जल संकट का समाधान जल्द ही किया जाएगा, यहां तक कि यह भी दावा किया गया कि लॉकडाउन के दौरान संकट से निपटने के लिए नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए थे.


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कोविड-19 से बड़ी समस्या

झांसी शहर से लगभग 12 किमी. दूर रक्सा गांव के रहने वाले 30 वर्षीय युवक अनिल सेन बताते हैं कि गांव के आस-पास 20 से अधिक हैंडपंप लगे हैं लेकिन सिर्फ एक या दो हैंडपंप में पानी आता है. वो भी कब आएगा इसकी कोई गारंटी नहीं.

इसी वजह से उन्हें दो से तीन किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाना पड़ता है.

अनिल के बताते हैं, ‘घर के लिए पानी की आपूर्ति टैंकर से होती है जिसे लोग खरीदकर पीते हैं. जो नहीं खरीद पाते वो कई-कई किलोमीटर रोजाना बर्तन लेकर पानी लेने जाते हैं. लाॅकडाउन-1 में भी जाते थे, अभी भी जाते हैं, क्या करें कोरोना से ज्यादा बड़ा यहां पानी का संकट है.’

झांसी के गांव में महिला कई किलोमीटर दूर से पानी भर कर लाती हुई/प्रशांत श्रीवास्तव/दिप्रिंट
झांसी के गांव में महिला कई किलोमीटर दूर से पानी भर कर लाती हुई/प्रशांत श्रीवास्तव/दिप्रिंट

कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए लॉकडाउन का पहला चरण 25 मार्च को लागू किया गया था, बाद में तीन बार और लॉकडाउन की घोषणा दी गई. ‘अनलॉक-1’ के तहत, इस महीने की शुरुआत में अधिकांश प्रतिबंध हटा दिए गए हैं.

इसी गांव की रहने वाली 42 वर्षीय गीता प्रजापति बताती हैं कि रोजाना कम से कम तीन बार वह बर्तन लेकर 2 किमी. दूर पैदल चलकर पानी लेने जाती हैं.

गीता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ एक बार में दो या तीन बर्तन से ज्यादा उठाकर लाना आसान नहीं होता. पिछले कई साल से यहां की यही स्थिति है.’

गीता आगे कहती हैं, ‘लाॅकडाउन में कोई सुधार नहीं दिखा. शुरुआत में घर से बाहर निकलने में डर लगता था लेकिन क्या करें मजबूरी है.’

बूंदेलखंड में पानी की कमी तो सालों भर ही रहती है लेकिन गर्मी का मौसम शुरू होते ही यहां के हालात बदतर हो जाते हैं और यह हाल कई वर्षों से हैं.

रक्सा से ही कुछ किमी दूर स्थित पुनावली कला गांव के निवासी 52 वर्षीय रामअवतार बताते हैं, ‘गांव का कुआं पूरी तरह से सूख चुका है. पानी का संकट गहरा गया है. कई बार टैंकर वाला दो रुपए या 2.5 रुपए तक प्रति डिब्बा चार्ज करता है. ऐसे में लॉकडाउन के इस दौर में पानी का खर्च झेल पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है.’

रामअवतार बताते हैं, ‘ लॉकडाउन में उनके बेटे की नौकरी भी चली गई. ऐसे में पानी खरीद कर पीना बहुत कठिन होता जा रहा है.’

एक गांव का सूखा पड़ा कुंआ.

‘सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना का क्या करें’

दुनियाभर की सरकारों सहित उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कोविड -19 संक्रमण के खतरे के बीच सोशल डिस्टेंसिग को कोरोना की लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार बताया है. लेकिन इन गांवों में, इसका निरीक्षण करना मुश्किल है.

खजराहा गांव की सहूरी देवी का कहना है, ‘गांव में लोग कोरोना से बचने के लिए बार-बार हाथ धुलने की बात करते हैं लेकिन जब घर में पानी ही नहीं तो हाथ कैसे धुलें. घर में पैसा ही नहीं तो मास्क सैनेटाइजर कहां से खरीदें.’

सहूरी आगे कहती हैं, ‘यहां 3 महीने से अधिक हो गया लॉकडाउन को लेकिन यहां कोई सैनिटाइज़र, मास्क लेकर बांटने नहीं आया और न ये सब बांटते हुए दिखा.’

इसी गांव की देववती कहती हैं, ‘जब टैंकर वाला आता है तो जिस तरह से लोग एक साथ पानी लेने निकलते हैं उससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा.’

देववती के मुताबिक, ‘लोग करें भी तो क्या उन्हें ये डर लगता है कि अगर टैंकर वाले से पानी नहीं लिया तो क्या पीएंगे.’

वह आगे कहती हैं, ‘पीने का पानी अधिकतर लोग टैंकर का ही इस्तेमाल करते हैं. हैंडपंप में कई बार गंदा पानी आता है, उसे पीने के इस्तेमाल में नहीं लिया जा सकता. कोरोना के डर से लोग पानी लेना तो नहीं छोड़ सकते.’

कई बार प्रशासन को लिखा पत्र, नहीं हुआ एक्शन

समाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह राजपूत पानी की समस्या को लेकर कहते हैं, ‘वह पानी की किल्लत को लेकर पिछले कई महीनों से प्रशासन को पत्र लिख रहे हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.’

राजेंद्र बताते हैं, ‘गांव के लोग एक रुपए प्रति डिब्बा के हिसाब से लोग पानी लेते हैं. एक आदमी 70-80 रुपए प्रति दिन पानी पर ही खर्च कर देता है जो कि महीने में लगभग 2500 रुपए हुआ.’

उन्होंने बताया, ‘ऐसे में जिनके पास पैसा नहीं है खर्च करने को उसकी स्थिति को समझिए. वो आस-पास के उन गांव में जाता है रोजाना बाल्टियां लेकर जहां पर हैंडपंप चल रहे हों.’

राजेंद्र सिंह राजपूत के मुताबिक रक्सा गांव के आसपास दो पंपहाउस बनाए गए उसके बावजूद टंकियों में पानी नहीं आता. घरों के बाहर कई लोगों ने मोटर भी लगवाए लेकिन पानी नहीं आया पर पानी का बिल जरूर आ गया.

ये हाल केवल रक्सा और पुनावली कला गांव का नहीं बल्कि झांसी जिले के दो दर्जन से अधिक गांवों का है.

जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक व बुंदेलखंड के समाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह बताते हैं, ‘पानी की समस्या यहां नई नहीं है. सरकारें बदलती हैं, अधिकारी आते-जाते हैं लेकिन जमीनी हालात वैसे ही रहती है.’

‘झांसी में दो डैमों से पानी आता है. जल संस्थान पूरी क्षमता के साथ पानी देने का दावा करता है फिर भी बुरा हाल है.’

संजय के मुताबिक, झांसी के आसपास में खजराहा, किल्चवारा, बैदोरा, मथुरापुरा, दुर्गापुर, कोटी, मुरारी, अमरपुर, बरुआपुरा, मह, गुढ़ा, बाजना, रक्सा, बमेर, छतपुर, परासई, बछौनी, खैरा, इमिलिया, बदनपुर, बसाई, पुनावली, खुर्द, डगरवाहा, नया खेड़ा समेत दो दर्जन गांव का यही हाल है.

इसके अलावा दूसरे बुंदेलखंड में ही ललितपुर, बांदा, जिले के भी कई गांव में ऐसा ही हाल देखने को मिला है. उनकी टीम कई जगह जाकर लोगों को पानी के बचाव को लेकर जागरूक किया है लेकिन पानी की पूर्ती के लिए शासन के स्तर से होने वाले फैसले व योजनाओं का हकीकत में पूरा होना बेहद जरूरी है.


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 पेयजल योजना 

पीएम मोदी 15 फरवरी 2019 को झांसी में पेयजल योजना का शिलान्यास करके गए थे.

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा था कि योजना के तहत बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप पेयजल योजना के अंतर्गत झांसी, जालौन, ललितपुर, बांदा महोबा, हमीरपुर और चित्रकूट जिले में बेतवा, केन, मंदाकिनी, जामनी व धसान नदी तथा विभिन्न बांधों से पानी लेकर गांवों में पहुंचाया जाएगा.

झांसी मंडल में इस योजना पर 5458.74 करोड़ और चित्रकूट मंडल में 3563.15 करोड़ रुपये खर्च होंगे. हालांकि झांसी के रक्सा व आसपास के गांव में तो इस योजना के तहत कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा.

‘जल्द कराएंगे समस्या का समाधान’

यूपी सरकार के जल शक्ति मंत्री डाॅ. महेंद्र सिंह ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, ‘वह इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान कराएंगे.’

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने बताया, ‘बुंदेलखंड जोन के झांसी, बांदा समेत पूरे यूपी के 12 जिलों में पानी की व्यवस्था के लिए तीन स्तरीय कंट्रोल रूम तैयार किए गए हैं. ऐसा उन जिलों की माॅनिटरिंग के लिए किया गया है जहां ग्राउंड वाॅटर लेवल नीचे है या पानी से संबंधित दूसरी समस्याएं हैं.’

महेंद्र सिंह ने कहा, ‘इन जिलों में कंट्रोल रूम को शिकायत मिलते ही आधे घंटे के भीतर टैंकर पहुंच जाता है. ये कंट्रोल रूम डिस्ट्रिक्ट, ब्लाॅक व विलेज लेवल पर माॅनिटरिंग करता है. पिछले तीन साल में सीएम योगी के नेतृत्व में पानी से जुड़ी हर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया गया है. सरकार इसको लेकर संवेदनशील है.’

पिछले साल से पेयजल परियोजना के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने कहा कि आदित्यनाथ सरकार एक “स्थायी समाधान” ढूंढ रही है, इस परियोजना को जोड़ने का काम जल्द ही शुरू होगा.

वर्षों से इन दो दर्जन गांवों के करीब 25000-30000 हजार लोग पानी की समस्य़ा से जूझ रहे हैं लेकिन समस्या तब बड़ी हो गई है जब कोविड काल में बार बार हाथ धोना कोरोना संक्रमण से बचने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है.

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