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Thursday, 25 April, 2024
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MVA सरकार के गिरने, शिवसेना में विद्रोह, भतीजे अजीत- शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में खोली सबकी पोल

मंगलवार को अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के दूसरे संस्करण में एनसीपी प्रमुख, उद्धव ठाकरे के सीएम के रूप में कार्यकाल और अजीत पवार के 2019 में भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ मिलाने के फैसले के बारे में बात करते हैं.

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मुंबई: 2019 में महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का गठन न केवल पावरप्ले था, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की एक मजबूत प्रतिक्रिया थी. यह एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के दूसरे संस्करण में लिखा है. महा विकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना शामिल थे.

पवार ने मंगलवार को अपनी आत्मकथा के विमोचन के अवसर पर राकांपा प्रमुख के रूप में पद छोड़ने की घोषणा की, जिससे पार्टी सदस्यों में निराशा और उन्माद फैल गया. हालांकि, उन्होंने अंततः कहा कि उन्हें अपने निर्णय पर विचार करने के लिए कुछ दिनों की आवश्यकता होगी.

पवार ने पुस्तक के दूसरे संस्करण में लिखा है, ‘एमवीए पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी और हमें पहले से ही अंदाजा था कि वे हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे. लेकिन हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद विद्रोह शिवसेना के भीतर से होगा.’

पवार वर्तमान में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के नेताओं के एक गुट द्वारा विद्रोह का जिक्र कर रहे हैं, जिसके कारण पिछले साल एमवीए सरकार गिर गई थी और शिंदे गुट ने भाजपा के समर्थन से सरकार का गठन किया था. शिंदे गुट को चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना पार्टी का नाम और चिह्न धनुष और तीर का प्रतीक आवंटित किया गया है.

मंगलवार को जारी अपनी आत्मकथा के संशोधित संस्करण में, पवार, जिन्होंने इसे वरिष्ठ पत्रकार अभय कुलकर्णी की मदद से लिखा था, ने मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के कार्यकाल के बारे में लिखा है. उन्होंने यह भी दोहराया है कि उन्हें भतीजे अजीत पवार के 2019 में भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ मिलाने के फैसले के बारे में नहीं पता था, जैसा कि उन्होंने पहले भी इसपर जोर देकर कहा था.

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पवार ने लिखा है, ‘सीएम बनने के बाद, उद्धव ठाकरे ने एक शर्ट और एक जोड़ी पतलून, एक मध्यवर्गीय पोशाक पहनी थी. कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने फेसबुक लाइव के माध्यम से लोगों से संवाद किया, जिसने मध्यम वर्ग को आकर्षित किया. लेकिन उनके स्वास्थ्य कारणों से उनकी भी कुछ सीमाएं थीं. कोविड के दौरान, उद्धव के मंत्रालय के केवल 2-3 विभाग सही से काम नहीं कर रहे थे.’

अपने भतीजे और राकांपा नेता अजीत पवार के 2019 में फडणवीस को समर्थन देने के फैसले पर वे लिखते हैं, ‘जब मुझे 23 नवंबर 2019 को फोन आया कि अजीत और राकांपा के कुछ विधायक राजभवन में हैं और अजीत, देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ ले रहे हैं तो मैं चौंक गया .’

पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए, कुलकर्णी ने कहा, ‘पहला संस्करण प्रकाशित हुए छह साल बीत चुके हैं. इस संशोधित संस्करण के लिए हमने 185 घंटे और 41 दिनों तक बात की है. मैं कभी भी शरद पवार से वह बात नहीं निकाल सका जो वह कहना नहीं चाहते थे. ऐसा अनुशासन दुर्लभ है.’

2015 में जारी पुस्तक के पहले संस्करण में, पवार ने अपने पांच दशक पुराने करियर को क्रॉनिक किया था. इसमें उन्होंने 1960 के दशक में महाराष्ट्र के गठन के बाद से महाराष्ट्र के इतिहास का दस्तावेजीकरण किया था. साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी अपनी शर्तें, कांग्रेस से उनका विभाजन और अन्य प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रम जैसे- 1970 के दशक की आपात स्थिति आदि का जिक्र किया था.

इस पुस्तक में गठबंधन की राजनीति, कांग्रेस में लोकतंत्र की हानि (जिस पार्टी से उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था), देश में कृषि और उद्योग की स्थिति, सामाजिक सद्भाव और एक उदार, समावेशी की आवश्यकता पर उनके विचार और भारत के भविष्य के लिए लोकाचार जैसे विषयों को शामिल किया गया था. 

दूसरे संस्करण में 2015 के बाद हुई घटनाओं को जोड़ा गया है.

उद्धव ठाकरे पर

सहयोगी उद्धव ठाकरे पर भारी पड़ते हुए, पवार ने किताब में दावा किया है कि उनकी कथित अनुभवहीनता और राजनीतिक कौशल की कमी ने सरकार को संभालने के तरीके में एक प्रमुख भूमिका निभाई.

उन्होंने कहा, ‘सीएम के तौर पर आपके पास राज्य से जुड़ी सभी खबरें होनी चाहिए. सीएम को सभी राजनीतिक घटनाओं पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और भविष्य को ध्यान में रखते हुए कदम उठाने चाहिए.

उन्होंने यह भी दावा किया है कि उद्धव अपने पिता, पूर्व शिवसेना सुप्रीमो, दिवंगत बाल ठाकरे की तरह सुलभ नहीं थे. उन्होंने लिखा, ‘जितनी आसानी से हम बालासाहेब के साथ बातचीत करते थे, उतनी आसानी से उद्धव के साथ नहीं की जा सकती है. मैं उनके स्वास्थ्य और डॉक्टर के अप्वाइंटमेंट को देखते हुए उनसे मिलना चाहता था. मुझे लगता है कि एमवीए सरकार के गिरने से ठीक पहले उद्धव ने एक कदम पीछे लिया था.’

पवार के अनुसार, ठाकरे अपनी ही पार्टी के भीतर असंतोष को हल करने में विफल रहे और बिना किसी लड़ाई के (सीएम पद से) हट गए.


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अजित पवार पर

पवार ने 2019 की घटनाओं को भी याद किया है, जब भतीजे अजीत ने देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली थी. यहां तक कि एमवीए गठबंधन को भी इसमें एक साथ जोड़ा जा रहा था.

उद्धव के एमवीए सीएम के रूप में शपथ लेने से पहले यह मंत्रालय तीन दिनों तक चला था. एमवीए सरकार में अजीत दोबारा डिप्टी सीएम बने.

पवार ने अपनी किताब में दावा किया, ‘जब मैंने राजभवन [फडणवीस और अजीत के शपथ ग्रहण के दौरान] में मौजूद कुछ विधायकों को फोन किया, तो मुझे पता चला कि केवल 10 [एनसीपी] विधायक वहां पहुंचे थे और उनमें से एक ने उनसे [पवार] कहा कि यह हो रहा था क्योंकि मैंने इसका समर्थन किया था.’

वह आगे कहते हैं कि यह एमवीए प्लान को खत्म करने के लिए भाजपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व और राजभवन (राज्यपाल) की चाल थी.

उन्होंने लिखा, ‘मैंने उद्धव ठाकरे को तुरंत फोन किया और उनसे कहा कि अजीत ने जो कुछ भी किया है वह गलत है और एनसीपी और मैं उसका समर्थन नहीं करते हैं. एनसीपी विधायकों को राजभवन ले जाने के लिए मेरे नाम का इस्तेमाल किया गया. मैंने उनसे उसी मुद्दे पर सुबह 11 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए कहा.’

पवार कहते हैं कि जब वे पीछे बैठकर इस बात का विश्लेषण करने लगे कि अजीत ने ऐसा कदम क्यों उठाया, तो उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस के साथ सरकार गठन पर चर्चा का अनुभव सुखद नहीं रहा है.

पवार ने लिखा, ‘उनके व्यवहार के कारण, हर दिन हमें सरकार गठन पर चर्चा में मुद्दों का सामना करना पड़ रहा था. हमने चर्चा में बहुत नरम रुख अपनाया था लेकिन उनकी प्रतिक्रिया उतनी स्वागत योग्य नहीं थी. ऐसी ही एक मुलाकात में मैंने अपना आपा खो दिया और कहा कि आगे कुछ भी चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है, जिससे मेरी अपनी पार्टी के कई नेताओं को झटका लगा.’

पवार ने नोट किया कि वह देख सकते थे कि अजीत कांग्रेस के रवैये से कितने परेशान थे और उन्हें बाद में पता चला कि उनके भतीजे बैठक से जल्द ही चले गए.

उन्होंने लिखा, ‘मुझे नहीं लगा कि कुछ भी गलत हो सकता है. मैंने सभी विधायकों को पूरी तरह वापस लाने के लिए तत्काल पहला कदम उठाया. वाई.बी. चव्हाण सेंटर में मैंने अपने विधायकों की एक बैठक बुलाई और उसमें 54 में से 50 विधायक मौजूद थे, इसलिए मुझे यकीन था कि विद्रोह समाप्त हो गया है.’

पवार कहते हैं कि परिवार के भीतर भी उन्होंने इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की. यहां तक कि उनकी पत्नी भी पहली बार इन सब चीजों में शामिल हुईं.

पवार ने लिखा, ‘अजीत मेरी पत्नी प्रतिभा का बहुत सम्मान करते हैं. यह पहली बार था जब प्रतिभा राजनीति का हिस्सा थीं. अजीत प्रतिभा से मिले और उन्हें बताया कि जो कुछ भी हुआ वह गलत था और ऐसा नहीं होना चाहिए था. यह हमारे लिए इस विषय को समाप्त करने के लिए पर्याप्त था.’

वह कहते हैं: ‘ऐसे लोग हैं जो विधानसभा में अजीत का अनुसरण करते हैं और उनका सम्मान करते हैं. उनकी आक्रामक कार्यशैली उनका प्लस पॉइंट है. बहुत विचार-विमर्श के बाद, मैंने फैसला किया कि अजीत को [एमवीए सरकार में] डिप्टी सीएम बनाया जाए. जिस तरह से उन्होंने कोविड [महामारी] के दौरान काम किया है, वह उस फैसले की पुष्टि है.’

बीजेपी-शिवसेना के रिश्ते पर

पवार ने आत्मकथा में दावा किया है कि भाजपा महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनावों में 30 साल से अपनी सहयोगी शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में थी, क्योंकि उन्हें पता था कि वह राज्य में तब तक प्रमुखता हासिल नहीं कर सकती जब तक कि वह अपनी सहयोगी पार्टी के अस्तित्व को खत्म नहीं कर देती.

उन्होंने लिखा, ‘2019 के विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के खिलाफ शिवसेना में गुस्सा था. भाजपा ने नारायण राणे की स्वाभिमान पार्टी का विलय कर शिवसेना के जख्मों पर नमक छिड़का है. शिवसेना राणे को देशद्रोही के रूप में देखती है.’

राणे को बाल ठाकरे ने 2005 में कथित तौर पर उद्धव की सत्ता के खिलाफ विद्रोह करने के आरोप में शिवसेना से निष्कासित कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने करीब 50 सीटों पर शिवसेना के खिलाफ बागी उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनका समर्थन किया. यह सत्ता पर निर्विवाद दावा करने के लिए उनकी संख्या कम करके शिवसेना को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास था. शिवसेना और भाजपा के बीच दरार बढ़ती रही और यह हमारे लिए एक सकारात्मक संकेत था.’

वह कहते हैं, ‘2019 में जब शिवसेना-बीजेपी की बातचीत चल रही थी, संजय राउत [शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी के सदस्य] मुझसे मिले और उन्होंने जो कहा, उससे यह स्पष्ट था कि बीजेपी के साथ सत्ता के बंटवारे को लेकर अनिश्चितता थी.’

पवार ने अपनी पुस्तक में कहा है कि भाजपा के भीतर कुछ लोग शिवसेना के बिना सरकार स्थापित करना चाहते थे. उन्होंने कहा कि कुछ भाजपा नेताओं ने एनसीपी के कुछ नेताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत भी की थी.

उन्होंने लिखा, ‘मैं इसका हिस्सा नहीं था, लेकिन बातचीत बहुत ही अनौपचारिक और आकस्मिक स्तर पर हुई थी. एनसीपी ने बातचीत या इस विचार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि हमने बीजेपी के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था, जिसे हमने मजबूती के साथ सबको बता दिया था.’

पवार कहते हैं, ‘मैंने दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की और उन्हें इस बात से अवगत करा दिया था. लेकिन मुझे एक बात कहनी चाहिए- एनसीपी के कुछ नेता थे जिनका मानना था कि हमें भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहिए.’

उन्होंने किताब में लिखा है कि लेकिन, उनका हमेशा यह मानना था कि बीजेपी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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