नई दिल्ली: गृह मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल पूरे जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के मारे जाने, पकड़े जाने और आतंकियों द्वारा किए गए हमलों समेत आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में वृद्धि हुई है.
डाटा दर्शाता है कि 2019 की तुलना में पिछले साल आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ी हैं. यही नहीं इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईआईडी) समेत बरामद हथियारों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है.
हालांकि, इस तेजी को 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने के बाद हिंसा में आई कमी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. 5 अगस्त 2019 अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में खासी गिरावट नजर आई थी, जिसकी वजह सुरक्षा बल विशेष तौर पर कम्युनिकेशन ब्लैकआउट को मानते हैं.
पहले सुरक्षा बल आतंकवादियों के बीच कम्युनिकेशन इंटरसेप्ट कर लेते थे क्योंकि वे एक-दूसरे से बात करने के लिए प्रौद्योगिकी पर निर्भर थे. अधिकारियों ने कहा कि तकनीक के अभाव में आतंकवादी मुंहजुबानी संदेशों पर निर्भर हो गए. नतीजतन, अगस्त 2019 के बाद मुठभेड़ों की संख्या में तो गिरावट आई और कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों की संख्या बढ़ गई. पिछले साल, ब्लैकआउट हट गया, और आतंकवादियों ने फिर से संचार के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शुरू कर दिया.
दिप्रिंट के पास मौजूद गृह मंत्रालय के डाटा में बताया गया है कि 2020 में 215 आतंकवादी मारे गए. यह आंकड़ा 2019 के मुकाबले 45 प्रतिशत ज्यादा है, जब 148 आतंकवादी मारे गए थे. लेकिन पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल मारे जाने वाले आतंकियों की संख्या करीब 150 से 200 के बीच ही रहती है.
2020 में 251 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें 2019 के मुकाबले 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई. तब 164 आतंकी गिरफ्तार किए गए थे.
2019 में 77 की तुलना में 2020 में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की 111 घटनाएं हुई यानी इसमें करीब 44 फीसदी की वृद्धि हुई है.
2019 के 16 की तुलना में ग्रेनेड हमलों की संख्या दोगुनी बढ़कर 37 हो गई.
एमएचए का डाटा बताता है कि 2020 में आतंकवादियों से 360 हथियार बरामद किए गए जबकि 2019 में यह संख्या 192 थी. आईईडी की संख्या 2019 में छह से बढ़कर 2020 में 41 हो गई और डेटोनेटर की संख्या 19 से बढ़कर 117 हो गई.
2018 और 2019 में शून्य की तुलना में पिछले वर्ष आठ आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया था.
पिछले साल पत्थरबाजी की घटनाओं में 80 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई–2020 में पत्थरबाजी की 93 घटनाएं दर्ज की गईं जो कि 2019 में 477 की तुलना में काफी कम हैं. हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने कहा कि यह कमी मुख्यत: कोविड-19 महामारी के कारण लागू किए गए प्रतिबंधों की वजह से आई है.
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‘हिंसा का दुष्चक्र’
डाटा की बात करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि सीमा पार से हथियार लेकर आने वाले घुसपैठियों की वजह से हथियारों, आईईडी और डेटोनेटरों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है.
अधिकारी ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर हाल ही में नवंबर में नगरोटा मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों ने भारी मात्रा में गोला-बारूद और हथियार बरामद किए थे. लेकिन मोटे तौर पर ट्रेंड यही है कि अब अधिक संख्या में हथियार बरामद हो रहे हैं.’
सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक दुर्गा प्रसाद का कहना है कि यह खुफिया विभाग की प्रणाली में ‘अहम सुधार’ का नतीजा है.
उन्होंने कहा, ‘आतंकवादियों की गिरफ्तारी करने और गोला-बारूद बरामद करने में स्थानीय पुलिस की प्रमुख भूमिका होती है.’
आतंकवादियों के आत्मसमर्पण के कुछ मामलों पर उनका कहना था कि यह एक ‘उत्साहजनक और सराहनीय ट्रेंड’ है.
पत्थरबाजी की घटनाएं कम होने पर एक सरकारी अधिकारी ने कोविड-19 महामारी के असर का हवाला दिया, जिसके कारण ज्यादा भीड़भाड़ जुटने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के सख्त नियम लागू थे.
अधिकारी ने कहा, ‘महामारी के कारण हमने आतंकवादियों के शवों को उनके परिवारों को सौंपना बंद कर दिया. ऐसे मौकों पर ही सबसे ज्यादा तनाव होता था और पत्थरबाजी और आतंकवादी भर्ती की घटनाएं होती थीं.’
अधिकारी ने कहा, ‘यद्यपि कोविड के कारण हमने शवों को देना बंद कर दिया. कुछ मामलों में हम आतंकियों के परिजनों को बुलाते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं करते हैं, ताकि किसी तरह का तनाव न हो.’
मौजूदा स्थिति पर लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘विस्फोटकों के बरामद होने की संख्या या हमले बढ़ना लगातार जारी आतंकवाद का ही हिस्सा हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ये हिंसा के नियमित दुष्चक्र का हिस्सा हैं. मूल बात यह है कि आतंकवाद की समस्या का अब भी कोई राजनीतिक समाधान नहीं है, और जब तक यह नहीं होगा तब तक ये संख्या घटती-बढ़ती रहेगी.’
गृह मंत्रालय का डाटा ऐसे समय पर आया है जबकि जम्मू-कश्मीर पुलिस के अनुमानों के मुताबिक 2020 में कश्मीर के 167 युवा आतंकवादी समूहों में शामिल हुए हैं—पिछले एक दशक में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी युवाओं की यह दूसरी सबसे बड़ी भर्ती है.
आतंकी घटनाओं में इस वृद्धि के लिए कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए गए जाने के बाद लागू कम्युनिकेशन ब्लैकआउट के कारण संभावित ‘बैकलॉग’ को मुख्य तौर पर जिम्मेदार माना जा रहा है.
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(अजान जावेद के इनपुट के साथ)
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