scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेश'प्रवासी मजदूरों का शहर वापस आना मजबूरी'- केरल के वक्कोम मौलवी फाउंडेशन ट्रस्ट ने प्रवासी संकट पर हिन्दी में जारी की रिपोर्ट

‘प्रवासी मजदूरों का शहर वापस आना मजबूरी’- केरल के वक्कोम मौलवी फाउंडेशन ट्रस्ट ने प्रवासी संकट पर हिन्दी में जारी की रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में केरल समेत अन्य राज्यों के प्रवासी मजदूरों की स्थिति को दर्ज किया गया है जिसे लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों ने झेला है.

Text Size:

नई दिल्ली: कोरोना के कारण देशभर में लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की बड़ी आबादी का देश के कई शहरों से पलायन हुआ. इस दौरान कई मजदूरों की रास्ते में मौत भी हुई. इसी संकट को गहराई से समझाने के लिए केरल की एक गैर सरकारी संगठन ने हिन्दी में एक रिपोर्ट जारी की है.

रिपोर्ट के रिलीज कार्यक्रम में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने कहा कि देश में प्रवासी मजदूरों की समस्या ने ये साबित कर दिया कि वे ‘मिस्टर इंडिया’ हैं यानि अदृष्य लोग.

लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही थी उसपर कई टिप्पणीकारों ने कहा था कि ये देश का सबसे बड़ा मानवीय संकट है. इसी बात को दोहराते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर ने कहा कि इस संकट ने हमारी व्यवस्था की जो कमियां थी उसे अचानक से सबके सामने ला दिया.

उन्होंने कहा, ‘जो विस्थापन हुआ वो व्यवस्था के प्रति अविश्वास को दिखाता है.’

आशुतोष ने कहा, ‘हमारे गणतंत्र ने इन लोगों को अनाथ कर दिया. हमारे संविधान, समाज के लिए इससे ज्यादा तीखी टिप्पणी नहीं हो सकती है. प्रवासी मजदूरों को उनके कारखाने वालों ने, सरकारों ने और पुलिस ने मुश्किल समय में अनाथ किया.

आशुतोष ने लॉकडाउन के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘ऐसी नीति बनाने वालों ने प्रवासी मजदूरों के बारे में क्यों नहीं सोचा.’ उन्होंने कहा कि नीति बनाने वालों के ध्यान में ये लोग है ही नहीं.’ उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों का एक डेटा बेस होना चाहिए जिससे आने वाले समय में ऐसी कोई भी स्थिति न बने.


यह भी पढ़ें: भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के फेज-1 ट्रायल डेटा पर लांसेट का मत- ‘कोई गंभीर विपरीत असर नहीं’


‘व्यवस्था के प्रति अविश्वास’

सुदीप ठाकुर ने कहा कि 1990 के बाद जिस आर्थिक मॉडल को देश ने अपनाया, ‘वही प्रवासी संकट का कारण बनी जिसके कारण इन मजदूरों की हिस्सेदारी विकास के मॉडल में काफी कम है.’

केरल का उदाहरण देते हुए ठाकुर ने कहा कि लॉकडाउन के समय वहां बहुभाषी कॉल सेंटर बनाया गया जिससे मजदूरों को उनकी स्थानीय भाषा में जानकारी मिली.

अर्थशास्त्री और सेंटर फॉर फिस्कल स्टडीज के डायरेक्टर इन चीफ हरीश्वर दयाल ने कहा कि महामारी के दौरान जैसे प्रवासी मजदूरों के साथ बर्ताव किया गया इससे लगता है कि उन्हें ‘अदृश्य’ माना गया.

वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने कहा कि राज्य सरकारें अपने प्रदेश में लोगों को रोजगार क्यों नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि छोट-छोटे यूनिट्स लगाकर प्रयास किए जा सकते हैं. सिंह ने कहा, ‘नीति निर्माताओं को इस मुद्दे का समुचित ढंग से हल निकालना होगा.’

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी ने कहा कि जब तक विकेंद्रित अर्थव्यवस्था नहीं होगी तब तक इन मजदूरों का कोई भला नहीं हो सकता.

‘अदृश्य लोग’

केरल की गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) वक्कोम मौलवी फाउंडेशन ट्रस्ट (वीएमएफटी) ने कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के संकट पर हिंदी में एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक है- आवाज़, पहचान और आत्म सम्मान: प्रवासी श्रमिक, उनका भविष्य, उनका अधिकार- एक रूपरेखा.

वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और सुदीप ठाकुर ने रिपोर्ट का हिन्दी संस्करण रिलीज किया.

इस रिपोर्ट में केरल समेत अन्य राज्यों के प्रवासी मजदूरों की स्थिति को दर्ज किया गया है जिसे लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों ने झेला है.

वीएमएफटी की वाइस चेयरपर्सन डॉ साजिदा बशीर ने कहा कि कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन की वजह से शहरों से गठरी लिए हुए मजदूर अपने घर को जाने पर मजबूर हुए.

उन्होंने कहा, ‘इसके कुछ ही दिनों बाद उन्हीं में से कई वापस आ गए. उनका वापस आना ‘सामान्य स्थिति’ को दर्शाता है जो अदृष्य और कम मजदूरी पर काम करने की मजबूरी को स्पष्ट करता है.’

बशीर ने कहा कि लॉकडाउन के वक्त अपने अस्तित्व की पहचान के लिए मजदूर कई सरकारी फॉर्म भरने में लगे रहे. कई लोगों के साथ हिंसा भी हुई.

कई स्टडी का हवाला देते हुए बशीर ने कहा कि इस दौरान सभी राज्यों में मजदूरों की स्थिति एक जैसी ही थी.


यह भी पढ़ें: शिवसेना की ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच, ‘उद्धव के लिए जनादेश’- महाराष्ट्र के ग्राम पंचायत के नतीजे क्या दिखाते हैं


 

share & View comments