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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशउत्तराखंड के पुरोहितों ने कहा- अगर चार धाम बोर्ड भंग नहीं किया गया, तो PM को केदारनाथ में नहीं उतरने देंगे

उत्तराखंड के पुरोहितों ने कहा- अगर चार धाम बोर्ड भंग नहीं किया गया, तो PM को केदारनाथ में नहीं उतरने देंगे

पुरोहितों का कहना है कि चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड, उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें मजबूरन अपनी आवाज़ उठानी पड़ रही है.

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देहरादून: 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा से पहले उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहितों ने धमकी दी है कि अगर उन्हें मोदी से मिलने की अनुमति नहीं दी गई, तो वो विरोध प्रदर्शन करेंगे.

पुरोहितों का कहना है कि वो पीएम के दौरे का बहिष्कार करेंगे और केदारपुरी में एकत्र होकर उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के गठन का विरोध करेंगे, जो अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले तार्थ-स्थलों और मंदिरों को नियंत्रित करेगा.

पीएम मोदी आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का आनावरण करेंगे और केदारनाथ के तीर्थ उपनगर में कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे.

बद्रीनाथ पुरोहित और चार धाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूक महापंचायत के अध्यक्ष, केके कोतियाल ने कहा, ‘चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर, हमने बार-बार प्रधानमंत्री के साथ बैठक की मांग की है लेकिन उन्होंने उस पर कभी गौर नहीं किया. ये कानून न केवल हमारे धार्मिक अधिकारों का हनन करता है, बल्कि तीर्थ पुरोहितों को बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मंदिर परिसरों में उनकी संपत्तियों से भी वंचित करता है. अब हमें मजबूरन उनके खिलाफ आवाज उठानी पड़ रही है’.

उन्होंने कहा, ‘चार धाम तीर्थ पुरोहितों को उम्मीद है कि राज्य सरकार पीएम के दौरे से पहले बोर्ड को भंग कर देगी, वरना हम केदारनाथ में विरोध प्रदर्शन के लिए तैयार हैं’.

स्थानीय पुरोहितों के एक संगठन केदारनाथ सभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला ने कहा, ‘विरोध प्रदर्शन सिर्फ नारेबाजी तक सीमित नहीं रहेगा, प्रधानमंत्री को लैंड करने से रोकने के लिए हम हैलिपैड पर लेट जाएंगे. उनके यहां के दौरे का विरोध करने के लिए, हम बंद का आह्वान करेंगे और पीएम को काले झंडे दिखाएंगे. 11 अक्टूबर को उनके साथ एक बैठक के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हम से 30 अक्टूबर तक अपना विरोध टालने का अनुरोध किया और बोर्ड को भंग करने का वादा किया. लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. 1 नवंबर से हम पूरी ताकत से अपना विरोध फिर से शुरू करेंगे’.

एक दूसरे पुरोहित सुरेश सेमवाल ने, जो चार धाम महापंचायत के संयोजक और गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष हैं, चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अधिनियम को एक ‘काला कानून’ करार दिया.

उन्होंने कहा, ‘चार धाम मंदिरों के पुरोहित केदारनाथ में प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होंगे. सरकार केवल हिंदू मंदिरों के साथ ही ऐसा क्यों कर रही है, जबकि दूसरे धर्मों के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है? उन्होंने किसी मस्जिद या चर्च को अपने कार्यक्षेत्र में नहीं लिया है’.


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चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड

उत्तराखंड सरकार ने दिसंबर 2019 में चार धाम श्राइन प्रबंधन विधेयक प्रदेश असेंबली में पेश किया था. बिल असेंबली में पारित हो गया और ये उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अधिनियम, 2019 बन गया और 15 जनवरी 2020 को गजट अधिसूचना प्रकाशित कर दी गई.

बोर्ड के गठन में सीएम को इसका अध्यक्ष बनाया गया, राज्य के संस्कृति मंत्री उपाध्यक्ष बने और अन्य पदाधिकारियों के साथ मुख्य सचिव पदेन सदस्य बन गए.

लेकिन सरकार के इस कदम ने पुरोहितों को क्रोधित कर दिया, जो बोर्ड के गठन के बाद से ही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

प्रदर्शनों ने राज्य सरकार को मजबूर कर दिया और उसने इस साल जुलाई में बद्री केदार मंदिर समिति प्रमुख मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय कमेटी गठित कर दी. ध्यानी कमेटी ने 25 अक्टूबर को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सीएम को पेश कर दी.

फिलहाल, उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड राज्य के 51 मंदिरों के मामलात संभालने वाली नियामक संस्था के तौर पर काम करता है. इनमें गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ और उनसे जुड़े 47 अन्य मंदिर शामिल हैं.

सभी चार धाम तीर्थ-स्थलों और उनसे संबद्ध मंदिरों के पुरोहित लगातार शिकायत करते आ रहे हैं कि देवस्थानम बोर्ड कानून बनाने से पहले उत्तराखंड सरकार ने उनसे कोई परामर्श नहीं किया, जबकि पुरोहित इसमें सबसे बड़े हितधारक थे.

गंगोत्री मंदिर समिति के प्रवक्ता रजनीकांत सेमवाल ने कहा, ‘सभी चार धाम श्राइन्स और उनसे जुड़े मंदिरों के हित केवल तीर्थ-पुरोहितों के पास हैं. कानून बनाने से पहले सरकार को उनसे परामर्श करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इसकी मंशा चार धाम पुरोहितों को उनके भूमि अधिकारों से वंचित करना और उनकी संपत्तियों को देवस्थानम बोर्ड के कब्जे में रखना था’.

विरोध कर रहे महापंचायत पुरोहितों ने ये भी आरोप लगाए हैं कि देवस्थानम बोर्ड को उनकी मिल्कियत की सारी जमीन और संपत्ति का, कब्जा लेने का अनुचित अधिकार दिया गया है, जिसमें उनके घर और गेस्टहाउस भी शामिल हैं.

कोतियाल ने कहा, ‘देवस्थानम बोर्ड एक्ट की धारा 22 में स्पष्ट कहा गया कि बोर्ड का गठन होते ही चार धाम और सभी धार्मिक स्थलों की तमाम संपत्तियां, जिनमें सरकारी तथा निजी इकाइयां शामिल हैं, उसके कब्जे में आ जाएंगी. इसमें पुरोहितों को मंदिर परिसरों में स्वयं अपने घर बनाने या मरम्मत करने की भी अनुमति नहीं होगी, खुशी से अकेले रहने की तो बात ही छोड़िए’.


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सरकार ने कहा- प्रदर्शनकारियों के अधिकार बरकरार

लेकिन उत्तराखंड सरकार ने कहा है कि देवस्थानम बोर्ड एक्ट का विरोध कर रहे लोगों के भूमि अधिकार बरकरार रहेंगे.

दिप्रिंट से बात करते हुए राज्य के पर्यटन और संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा, ‘बोर्ड कानून में एक मजबूत प्रावधान है कि उनके (पुरोहितों) धार्मिक और जमीनी अधिकार सुरक्षित हैं. तीर्थ पुरोहितों के पास बोर्ड या प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध करने का कोई कारण नहीं है, चूंकि सरकार उनकी हर चिंता का हल निकालेगी. बोर्ड उनकी धार्मिक गतिविधियों में कोई दखल नहीं दे रहा है. जमीन अधिकारों को लेकर उनकी आपत्तियों का देवस्थानम बोर्ड से कोई लेना-देना नहीं है और इसका समाधान सरकार करेगी’.

मंत्री ने आगे कहा, ‘जो लोग विरोध कर रहे हैं वो सरकार को ये नहीं बता पाए हैं कि वो देवस्थानम बोर्ड कानून के किस प्रावधान के खिलाफ हैं. इसके विपरीत, ऐसा पहली बार हुआ है कि उत्तराखंड में किसी सरकार ने चार धाम तीर्थ यात्रा से जुड़े सभी हितधारकों के अधिकारों को परिभाषित और प्रतिष्ठापित किया है. उचित समय पर इससे केवल तीर्थ-पुरोहितों को ही लाभ पहुंचेगा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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