नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान राज्य सरकार की नई ‘बार्टर’ पॉलिसी से खुश नहीं है जिसमें उन्हें जून 2019-20 के भुगतान बकाया के लिए मिलों से 100 किलोग्राम प्रति माह चीनी लेने को कहा है. 2019-20 फसली सीजन की बकाया राशि फिलहाल 12,000 करोड़ रुपये है, जो फरवरी में 7,000 करोड़ रुपये से अधिक थी.
राज्य की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दावा किया है कि यह निर्णय किसानों के ‘सर्वोत्तम हित’ में लिया गया है, लेकिन जिन्हें लाभ दिया जाना है उन लाभार्थियों ने इसे पूरी तरह से ‘अनुचित’ करार दिया है.’ लॉकडाउन का हावाला देते हुए चिंता जाहिर की है कि चीनी की मदद से कोई फायदा नहीं होने वाला.
चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का नेतृत्व करता है. राज्य का चीनी उद्योग, जो लगभग 40,000 करोड़ रुपये का है, अनुमानित रूप से 50 लाख से अधिक किसान परिवारों के लिए उपलब्ध होता है.
हालांकि, यह सालों से नकदी संकट से जूझ रहा है, हर फसली मौसम में किसानों को मिल के बकाया की रिपोर्ट सामने आती हैं.
लगातार दो चीनी सीजन – 2017-18 और 2018-19 में अतिरिक्त उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों में गिरावट से संकट का सामना करना पड़ा है, जिसने मिलों की तरलता (नकदी) की हालत को भारी नुकसान पहुंचाया है.
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40,000 करोड़ रुपए का उद्योग
विविधता और बुवाई के समय पर निर्भरता होने से, गन्ना पूरी तरह तैयार होने में लगभग 12 से 18 महीने लेता है. सामान्य तौर पर, जनवरी से मार्च तक रोपाई की अवधि और दिसंबर से मार्च फसल के मौसम तक. कुछ राज्यों में, गन्ना सालभर उगाया जाता है.
2019-20 में, गन्ने की खेती 26.79 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में की गई थी, जिसमें लगभग निजी और सरकारी स्वामित्व वाली 117 चीनी मिलें, वर्तमान पेराई सत्र में चल रहीं.
गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 में कहता है कि चीनी मिलों को 14 दिनों के भीतर किसानों का भुगतान करना चाहिए, या फिर बकाए पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का सामना.
बकाये के मद्देनजर, यूपी गन्ना आयुक्त ने 18 अप्रैल को एक आदेश जारी किया जिसमें किसानों को कुछ राहत प्रदान करने की मांग की गई थी. आदेश में उल्लिखित योजना के तहत, प्रत्येक किसान 2019-20 की फसली सीज़न के बकाया के बदले मिलों से एक क्विंटल या 100 किलोग्राम चीनी हर महीने ले सकता है.
इसमें न्यूनतम बिक्री मूल्य के आधार पर इस चीनी के मूल्य को बचे भुगतान के साथ समायोजित किया जाने की बात की गई है.
आदेश में यह भी कहा गया है कि सरकार द्वारा मिलों को महीने के लिए आवंटित बिक्री कोटा के तहत चीनी दी जाएगी.
लेकिन किसानों को मिलों से चीनी अपने साधन से उठानी होगी, और जीएसटी भी वहन करना होगा. इस आदेश में कहा गया है कि ट्रांसपोर्ट सब्सिडी नहीं दी जाएगी.
गन्ना किसानों की परेशानी
इस आदेश ने राज्य के गन्ना किसानों को परेशानी में ला दिया है. पिसवान, सीतापुर के गन्ना किसान अविनाश सिंह ने कहा, ‘मेरे घर में आठ लोग हैं और हमारी महीने की चीनी की खपत लगभग 25-30 किलोग्राम है. मैं इतनी चीनी का क्या करूंगा?’ उन्होंने दावा किया कि इस सीजन का उनके पास एक मिल का 3 लाख रुपये से अधिक बकाया है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार जो चीनी की पेशकश कर रही है, वह नकद भुगतान के बदले है, जो चीनी मिलों का बकाया है.’ ‘यह हमारा पैसा है, जिसे हमने साभर खेती करके कमाया है. हम इस लॉकडाउन में चीनी बेचने के लिए कहां जाएंगे, हमें सही कीमत कहां मिलेगी, और दुकानों और चीनी मिलों के बजाय हमसे इसे खरीदने के लिए कौन तैयार होगा?’
सिंह ने कहा कि किसानों को नकदी की सख्त जरूरत थी क्योंकि उन्हें ट्रांसपोर्ट और श्रम के बकाया के लिए भुगतान करना पड़ता था, साथ ही साथ उर्वरक और बुवाई के लिए अन्य वस्तुओं की भी खरीद करनी पड़ती थी.
फिरोजाबाद में 18 एकड़ के गन्ने के खेत वाले एक अन्य गन्ना किसान चंद्रपाल यादव ने भी इन्हीं चिंताओं को दोहराया.
‘तालाबंदी के कारण, मेरे गांव और आस-पास के इलाकों में अचानक नकदी की कमी हो गई क्योंकि सहकारी बैंकों में लंबी कतारें थीं. मेरी फसल कटाई के लिए तैयार थी लेकिन मुझे दोगनी कीमत पर श्रम और परिवहन मिल रहा था. इसके लिए मैंने एक ऋण देने वाले से 10 प्रतिशत ब्याज प्रति महीने पर पैसा उधार लिया.’
यादव ने कहा कि उन्हें घरेलू खर्चों का प्रबंधन करना होगा, कर्जदाताओं को भुगतान करना होगा और साथ ही नई फसल के मौसम की तैयारी करनी होगी.
उन्होंने कहा, ‘यह सब उन चीनी मिलों के पैसे से होता है जो मेरे ऊपर बकाया हैं… सरकार द्वारा प्रति माह एक क्विंटल चीनी देने का प्रस्ताव मेरे मवेशियों को नहीं खिलाएगा.’
किसानों का दावा है कि केंद्र सरकार ने पेराई सत्र 2019-20 के लिए गन्ने का उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) नहीं बढ़ाया, जो कि पिछले साल तय किए गए स्तर पर 1 अक्टूबर 2019 से शुरू होकर 275 रु प्रति क्विंटल था.
एफआरपी वो न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को गन्ना किसानों को भुगतान करना पड़ता है, उनके इनपुट लागत में वृद्धि से बचाने के लिए. यह कृषि लागत और मूल्य आयोग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक विशेषज्ञ निकाय और राज्य सरकारों के परामर्श से आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों के आधार पर निर्धारित किया जाता है.
राज्य सरकार ने लगातार दूसरे वर्ष गन्ने की कीमतों में वृद्धि नहीं की है. गन्ने की राज्य द्वारा निर्धारित कीमत- चीनी मिलें एफआरपी के बदले भुगतान करने के लिए चुन सकती हैं- 2019-20 के लिए प्रारंभिक किस्म के गन्ने के लिए 325/क्विंटल निर्धारित किया गया है, सामान्य के लिए 315 रुपये और अनुपयुक्त प्रजातियों के लिए 310 रुपये (जिसमें से) यह चीनी निकालने के लिए अनुपयुक्त है), 2018-19 में भी ऐसा ही है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017-18 में गन्ने की कीमत में केवल 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की थी.
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‘ध्यान में सर्वोत्तम हित’
किसानों की चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर, उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने कहा कि यह निर्णय ‘किसानों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए’ लिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘चीनी मिल से मिलने वाली चीनी की कीमत 3,000 रुपये प्रति क्विंटल होगी. किसान इसे 4,200 रुपये से 4,300 रुपये प्रति क्विंटल तक बेच सकता है.’
शेष बकाया राशि के बारे में उन्होंने कहा, ‘हमने पहले ही 15,000-17,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है और इसे और बढ़ाएंगे क्योंकि अधिकांश राज्यों में चीनी मिलें बंद हैं और तालाबंदी के बावजूद हम केवल गन्ने की पेराई कर रहे हैं, हमें अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है.’
उत्तर प्रदेश के गन्ना और चीनी आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी का कार्यालय, जो चीनी उद्योग और गन्ना विकास विभाग के प्रमुख सचिव हैं, ने कहा कि ‘राज्यभर में गन्ना मिलों को चीनी का वितरण शुरू करना बाकी है… और इसलिए किसान सरकार से परेशान हैं.’
एक अधिकारी ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि, हम जल्द ही वितरण शुरू कर देंगे, क्योंकि इस योजना के लिए हमारा स्टॉक लगभग तैयार है.’
परिवहन लागतों की चिंताओं के बारे में सवाल करने पर कार्यालय ने कहा कि ‘वे यह सुनिश्चित करेंगे कि इच्छुक किसान जो नकद भुगतान के स्थान पर एक क्विंटल चीनी लेते हैं, उन्हें उनके निकटतम चीनी मिल में ही उपलब्ध कराया जाए ताकि उन्हें अधिक खर्च न करना पड़े यात्रा और अन्य व्यवस्थाओं पर.’
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