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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशजहांगीरपुरी के बारे में उर्दू प्रेस ने लिखा: ‘अदालतों के बदले’ काम कर रहे रहे हैं ‘नफरत के बुलडोज़र’

जहांगीरपुरी के बारे में उर्दू प्रेस ने लिखा: ‘अदालतों के बदले’ काम कर रहे रहे हैं ‘नफरत के बुलडोज़र’

दिप्रिंट का जायज़ा कि बीते सप्ताह में उर्दू मीडिया ने, बहुत सी घटनाओं को किस तरह कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख़ इख़्तियार किया.

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नई दिल्ली: बीते हफ्ते देशभर में डिमॉलिशन की कार्रवाइयों की भरमार देखने में आई, जिसका अंत दिल्ली की जहांगीरपुरी में बुलडोज़र्स द्वारा कुछ संपत्तियों को तबाह करने से हुआ.

इससे कुछ दिन पहले ही इस इलाक़े में हनुमान जयंती जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी.

हालांकि बुलडोज़र– जिसे ‘नफरत’ का औज़ार और ‘अदालत का बदले’ क़रार दिया गया- उर्दू अख़बारों के पहले पन्नों पर छाया रहा, साथ ही लाउडस्पीकर पर विवाद, रूस-यूक्रेन युद्ध, और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भारत दौरे को भी प्रमुखता से कवर किया गया.

दिप्रिंट आपके लिए लाता है उर्दू प्रेस से इस हफ्ते की सबसे बड़ी ख़बरों और संपादकीयों का जायज़ा.


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बुलडोज़र्स और दंगे

जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा, और उसके बाद उत्तरी दिल्ली नगर निकाय की ओर से डिमॉलिशन कार्रवाइयों ने, इस इलाक़े को तक़रीबन पूरे हफ्ते ख़बरों में बनाए रखा. 22 अप्रैल को इनक़लाब के पहले पन्ने पर सबसे बड़ी ख़बर, सुप्रीम कोर्ट के डिमॉलिशन्स पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बारे में थी, जो शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद भी कुछ समय तक चलती रही थी.

अख़बार ने इनसेट के तौर पर दो बयान प्रकाशित किए. पहला बयान इस्लामी विद्वानों के एक दिल्ली-स्थित संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का था, जिन्होंने कहा कि: ‘अब से, हर दंगे के बाद बुलडोज़रों की मदद से एक ख़ास क़ौम को निशाना बनाया जाएगा’. दूसरा बयान संगठन के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का था, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट (एससी) के आदेश का स्वागत किया था. जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस मामले में याचिकाकर्ता है.

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के पहले पन्ने पर, जहांगीरपुरी के बारे में उसकी लीड ख़बर में भी दोनों नेताओं का हवाला दिया गया, जिसमें मौलाना अरशद मदनी ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस दावे का खण्डन किया कि जमीयत मामले को ‘सांप्रदायिक रंग’ देने की कोशिश कर रही है. सियासत में एससी के आदेश की ख़बर के साथ ही एक्टर प्रकाश राज का एक बयान भी छपा, जिसमें कहा गया: ‘ये लोग किसी दिन देश को भी तोड़ देंगे’.

डिमॉलिशन के खिलाफ एससी में जमीयत की याचिका, दायर किए जाने के दिन से ही पहले पन्नों पर बनी रही है. 18 अप्रैल को सहारा के पहले पन्ने पर लीड ख़बर की हेडलाइन थी, ‘मुसलमानों की संपत्तियों पर बुलडोज़र चलाए जाने के ख़िलाफ जमीयत सुप्रीम कोर्ट पहुंची’. 19 अप्रैल को इनक़लाब ने ख़बर दी कि इलाक़े में भारी हिंसा के केंद्र में रहे हनुमान जयंती जुलूस के पास आवश्यक पुलिस अनुमति नहीं थी.

16 अप्रैल को जहांगीरपुरी की घटना के पेश आने से पहले ही, देश के कई हिस्सों में डिमॉलिशन अभियान चलाए गए, जिनमें मध्य प्रदेश, गुजरात, और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. सियासत के पहले पन्ने पर लीड हेडलाइन थी: ‘बीजेपी की नफरत के बुलडोज़र का सफर जारी’. 17 अप्रैल के अपने संपादकीय में, जिसका शीर्षक था ‘कोर्ट के बदले के तौर पर बुलडोज़र’, उसने दावा किया कि कई सूबों में बीजेपी सरकारें कोर्ट की कार्यवाहियों का भी इंतज़ार नहीं करना चाहतीं, हालांकि मुल्क में ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जो दंगा भड़काने के आरोपी लोगों की संपत्तियों को गिराने की इजाज़त देता हो. 21 अप्रैल को सहारा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ये कहते हुए हवाला दिया, कि ‘क़ानून के राज पर बुलडोज़र चला दिया गया है’.

18 अप्रैल के अपने संपादकीय में सहारा ने लिखा कि आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा दंगे नहीं चाहता, लेकिन बहुत से लोग अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के डर से, दंगाइयों के सामने खड़े नहीं होते. लेख में कहा गया कि ‘अगर हमें कुछ मुठ्ठी भर लोगों को बार बार झगड़े पैदा कराने से रोकना है’, तो इस स्थिति को बदलने की ज़रूरत है.

22 अप्रैल के अपने संपादकीय में सियासत ने लिखा कि पंजाब असेम्बली चुनावों में अपनी पार्टी की जीत से उत्साहित दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, ऐसे समय पर दूसरे सूबों के लिए योजनाएं बनाने में व्यस्त हैं, जब उनके अपने शहर में सांप्रदायिक तनाव चरम पर हैं. 21 अप्रैल के अपने संपादकीय में इनक़लाब ने लिखा कि सांप्रदायिक हिंसा कभी भी अचानक से पेश नहीं आ जाती. लेख में कहा गया, ‘माहौल को ख़राब करने की कोशिश की जा रही है, और आजकल ये काम सोशल मीडिया के ज़रिए किया जाता है. अगर पुलिस का साइबर सेल चौकन्ना रहे, तो ऐसी बहुत सी घटनाओं को रोका जा सकता है’.

लाउडस्पीकर्स

मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के खिलाफ उठ रहीं आवाज़ें, लगातार अख़बारों की सुर्ख़ियां बनी रहीं. 19 अप्रैल को सहारा में एक ख़बर छपी कि महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर गाइडलाइन्स तय करने की तैयारी चल रही है. एक दिन बाद पेपर ने पहले पन्ने पर एक ख़बर छापी कि मुम्बई की 72 प्रतिशत मस्जिदों ने अपने लाउडस्पीकरों के वॉल्यूम पहले ही कम कर दिए थे.

21 अप्रैल को सहारा ने ख़बर दी कि शिवसेना लीडर संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाए, जिसे पहले गुजरात, बिहार और दिल्ली में लागू किया जाना चाहिए.


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बोरिस, रूस और बाइडन

18 अप्रैल को सियासत ने अपने पहले पन्ने पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भारत दौरे, और नई दिल्ली में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाक़ात की ख़बर दी.

19 अप्रैल को रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने पर स्वीडन के बारे में एक ख़बर छापी, जहां एक दक्षिण-पंथी, आप्रवास-विरोधी समूह ने कथित तौर पर मुसलमानों की पवित्र किताब को जला दिया, जिसके बाद दंगे भड़ गए. रोज़नामा के एक और कॉलम में भी ज़िक्र किया गया कि सऊदी अरब ने हिंसा को लेकर स्वीडन की कड़ी निंदा की है.

19 अप्रैल को रोज़नामा के संपादकीय में दावा किया गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप से किसी भी तरह अलग नहीं हैं, इसलिए ये सोचा भी नहीं जा सकता कि उनकी सरकार येरुशलम में अल-अक़्सा मस्जिद को लेकर कोई कड़ा रुख़ अपनाएगी. पिछले शुक्रवार को इज़राइली बलों और फलस्तीनियों के बीच उस वक़्त टकराव हो गया था, जब बल मस्जिद के परिसर में घुस आए थे. घटना में कथित रूप से 150 से अधिक लोग घायल हुए थे.

लेख में कहा गया, ‘इसकी संभावना नहीं है कि ऐसी घटना से इज़राइल के अरब मुल्कों से रिश्तों पर असर पड़ेगा, जिनके लिए इसकी दोस्ती बहुत अहमियत रखती है, लेकिन ये तय है कि ऐसी घटना का इन मुल्कों के मुसलमानों पर कोई अच्छा असर नहीं पड़ेगा’. उसमें आगे कहा गया है कि इज़राइल की सरकार ने जिस तरह से इन झगड़ों को हैण्डल किया, वो हैरान करने वाला है क्योंकि इज़राइल के प्रधानमंत्री नफताली बेनेट की सरकार गठबंधन की है, जिसमें एक अरब पार्टी भी शामिल है. जिस तरह से इस घटना से निपटा गया, अरब मुल्क उसे एक हद तक ही बर्दाश्त कर सकेंगे.

19 अप्रैल को रूस-यूक्रेन युद्ध पर इनक़लाब के एक संपादकीय में कहा गया कि रूस के खिलाफ पाबंदियां लगाना और उसकी विदेशी संपत्तियों को फ्रीज़ करना काफी नहीं है. उसमें आगे कहा गया कि ख़बरों से अंदाज़ा होता है कि ख़ुद रूस के लोग लड़ाई को पसंद नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से मॉस्को में ख़बरों के बहुत से स्रोतों के बंद किया जा रहा है.

20 अप्रैल को काबुल स्कूल हमलों पर रोज़नामा के संपादकीय में कहा गया कि ऐसा लगता है कि नई तालिबानी हुकूमत वही चीज़ें कर रही है, जो उसकी पिछली हुकूमत ने की थीं. लेख में आगे कहा गया कि आफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत ख़ासतौर से बिगड़ रही है, और ऐसा लगता है कि तालिबान मानवाधिकार, नागरिक स्वतंत्रताओं और सहनशीलता जैसे बुनियादी मुद्दों पर किए गए अपने वायदों के बारे में गंभीर नज़र नहीं आ रहे हैं.

संपादकीय के मुताबिक़, ख़ासकर अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रति तालिबान का पुराना रवैया, अफगानिस्तान को बनाने की राह में सबसे बड़ी बाधा रहा है. उसने आगे कहा कि विदेशी सहायता के स्थगित होने से ग़रीबी और बेरोज़गारी बढ़ रही है, और वित्तीय संसाधनों की कमी के चलते देश के पुनर्निर्माण में अड़चनें आ रही हैं.

20 अप्रैल को, सियासत में श्रीलंका संकट पर एक संपादकीय छपा, जिसमें दावा किया गया कि उस मुल्क की सरकार या तो सार्वजनिक मुद्दों के प्रति उदासीनता दिखा रही है, या फिर हालात उसके क़ाबू में नहीं हैं. लेख में कहा गया कि दोनों में कुछ भी हो, सरकार को सत्ता छोड़ देनी चाहिए. उसने आगे कहा कि सभी विरोधी पार्टियों की एक संयुक्त बैठक बुलाकर, हालात पर क़ाबू पाने के उपायों पर चर्चा की जानी चाहिए.

महंगाई

18 अप्रैल को रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने पर, पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों के असर पर एक रिपोर्ट दी, जिसमें कहा गया कि उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक़, अप्रैल के पहले 15 दिनों में पेट्रोल और डीज़ल की मांग में क्रमश: 10 और 15 प्रतिशत की कमी आई, जबकि इसी दौरान एलपीजी की मांग 1.7 प्रतिशत कम हुई.

अख़बार ने 19 अप्रैल को ख़बर दी कि थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति मार्च में चार महीने के रिकॉर्ड 14.55 प्रतिशत पर पहुंच गई, और अख़बार ने इसका मुख्य कारण कच्चे तेल और वस्तुओं की ऊंची क़ीमतों को क़रार दिया.

21 अप्रैल को, इनक़लाब के संपादकीय में ईंधन की बढ़ती क़ीमतों पर सवाल खड़ा किया गया, जबकि विश्व बाज़ार में तेल की क़ीमतें घटी हैं. उसने ये भी कहा कि सरकार ने इसके लिए ‘मुफ्त वैक्सीन और मुफ्त राशन’ के नाम पर एक अजीब सी सफाई दी है. उसने कहा, ‘मुल्क का हर नागरिक इन सुविधाओं का फायदा नहीं उठाता, लेकिन पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों का हर किसी पर असर पड़ता है, इसलिए सरकार को टैक्स की दरों पर नज़र रखनी चाहिए’.

फिर से कोविड का ख़ौफ

21 अप्रैल को, इनक़लाब ने मास्क को फिर से अनिवार्य किए जाने के दिल्ली प्रशासन के फैसले की ख़बर अपने पहले पन्ने पर छापी. रिपोर्ट में कहा गया कि अब फिर से कोविड लहर का ख़तरा पैदा हो गया है. सहारा ने भी दिल्ली में मास्क को फिर से ज़रूरी किए जाने की ख़बर छापी, और ये भी बताया कि नियम तोड़ने पर 500 रुपए जुर्माना लगाया जाएगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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