नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया है और इस बीच उर्दू प्रेस द्वारा की जा रही कांग्रेस की कवरेज ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और जानेमाने अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की इसमें भागीदारी पर केंद्रित रही.
उर्दू प्रेस अब इस बात का कयास लगा रही है कि क्या कांग्रेस मनमोहन सिंह द्वारा खाली की गई जगह को भरने की कोशिश कर रही है. राजन की तरह सिंह भी एक ऐसे अर्थशास्त्री और टेक्नोक्रेट थे जिन्हें यूपीए की 2004 की जीत के बाद प्रधानमंत्री बनाया गया था.
इस बीच उर्दू अख़बारों के पहले पन्ने भारत-चीन सीमा पर पनपी अशांति को दर्शाते रहे. समान नागरिक संहिता पर आक्रोश और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत की प्रशंसा भी व्यक्त की गई.
दिप्रिंट आपके लिए इस बारे में एक संक्षिप्त विवरण लेकर आया है कि उर्दू प्रेस किन मुद्दों पर बात कर रहा है.
कांग्रेस पार्टी की हलचलें
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बारे में ख़बरें उर्दू अख़बारों के मुख्य पृष्ठों और संपादकीय में बनीं रहीं.
14 दिसंबर को इंकलाब ने इस यात्रा के बारे में अपने एक संपादकीय में लिखा कि यह अच्छी बात है कि कांग्रेस अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार कर रही है, लेकिन इस स्वीकृति और बदलाव के बीच अभी भी एक अंतराल है. अगर सच में बदलाव हुआ होता, तो पार्टी ‘वास्तविक हिंदुत्व’ का ‘नरम हिंदुत्व’ से सामना करने की कोशिश करने के बजाय एक वैचारिक लड़ाई लड़ती.
रघुराम राजन के राजस्थान में राहुल के साथ ‘यात्रा’ में शामिल होने पर एक दिलचस्प सवाल करते हुए ‘सियासत’ ने 15 दिसंबर को अपने पहले पन्ने पर पूछा- ‘क्या रघुराम राजन कांग्रेस पार्टी के अगले मनमोहन सिंह बनने की कोशिश कर रहे हैं?’
इस पार्टी के हिमाचल प्रदेश की सत्ता में काबिज होने को भी पहले पन्नों पर जगह मिली. 11 दिसंबर को सहारा के पहले पन्ने पर कांग्रेस का यह ऐलान छापा था कि सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल में पार्टी की नई सरकार का नेतृत्व करेंगे.
अगले दिन, इसके पहले पन्ने पर शिमला में अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ राहुल और प्रियंका गांधी की एक तस्वीर छपी, जिसमें घोषणा की गई थी कि पार्टी अब राज्य में सरकार बनाने जा रही है.
16 दिसंबर को इंकलाब ने अपने एक संपादकीय में लिखा कि इस पहाड़ी राज्य में कांग्रेस की जीत का श्रेय हर चुनाव में राज्य में सरकार बदलने की रिवायत को देना सही नहीं होगा. अख़बार ने कहा कि कर्नाटक और राजस्थान में भी इसी तरह की कामयाबी को दोहराना अब महत्वपूर्ण है. इसमें कहा गया है कि लोग 2024 के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन 2023, जब 10 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होंगे, शायद अधिक अहमियत वाला साल है.
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भारत-चीन सीमा पर व्याप्त तनाव
संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच हुई झड़पों को लेकर मचे हंगामे के साथ हुई. यह मुद्दा उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर भी छाया रहा. रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा की 14 दिसंबर की प्रमुख खबर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दोनों सदनों में इस मामले पर दिए गए बयान के बारे में थी.
उसी दिन इंकलाब ने लिखा था कि सरकार ने स्पष्टीकरण तो दिया, लेकिन विपक्षी दलों ने विरोध भी किया. एक इनसेट खबर में अख़बार ने लिखा कि कांग्रेस का आरोप था कि सरकार चीन द्वारा किए ये जा रहे घुसपैठ के प्रयासों को छिपाकर पूरे देश को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. एक अन्य इनसेट में गृह मंत्री अमित शाह के जवाब के बारे में बताया गया था कि चीन के साथ कांग्रेस की ‘दोस्ती’ के कारण ही साल 1962 में सैकड़ों हेक्टेयर भारतीय भूमि पर कब्ज़ा कर लिया था.
उसी दिन की इसी से जुड़ी एक अन्य खबर में सहारा ने लिखा कि सरकार ने संसद को बताया है कि भारत की 3,500 कंपनियों में चीनी नागरिक निदेशक (डायरेक्टर) बने हुए हैं.
15 दिसंबर को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के पहले पन्ने पर कहा गया कि संसद में लगातार दूसरे दिन चीनी घुसपैठ को लेकर हंगामा हुआ. उस दिन इंकलाब ने लिखा कि संसद के दोनों सदनों ने चीन को लेकर हंगामेदार नज़ारा देखा गया.
अगले दिन इंकलाब के पहले पन्ने की मुख्य सुर्खी में एक सवाल पूछा गया- ‘क्या संसद में चीन के खिलाफ बोलने की इज़ाज़त नहीं है?’ यह अखबार राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सवाल को कोट कर रहा था. वह सदन में विपक्ष के नेता भी हैं.
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अर्थव्यवस्था के हालात
13 दिसंबर को इंकलाब और रोज़नामा ने लिखा कि कांग्रेस ने शीतकालीन सत्र के दौरान देश में बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी का मुद्दा उठाया.
इंकलाब ने लिखा कि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए पेश की गईं अनुदान की पूरक मांगों पर चर्चा की शुरुआत की. उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो गई थी और कोविड ने इसे और धीमा कर दिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने (थरूर) पहले ही भविष्वाणी की थी कि बजट में उर्वरकों (खाद) के लिए आवंटित धनराशि बहुत कम है.
इसने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का वह बयान भी साथ में प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और तेज गति से बढ़ रही है. 15 दिसंबर को रोज़नामा के पहले पन्ने पर लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अर्थव्यवस्था पर की गई टिप्पणी की जानकारी दी गई थी.
सीतारमण ने कहा कि सरकार के अच्छे आर्थिक प्रबंधन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में छाए उतार-चढ़ाव के बावजूद आज देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है. उन्होंने कहा कि महंगाई कम हो रही है और डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो रहा है.
पहले पन्ने पर एक और खबर भी छपी थी जिसमें कहा गया था कि मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप को खत्म नहीं किया जाएगा.
बिहार में अवैध शराब वाला हादसा
15 दिसंबर को रोज़नामा का पहला पन्ना बिहार में हुई उन मौतों के बारे में था जिनके तहत छपरा में 17 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी. अख़बार ने खबर दी कि स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मौतें जहरीली शराब पीने की वज़ह से हुई हैं. पुलिस की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि इन मौतों की असल वजह का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही चलेगा.
इसी मामले पर रिपोर्टिंग करते हुए, इंकलाब ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता द्वारा मामला उठाए जाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा दिए गए जवाब पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने कहा कि सभी शराबबंदी के पक्ष में है, जो भी इसकी आपूर्ति कर रहा है वह गंदा काम कर रहा है. उन्हें बर्बाद कर दिया जाएगा और राज्य के बाहर खदेड़ दिया जाएगा. एक अलग कॉलम में, अख़बार ने इस हादसे का ब्यौरा भी दिया.
समान नागरिक संहिता
10 दिसंबर को, सहारा ने अपने पहले पन्ने पर एक समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड या यूसीसी) लाने के लिए राज्य सभा में उसके एक निजी सदस्य द्वारा विधेयक पेश किए जाने के बारे में खबर दी. अखबार ने लिखा है कि इस विधेयक को विपक्ष के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. साथ ही, इसने यह भी लिखा कि जब इसे मतदान के लिए लाया गया, उस समय 63 सदस्य इसका समर्थन कर रहे थे और 23 इसका विरोध कर रहे थे.
उस दिन के सियासत के पहले पन्ने पर भी इस मामले पर एक खबर थी. उसने लिखा कि विपक्ष के विरोध के बावजूद विधेयक को पेश किया गया.
उसी दिन छपे सियासत के संपादकीय में कहा गया कि यूसीसी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति से दूर रहने की जरूरत है. किसी को भी अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए माहौल को खराब करने की इज़ाज़त नहीं दी जानी चाहिए. अख़बार ने लिखा है कि सरकार शायद इस वजह से चुप है क्योंकि वह हालत को भांपने की कोशिश कर रही है.
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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