पटना: स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण का नाम उनके नाम पर ही बिहार में बनी एक यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम से हटाए जाने पर मचे राजनीतिक हंगामे के बीच राज्य के शिक्षा मंत्री ने गुरुवार को यह फैसला पलटने का आदेश दिया और साथ ही इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने को भी कहा.
शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्यमंत्री इस कदर नाराज थे कि उन्होंने मुझे फोन किया और मुझसे (स्थिति को सुधारने के लिए) तुरंत कदम उठाने को कहा.’
चौधरी ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव को गलती सुधारने और इस बदलाव के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है.
उन्होंने कहा, ‘विश्वविद्यालयों को अपने स्तर पर पाठ्यक्रम बदलने का अधिकार नहीं है. उन्हें इस पर राज्य सरकार को जानकारी देनी होती है.’ उनके विभाग के अधिकारियों को अब यह पता लगाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है कि क्या अन्य विश्वविद्यालयों में भी इसी तरह के बदलाव किए गए थे.
मामला बुधवार को उस समय सामने आया जब एक स्थानीय अखबार ने पाठ्यक्रम में बदलाव के बाबत खबर दी. इसमें बताया गया कि समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के नाम हटा दिए गए हैं और उनकी जगह भाजपा के ऑइकन दीनदयाल उपाध्याय और सुभाष चंद्र बोस को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.
राज्यपाल फागू चौहान, जो भाजपा के पूर्व विधायक हैं, छपरा स्थित जयप्रकाश विश्वविद्यालय के चांसलर हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तरफ से बुधवार को किए गए ट्वीट से यह मुद्दा राजनीतिक विवाद में बदल गया, जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार सरकार को ‘संघी’ सरकार बताया था.
लालू ने ट्वीट में लिखा, ‘मैंने अपनी ‘कर्मभूमि’ छपरा में 30 वर्ष पहले जयप्रकाश जी के नाम पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. अब उसी यूनिवर्सिटी के सिलेबस से ‘संघी’ बिहार सरकार और संघी विचारधारा वाले पदाधिकारी महान समाजवादी नेताओं जेपी-लोहिया के विचारों को हटा रहे हैं. यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.’
मैंने जयप्रकाश जी के नाम पर अपनी कर्मभूमि छपरा में 30 वर्ष पूर्व जेपी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।अब उसी यूनिवर्सिटी के सिलेबस से संघी बिहार सरकार तथा संघी मानसिकता के पदाधिकारी महान समाजवादी नेताओं जेपी-लोहिया के विचार हटा रहे है।यह बर्दाश्त से बाहर है।सरकार तुरंत संज्ञान लें pic.twitter.com/t3Hpxz7bLh
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 1, 2021
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा है. नीतीश और लालू दोनों जेपी और लोहिया के अनुयायी हैं.
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‘जेपी यूनिवर्सिटी ने नियमों का पालन नहीं किया’
चौधरी ने कहा कि उन्होंने राज्यपाल चौहान से बात की, जो इन बदलावों के बारे में अनजान थे. हालांकि. प्रोटोकॉल के तहत यह पूरा मामला उनके कार्यालय से होकर गुजरना चाहिए था.
इसके अलावा, मंत्री ने यह दावा भी किया कि जेपी विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम बदलते समय नियमों का पालन नहीं किया है.
चौधरी ने कहा, ‘यदि मौजूदा राज्यपाल और विश्वविद्यालयों के चांसलर फागू चौहान को पाठ्यक्रम में बदलावों के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो ऐसा इसलिए क्योंकि समस्या उनके पूर्ववर्तियों से सामने आई थी.’
उन्होंने बताया कि 2017 में विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रमों की समीक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरफ से दी गई सलाह पर बिहार और राज्य के बाहर के विशेषज्ञों की एक अकादमिक समिति गठित की गई थी. यह कवायद 2018 में सत्यपाल मलिक के समय में शुरू हुई और 2019 में राज्यपाल लालजी टंडन के समय तक जारी रही.
बिहार में विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों की समीक्षा करने वाली अकादमिक समिति के सदस्य रहे पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर बी.के. मिश्रा ने कहा, ‘विभिन्न विषयों के लिए कई उप-समितियां थीं और इसे अंतिम रूप देने के बाद इसे शर्त के साथ विश्वविद्यालयों को भेजा गया था कि स्थानीय जरूरतों और आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अनुशंसित पाठ्यक्रम में से 10 प्रतिशत हिस्से को बदला जा सकता है. उदाहरण के तौर पर यदि दरभंगा विश्वविद्यालय मैथिली कवि विद्यापति के बारे में जानकारी शामिल करना चाहे तो ऐसा कर सकता है.’
मिश्रा ने कहा, ‘पटना विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में कोई बदलाव नहीं हुआ.’ साथ ही यह संकेत दिया कि जेपी विश्वविद्यालय में यह बदलाव विश्वविद्यालय के स्तर पर किया गया होगा.
हालांकि, भाजपा नेताओं ने इस मुद्दे को खारिज कर दिया. पार्टी के एक मंत्री ने नाम न छापने के अनुरोध पर दिप्रिंट से कहा, ‘अगर किसी को इस गलती के लिए दोषी ठहराया जाना है तो वह जदयू है, जिसके पास पिछले 16 वर्षों से शिक्षा विभाग है. यूनिवर्सिटी की सीनेट की मंजूरी के बाद ही सिलेबस में बदलाव हो सकता है. प्रत्येक सीनेट में सरकार का प्रतिनिधित्व होता है. वे इस कदम को उसी समय वहीं पर रोक सकते थे.’
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