नई दिल्ली: केंद्रीय लोक सेवा आयोग, यूपीएससी इस साल 100 कम आईएएस, आईपीएस और आईएफएस की नियुक्त करेगा. हर साल का ट्रेंड है कि यूपीएससी नियुक्तियों की संख्या घटा रहा है.
इस माह में जारी की गई एक अधिसूचना में कहा गया है कि यूपीएससी में , ‘परिक्षा के रास्ते जो रिक्तियां इस साल भरी जायेंगी वो लगभग 796 होंगी.
पिछले साल आयोग ने प्रतिष्ठित सिविल सेवा की परीक्षा से 896 पद भरे थे.
जितने सूचित किए गए उससे कम चुने गए
जितनी रिक्तियां चिन्हित की जाती है अक्सर उससे कम नियुक्तियां होती है. मसलन यूपीएससी ने 2018 में 812 पद चिन्हित किये थे पर केवल 759 उम्मीदवारों का चुनाव हुआ.
साल 2014 में यूपीएससी ने 1364 पद नोटिफाई किये थे, 2015 में 1164, 2016 में 1209 और 2017 में 1058. एक ऐसे समय जब देश के सामने लोकसेवा अधिकारियों की भारी कमी है, इनकी भर्ती मे कमी आ रही है.
2018 तक आईएएस अधिकारियों की 1449, आईपीएस 970 और आईएफएस के 560 अधिकारी पद रिक्त है.
शासकीय चुनौतियों के मद्देनज़र संसद की कार्मिक, लोक शिकायत और कानून एवं न्याय मामलों पर बनी स्टैंडिंग कमिटी ने 2017 में पाया कि देश में अधिकारियों की नियुक्ति अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई है. यूपीएससी ने इसके बाद कम अधिकारियों को नियुक्त करना जारी रखा है.
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‘कितने अधिकारी नियुक्त होंगे- यूपीएससी नहीं सरकार तय करती है’
यूपीएससी के अधिकारी ने कहा कि कमीशन सिर्फ नियुक्तिों की संख्या को नोटिफाई करती है. जरूरत के हिसाब से संख्या तय करना सरकार करती है.
अधिकारी ने कहा, ‘इस मामले में कमीशन कुछ नहीं कह सकती.. सभी कैडर-नियंत्रित मंत्रालय अपने कैडर की समीक्षा करती है और उस आधार पर सरकार यूपीएससी से कहती है कि कितने लोगों का चयन करना है.’
हालांकि डीओपीटी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘रिक्त पड़े पदों और नियुक्त की गई संख्या की तुलना करना बहुत आसान है.’
अधिकारी ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि वर्तमान में रिक्तियां हैं, भर्ती में पर्याप्त वृद्धि नहीं की जा सकती है, क्योंकि इससे अधिकारियों के मध्य और उच्च स्तर पर करियर की प्रगति में बाधा होगी.’ ‘आपके पास ऐसी स्थिति होगी जहां लोगों को 10-15 साल तक एक ही पद पर काम करना होगा.’
संख्या में कमी के बारे में बताते हुए, अधिकारी ने कहा कि डीओपीटी ने सभी कैडर को नियंत्रित करने वाले मंत्रालयों से समीक्षा करने के लिए कहा है ताकि सरकार में निरर्थक पदों की संख्या को दूर किया जा सके. अधिकारी ने कहा, ‘यह सरकार के न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के एजेंडे के अनुरूप है.’
अधिकारी ने कहा कि एक बार में अधिक संख्या में अधिकारियों की भर्ती नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार के पास ट्रेनिंग कराने के सीमित संसाधन हैं.
लेट्रल एंट्री
हालांकि यूपीएससी में नियुक्तियों की कमी के कारण सिविल सेवा में लेट्रल एंट्री बढ़ गई है. केंद्र सरकार में काम करने वाले एक आईएएस अधिकारी ने कहा कि इस दिशा में नरेंद्र मोदी जिस तरह से काम कर रहे हैं वो स्पष्ट है. अधिकारी ने कहा, ‘एक तरफ वरिष्ठ अधिकारियों को सरकार दोबारा नियुक्त कर रही है यहां तक की उनके रिटायर होने के बावजूद. जिससे शीर्ष स्तर पर पोस्ट की कमी हो रही है.’
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अधिकारी ने कहा, ‘दूसरी तरफ लेट्रल एंट्री की बात है…इससे यह साफ होता है कि ब्यूरोक्रेसी के पारंपरिक तौर से नियुक्तियों के तरीकों पर वो कम सहारा लेना चाहते हैं. ‘लेकिन सवाल ये है कि राज्यों का क्या है? राज्य ही हैं जहां शासन में सबसे ज्यादा बाधा उत्पन्न हो रही है.
दिप्रिंट ने जैसा कि पहले रिपोर्ट किया था, छह राज्यों – आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश- करीब 40 प्रतिशत (565 पद) आईएएस अधिकारियों की पद निर्धारित करता है.
लेकिन ये केवल सिविल सर्विसिज़ नहीं है जहां पर नियुक्तियों में कमी हो रही है. सरकार ने हाल ही में संसद को बताया था कि यूपीएससी द्वारा 2018-19 में दी गई नौकरियां पिछले चार सालों में सबसे कम 2,352 है. 2017-18 में ये 2,706 थी, 2016-17 में 3,184, 2015-16 में 3,750 थी.
ये उस समय है जब देश में बेरोज़गारी दर (6.1 प्रतिशत) पिछले चार दशकों में सबसे ज्यादा है.
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