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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशअब रेग्युलर कोचिंग ही काफी नहीं-UPSC की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी ‘पर्सनल मेंटर’ भी चुन रहे हैं

अब रेग्युलर कोचिंग ही काफी नहीं-UPSC की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी ‘पर्सनल मेंटर’ भी चुन रहे हैं

ये व्यक्तिगत मार्गदर्शक अक्सर पूर्व सिविल सेवक होते हैं जो उम्मीदवारों का प्रदर्शन सुधारने में उनकी मदद करते हैं. वे उनके समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करते हैं.

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नई दिल्ली: देशभर के कोने-कोने में सैकड़ों छात्रों की मौजूदगी वाले बड़े-बड़े क्लासरूम. माइक्रोफोन लगाकर लेक्चर देते टीचर, ताकि उनकी आवाज कक्षा के हर छात्र तक पहुंच सके. और छात्रों के कागज पर जल्दी-जल्दी लिखने की आवाज. ये यूपीएससी परीक्षा की तैयार कराने वाले कोचिंग केंद्रों की एक खास पहचान बन चुकी है.

दशकों से ही ये केंद्र देश के तमाम युवा छात्र-छात्राओं को सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए बेहद कठिन मानी जाने वाली संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा क्रैक करने में मदद कर रहे हैं.

हर साल औसतन कुछ सौ नौकरियों के लिए लगभग 5 से 6 लाख अभ्यर्थी यूपीएससी परीक्षा देते हैं, जिसकी वजह से ही यह कोचिंग उद्योग फलता-फूलता रहा है. उदाहरण के तौर पर 2021 में 5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी.

2018 में विशेषज्ञों के मूल्यांकन के मुताबिक यह उद्योग करीब 3,000 करोड़ का था, और पिछले कुछ सालों में इसमें विविधता आई है. यह अब केवल क्लासरूम में पढ़ाई और ऑनलाइन लेक्चर तक ही सीमित नहीं रहा है. अब इसमें अभ्यर्थी के ‘व्यक्तिगत मार्गदर्शन’ के साथ-साथ उसके ‘समग्र विकास’ पर भी ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है.

अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बदलाव की वजह यह भी है कि अब ये माना जाने लगा है कि उम्मीदवारों के लिए केवल यूपीएससी परीक्षा पास करना ही काफी नहीं है, बल्कि इसे एक निश्चित अवधि के भीतर पास करना है और फिर अपने लिए सही सेवा का चयन करना है.

और यही वह जगह है जहां ‘मेंटर’ की भूमिका अहम हो जाती है—जो चलन पिछले कुछ सालों में ही शुरू हुआ है.

अक्सर कोई पूर्व सिविल सेवक ही मेंटर की भूमिका में होता है जो परीक्षा पास करने में कामयाब होता है और जानता है कि ऐसा करने के लिए क्या-क्या करना जरूरी है.

हालांकि, इस तरह का मार्गदर्शन अच्छी-खासी कीमत भी वसूलता है, जिससे कोचिंग पर होने वाला खर्च लगभग 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. उदाहरण के तौर पर यदि कोचिंग क्लास में ‘प्रीलिम्स और मेन्स पैकेज’ के लिए औसतन एक लाख रुपये का खर्च आता है तो निजी मार्गदर्शक के साथ यह खर्च बढ़कर करीब 1,30,000 रुपये हो जाएगा.

हर छात्र को मेंटरशिप सुविधा उपलब्ध कराने वाले यूपीएससी कोचिंग संस्थान सिविलडेली के संस्थापक सजल सिंह ने कहा, ‘परीक्षा की तैयारी के लिए कंटेंट उपलब्ध होना अब कोई समस्या नहीं रहा है, खासकर तमाम एडटेक प्लेटफॉर्म आने के बाद से. लेक्चर ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, परीक्षा की तैयारी के लिए कंटेंट आसानी से उपलब्ध हो जाता है.’

उन्होंने बताया, ‘आजकल व्यक्तिगत मार्गदर्शक का ट्रेंड काफी ज्यादा बढ़ा है. मेंटर वह होता है जो छात्रों को परीक्षा से लेकर इंटरव्यू तक, हर चीज के लिए तैयार करता है…’

पर्सनल मेंटर सबसे पहले किसी अभ्यर्थी की क्षमताओं का आकलन करता है कि वे किस स्तर पर हैं, क्या उन्हें परीक्षा के समय अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है, या फिर उन्हें और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है. ये मेंटर आमतौर पर मेन्स से लेकर इंटरव्यू तक अपने छात्रों का पूरा मार्गदर्शन करते हैं.

अक्सर, यह मदद इतनी बुनियादी स्तर की हो सकती है कि उम्मीदवारों को यह सिखाया जाए कि किसी निश्चित उत्तर या निबंध को कैसे तैयार करना है. किसी छात्र के व्यक्तिगत व्यक्तित्व को विकसित करना और उसकी आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करना भी मार्गदर्शन प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है.

सजल सिंह खुद एक मेंटर हैं और हर साल लगभग 50-60 लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, जो ऐसे अभ्यर्थी होते हैं जिन्होंने अपनी प्रारंभिक परीक्षा (प्रीलिम्म) तो पास कर ली है, लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से मेन्स क्लियर नहीं कर पा रहे.

वह कहते हैं कि जो कोई पहले ही परीक्षा पास कर चुका हो, वह इसे पास करने की बारीकियों को जानता है. उन्होंने कहा, ‘मैं उनके पिछले सभी प्रदर्शनों का विश्लेषण करता हूं और उन्हें बताता हूं कि इसमें कैसे सुधार किया जाए, या उनसे कहां चूक हुई.’

22 वर्षीय ऋचा खेड़ा, जो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए पोस्टग्रेजुएशन गैप ईयर में हैं, उन स्टूडेंट में शुमार हैं, जिन्होंने दिल्ली में एक निजी कोचिंग प्लेटफॉर्म के साथ पर्सनल मेंटरशिप का विकल्प चुना है.

ऋचा ने कहा, ‘मेरे पास स्टडी मैटीरियल की कोई कमी नहीं है, मेरी तैयारी में मदद के लिए फ्री और पेड दोनों तरह के सैकड़ों ऑनलाइन वीडियो उपलब्ध हैं. लेकिन परीक्षा क्रैक करने के लिए मुझे समुचित मार्गदर्शन की जरूरत है.’


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‘परीक्षा पास करना ही काफी नहीं’

एडटेक प्लेटफॉर्म प्रेपलैडर और अनएकेडमी में पढ़ाने वाले बादल सोनी, जो छात्रों को इंजीनियरिंग और सिविल सेवाओं की तैयारी कराते हैं, उनका कहना है कि केवल परीक्षा पास करना ही पर्याप्त नहीं है.

उन्होंने कहा कि किसी को भी यह समझने की जरूरत है कि उन्हें सही उम्र में इसे पास करना होगा ताकि समय पर पदोन्नति मिल सके और वे आगे बढ़ सकें.

सोनी ने कहा, ‘पहले, लोग सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए कॉलेज के बाद एक साल का गैप लेते थे. अब, वे कॉलेज में रहते हुए तैयारी करना शुरू कर देते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के लिहाज से उम्र काफी मायने रखती है…यदि आप देर से सेवा में प्रवेश करेंगे, तो आपकी पदोन्नति सीमित हो जाएगी. लेकिन अगर आप सिविल सेवा में जल्दी प्रवेश करते हैं, तो आपके आगे बढ़ने की संभावना अधिक होती है.’

दिप्रिंट ने जिन उम्मीदवारों और सफल अभ्यर्थियों से बात की, उन्होंने इस बात पर सहमति जताई. उन्होंने कहा कि किसी को यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कैसे करनी है, इसे लेकर काफी स्मार्ट होने की जरूरत है.

पिछले साल अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास करके भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल हुए रांची के एक 28 वर्षीय सिविल इंजीनियर ने कहा कि वह ‘पहले दो प्रयासों में मुख्य परीक्षा तक पहुंचने में सक्षम हो गए लेकिन इंटरव्यू लेवल पर आकर असफल रहे.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कहां चूक हो रही है, तभी एक पारिवारिक मित्र और पूर्व आईपीएस अधिकारी ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर कोचिंग दी और मेरी गलतियों की ओर ध्यान आकर्षित कराया.’

ऋचा खेड़ा का अनुभव भी कुछ इसी तरह का रहा है. उसके टेस्ट प्रेप पेपर को पढ़ने के बाद उसके मेंटर ने बताया कि उसके निबंधों में परिचयात्मक पैराग्राफ बहुत लंबे थे.

उन्होंने कहा, ‘मैं अपने निबंधों में शुरुआती पैराग्राफ लिखते समय मुद्दे पर आने में बहुत अधिक समय लगाती थी. मेरे मेंटर ने मुझसे कहा कि इंट्रोडक्शन संक्षिप्त होना चाहिए और जल्द से जल्द मुद्दे की बात पर आ जाना चाहिए. यह कुछ ऐसा है जिस पर मैंने अभी काम करना शुरू कर दिया है.’

‘समग्र विकास’ पर फोकस

छात्रों को यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कराने वाले एक अन्य प्लेटफॉर्म एडुकेमी के सह-संस्थापक और सीईओ चंद्रहास पाणिग्रही ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे किसी उम्मीदवार के व्यक्तित्व का समग्र विकास महत्वपूर्ण है और रटी-रटाई पढ़ाई अब काम नहीं आती है.

उन्होंने कहा, ‘यूपीएससी परीक्षा पिछले कुछ सालों में बदल गई है और इसके साथ तैयारी का तरीका भी बदल गया है. अब प्रीलिम्स और मेन्स दोनों में करेंट अफेयर्स पर आधारित प्रश्नों पर अधिक जोर दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर प्रश्न यह भी पूछा जा सकता है कि ‘यदि गांधी न होते तो भारतीय इतिहास का स्वरूप क्या होता’.’ साथ ही जोड़ा कि शिक्षक ‘सवालों के हल के लिए वैकल्पिक सोच या कल्पनाशक्ति’ को बढ़ावा दे रहे हैं.

उन्होंने कहा कि पुराने फॉर्मूले वाला यह दृष्टिकोण अब पूरी तरह बदल चुका है कि ‘अगर किसी को यूपीएससी की तैयारी करनी है तो खुद को कमरे में एकदम बंद कर ले.’

पाणिग्रही ने कहा, ‘शिक्षकों को खुद पढ़ाते समय अधिक सक्रिय होने की जरूरत है, उन्हें कक्षा में खुली चर्चा कराने की आवश्यकता है. उन्हें छात्रों को लोकप्रिय फिल्मों, पुस्तकों, वाद-विवाद, नई खोज जैसे दुनिया के तमाम घटनाक्रम पर अपडेट रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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