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Sunday, 3 November, 2024
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नरेंद्र मोदी के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा की चार्जशीट

उपेंद्र कुशवाहा का केंद्रीय मंत्रिपरिषद से जाना सरकार के लिए बुरी खबर है. उनके आरोपों का जवाब देना भी सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

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उपेंद्र कुशवाहा ने आज केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही उन्होंने एनडीए से भी इस्तीफा दे दिया है. मौजूदा सरकार का कार्यकाल अभी छह महीने बाकी है. इस लिहाज से ये एक मौकापरस्त फैसला नहीं है, क्योंकि आम तौर पर मंत्री आखिरी मौके तक पद से चिपके रहते हैं और चुनाव की घोषणा होने के बाद इस्तीफे देते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले से एनडीए में है. इस लिहाज से उत्तर भारत की यह पहली पार्टी है, जिसने एनडीए छोड़ा है. कहना मुश्किल है कि एक पार्टी का एनडीए से अलग हो जाना है, या फिर किसी ट्रेंड की शुरुआत.

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी एक छोटी पार्टी है. लोकसभा में इसके सिर्फ तीन सांसद जीत पाए थे. बिहार में उसे 2014 में 3 परसेंट वोट मिले थे. विधानसभा चुनाव में बिहार में एनडीए का एक तरह से सफाया हो गया और उसके साथ ही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का भी सफाया हो गया.

उपेंद्र कुशवाहा का इस्तीफा एक तरह से एनडीए सरकार के खिलाफ चार्जशीट है. इसमें मुख्य रूप से छह मुद्दे उठाए गए हैं.

एक, नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनता से किए वादे पूरे नहीं किए. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेद्र मोदी ने बिहार के विकास के लिए स्पेशल पैकेज देने का वादा किया था. मोदी के कार्यकाल के 55 महीने बीतने के बाद भी बिहार के लिए कोई पैकेज नहीं दिय़ा गया. उपेंद्र कुशवाहा का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनता को धोखा दिया है.

दो, एनडीए सरकार सामाजिक न्याय की विरोधी है और आरएसएस के एजेंडे पर चल रही है, जो कि संविधान विरोधी है. खासकर विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों में नियुक्तियों में चुन-चुन कर आरएसएस के लोगों को भरा जा रहा है.

तीन, एनडीए सरकार ने जातिवार जनगणना के आंकड़े जारी नहीं किए, जिससे ओबीसी में गहरी निराशा है. इस काम पर हज़ारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए हैं, लेकिन अब तक एक भी आंकड़ा नहीं आया है.

चार, एनडीएस सरकार ने अपने वादे के मुताबिक ओबीसी को दो भागों में बांटकर अति पिछड़ों को न्याय दिलाने का वादा पूरा नहीं किया. इसके लिए बनाए गए आयोग को आंकड़े मुहैया नहीं कराए गए. इस वजह से आयोग का कार्यकाल बार-बार बढ़ाया गया. अब तो सरकार ने उसे 31 मई तक का कार्यविस्तार दे दिया है, यानी ये सरकार अपने कार्यकाल में ये काम करना ही नहीं चाहती है.

पांच, नीतीश कुमार आरएलएसपी को कमज़ोर करने की साजिश कर रहे हैं और बीजेपी उनका साथ दे रही है.

छह, बीजेपी आरएलएसपी को लोकसभा चुनाव में उतनी सीटें भी नहीं देना चाहती, जितनी सीटों पर उसके सांसद जीते थे. यह आरएलएसपी को राजनीतिक रूप से खत्म करने की एक और साजिश है.

सवाल उठता है कि उपेंद्र कुशवाहा के इस कदम में एनडीए को कितना नुकसान होगा. लोकसभा में एनडीए का बहुमत है, और आरएलएसपी के एनडीए से अलग होने से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन केंद्रीय मंत्रिपरिषद से एक सदस्य का जाना निश्चित रूप से सरकार के लिए एक बुरी खबर है. इससे गठबंधन का मूड खराब होता है.

उपेंद्र कुशवाहा ने जिस तरह के आरोप अपने त्यागपत्र में लगाए हैं, सरकार के लिए उनका जवाब देना आसान नहीं है. खासकर बिहार पैकेज पर विरोधी दल बिहार में काफी मुखर हैं और ये एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन सकता है.

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