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Friday, 10 May, 2024
होमदेशअध्ययन में योजनाओं के लाभार्थी चुनने में चूक से बचने के लिए जाति जनगणना को लगातार अपडेट करने की सिफारिश

अध्ययन में योजनाओं के लाभार्थी चुनने में चूक से बचने के लिए जाति जनगणना को लगातार अपडेट करने की सिफारिश

तथ्य यह है कि एसईसीसी डाटा लगभग 10 सालों से अपडेट नहीं किया गया है, जिसका मतलब है कि कई लोग अकारण ही सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हुए या किए जा रहे.

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नई दिल्ली: केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़ों को लगातार अपडेट की सिफारिश की गई है. इसमें कहा गया है कि इसके आधार पर सरकारी योजनाओं के लिए लाभार्थियों के चयन में ‘गंभीर त्रुटियां’ हुई हैं.

इस अध्ययन, जिसे ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के ‘स्वतंत्र मूल्यांकन’ के लिए पांचवें सामान्य समीक्षा मिशन (सीआरएम) के तहत किया गया था, में कहा गया है. ‘इसमें शामिल करने या हटाने में गंभीर त्रुटियां हुई हैं और इस तरह से केवल इन सूचियों के आधार पर किसी भी योजना के लिए लाभार्थी चुनने में खतरा हो सकता है.’

एसईसीसी 2011 एक अनूठा अभ्यास था, जिसमें पेशा, शिक्षा, दिव्यांगता, संपत्ति पर अधिकार, घर पर स्वामित्व की स्थिति, एससी/एसटी दर्जा और रोजगार जैसे कारकों का उपयोग करते हुए एक बहुआयामी नजरिये से गरीबी की पहचान की कोशिश की गई थी. यह प्रक्रिया 2011 में शुरू हुई थी और 2015 में पूरी हुई थी. इसके तहत घर-घर जाकर 24.49 करोड़ घरों से डाटा जुटाया गया. अगली बार एसईसीसी 2021 में शुरू होनी है.

यह अध्ययन एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त राजीव कपूर के नेतृत्व वाली 31 सदस्यीय टीम ने किया था और इसे पिछले महीने मंत्रालय के समक्ष पेश किया गया. टीम में सेवानिवृत्त नौकरशाह, शिक्षाविद् और अनुसंधान संगठन शामिल थे और इसने नवंबर 2019 में आठ राज्यों मेघालय, ओडिशा, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मणिपुर और उत्तर प्रदेश के 120 से अधिक गांवों का दौरा किया.


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दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिये से कपूर से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई टिप्पणी न करने की मंशा जताई. ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रवक्ता अल्पना पंत ने प्रतिक्रिया के लिए भेजे गए टेक्स्ट मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.

‘खामियों की वजह’

अध्ययन से जुड़े सूत्रों ने बताया कि तथ्य यह है कि एसईसीसी डाटा लगभग 10 सालों से अपडेट नहीं किया गया है जिसका मतलब है कि कई लोग अकारण ही सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हुए या किए जा रहे.

सूत्र ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर, ऐसा हो सकता है कि 2011 में जिनके पास घर नहीं था, अब उनके पास एक घर हो. अब चूंकि एसईसीसी डाटा अपडेट नहीं है तो उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (पीएमएवाई-जी) के लिए योग्य माना जाएगा.’

सूत्र ने आगे जोड़ा, ‘अध्ययन यह अनुशंसा नहीं करता कि एसईसीसी डाटा को कितने समय पर अपडेट किया जाना चाहिए क्योंकि यह अधिदेश नहीं था, लेकिन यह एक तरह की गड़बड़ी है जो गंभीर त्रुटियों का रास्ता खोलती है.’

सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय ग्रामीण आवास योजना पीएमएवाई-जी के संबंध में अध्ययन के दौरान कई विसंगतियां सामने आईं. 2016-19 से इसके तहत सरकार ने पहले चरण में एक करोड़ घर बनाने की योजना बनाई थी. अब तक, 97.9 लाख घरों को मंजूरी दी जा चुकी है, और 84.80 लाख पूरे भी हो चुके हैं.

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई), जिसके तहत सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में गांवों को गोद लेते हैं और उन्हें मॉडल गांवों में बदलने की कोशिश करते है, का कोई ‘खास प्रभाव’ नहीं पड़ा है.

अध्ययन के मुताबिक, कई एसएजीवाई गांवों में, माननीय सांसद ने जनप्रतिनिधि स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) से ठीकठाक पैसा नहीं दिया. कुछ मामलों में जहां सांसद की सक्रियता दिखी, बुनियादी ढांचे का थोड़ा-बहुत विकास हुआ है, लेकिन इस योजना का कोई अभूतपूर्व प्रभाव नहीं पड़ा है. इस प्रकार, इन गांवों को आदर्श गांव नहीं कहा जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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