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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशलखनऊ में कोविड मरीजों को जगह नहीं मिलने पर UP के बदहाल जिला अस्पतालों ने अब संभाला जिम्मा

लखनऊ में कोविड मरीजों को जगह नहीं मिलने पर UP के बदहाल जिला अस्पतालों ने अब संभाला जिम्मा

लखनऊ के अस्पतालों में बेड की कमी को देखते हुए बड़ी संख्या में मरीज आसपास के जिलों की ओर रुख कर रहे हैं, और ये अस्पताल मरीजों के बोझ के साथ-साथ अपर्याप्त सुविधाओं के कारण भी बदहाल स्थिति में हैं.

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बाराबंकी/सीतापुर: राजधानी लखनऊ से सटे उत्तर प्रदेश के कई जिले दोहरे संकट से जूझ रहे हैं—एक तो कोविड-19 महामारी के बीच उन्हें सीमित चिकित्सा ढांचे के साथ ही जरूरत से ज्यादा काम करना पड़ रहा है और फिर लखनऊ में बेड न मिलने पर बड़ी संख्या में मरीजों के इन जिला अस्पतालों की तरफ रुख किए जाने से अतिरिक्त बोझ भी बढ़ा है. हालांकि, जिला अस्पताल भी बाहर से आए तमाम मरीजों को लौटा रहे हैं, इसकी वजह यह है कि या तो बेड अनुपलब्ध हैं या फिर इन्हें स्थानीय लोगों के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है.

दिप्रिंट ने जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए रविवार और सोमवार को क्रमशः ऐसे ही दो जिलों सीतापुर और बाराबंकी का दौरा किया. हमने देखा कि ऑक्सीजन प्लांट की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है, बेड की कमी के कारण अस्पताल नए मरीजों को लगातार लौटा रहे हैं और लगातार शिफ्ट के कारण थक चुका मेडिकल स्टाफ रिसेप्शन पर बैठे होने के दौरान ऊंघ रहा है.

देश के बाकी हिस्सों की तरह यूपी में मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. राज्य के स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, 24 घंटे में 167 मौतों के साथ एक्टिव केस की संख्या सोमवार को 2,08,523 पर पहुंच गई. लखनऊ में मौजूदा समय में एक्टिव केस 52,376 हैं.

सीतापुर और बाराबंकी में मंगलवार को क्रमशः 219 और 347 कोविड मामले रिपोर्ट किए गए. ये संख्या अधिक हो सकती है. अस्पताल, जहां डॉक्टर पहले से ही चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं, कभी-कभी जानबूझकर भी कर्मचारियों का टेस्ट नहीं करते हैं क्योंकि वे उन्हें छुट्टी देने की स्थिति में नहीं हैं.

लेकिन केवल स्वास्थ्यसेवा कार्यकर्ता ही प्रभावित नहीं है इस महामारी ने तमाम जिला प्रशासन कर्मियों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वे अपने ही कई लोगों के वायरस की चपेट में आ जाने से ‘हताश’ हैं. इनमें से कई कोविड की वजह से जान भी गंवा चुके हैं.

इसके बावजूद इस समय अधिकारियों की सबसे ज्यादा व्यस्तता पंचायत चुनाव को लेकर है—जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है.

A deserted Covid helpdesk at the Barabanki bus stop, Uttar Pradesh | Jyoti Yadav | ThePrint
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक बस स्टॉप पर एक सुनसान कोविड हेल्पडेस्क/ज्योति यादव/दिप्रिंट

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लखनऊ के मरीजों के लिए जगह नहीं

तीस वर्षीय राहुल खरे 19 अप्रैल को अपने 62 वर्षीय चाचा और 31 वर्षीय चचेरे भाई, जो दोनों कोविड मरीज है, को लखनऊ से कार से लेकर बाराबंकी पहुंचे. दिप्रिंट ने उन्हें जिले के मेयो अस्पताल में देखा, जहां वे कर्मचारियों को मरीजों की स्थिति के बारे में बता रहे थे.

उनके चाचा का ऑक्सीजन लेवल 91 तक गिर गया था, जबकि चचेरे भाई का ऑक्सीजन स्तर 85 पर पहुंचने के कारण स्थिति और गंभीर थी. स्टाफ ने यह कहते हुए दोनों मरीजों को भर्ती करने से इनकार कर दिया कि लेवल 2 मरीजों (जिन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ती है) के लिए बेड नहीं हैं. लेवल 1 के मरीज वे होते हैं जिन्हें घर में आइसोलेशन की सलाह दी जाती है, जबकि लेवल 3 कोविड मरीज उन्हें कहा जाता है जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होती है.

खरे ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने लखनऊ में हर अस्पताल में कोशिश कर ली. वहां कोई बेड उपलब्ध नहीं था. मुझे पता चला कि लखनऊ से कई मरीज पास के जिलों में जा रहे हैं, जहां अस्पताल में बेड उपलब्ध हैं, और इसलिए इन्हें लेकर यहां आया.’

अस्पताल ने मरीजों और उनके परिवारों को सूचित करने के लिए नोटिस भी लगा रखे हैं कि आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं होने के कारण कोविड मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है.

अस्पताल का एक स्वास्थ्यकर्मी ऐसे ही एक पोस्टर के नीचे सो रहा था. जब वह उठा तो उसने दिप्रिंट को बताया कि पिछले तीन दिनों से उसे ब्रेक नहीं मिला था. उसने बताया कि इतना ज्यादा थक चुका था कि उसके पैरों ने जवाब दे दिया था.

उससे कुछ मीटर की ही दूरी पर एक कोविड मरीज अपने परिवार के साथ बैठा था, वे एक ऑक्सीजन सिलेंडर हासिल करने में सफल रहे थे. और, अस्पताल में एक बेड मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे.

हर 10-15 मिनट में लखनऊ से कोई न कोई मरीज यहां पहुंच रहा था, उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट और अस्पताल में बेड की जरूरत थी. लेकिन उन्हें यही बताया गया कि सिर्फ लेवल 1 मरीजों को भर्ती किया जाएगा क्योंकि अस्पताल में सिर्फ आइसोलेशन वार्ड में ही जगह उपलब्ध है.

दिप्रिंट ने मेयो अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात की लेकिन उन्होंने इस मामले पर किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया.

हालांकि, सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सीतापुर, पी.के. सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि जिले के अस्पताल लखनऊ से आए मरीजों को लौटा रहे हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय मरीजों के लिए भी बेड बचाकर रखने हैं. उन्होंने कहा कि सीतापुर के खैराबाद अस्पताल में अभी लेवल 2 वाले 15 मरीज भर्ती हैं, जबकि जिला अस्पताल में ऐसे बेड की संख्या 28 है.

‘ऑक्सीजन संयंत्रों को जेड सुरक्षा दें’

बाराबंकी के हिंद अस्पताल के एक डॉक्टर, जिनसे दिप्रिंट ने फोन पर संपर्क किया था, जब अस्पताल में चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी की जानकारी दे रहे थे तो उनका गला रुंध गया.

अपना नाम न छापने की शर्त पर डॉक्टर ने कहा, ‘सरकार को ऑक्सीजन प्लांट के लिए जेड श्रेणी सुरक्षा—जो कि ऐसे लोगों को दी जाती है जिनकी जान का ज्यादा खतरा हो—प्रदान करनी चाहिए (एकदम कातरता के साथ मांग). जिन लोगों के किसी प्रियजन का ऑक्सीजन लेवल 50 से नीचे चला गया हो, और जिसे ऑक्सीजन की सख्त जरूरत हो, वे उसे बचाने के लिए डॉक्टरों और ऑक्सीजन प्लांट पर हमला भी कर सकते हैं.’

हिंद अस्पताल में जिला प्रशासन ने ऑक्सीजन प्लांट में आपूर्ति की चौकसी के लिए नायब तहसीलदार को तैनात किया है. सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) स्तर के एक अधिकारी को भी स्थिति पर नजर बनाए रखने के लिए अस्पताल के साथ अटैच कर दिया गया है. अस्पताल और ऑक्सीजन प्लांट दोनों पर प्रशासन की तरफ से 24 घंटे नजर रखी जा रही है.

हिंद अस्पताल के डॉक्टर ने कहा, ‘हम जानबूझकर मेडिकल स्टाफ का कोविड टेस्ट नहीं करा रहे, क्योंकि अगर ऐसा करें तो शायद उनमें से 40 फीसदी कोविड पॉजिटिव निकलेंगे.’ उन्होंने आगे जोड़ा, ‘जो व्यक्ति सीएमओ, हेल्थ को डेली रिपोर्ट भेज रहा था, उसका बहनोई आईसीयू में भर्ती है. इस अस्पताल में लेवल 2 के मरीजों का इलाज होना था. लेकिन अब, हम लेवल 3 वाली फैसिलिटी के तौर पर काम कर रहे हैं. सभी जिला अस्पताल लेवल 3 फैसिलिटी के तौर पर कार्य कर रहे हैं. कोविड की पहली लहर के दौरान तीस फीसदी मरीजों को छह से आठ घंटे में निमोनिया हो रहा था, यह अवधि अब लगभग छह से आठ दिनों की होगी.’

हिंद अस्पताल, जिसमें 340 मरीज भर्ती करने की क्षमता है, में केवल 140 बेड ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ हैं. लेकिन दिप्रिंट की तरफ से हासिल की गई जानकारी के मुताबिक सोमवार को अस्पताल के पास अपने मरीजों को केवल दो घंटे तक दिए जा सकने लायक ऑक्सीजन ही बची थी.

यही डाटा ये भी दर्शाता है कि मेयो में ऑक्सीजन सपोर्ट वाले बेड की संख्या 260 होनी चाहिए, लेकिन सोमवार तक उसके पास आपूर्ति के लिए कोई ऑक्सीजन नहीं बची थी.

सीतापुर सिविल अस्पताल में भी स्थिति उतनी ही खराब है. अस्पताल में मरीजों को ऑक्सीजन आपूर्ति की निगरानी का जिम्मा संभालने वाले एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हर कोविड मरीज के साथ एक अटैंडेंट होता है, जिसे ऑक्सीजन सिलेंडर की निगरानी करनी होती हैं, क्योंकि डर रहता है कि अगर उसे ऐसे ही छोड़ दिया तो कोई उसे चुरा सकता है. यहां गजब की अफरा-तफरी का आलम है. हमें कोविड वार्ड में व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस से सहायता मांगनी पड़ रही है, लेकिन फिर भी प्रशासन के स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है.’

ज्यादा टेस्ट, ज्यादा मरीज

इस बीच, दिप्रिंट ने इन जिलों में जहां भी दौरा किया, हर टेस्टिंग सेंटर पर लंबी कतार नजर आई.

पिछले साल जब महामारी शुरू हुई थी, तो जिला प्रशासन को लोगों को कोविड टेस्ट कराने को राजी करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. लेकिन अब अधिक जागरूकता के साथ, स्थिति एकदम उलट गई है.

दिप्रिंट ने सीतापुर और बाराबंकी में एक टेस्टिंग सेंटर का दौरा किया. शाम पांच बजे के आसपास, सीतापुर स्थित केंद्र पर 50 से अधिक लोग इंतजार कर रहे थे. वहीं बाराबंकी में यह संख्या 60 से अधिक थी. दिप्रिंट ने इनमें से जिन लोगों से बात की उनमें अधिकांश ने बुखार, खांसी और शरीर में दर्द की शिकायत थी.

The queue at a Covid testing centre in Barabanki, Uttar Pradesh | Jyoti Yadav | ThePrint
बाराबंकी के कोविड सेंटर में जांच कराने के लिए लगी लाइन/ज्योति यादव/दिप्रिंट

लोगों की अच्छी-खासी भीड़ होने के बावजूद जिलों में हर दिन एक सीमित संख्या में ही सैंपल लिए जा रहे हैं, ताकि लखनऊ स्थित टेस्टिंग लैब पर जरूरत से ज्यादा भार न पड़े. सहायक जिला स्वास्थ्य अधिकारी, सीतापुर, पी.के. सिंह के मुताबिक, ‘जिलों को प्रतिदिन 1,000 आरटी-पीसीआर नमूने भेजने की अनुमति है. पहले यह संख्या 800 तक सीमित थी. हालांकि, सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जिले ज्यादा नमूने भेज रहे हैं.’

सीतापुर की तुलना में बाराबंकी पर बोझ अधिक है, जो कि प्रतिदिन औसतन 971 आरटी-पीसीआर, 1,263 एंटीजन सैंपल और 5 डीएच (ट्रूनाट) सैंपल—कोविड जांच के लिए अलग-अलग तरीके—भेज रहा है. वहीं सीतापुर हर रोज 1,000 आरटी-पीसीआर और 1,000 एंटीजन सैंपल एकत्र कर रहा है.

दोनों जिलों ने बस स्टॉप और रेलवे स्टेशनों पर कोविड हेल्प डेस्क स्थापित की हैं, ताकि लोगों को वायरस के बारे में शिक्षित किया जा सके और साथ ही यात्रियों में संक्रमण की स्क्रीनिंग भी कराई जा सके. हालांकि, दिप्रिंट ने पाया कि ये बहुत व्यवस्थित ढंग से काम नहीं कर रही हैं. रविवार देर रात, जब सीतापुर के पांच लोग ऐसे ही एक बस स्टॉप पर पहुंचे, तो कोविड के लिए उनकी स्क्रीनिंग या जांच करने वाला कोई नहीं था. समूह उत्तराखंड में कुंभ मेले से लौटा था, जो एक ऐसा आयोजन रहा है जो कोविड सुपर स्प्रेडर में बदल चुका है.

जिले का हाल ‘बेहाल’

इस सबके बीच जिला प्रशासन अपनी खुद की परेशानियों से जूझ रहा है.

बाराबंकी जिला प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘अब तो हम भी हताश हो चुके हैं. मेरे साथ ही काम करने वाले एक व्यक्ति ने पिछले हफ्ते कोविड के कारण दम तोड़ दिया. हमने पिछले 15 दिनों में ब्लॉक स्तर के पांच अधिकारियों को इस बीमारी के कारण गंवा चुके हैं. कई बीडीओ और लेखपाल भी कोविड टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए हैं. वर्तमान में हमारे कर्मचारियों में से 25 फीसदी कोविड पॉजिटिव हैं. मेरे अपने परिवार में तीन लोग संक्रमित हुए हैं. एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी की गर्भवती पत्नी और छह साल की बेटी संक्रमित हो गई है.’

यूपी के पंचायत चुनाव भी उनकी मुश्किलें और बढ़ा रहे हैं, जिसके कारण कोविड संकट से ध्यान भटक रहा है.

अधिकारी ने कहा, ‘हमारे जिम्मे पंचायत चुनाव भी है. हमें यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि यह भी हमारी प्राथमिकता है.’

दिप्रिंट ने जब अधिकारियों से यह जानना चाहा कि क्या चुनाव के कारण कोविड से निपटने की कोशिशें बाधित हो रही हैं, तो नाम न छापने की शर्त पर जिले के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम चुनावों का समय तय नहीं करते हैं, हमारा काम तो इस पर अमल कराने का होता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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