सांगली: कोरोना संक्रमण का भय पूरी दुनिया में व्याप्त है. यह भय जमीन से लेकर हवा और पानी तक में तैर रहा है. अब इससे जंगल भी अछूते नहीं रहे. वजह, जानवर भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं या नहीं, इस बारे में शत-प्रतिशत कोई दावा नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि कोरोना से जंगल और जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने के लिए अब महाराष्ट्र में एक योजना लागू की जा रही है.
यह योजना राज्य में सह्याद्रि पर्वतमाला स्थित सतारा, सांगली, कोल्हापुर और रत्नागिरी जिले में बाघ परियोजना को ध्यान में रखकर लागू की जा रही है. इसके तहत मुख्य रूप से बाघ और मनुष्य के बीच सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखा जाएगा.
राज्य के वनाधिकारियों की मानें तो सह्याद्रि बाघ परियोजना में बाघों की संख्या पांच है. इसके अलावा 35 तेंदुए अलावा सैकड़ों हिरण, सांभर, नील गाय और बड़ी संख्या में सांप सहित अनेक प्रकार के पशु-पक्षी हैं.
राज्य वन-विभाग ने इस वर्ष चार जिलों में फैले सह्याद्रि बाघ परियोजना और चांदोली राष्ट्रीय उद्यान की तरफ पर्यटकों का ध्यान खींचने के लिए विशेष योजना बनाई गई थी. लेकिन, कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखकर यह लागू नहीं हो सकी.
राज्य के मुख्य वनाधिकारी महादेव मोहिते बताते हैं, ‘इस समय जंगल में पर्यटकों के आने का प्रश्न ही नहीं, लेकिन विभाग द्वारा कोरोना महामारी से बाघ सहित जंगल के सभी प्राणियों को बचाने के लिए जंगल के भीतर विभिन्न स्थानों पर बाड़ लगाई जाएगी.’
इस क्षेत्र के जंगल में वन कर्मचारियों सहित वन मजदूरों की संख्या 138 से अधिक है. ये सभी कुल 46 क्वार्टर में रहते हैं. एक क्वार्टर में एक वन रक्षक और दो वन मजदूरों के रहने की व्यवस्था है.
सांगली जिले में खुन्दलापुर सहित पांच गांव जंगल क्षेत्र में हैं. यहां मनुष्यों की आबादी बहुत अधिक न होने के बावजूद मनुष्यों द्वारा कई तरह की गतिविधियां संचालित होती रहती हैं. कोरोना संक्रमण को देखते हुए मनुष्यों के लिए यहां विशेष सतर्कता संबंधी निर्देश जारी किए गए हैं.
वनरक्षक अजिंक्या रोड़े बताते हैं कि यहां मनुष्य और जानवरों के बीच संघर्ष कम ही होता है.
आजिंक्या आगे बताते हैं, ‘जंगल के इस इलाके में मनुष्य कई तरह के प्राणियों के साथ कई पीढ़ियों से रह रहे हैं. इस स्थिति और मनुष्य व जंगली जानवरों के बीच के संबंधों को देखते हुए कोई सख्त पाबंदी नहीं लगाई जाती.’
लेकिन, इस बार संक्रमण जंगल के प्राणियों में न फैले और वे सुरक्षित रहें, इसके लिए कुछ रोक और बाड़ के घेरे लगाने जा रही है. बाघों की कम होती संख्या को देखते हुए बाड़ लगानी अधिक जरुरी हो गई है.
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जलाशय संबंधी रोक
इस जंगल के भीतर मनुष्य और जानवरों को पानी पीने के लिए कई जलाशय हैं. इन स्थानों पर कई वन कर्मचारियों के अलावा स्थानीय रहवासी पानी पीने को जाते हैं. वहीं, खास तौर से रात में कई जानवर भी जलाशयों में पानी पीते हैं.
लेकिन, इस बार राज्य वन विभाग ने स्थानीय रहवासियों को इन जलाशयों से दूर रहने के सख्त निर्देश दिए हैं. इसके तहत स्थानीय रहवासियों को इन जलाशयों में हाथ-पैर धोने की मनाही की गई है.
क्वार्टरों को बांस की बाड़ से घेरा
जैसा की कहा गया है कि इस जंगल में राज्य वन-विभाग के कुल 46 क्वार्टर हैं. इसके अलावा अनेक रहवासी इलाकों में लोग भोजन करने के बाद बचा भोजन और खाने की अन्य सामग्री घरों से बाहर जानवरों के लिए छोड़ते हैं. लेकिन, अब वनाधिकारियों द्वारा मनुष्य और जानवरों के बीच इस प्रकार के संबंध को फिलहाल रोकने का निर्णय लिया गया है और प्राणियों को तमाम तरह के भोज्य पदार्थों देने पर रोकने के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं.
यही वजह है कि वन विभाग द्वारा हर क्वार्टर के चारों तरफ बांस की बाड़ लगाई जाएगी. इसके अलावा हर वन कर्मचारी को मास्क और सैनीटाइजर वितरित किए जाएंगे.
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स्थानीय रहवासियों को भी मास्क व सैनिटाइजर
राज्य के मुख्य वनाधिकारी महादेव मोहिते बताते हैं कि कोरोना संक्रमण मनुष्यों से जंगल के प्राणियों में न फैले इसके लिए वन-विभाग किसी तरह की कोई चूक नहीं करना चाहती.
वे कहते हैं, ‘हमारी योजना है कि इस मौके पर स्थानीय रहवासियों को काम मिले. इसके अलावा हम जंगल परिसर में लोगों को भी मास्क और सैनिटाइजर बांट रहे हैं. जंगल में कोरोना न फैले, इसके लिए सख्ती जरूरी है.’
बफर जोन में बाघ
महादेव मोहिते कहते हैं, ‘गए कुछ दिनों से खासकर बाघों के अस्तित्व को बचाने के लिए उपयोजना बनाई गई है. हमें जानकारी मिली है कि बफर जोन की सीमा में पिछले दिनों बाघ घूमे हैं. डीएनए जांच के बाद यह पुष्टि हुई कि सतारा जिले से प्राप्त मल-मूत्र बाघों का ही है. कहने का मतलब इस जंगल में बड़ी संख्या में बाघ हो सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)