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Friday, 1 November, 2024
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महाराष्ट्र में एक साल से कोविड से जंग लड़ रहे हैं उद्धव ठाकरे के चुने हुए 11 शीर्ष डॉक्टर

मृत्यु दर को नीचे लाने से लेकर, ऑक्सीजन तथा दवाओं के तर्कसंगत उपयोग तक, ये 11 डॉक्टर पिछले एक साल से, कोविड को मात देने की कोशिश में, महाराष्ट्र सरकार की सहायता कर रहे हैं.

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मुम्बई: ऐसे में जब महाराष्ट्र कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है, तो डॉक्टरों और प्रशासकों के लिए, सहायता उनकी उंगलियों पर रहती है- 11 फोन नंबर जिन्हें वो दिन या रात, किसी भी समय डायल करके, किसी भी विशेष केस या सामान्य उपचार प्रोटोकोल के बारे में, विशेषज्ञ मार्गदर्शन ले सकते हैं. इनमें से किसी भी नंबर पर, कॉल करने या मैसेज करने से, गारंटी के साथ तुरंत जवाब, और विस्तृत सलाह मिलती है.

इन नंबरों के पीछे हैं डॉक्टर्स- अलग अलग पृष्ठभूमि और विशेषज्ञता के- जो एक टास्कफोर्स का हिस्सा हैं, जिसे पिछले साल अप्रैल में, तब गठित किया गया था, जब पहली कोविड के सामने पूरा महाराष्ट्र, विशेषकर मुम्बई घुटनों पर आ गई थी.

ये 11 डॉक्टर्स, जिनके मोबाइल नंबरों से बनी हेल्पलाइन को, मेडिकल और प्रशासनिक बिरादरी में साझा किया गया है, मुम्बई के कुछ सबसे जाने माने और प्रतिष्ठित वरिष्ठ फिज़ीशियंस हैं, जिन्हें महाराष्ट्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने, महाराष्ट्र कोविड टास्कफोर्स के लिए ख़ुद चुना था.

उसके बाद से, उन्होंने कोविड मृत्यु दर को, नीचे लाने में राज्य की सहायता की है, और संकट से निपटने के लिए टेस्टिंग तथा उपचार के, गतिशील प्रोटोकोल्स तैयार करने में मदद की है.

ऑक्सीजन के तर्कसंगत इस्तेमाल से लेकर, कोविड इलाज में काम आने वाली, रेमडिसिविर जैसी दवाओं के बेतहाशा इस्तेमाल में कमी तक, इन डॉक्टरों ने महाराष्ट्र में, बीमारी के इलाज में अहम रोल अदा किया है. उनकी व्यक्तिगत और सामूहिक विशेषज्ञता से, राज्य को ऐसे मरीज़ों को संभालने में सहायता मिली है, जो दूसरी बीमारियों से भी ग्रसित हैं.

ये टीम हफ्ते में एक बार वर्चुअल बैठक करती है, जिसमें वो सबसे बड़ी और तात्कालिक चिंताओं पर चर्चा करती है, और फिर अपने सुझाव राज्य सरकार को, एक एडवाइज़री के रूप में भेज देती है.

इसके अलावा, वो ज़िला प्रशासनों के संपर्क में भी रहते हैं, और ज़रूरत पड़ने पर, मरीज़ों का इलाज कर रहे स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का, मार्गदर्शन भी करते हैं.

रायगढ़ ज़िले की कलेक्टर निधि चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, कि उन्होंने ख़ुद कई बार टास्कफोर्स से संपर्क किया है, और उन्हें हमेशा तुरंत जवाब मिला है.

उन्होंने कहा, ‘कुछ डॉक्टर्स इलाज के बाद स्टिरॉयड्स लिख रहे थे, इसलिए मैंने डॉ शशांक जोशी (टास्कफोर्स सदस्य) से संपर्क करके पूछा, कि क्या ऐसा करना सही है. उन्होंने तुरंत और विस्तार से जबाव दिया था. पहले उन्होंने केस हिस्ट्री, लक्षण, और दूसरी बातें पूछीं, और फिर अपनी राय दी. हमारे ज़िला सिविल सर्जन ने भी कई बार, मार्गदर्शन के लिए वीडियो कॉनफ्रेंसिंग द्वारा, टास्कफोर्स से संपर्क स्थापित किया है’.

टास्कफोर्स का सबसे बड़ा योगदान ये रहा है, कि इसने ‘साक्ष्यों पर आधारित एक उपचार प्रोटोकोल’ तैयार किया है, जो ज़रूरत के हिसाब से विकसित होता रहता है. इसने ‘छह मिनट पैदल का टेस्ट’ लोकप्रिय कराया है, जिससे किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल मापकर, तय किया जा सके कि उसका क्या इलाज करना है. साथ ही ‘वायरस का पीछा’ करने की नीति शुरू की, जिसके तहत घर-घर जाकर, लोगों के ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल की जांच की गई.


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महाराष्ट्र के स्पेशल 11

टास्कफोर्स के सदस्यों में सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों का अनुभव, और अलग अलग विधाओं का विशेष ज्ञान होता है, जिससे ऐसे मरीज़ों को संभाला जा सकता है, जिन्हें दूसरी बीमारियां भी होती हैं.

इस टीम के प्रमुख डॉ संजय ओक हैं, जो पिछले नवंबर तक प्रिंस अली ख़ान अस्पताल में चीफ एग्ज़ीक्यूटिव थे. डॉ ओक निगम-संचालित किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल के डीन भी रहे हैं, और उन्होंने 23 साल तक बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के साथ काम किया है. केईएम अस्पताल के डॉ प्रवीण बांगड़ टास्कफोर्स के संयोजक हैं.

पैनल के अन्य सदस्य हैं फोर्टिस अस्पताल में इंटेंसिव केयर के डायरेक्टर डॉ राहुल पंडित; पीडी हिंदूजा नेशनल हॉस्पिटल में इमर्जेंसी मेडिसिन के हेड, डॉ ख़ुसरो बाजान; मुम्बई सेंट्रल के वोकार्ड अस्पताल में, क्रिटिकल केयर के डायरेक्टर डॉ केदार तोरस्कर; और सायन अस्पताल में इंटेंसिव केयर स्पेशलिस्ट, डॉ नितिन कार्णिक.

टीम में कुछ संक्रामक रोग विशेषज्ञ भी हैं, जैसे जसलोक अस्पताल के डॉ ओम श्रीवास्तव, और इंटर्नल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ वसंत नागवेकर. फिर डॉ शशांक जोशी हैं जो लीलावती अस्पताल में डायबिटॉलजिस्ट तथा एंडोक्रिनॉलजिस्ट हैं; डॉ ज़रीर उदवाड़िया हैं जो एक कंसल्टेंट चेस्ट फिज़ीशियन हैं, और हिंदूजा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, तथा ब्रीच कैण्डी अस्पताल से जुड़े हैं, तथा डॉ ज़हीर विरानी ,हैं जो प्रिंस अली ख़ान अस्पताल में गुर्दा रोग विशेषज्ञ हैं.

ये टास्क फोर्स मुख्य सचिव सीताराम कुंते को रिपोर्ट करती है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, डॉ पंडित ने कहा कि अलग अलग विशेषज्ञता वाले डॉक्टर रखने से, बहुत सहायता मिली है.

उन्होंने कहा, ‘आपको एक बहु-विशेषता वाली टास्कफोर्स की ज़रूरत होती है, ताकि हर कोई एक अलग विशेषज्ञता लेकर आए, जिससे एक सार्थक प्रोटोकोल तैयार किया जा सके…अगर मैं कहूं कि टास्क फोर्स में 100 प्रतिशत आमराय होनी चाहिए, तो वो उचित नहीं होगा, क्योंकि हर चीज़ के गुण-दोष होते हैं, और उनपर चर्चा होनी चाहिए. दुर्भाग्य से चिकित्सा में, दो और दो कभी चार नहीं होता’.

हर सोमवार को, टास्कफोर्स दो-तीन घंटे के लिए वीडियो कॉनफ्रेंस करती है, जिसमें महामारी से उठने वाले, सबसे ताज़ा और तात्कालिक चिकित्सा मुद्दों पर चर्चा की जाती है. हर मीटिंग के बाद डॉ ओक, उस बातचीत को संक्षिप्त रूप देकर, एक एडवाइज़री तैयार करते हैं, जिसे राज्य सरकार को सौंप दिया जाता है.

टास्कफोर्स ज़िला कलेक्टरों, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों, स्थानीय नागरिक अधिकारियों, और स्थानीय स्तर पर डॉक्टरों के साथ, नियमित रूप से संवाद करती है.

डॉ जोशी ने कहा, ‘हर रविवार हम जो एडवाइज़री जारी करते हैं, उसका संबंध ऐसे मुद्दों से होता है, जिनका राज्य उस समय सामना कर रहा होता है. मसलन, तीन सप्ताह पहले, जब ऑक्सीजन की ज़बर्दस्त क़िल्लत थी, तो हमने एक एडवाइज़री जारी करके बताया, कि ऑक्सीजन का तर्कसंगत इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है’.

पैनल में हर किसी को अपने काम की अहमियत का अहसास है, और बीमारी या व्यक्तिगत झटकों ने, उन्हें अपने फर्ज़ से दूर नहीं किया है.

डॉ बाजान ने कहा, ‘पिछले एक साल में किसी एक सदस्य ने भी, एक से अधिक मीटिंग छोड़ी नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी गाइडलाइन्स को सभी डीएमईआर केंद्रों (चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय) को भेजा गया है. अनगिनत ज़ूम बैठकों के ज़रिए, हमने पूरे महाराष्ट्र के युवा डॉक्टरों के साथ चर्चा करके, उनका मार्गदर्शन किया है. उन्हें जब भी किसी केस पर बात करनी हुई, हम हमेशा उन्हें रास्ता दिखाने के लिए तैयार रहे हैं’.

डॉ बाजान ने आगे कहा, ‘हम ग्यारह में से सात डॉक्टरों को, अलग अलग समय पर कोविड हो चुका है. हम में से कुछ ने अपने प्रिजनों को भी खोया है. लेकिन, हमने और पूरी स्वास्थ्य सेवा बिरादरी ने, इसके लिए अपनी जान दांव पर लगा रखी है’.


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मृत्यु दर को कम करना

जब टीम नई नई बनाई गई थी, तो 11 डॉक्टरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती, महाराष्ट्र की मृत्यु दर कम करने की थी, जो उस समय क़रीब 7.5 प्रतिशत थी. जून की शुरूआत तक वो इसे, तीन प्रतिशत से कुछ ऊपर तक लाने में कामयाब हो गए. इसके लिए उन्होंने उपयुक्त इलाज का मैन्युअल तैयार किया, ताकि ऐसी चीज़ों का फैसला किया जा सके, जैसे मरीज़ को अस्पताल में कब भर्ती करना है, होम क्वारंटीन कब कराना है, और अन्य बीमारियों वाले मरीज़ों का इलाज कैसे करना है.

डॉ जोशी ने कहा इस समय मृत्यु दर, उससे कहीं कम है जो महामारी के शुरूआती दिनों में थी, क्योंकि डॉक्टर इलाज के प्रोटोकोल को बेहतर ढंग से समझते हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में, जहां अभी तक 49,39,553 कोविड मामले दर्ज किए जा चुके हैं, मृत्यु दर फिलहाल 1.5 प्रतिशत है.

डॉ जोशी ने कहा, ‘कोविड देखभाल में हमने एक बात को समझ लिया है, कि हमें शुरू में ही ऐसे मरीज़ों की शिनाख़्त कर लेनी चाहिए, जिन्हें अस्पताल भर्ती की ज़रूरत है. (इसके लिए) हम छह-मिनट पैदल टेस्ट को, लोकप्रिय बनाने में कामयाब हो गए’.

इस टेस्ट में कोविड लक्षण वाले मरीज़ों को, एक समतल सतह पर बिना रुके, छह-मिनट सीधे पैदल चलना होता है, और चलने से पहले तथा बाद में, उनके ऑक्सीजन स्तर को नापा जाता है. छह मिनट चलने के बाद, अगर किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर नीचे नहीं आता, तो उसे स्वस्थ माना जाता है.

उपचार प्रोटोकोल को समय समय पर अपडेट किया जाता है.

डॉ बाजान ने कहा, ‘कोविड एक अनदेखा ख़तरा था, और हमने साक्ष्य-आधारित गाइडलाइन्स का पालन किया है. हम हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन तथा एज़िथ्रोमाइसीन जैसी दवाओं के इलाज से आगे बढ़ गए, और उन्हें प्रोटोकोल से पूरी तरह बाहर कर दिया. ये विदेशी दवाएं काम नहीं करतीं. जो चीज़ काम करती है, जल्दी सूचना देना और जल्दी अस्पताल भर्ती’.

डॉक्टरों ने ये भी सलाह दी है, कि रेमडिसिविर कोई जीवन-रक्षक दवा नहीं है, और इसका ‘बेतहाशा और तर्कहीन’ इस्तेमाल बंद होना चाहिए.

टास्कफोर्स के दिशा-निर्देशों ने किस तरह सहायता की है, इस बारे में बात करते हुए, नाशिक के ज़िला कलेक्टर सूरज मंधारे ने कहा, ‘उन्होंने हमें बिल्कुल सही मानक बताए, कि ऑक्सीजन कैसे देनी है, और रेमडिसिविर किस समय देनी है. कभी कभी मरीज़ मांग करने लगते हैं, और प्रशासक के नाते अगर हम संसाधनों के इस्तेमाल को, तर्कसंगत करने की कोशिश करते हैं, तो हम पर सवाल उठते हैं, और आलोचना की जाती है, कि हमारे पास कोई चिकित्सा विशेषज्ञता नहीं है. लेकिन जब टास्कफोर्स गाइडलाइन्स तय करती है, तो हम उनका हवाला देकर कह सकते हैं, कि ये एक ज्ञानी और सम्मानित व्यक्ति है, जो ये मानक बता रहा है’.

मंधारे ने कहा कि 15-20 दिन में एक बार, उन्हें टास्कफोर्स से बातचीत करने का मौक़ा मिलता है.

टास्कफोर्स के ज़िम्मे ये भी काम था, कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की गाइडलाइन्स को, महाराष्ट्र की घनी आबादी वाले शहरों की ज़रूरत के अनुकूल बनाया जाए.

मसलन, डॉ जोशी ने कहा, कि टास्कफोर्स ने ‘वायरस का पीछा’ करने की नीति तैयार करने में भी सहायता की है. उन्होंने कहा, ‘हमने घर-घर जाकर ऑक्सीजन स्तर चेक किए, और उन लोगों को अलग कर लिया, जिनके सैचुरेशन लेवल कम थे’. ये नीति पिछले साल सितंबर में, सीएम उद्धव ठाकरे के ‘मेरा परिवार, मेरी ज़िम्मेदारी’ अभियान के तहत शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य महाराष्ट्र की पूरी आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगाना था.

ग्यारह डॉक्टरों के फोन दिन हो या रात, हर समय बजते रहते हैं, और डॉक्टर तथा सरकारी अधिकारी मार्गदर्शन चाहते रहते हैं, कि किसी केस विशेष में क्या किया जाए.

मदद के लिए कुछ कॉल्स बिल्कुल बुनियादी और छोटी होती हैं, जबकि कुछ में लंबे संवाद की ज़रूरत होती है, लेकिन आख़िर में, जैसाकि टास्कफोर्स के सदस्यों ने कहा, कि डॉक्टरों को बस ये आश्वासन चाहिए होता है, कि एक अप्रत्याशित वायरस से निपटने में, वो सही फैसले ले रहे हैं.

डॉ पंडित ने कहा, ‘मसलन, एक मामले में, एक गर्भवती महिला सांस नहीं ले पा रही थी, और वो वेंटिलेटर सपोर्ट पर थी. मैंने एक सी-सेक्शन का सुझाव दिया, और मां तथा बच्चा दोनों ठीक हो गए. ऐसे फैसले लेना मुश्किल होता है, और दूसरी तरफ के डॉक्टर को, बस थोड़ी पुष्टि की ज़रूरत होती है’.

‘आख़िर में, सारा मामला बस ज़िंदगियों को बचाने का है. ज़ितना ज़्यादा से ज़्यादा आप कर सकें’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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