नई दिल्ली: केंद्र सरकार भले ही दावा कर रही हो कि उसने किसानों की खुशहाली के लिए बहुत काम किए हैं लेकिन किसानों में असंतोष बरकरार है. पिछले दो वर्षों से ज्यादा समय से चल रहा किसानों का आंदोलन नये पड़ाव पर पहुंच गया है. बीते दिनों मुंबई में 30 हजार से ज्यादा किसानों ने महाराष्ट्र में प्रदर्शन करके सरकार की किसान नीतियों के प्रति आक्रोश जताया था. अब यह आंदोलन देश की राजधानी में होगा.
आगामी 29 और 30 नवंबर को दिल्ली में 200 से अधिक किसान संगठन शामिल होंगे और दिल्ली में ‘किसान मुक्ति मार्च’ निकाला जाएगा. इसके लिए किसानों का हुजूम 28 को ही दिल्ली पहुंचने लगेगा. इस दो दिवसीय आंदोलन में 50 हजार से लेकर एक लाख तक किसानों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है.
स्वराज इंडिया की ओर से कहा गया है कि किसान आंदोलन का दिल्ली मार्च 29 नवंबर की सुबह शुरू होगा. किसानों का जत्था 25 किलोमीटर पैदल चलकर रामलीला मैदान पहुंचेगा.
क्यों नाराज हैं किसान?
यह पहली बार है जब देश के 206 किसान संगठन एक साथ मिलकर आंदोलन कर रहे हैं. जून, 2017 में मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान पुलिस ने गोली चलाई थी जिसमें छह किसानों की मौत हो गई थी. यह आंदोलन कृषि उपजों के उचित मूल्य की मांग, कृषि कर्ज माफी, किसानों की आय बढ़ाने, मंडी में खरीद व्यवस्था पारदर्शी बनाने की मांग को लेकर था.
इसके साथ ही महाराष्ट्र में भी ऐसा ही आंदोलन हुआ था. तमिलनाडु के किसान इसके काफी पहले से दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे थे. मंदसौर गोलीबारी के बाद 175 किसान संगठन एक मंच पर आ गए और देश के लगभग सभी राज्यों में किसानों ने आंदोलन छेड़ दिया. पिछले साल यानी नवंबर, 2017 में दिल्ली में ये सभी किसान संगठन एकत्र हुए थे और जंतर मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया था.
अब इन संगठनों के साथ कुछ और संगठन आ गए हैं. अब इनकी संख्या 206 हो गई है. सरकार दावा कर रही है कि उसने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए तमाम कदम उठाए हैं और किसानों को इसका फायदा मिल रहा है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, नीम कोटेड यूरिया, धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि को सरकार जोरशोर से प्रचारित कर रही है. लेकिन किसान संगठनों का दावा है कि सरकार के ये दावे झूठे हैं. सरकार का कृषि बजट भले ही बढ़ गया हो, लेकिन इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है.
क्या हैं किसानों की मांगें?
इस आंदोलन बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे किसान नेता बीएम सिंह का कहना है कि ‘नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसानों से बड़े बड़े वादे किए थे. लेकिन वास्तव में उन्होंने किसानों को छला है. किसान की आय बढ़ाने का दावा झूठा है. किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. हम सालों से यही मांग कर रहे हैं कि किसानों का कर्ज माफ हो, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और फसलों का उचित दाम सुनिश्चित किया जाए.’
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा, ‘सरकार ऐसी गाय है जो पांच साल में एक बार दूध देती है और वह दूध देने का सीजन आ गया है. अगर इस बार गाय ने दूध नहीं दिया तो फिर पांच साल आप लात खाएंगे.’
उन्होंने कहा, ‘हम संसद के सामने दो मांगें रखेंगे कि किसानों को उनकी उपज का दाम गारंटी के साथ मिले. दूसरा, किसानों को कर्ज से मुक्त किया जाए. जाती हुई संसद के सामने हम ये दो मांग रखेंगे. अगर यह नहीं होता है तो किसान सरकार को सबक सिखाने का काम करेंगे.’
यादव ने बताया, ’29 और 30 के आंदोलन में हमारी मुख्य मांग होगी कि संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया जाए और संसद के सामने जो दो बिल लंबित हैं उनको पास किया जाए. पहला कानून है कि किसान को उसकी फसल का वाजिब दाम गारंटी के साथ मिले. दूसरा, किसान को कर्ज से एक झटके में मुक्त किया जाए.’
देश भर से आएंगे किसान
किसान संगठनों के मुताबिक, दिल्ली-चलो के नारे साथ हजारों की संख्या में किसान हिस्सा लेने की तैयारी कर चुके हैं. कर्ज़ मुक्ति और फ़सल के वाजिब दाम की मांग के साथ इस आंदोलन को ऐतिहासिक बनाने का संकल्प लिया गया है. उत्तर, पूर्व और दक्षिण भारत से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं. किसानों का एक विशाल जत्था दिल्ली के बिजवासन से 29 नवंबर की सुबह रामलीला मैदान के लिए पैदल मार्च के लिए रवाना होगा. करीब 25 किलोमीटर की इस यात्रा को 6 घंटे में पूरी की जाएगी.
जय किसान आंदोलन संयोजक अभीक साहा ने बताया कि स्वराज इंडिया और जय किसान आंदोलन के किसान आंदोलनकारी बंगाल, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, हिमाचल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों से आएंगे. इसमें चाय बागानों, तंबाकू, आलू, ज्वार-बाजरा के भी किसान शामिल होंगे.
इस आंदोलन में 50 हजार से लेकर एक लाख किसानों के शामिल होने की संभावना है जिनमें 10 हजार से ज्यादा महिलाएं होंगी. इनमें कई विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता भी भाग लेंगे.