नई दिल्ली: हिंदी-उर्दू उपन्यासकार, कथा-सम्राट, स्त्रीवादी लेखक इन नामों के जरिए प्रेमचंद को बहुत सारे लोग जानते होंगे, लेकिन इसके इतर वे निजी जीवन में कैसे थे? इस तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान गया और उनके इस पहलू को उजागर करने का हक केवल उनकी पत्नी को ही था.
प्रेमचंद की लेखनी में जितनी धार रही उतनी ही उनके जीवन में भी रही और अपनी रचनाओं के पात्रों के साथ जितना न्याय लेखक ने किया उसी प्रकार से घर में अपनी पत्नी के साथ भी किया.
प्रेमचंद की दोस्त और जीवनसंगिनी शिवरानी देवी ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘‘प्रेमचंद घर में’’ में बहुत बेबाकी से नारीवादी चित्रण को गढ़ा है. उन्होंने कथाकार सम्राट के निजी जीवन और अपनी प्रिय रानी के प्रति दिखाए गए सम्मान को पूरी स्वतंत्रता से सबके सामने पेश किया है. वो समय जब औरतों को घर में रखा जाता था, प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने और लेखन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.
शिवरानी लिखती हैं, ‘‘मानवता की दृष्टि से भी यह व्यक्ति कितना महान था, कितना विशाल था, यही बताना इस किताब का उद्देश्य है और यह बताने का अधिकार जितना मुझे है, उतना और किसी को नहीं, क्योंकि उन्हीं के शब्दों में हम दोनों ‘एक ही नाव के यात्री’ थे…दुख और सुख में मैं हमेशा उनके साथ, उनके बगल में थी.’’
अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि शिवरानी के नाम से प्रकाशित रचनाओं के असली लेखक मुंशी प्रेमचंद थे और एक विरोधाभास जारी करते हुए प्रेमचंद ने कहा भी था कि शिवरानी देवी एक योद्धा थीं और उनकी कहानियां उनकी भावना से ओत-प्रोत हैं.
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रानी की नज़र में मुंशी जी
शिवरानी देवी का विवाह उनके पिता द्वारा आयोजित एक समारोह में 1905 में मुंशी प्रेमचंद से हुआ था. वे उनकी दूसरी पत्नी थीं. मुंशी प्रेमचंद ने कायस्थ बाल विधवा उद्धारक पुस्तिका (कायस्थ बाल विधवाओं के उत्थान के लिए पुस्तिका) में एक विज्ञापन देखा, जिसके बाद उन्होंने शादी के लिए प्रस्ताव रखा.
वे लिखती हैं, ‘‘मेरे विधवा होने के बाद मेरी शादी के इश्तिहार को पढ़ कर आपने मेरे पिताजी को खत लिखा और कहा, ‘मैं शादी करना चाहता हूं’ आप समाज के बंधनों को तोड़ना चाहते थे.’’
प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने अपनी किताब ‘कलम का सिपाही’ में लिखा भी है, ‘‘तभी संयोग से एक रोज़ नवाब की नज़र किसी अख़बार में, शायद बरेली के आर्यसमाजी शंकरलाल श्रोत्रिय के पर्चे में छपे हुए एक इश्तहार पर पड़ी जिसमें लिखा था कि मौजा सलेमपुर डाकखाना कनवार ज़िला फतेहपुर के कोई मुंशी देवीप्रसाद अपनी बाल-विधवा कन्या का विवाह करना चाहते हैं और जो सज्जन चाहें इस विषय में उक्त पते पर पत्र-व्यवहार कर सकते हैं.’’
दरअसल, प्रेमचंद ने एक बाल विधवा से विवाह किया था और अलबत्ता ये दोनों का ही दूसरा विवाह था.
यह बात ज़ाहिर है कि हम जिस दुनिया में रहते हैं, वहां हर क्षेत्र में पुरुषों का ही वर्चस्व है. सदियों तक साहित्य में स्त्रियों को लिखने की इज़ाज़त नहीं थी और प्रेमचंद ने हमेशा अपनी पत्नी के लेखन को बढ़ावा दिया है और शिवरानी ने अपनी दूसरी शादी के बाद लेखन के प्रति प्रेम विकसित किया.
वे कहती हैं कि प्रेमचंद जिस विषय को चाहते दिल से चाहते थे, ‘‘वे मेरे थे तो साहित्य के भी थे.’’ प्रेमचंद को जितना प्रेम लेखन-पठन से था, उससे कहीं ज्यादा शिवरानी देवी से भी था.
प्रेमचंद जब दौरे पर रहते तो रानी को अपनी रचनाएं पढ़ कर सुनाया करते थे, जिससे साहित्य के प्रति उनकी रुचि बढ़ने लगी. प्रेमचंद हमेशा शिवरानी से सामाजिक कार्यक्रमों में साथ चलने के लिए कहते थे, मगर वे मना कर देती थीं.
वे लिखती हैं, ‘‘जब ‘साहस’ शीर्षक से चांद पत्रिका में मेरी पहली कहानी छपी तो आपने उसे देखा और बोले — अच्छा, अब आप भी कहानी-लेखिका बन गईं? फिर आप बोले कि कहानी भी लिखी तो पुरुषों पर कटाक्ष! सारे दफ्तर में लोग शोर मचा रहे थे.’’
जब शिवरानी ने कहानी को मज़ाक बताया तो प्रेमचंद ने कहा, ‘‘पुरुष अपनी खोपड़ी सहला रहे हैं तुम मज़ाक बतला रही हो.’’ शिवरानी की कहानियों का अनुवाद किसी और भाषा में होने पर सबसे अधिक प्रसन्नता प्रेमचंद को ही होती थी.
इसी तरह प्रेमचंद के बारे में कोई आलोचना छपती थी तो वे उसे सबसे पहले अपनी दोस्त को सुनाते थे और अच्छी आलोचना को खुशी से पढ़ने पर पत्नी को बुरा भी लगता था.
वे कहती हैं, ‘‘आप पर कोई आलोचना निकलती तो मुझे उसे सुनाते. उनकी अच्छी आलोचना प्रिय लगती. जब कभी कोई कड़ी आलोचना निकलती, तब भी वे उसे बड़े चाव से पढ़ते. मुझे तो बहुत बुरा लगता.’’
शिवरानी देवी ने 1929 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान 56 महिलाओं के साथ एक विरोध प्रदर्शन का भी नेतृत्व किया था और राजनीतिक संघर्षों में उनकी सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप उन्हें कई मौकों पर जेल जाना पड़ा — एक तथ्य जिस पर उनके पति को गर्व था!
समानता, गुस्सा और प्यार
प्रेमचंद की तबीयत को लेकर जितनी चिंतित शिवरानी नींद में भी रहती थीं. उतना ही जागने पर अपने पति की बुरी आदतों को लेकर सख्त रहती थीं. इसका ज़िक्र उन्होंने बेदार साहब के यहां प्रेमचंद के शराब पीने वाले किस्से में किया है. शिवरानी ने बताया कि जब उल्टी होने पर उन्होंने उठ कर पानी भी नहीं दिया और न दरवाज़ा खोला और उसी दिन से प्रेमचंद ने पत्नी की बात का मान रखते हुए पीना छोड़ दिया.
आज़ादी के पूर्व भी पुरुष प्रधान समाज में अन्य लोगों की तरह प्रेमचंद अपनी पत्नी पर हर काम के लिए निर्भर न हो कर उनकी सेवा और खुशियों का ध्यान रखा करते थे. जब-जब वे बीमार रहती, प्रेमचंद खुद बच्चों को उठाते, स्कूल के लिए तैयार करते और यह सब इतना धीरे करते कि उनकी प्रिय रानी की नींद न टूट जाए.
अपने पति की रचनाओं के मर्म को समझ जब वे रोने लगती तो प्रेमचंद किसी न किसी बहाने कमरे में आ कर सोने तक उनका सिर दबाया करते थे.
प्रेमचंद स्त्री-पुरुष समानता के पक्षधर केवल अपनी कहानियों में ही नहीं असल जीवन में भी थे.
शिवरानी बताती हैं कि किसी भी जलसे से आने के बाद प्रेमचंद अपने गले का हार उनके गले में डाल दिया करते. उनके मना करने पर तर्क देते, ‘‘मैं तो समझता हूं कि किसी बोझ को बिना तुम्हारे सहारे के नहीं उठा सकता, फिर मैं तो तुमसे अलग अपने को समझता ही नहीं. मैं तो यहां तक समझता हूं कि कोई पुरुष बिना स्त्रियों के कुछ भी नहीं कर सकता. जब तक स्त्रियों का हाथ किसी काम में न लगेगा, तब तक कोई भी काम पूरा नहीं पड़ सकता.’’
एक पत्नी के नज़रिए से प्रेमचंद उनकी महत्वाकांक्षाओं को समझ उसकी कद्र करते हुए भी दिखाए पड़ते हैं.
प्रेमचंद के बारे में कईयों ने लिखा है, लेकिन प्रिय रानी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व के साथ जैसा न्याय किया है, उतना शायद ही किसी और रचना में किया जा सकेगा.
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