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Sunday, 3 November, 2024
होमदेश'हर साल 1.7 लाख टन कचरा'; ICMR-AIIMS की स्टडी ने बताया कि तंबाकू से पर्यावरण को होता है बड़ा नुकसान

‘हर साल 1.7 लाख टन कचरा’; ICMR-AIIMS की स्टडी ने बताया कि तंबाकू से पर्यावरण को होता है बड़ा नुकसान

मंगलवार को स्टडी 'द एनवायरनमेंटल बर्डन ऑफ टोबैको प्रोडक्ट्स वेस्टेज इन इंडिया' को जारी किया गया. यह आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च और एम्स जोधपुर द्वारा किया गया था

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नई दिल्ली: तंबाकू उत्पाद न केवल उन लोगों के लिए हानिकारक हैं जो उनका उपयोग करते हैं बल्कि यह पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है. इससे सालाना 1,70,331 टन कचरे का उत्पादन हो रहा है. इसकी जानकारी 17 राज्यों में किए गए एक स्टडी से मिली है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर के साथ मिलकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (NICPR) द्वारा किए गए स्टडी से पता चलता है कि तंबाकू के सभी प्रकार,  सिगरेट और बीड़ी से लेकर चबाने वाले तंबाकू तक, बड़े पैमाने पर कचरे का उत्पादन करते हैं.

‘द एनवायरनमेंटल बर्डन ऑफ टोबैको प्रोडक्ट्स वेस्टेज इन इंडिया’ नामक यह अध्ययन मंगलवार को दिल्ली में जारी किया गया.

रिसर्च के दौरान लेखकों ने सिगरेट के 70 ब्रांड, बीड़ी के 94 ब्रांड और धुंआ रहित तंबाकू के 58 ब्रांड खरीदे और उनमें इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक, कागज, पन्नी और फिल्टर के सकल और अलग-अलग वजन को ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 के डेटा के साथ मिलाया.

रिसर्च जनवरी और अप्रैल 2022 के बीच 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 33 जिलों में आयोजित किया गया था, जिसमें शोधकर्ताओं ने प्रत्येक जिले में तीन विक्रेताओं के यहां का दौरा किया था.

GATS-2 के अनुसार, भारत में 267 मिलियन तंबाकू उपयोगकर्ता हैं.

एम्स जोधपुर में स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसिन के डॉक्टर और स्टडी के ऑथर पंकज भारद्वाज ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘सिगरेट, बीड़ी, या धुंआ रहित तंबाकू उत्पादों की खपत के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है. कोई भी पूरी तरह से पर्यावरण के बारे में नहीं सोच रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘हम कभी भी प्लास्टिक और पन्नी की मात्रा के बारे में बात नहीं करते हैं जो ये उद्योग (तंबाकू) उपयोग कर रहे हैं. इसलिए हमने इसे आगे बढ़ाने के बारे में सोचा. यहां तक कि जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धूम्रपान से संबंधित नहीं हैं, वे भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पहली बार, एक स्टडी पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सिगरेट बट्स के बारे में बात करने से परे है.’

भारद्वाज ने कहा, ‘हमने यह पता लगाने की कोशिश की कि इन उत्पादों की पैकेजिंग किस तरह की है और यह पर्यावरण पर कितना बुरा प्रभाव डाल रही है.’

अपने निष्कर्ष में, स्टडी के ऑथर बताते हैं कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण कानूनों के कार्यान्वयन पर एक मजबूत नीति के अलावा, तम्बाकू उत्पादों के निर्माताओं पर एक वित्तीय शुल्क लगाया जाना चाहिए.


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स्टडी में क्या मिला

स्टडी में पाया गया है कि तंबाकू उत्पादों द्वारा उत्पन्न कुल कचरों में 73,500.66 टन प्लास्टिक था, जोकि 77 मिलियन बाल्टियों के भार के बराबर था.

इसने यह भी कहा गया है कि तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग के लिए सालाना 22 लाख पेड़ काटे जाते हैं. तंबाकू उत्पादों द्वारा उत्पन्न वार्षिक कागज अपशिष्ट 89,402.13 टन है.

अध्ययन में कहा गया है कि पैकेजिंग से उत्पन्न 6,073.47 टन गैर-बायोडिग्रेडेबल एल्यूमीनियम पन्नी कचरे से तैंतीस बोइंग 747 विमान बनाए जा सकते हैं और उससे निकलने वाले फिल्टर के अपशिष्ट से नौ मिलियन स्टैंडर्ड आकार के टी-शर्ट बनाया जाता है.

अध्ययन में पाया गया कि उत्पन्न होने वाले कुल कचरे का 68 प्रतिशत धुआं रहित तंबाकू उत्पादों से होता है. बाकी में से 24 फीसदी सिगरेट का उत्पादन होता है और बाकी बीड़ी से होता है.

यह पहली बार नहीं है कि तंबाकू उद्योग पर्यावरण प्रदूषण के लिए जांच के घेरे में आया है.

2007 में, जयपुर स्थित इंडियन अस्थमा केयर सोसाइटी ने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसमें धूम्रपान रहित तंबाकू उत्पादों के प्लास्टिक पाउच पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. विशेष रूप से याचिका में तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग पर निशाना साधा गया था.

मामले के याचिकाकर्ता वीरेंद्र सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्लास्टिक पैकेजिंग की समस्या उस समय बहुत बड़ी नहीं लगती थी, लेकिन लंबी अवधि में यह एक बड़ी समस्या है. इसलिए हमने पैकेजिंग को निशाना बनाया. हर तरफ प्लास्टिक की थैलियां बिखरी रहती थीं और उस समय किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हाईकोर्ट ने अपने फैसले में प्लास्टिक पैकेजिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. अंकुर गुटका मामले के रूप में जाना जाने वाला यह मामला एक मील का पत्थर था- इसने न केवल तंबाकू कंपनियों को कागज की पैकेजिंग पर स्विच करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि इसके परिणामस्वरूप, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2012 में धूम्ररहित तंबाकू के हानिकारक प्रभाव पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई.’

समिति ने सभी प्रकार के धूम्ररहित तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की.

सिंह ने कहा, ‘प्रतिबंध के तुरंत बाद, पाउच की मात्रा काफी कम हो गई. कागज के पाउच में, धुआं रहित तंबाकू कंपनियां स्वाद को बनाए रखने में सक्षम नहीं थीं, इसलिए चबाने वाले तंबाकू की खपत भी कम हो गई. भले ही प्लास्टिक पाउच कचरे की मात्रा कम हो गई हो लेकिन यह एक चिंता का कारण बना हुआ है.’

भारद्वाज ने बताया कि पर्यावरण विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए जल्द ही अध्ययन को आगे बढ़ाया जाएगा.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम बोर्ड पर अन्य हितधारकों को आमंत्रित करने के बारे में सोच रहे हैं जो अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए पर्यावरण पर काम कर रहे हैं. इन हितधारकों की मैपिंग की जा रही है.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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