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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशTMC का ताजमुल बंगाल में शासन-सत्ता न होने का प्रतीक है, गांव वाले तालिबानी कोर्ट से खुश भी हैं और डरते भी हैं

TMC का ताजमुल बंगाल में शासन-सत्ता न होने का प्रतीक है, गांव वाले तालिबानी कोर्ट से खुश भी हैं और डरते भी हैं

टीएमसी के दबंग और रॉबिन हुड की छवि वाले ताजमुल इस्लाम द्वारा एक जोड़े को पीटने की घटना ने बंगाल के अंदरूनी इलाकों में ‘इंसाफ सभा’ की व्यवस्थित क्रूरता पर प्रकाश डाला है.

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चोपड़ा (उत्तर दिनाजपुर): महिला ने अपने विवाहेत्तर प्रेम को पांच साल तक छिपाए रखा. लेकिन जब पश्चिम बंगाल के लक्ष्मीपुर गांव में लोगों को पता चला, तो इंसाफ सभा नाम की स्थानीय पंचायत बुलाई गई. प्रेमी युगल को सजा मिलनी ही थी. गांव वाले यह देखने के लिए जमा हो गए कि सभा ने उसके प्रेम को ‘गंदा कृत्य’ और ‘अपराध’ करार दिया. फिर उसके नेता, तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय दबंग ताजमुल ‘जेसीबी’ इस्लाम ने उसे जमीन पर गिरा दिया, उसके गुप्तांगों पर लात मारी, उसके बाल खींचे और बेरहमी से डंडों से पीटा.

उत्तर दिनाजपुर जिले के चोपरा ब्लॉक में खूंखार ताजमुल इस्लाम की अदालत में इस तरह का तत्काल ‘न्याय’ कई सालों से किया जा रहा है. यह और अन्य कंगारू कोर्ट या स्थानीय पंचायतें पश्चिम बंगाल के एक ऐसे अशासित क्षेत्र में काम करती हैं, जहां ग्रामीण स्थानीय पार्टी के गुंडों से डरते हैं, पुलिस असहाय होकर इस खारिज करने को मजबूर है, राजनेता बगलें झांकते हैं और इस चुप्पी के लिए हर कोई दोषी है.

चोपरा में जन्मे और पले-बढ़े एक हार्डवेयर दुकान के मालिक ने कहा, “हमें बोलने की अनुमति नहीं है. हम तटस्थ रहते हैं और अपना व्यवसाय करते हैं, अपनी आजीविका कमाते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. हम विरोध नहीं करते हैं, हम बोलते भी नहीं हैं, भले ही हमें पता हो कि क्या हो रहा है.” यहां के कई अन्य लोगों की तरह, वह भी ताजमुल इस्लाम या इंसाफ सभाओं के बारे में बात करने से हिचक रहे थे और नाम न बताने का अनुरोध कर रहे थे.

लेकिन 28 जून को एक ग्रामीण ने अपना सेल फोन निकाला और पिटाई की घटना को रिकॉर्ड कर लिया. वीडियो वायरल हो गया, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया और इस्लाम व तीन अन्य को गिरफ़्तार कर लिया गया. एक दिन बाद ही सबिता बर्मन नाम की एक महिला के बारे में एक और रिपोर्ट सामने आई, जिसने जलपाईगुड़ी जिले में विवाहेत्तर संबंध की वजह से किए गए इसी तरह के हमले के बाद आत्महत्या कर ली.

वायरल वीडियो का स्क्रीनशॉट जिसमें टीएमसी के दबंग नेता ताजमुल इस्लाम एक महिला और एक पुरुष को पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं. वीडियो से पता चलता है कि उनका गुस्सा महिला पर ज्यादा फूटा है.

इन घटनाओं के कारण ममता बनर्जी सरकार पर क्रूर एक्स्ट्रा-ज्युडिशियस “जेसीबी न्याय” को स्वीकार करने और नागरिकों की सुरक्षा करने में विफल रहने के आरोप में आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया है. पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को संदेशखाली मामले से जोड़ते हुए राज्यसभा में संबोधित किया था, जिसमें एक टीएमसी नेता पर ग्रामीणों को आतंकित करने और महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया था.

पीएम ने सीएम ममता बनर्जी पर कटाक्ष करते हुए कहा, “यहां तक ​​कि जो लोग खुद को प्रगतिशील महिला नेता मानते हैं, उनकी जुबान भी बंद है. उनकी राजनीति सेलेक्टिव है.” इस बीच, टीएमसी ने पीएम के भाषण के इस हिस्से को हटाने के लिए राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखा है.

मुझे इन सभाओं के बारे में कुछ नहीं पता, लेकिन मैं जानती हूं, मैंने कोई अपराध नहीं किया है. क्या प्यार में पड़ना अपराध है?

– एम.एन., चोपरा में पिटाई की शिकार महिला

ममता ने अभी तक इस मामले पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन टीएमसी नेता कुणाल घोष ने एक्स पर पोस्ट किया कि किसी भी राजनेता को इस कृत्य का “बचाव” करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. वीडियो को लगातार देखे जाने के बाद उन्होंने लिखा, “मूक दर्शक भी जिम्मेदार हैं और उन पर भी मामला दर्ज होना चाहिए.”

इस्लामपुर, जिसके कार्यक्षेत्र में चोपरा आता है, में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के में सहायक लोक अभियोजक जनार्दन प्रसाद सिंह ने कहा, “ग्रामीण एक से अधिक कारणों से पुलिस से बचना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि गांव का शक्तिशाली व्यक्ति जल्दी न्याय दिला सकता है और इसलिए वे ऐसी इंसाफ सभाओं पर भरोसा करते हैं, लेकिन यह पहली बार है जब हमने ऐसा वीडियो देखा है और इस तरह का केस लड़ रहे हैं.”

विडंबना यह है कि सार्वजनिक रूप से तालिबानी सजा पाने के एक सप्ताह बाद, 35 वर्षीय महिला एम.एन. कहती हैं कि वह अब तक की जिंदगी में इस वक्त सबसे खुश है. उनका सीक्रेट रोमांस अब सामने आ चुका है और उन्होंने खुद को सबसे ज्यादा डराने वाली बात का सामना कर लिया है. अब वह चैन की सांस ले सकती हैं. अब वह अपने प्रेमी, उसकी पत्नी और उनके चार बच्चों के घर में एक छोटे से कमरे में रहती हैं. वह बस यही कहती है, “प्यार अंधा होता है”.

पीड़ितों के घर के बाहर ड्यूटी पर तैनात पुलिस कांस्टेबल | फोटो: श्रेयसी डे | दिप्रिंट

वह 28 जून की घटनाओं को भूल जाना चाहती है. उस दिन उसे और उसके साथी को शाम 5 बजे ताजमुल इस्लाम ने इंसाफ सभा में बुलाया था, जहां वह अब रहती है, उससे कुछ ही मीटर की दूरी पर. उसने कहा कि उसे इस बात पर शक था, लेकिन उसे लगा कि इंसाफ सभा उसे उसके पति से तलाक दिलाने में मदद करेगी ताकि वह दोबारा शादी कर सके.

उसने दिप्रिंट से कहा, “मेरे पति ने मुझे घर से निकाल दिया है. उसे पता चला कि मैं हर समय उसके दोस्त से फोन पर बात कर रही थी. क्या प्यार में पड़ना कोई अपराध है?” उसका बड़ा बेटा सिक्किम में प्रवासी मजदूर है और उसकी बेटी 11वीं कक्षा में पढ़ती है.

एमएन ने दावा किया कि उसे उस आदमी के बारे में कुछ नहीं पता जिसने उसे पीटा या उस वीडियो के बारे में कुछ नहीं पता. अधिकांश ग्रामीणों की तरह, उसे भी समाचारों से पता चला कि वह अब सुर्खियों में है और उसका सार्वजनिक रूप से कोड़े मारा जाना राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया है.

उसने कहा, “मुझे इन सभाओं के बारे में कुछ नहीं पता, लेकिन मुझे पता है, मैंने कोई अपराध नहीं किया है.”

मुसीबत के समय, ग्रामीण मदद के लिए जेसीबी के दरवाजे पर लाइन लगाते हैं. वह एक दयालु बदमाश की तरह है, एक तरह का रॉबिन हुड, गुंडा और संरक्षक का मिश्रण, जिससे डर भी लगता है और विश्वास भी पैदा होता है.


यह भी पढ़ेंः ममता का हिंदू कार्ड, मोदी का तंज और अस्पताल का वादा — उत्तर बंगाल की लड़ाई में TMC और BJP के दांव पेंच


भय बनाम प्रशंसा

लक्ष्मीपुर में डर इतना गहरा है कि ताजमुल इस्लाम के खिलाफ बोलना लगभग पाप करने जैसा है. हर किसी के पास ऐसी कहानियां हैं जो उन्होंने गांव के बाज़ारों में देखी या सुनी हैं, लेकिन कोई भी विस्तार से बताने की हिम्मत नहीं करता. वे उसे जेसीबी कहते हैं – खूंखार बुलडोजर मशीन. वह क्षेत्र में बेलगाम, गैर-जिम्मेदार शक्ति का पर्याय है.

लक्ष्मीपुर बाज़ार में, इंसाफ सभा का वीडियो ऑनलाइन आने के बाद पुलिस की गश्त जारी है. रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवान यह सुनिश्चित करने के लिए पहरा दे रहे हैं कि कोई दंगा न भड़के या राजनीतिक झड़प न हो.

पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 354 (महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करने के बाद 30 जून को इस्लाम को गिरफ़्तार किया गया था. वह अब वीडियो से पहचाने गए तीन अन्य लोगों के साथ पुलिस हिरासत में है.

फिर भी, भय का माहौल पसरा हुआ है.

क्षेत्र के विपक्षी राजनेताओं का आरोप है कि दबंग न केवल दंड देते हैं, बल्कि स्थानीय स्कूलों, चाय बागानों, पेट्रोल पंपों और रेत ट्रांसपोर्टरों से भी वसूली करते हैं.

चोपरा में 28 जून को जिस स्थान पर यह घटना हुई | फोटो: श्रेयशी डे | दिप्रिंट

हालांकि, अधिकांश स्थानीय निवासी इसी बात का संकेत देते हैं कि यह डर केवल जेसीबी और उसके गुर्गों द्वारा पैदा किया गया है.

उदाहरण के लिए, दीघा कॉलोनी के जीर्ण-शीर्ण प्राथमिक विद्यालय में, प्रधानाध्यापिका के अनुसार, महामारी के दौरान सभी दरवाजे, लाइट और पंखे चोरी हो गए, लेकिन उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया.

उन्होंने निराशा भरी मुस्कान के साथ कहा, “आप जानते हैं कि सरकारी संपत्ति से चोरी करने की शक्ति किसके पास हो सकती है. अगर हम पार्टी के साथ सहयोग करते हैं, तो हमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. छात्र मुख्य रूप से दोपहर का भोजन खाने आते हैं और फिर घर चले जाते हैं. हमने कई बार अधिकारियों से शिकायत की है, लेकिन हमें कोई मदद नहीं मिली है.”

गांव में कहीं और, जेसीबी के प्रति भय और प्रशंसा के बीच अंतर करना मुश्किल है. कुछ लोग उसे नायक मानते हैं. उनका मानना है कि ताजमुल ने कुछ भी गलत नहीं किया और उसे जेल में नहीं होना चाहिए.

वह अपराधी नहीं है. वह हमारे लिए भगवान है. वह उस गांव में जोड़े को सबक सिखाने गया था. अल्लाह शादी तोड़ने की इजाजत नहीं देता. वह हर जरूरतमंद की मदद करता है, वह पुलिस की भी मदद करता है

-चोपरा निवासी

गोद में एक बच्चा लिए एक महिला ने कहा, “ताजमुल कोई अपराधी नहीं है. वह हमारा नायक है और वह हर जरूरतमंद की मदद करता है.”

चोपरा के डांगपुर गांव में जन्मा और पला-बढ़ा 27 वर्षीय इस्लाम नौ भाई-बहनों में सबसे छोटा है और उसने केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई की है. उनकी बहन समीना ने दिप्रिंट को बताया कि उसे खाने का बहुत शौक है और उसके बड़े भाई-बहन उसके लिए उसका पसंदीदा बीफ लेग कुर्बान कर देते थे. उन्होंने दावा किया कि खाने के प्रति इसी प्यार की वजह से उसे यह उपनाम मिला.

उसने कहा, “जब वह किशोर था, तब से उसे जेसीबी कहा जाता था और यह इसलिए पड़ गया क्योंकि वह काफी बड़ा था. टीएमसी नेता भी मजाक में उसे जेसीबी कहते थे. मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि यह नकारात्मक लगता था.”

जेसीबी का घर, जहां वह अपनी मां, पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था, छप्पर की छतों के बीच ऊंचा खड़ा है – गांव की गरीबी की तुलना में यह लगभग महल जैसा है. हाल ही में पेन्ट किया गया और रंगीन, एक ऊंची चारदीवारी, स्प्लिट एसी यूनिट और निर्माणाधीन बड़े लोहे के गेट के साथ, यह उस जगह की समृद्धि को दिखाता है जहाँ कई लोग नंगे पैर चलने के आदी हैं और एस्बेस्टस शीट के नीचे रहते हैं. अब गेट बंद हैं और खिड़कियां बंद हैं.

जिस घर में ताजमुल इस्लाम अपनी मां, पत्नी और दो बेटों के साथ रहता है, वह इलाके के अन्य घरों की तुलना में काफी अच्छा है | फोटो: श्रेयशी डे | दिप्रिंट

दांगपुर गांव में जेसीबी की बदौलत एक लाइट पोस्ट है, जो इसे अपने और भी कमज़ोर पड़ोसियों से अलग बनाती है.

जेसीबी के भाई के साथ खड़े एक अन्य ग्रामीण ने समर्थन जताते हुए कहा, “वह अपराधी नहीं है. वह हमारे लिए भगवान है. वह उस जोड़े को सबक सिखाने के लिए उस गांव में गया था. अल्लाह विवाह तोड़ने की इजाज़त नहीं देता. वह जरूरतमंदों की मदद करता है, वह पुलिस की भी मदद करता है और अब पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है.”

मुसीबत के समय, ग्रामीण मदद के लिए जेसीबी के दरवाजे पर लाइन लगाते हैं. वह एक दयालु बदमाश की तरह है, एक तरह का रॉबिन हुड, गुंडा और अभिभावक का मिश्रण, जो डर और विश्वास दोनों को प्रेरित करता है.

समीना ने कहा, “मेरा भाई शादियों के दौरान ग्रामीणों की 5 लाख रुपये की मदद करता है. वह हमेशा एक कॉल पर उपलब्ध रहता है. वह एक नेता है और यहां हर कोई उसका सम्मान करता है. उसकी मदद के बिना, टीएमसी चुनाव नहीं जीत पाती. विधायक ने हमारे पक्ष में बात की है, लेकिन पुलिस उसे क्यों नहीं छोड़ रही है? हम उसे जल्द से जल्द वापस चाहते हैं.”

इस्लाम को चोपरा विधायक हमीदुल रहमान का करीबी बताया जाता है, हालांकि नेता ने खुद को इससे दूर कर लिया है.

इस बीच, समीना अपने भाई के लौटने पर उसकी पसंदीदा डिश बनाने की योजना बना रही है. उसकी मां को नींद नहीं आती है, और उसके छोटे बेटे, जो दोनों लोअर प्राइमरी स्कूल में पढ़ते हैं, उसके बारे में पूछते रहते हैं.

मामले में शामिल एक व्यक्ति ने कहा कि उसने अपने जीवन में इतना जघन्य अपराध कभी नहीं देखा.

उस व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “अशिक्षा के कारण गांव के लोग पारिवारिक विवादों को इस तरह से निपटाना पसंद करते हैं. हमें नहीं पता था कि ऐसी सज़ा दी जाती है और मैंने ऐसा पहली बार देखा है. यह बहुत ही गलत है, यह अच्छी बात है कि वीडियो वायरल हो गया और अपराधी सलाखों के पीछे है.”

गांव में आम सहमति इन स्थानीय पंचायतों के पक्ष में है, जिसमें सामूहिक रूप से गुस्सा महिला पर है.

शक्ति और प्रभाव

एम.एन. और उसके प्रेमी को मुख्य सड़क पर पीटा गया, जिसका वीडियो एक निर्जन, निर्माणाधीन घर की पहली मंजिल की छत से रिकॉर्ड किया गया. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि वे उस व्यक्ति का पता नहीं लगा पाए हैं जिसने वीडियो बनाया था.

लक्ष्मीपुर निवासी हुशारा बेगम, जिनकी पास में ही एक दुकान है, ने कहा कि उन्होंने मदद के लिए चीख-पुकार सुनी और बाहर निकलकर देखा कि जोड़े को पीटा जा रहा है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मुझे किसी इंसाफ सभा के बारे में पता नहीं था. मैंने शोर सुना और बाहर निकल गई. मुझे नहीं पता कि उन्हें क्यों पीटा जा रहा था और मैं हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी. मैंने दुकान बंद की और घर चली गई.”

लगातार हो रही बारिश की वजह से अपराध स्थल लगभग धुल सा गया है, केवल छोटे-छोटे गड्ढे ही बचे हैं और ग्रामीण इस बारे में विस्तार से नहीं बता रहे हैं.

न्याय के इस तरीके में न तो नैतिकता है और न ही तर्क. सभाओं को सत्ता और पुलिस प्रशासन का समर्थन प्राप्त है और वे बदसूरत चुनावी राजनीति की अभिव्यक्ति हैं.

-नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. संजय रॉय

पुलिस अपनी जांच के लिए काफी हद तक वायरल वीडियो पर निर्भर है. उनकी सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम ने सबसे पहले वीडियो देखा, जिसके बाद इसकी पुष्टि की गई, उसके बाद अब तक इस्लाम सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस अभी भी वीडियो में दिख रहे और लोगों को पकड़ने के लिए रात में छापेमारी कर रही है. लेकिन गांव में आम सहमति इन स्थानीय पंचायतों के पक्ष में है, और सामूहिक रूप से वीडियो में दिख रही महिला की ओर है.

चोपरा की रहने वाली शबनम बेगम ने कहा, “उसने इस गांव को शर्मसार कर दिया है, उसका चेहरा देखना भी पाप है. हमारे गांव में छोटी लड़कियां हैं. वे इससे क्या सीखेंगी? उसकी वजह से हमने यहां इंसाफ सभा की. अगर वे गांव में वापस आएं और हंगामा करें तो क्या होगा? वह उस घर में कैसे रह रही होगी? पहली पत्नी की कल्पना करें, उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो गई. एक महिला की वजह से दो शादियां बर्बाद हो गईं,”

यहां तक कि चोपरा के विधायक हमीदुल रहमान ने भी तृणमूल कांग्रेस को जेसीबी से अलग करते हुए विवादित रूप से कहा कि जिस महिला को पीटा जा रहा था, वह “बुरी” थी. उन्होंने यह भी दावा किया कि लोकसभा चुनाव में टीएमसी को इस क्षेत्र से 1 लाख वोटों की बढ़त मिली थी.

चोपरा के विधायक हमीदुल रहमान | X स्क्रीनग्रैब

उत्तर दिनाजपुर इकाई के सचिव और माकपा नेता अनवारुल हक ने आरोप लगाया, “यहां चोपरा में, अगर आप टीएमसी के अलावा कोई और राजनीतिक झंडा भी उठाते हैं, तो आपको चिह्नित किया जाएगा और प्रताड़ित किया जाएगा. जेसीबी जैसे अपराधी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बाहुबल का काम करते हैं. वे सभी तरह के असामाजिक काम करते हैं.”

चोपरा में टीएमसी का राजनीतिक दबदबा इतना ज्यादा है कि उसने पिछले साल पंचायत चुनाव निर्विरोध जीत लिया था. जहां तक ​​जेसीबी का सवाल है, वह दिसंबर 2023 में चोपरा में पंचायत नामांकन दाखिल करते समय ब्लॉक डेवलेपमेंट ऑफिस के पास की गई माकपा नेता की हत्या सहित कम से कम 12 अन्य मामलों में जमानत पर बाहर था.

इस बीच, 8 जुलाई को पश्चिम बंगाल पुलिस ने भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय और माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम पर मानहानि, अश्लीलता, महिला की गरिमा का ठेस पहुंचाने और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जब एमएन ने उनके खिलाफ कोड़े मारने का वीडियो प्रसारित करने के लिए शिकायत दर्ज कराई.

इसके मद्देनजर, मालवीय ने एक्स पर लिखा: “ममता बनर्जी बलात्कार, यौन उत्पीड़न और अब सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने के पीड़ितों का इस्तेमाल शेख शाहजहां और ताजमुल इस्लाम (उर्फ जेसीबी) जैसे अपराधियों को बचाने और राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए करती हैं.”

सीपीआई-एम ने ममता सरकार पर “टीएमसी अपराधियों” को बचाने के लिए सलीम को निशाना बनाने का भी आरोप लगाया है.

कैसे शुरू हुईं इंसाफ सभाएं

इंसाफ सभाएं केवल सजा देने के लिए नहीं हैं, बल्कि बाहुबलियों के लिए विभिन्न अपराधों के लिए एकत्र किए गए ‘जुर्माने’ को जेब में डालकर धन कमाने का एक तरीका भी हैं, ऐसा सीपीआई-एम के हक ने आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, “वे इस पैसे का अधिकांश हिस्सा अपने पास रख लेते हैं, लेकिन कभी-कभी इसका एक हिस्सा ग्रामीणों को भी दिया जाता है ताकि वे खुश रहें और किसी भी तरह का विद्रोह न करें, यहां तक ​​कि पंचायत सदस्य भी अब इंसाफ सभाओं में शामिल हो रहे हैं, जिसमें शुरू में विवादों का भाग्य तय करने के लिए बुजुर्ग ग्रामीणों को शामिल किया जाता था.”

इंसाफ या सलीशे सभाओं की शुरुआत सीमित पुलिस और कानूनी पहुंच वाले क्षेत्रों में विवादों को सुलझाने के लिए गैर-न्यायिक तंत्र के रूप में हुई थी. हालांकि, नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. संजय रॉय के अनुसार, समय के साथ ये राजनीतिक औजार बन गए हैं.

अगर मुझे अपनी पत्नी से कोई समस्या नहीं थी, तो पड़ोसी कौन होते थे जो इस पर आपत्ति जताते?

-तपश बर्मन, जिनकी पत्नी सबिता पर हमला हुआ

उन्होंने कहा, “इस तरह की सभाएं अंग्रेजों के देश पर शासन करने से बहुत पहले की हैं. ऐसे लोग थे जो आत्मनिर्भर थे, जिनके पास जमीन थी या जो ऊंची जाति के थे. आदिवासियों के पास विवाह विवाद, भूमि विवाद सुलझाने और दंड लगाने के लिए अपनी पंचायत थी. इसका एक धार्मिक पहलू भी था, लेकिन इसमें सामाजिक और सांस्कृतिक वैधता भी थी.”

ये इंसाफ सभाएं अंततः सत्ता का प्रदर्शन करने के लिए मंच बन गई हैं, जो मतदाताओं के अति-रूढ़िवादी वर्गों को आकर्षित करती हैं. रॉय ने आरोप लगाया, “न्याय के इस रूप में न तो नैतिकता है और न ही तर्क. सभाओं को सत्ता और पुलिस प्रशासन का समर्थन प्राप्त है, और वे बदसूरत चुनावी राजनीति की अभिव्यक्ति हैं. सत्तारूढ़ पार्टी पूरी तरह से उन पर निर्भर है.”

प्यार, माफी, मौत

एमएन ने कोड़े मारने के दिन जो सलवार-कमीज पहनी थी, उसे धोया गया है और उसके तकिए के पास अच्छी तरह से तह करके रख दिया गया है, लेकिन उसके बाकी सभी कपड़े उसके ससुराल में हैं. वह वापस लौटने की योजना नहीं बना रही है और उसने अपने साथी की पत्नी से कुछ कपड़े उधार लिए हैं. पुलिस और महिला सिविक वॉलंटियर्स उसके कमरे के बाहर बैठे हैं, साथ ही दो नए लगाए गए सीसीटीवी कैमरे भी हैं जो लगातार बिजली कटौती के कारण शायद ही कभी काम करते हैं. बाहर निकलना अभी भी सुरक्षित नहीं है.

लेकिन यह एमएन को भविष्य के बारे में उत्साहित होने से नहीं रोकता है.

एमएन अपने प्रेमी और उसकी पत्नी के साथ एक ही घर में रहती है. एक पतली एस्बेस्टस शीट उनके रहने के स्थानों को अलग करती है | फोटो: श्रेयशी डे | दिप्रिंट

उसने कहा, “मैं तब बाहर जाऊंगी जब मुझे तलाक के लिए अदालत जाना होगा ताकि मैं दोबारा शादी कर सकूं.” उसने कक्षा 8 तक पढ़ाई की और 12 साल की उम्र में उसकी शादी हो गई. प्यार में पड़ना उसका खुद का फैसला था.

उसने कहा, “हम दावत करेंगे. मैं इस्लामपुर (निकटतम टाउनशिप) में शादी करना चाहती हूं,”

एमएन मुस्कुराई जब उसका साथी उसे देखने के लिए कमरे में दाखिल हुआ. उसने उसे वह मोबाइल फोन दिया जिससे सालों पहले उनका कनेक्शन हुआ था और फिर अपनी पत्नी के पास वापस चला गया.

एमएन ने कहा, “पांच साल पहले जब मैंने उसे पहली बार देखा था, तब वह हमारा घर बना रहा था. फिर हम बात करने लगे. उसने मेरा फोन नंबर मांगा और हम हमेशा फोन पर बात करते थे. मुझे नहीं पता, मुझे उससे बात करना अच्छा लगता था और हम प्यार में पड़ गए. उसने कहा कि अगर हम शादी नहीं करेंगे तो वह मर जाएगा और इसलिए मैंने अपना घर उसके लिए छोड़ दिया. अब यह मेरा नया घर है.”

ऐसा लगता है कि उसके लिए चीजें ठीक हो गईं, भले ही उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी. उसने गांव द्वारा दी गई सजा के साथ समझौता कर लिया है.

लेकिन कुछ लोगों की हिम्मत जवाब दे जाती है और अपमान सहना बहुत मुश्किल होता है.

जलपाईगुड़ी के निकटवर्ती जिले में फुलबारी निवासी सबिता बर्मन अपने पड़ोसी सागर रॉय के साथ भाग गई. एक हफ्ते बाद, 29 जून को, जब वह घर लौटना चाहती थी, तो पड़ोसियों ने धमकी दी कि अगर उसका पति तपश उसे वापस लेकर आया तो वे घर जला देंगे.

तपश ने दिप्रिंट को बताया, “पंचायत सदस्यों के सामने सबिता के साथ मारपीट की गई. इसके बाद उसने शौचालय का उपयोग करने की अनुमति ली, लेकिन जब वह कुछ देर तक वापस नहीं आई, तो मैं भागकर अंदर गया. वह फर्श पर पड़ी थी और उसने कीटनाशक पी लिया था. जब हम अस्पताल पहुंचे, तो उसे मृत घोषित कर दिया गया.”

सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने “आत्महत्या का मामला” डिटेक्टिव डिपार्टमेंट को सौंप दिया है और सबिता के पति और भाई द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर चार लोगों को गिरफ्तार किया है.

परेशान तपश ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, “हम 25 साल तक साथ रहे. जब हमारी शादी हुई, तब मैं 16 साल का था और वह सिर्फ 14 साल की थी. अगर मुझे अपनी पत्नी से कोई समस्या नहीं थी, तो पड़ोसी कौन होते थे जो आपत्ति करते?”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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