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Tuesday, 5 November, 2024
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उल्टा पड़ सकता है आईआईटीज का टाइम्स वर्ल्ड रैंकिंग्स का बहिष्कार: टाइम्स हायर एजुकेशन

सात आईआईटीज़ ने अप्रैल में टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में हिस्सा नहीं लेने का फैसला लिया था.

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नई दिल्ली: भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान का अप्रैल में, इस वर्ष की टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में हिस्सा नहीं लेने का फैसला, रैंकिंग्स के चीफ नॉलेज ऑफिसर फिल बैटी के अनुसार, विश्व स्तर पर भारत के लिए उल्टा पड़ सकता है.

एक ई-मेल इंटरव्यू में बैटी ने दिप्रिंट को बताया: ‘किसी भी विरोधी व्यावसायिक रैंकिंग्स के मुक़ाबले, ज़्यादा यूनिवर्सिटियां दि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स पर भरोसा कर रही हैं, इसलिए हमारा मानना है कि आईआईटीज़ की ग़ैरमौजूदगी, व्यक्तिगत संस्थानों के सुधार और विश्व स्तर पर, भारत की पॉजिशन और विज़िबिलिटी पर उल्टा असर डाल सकती है.’

टाइम्स रैंकिंग्स दुनियाभर में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए, दो सबसे प्रतिष्ठित रैंकिंग्स में से एक हैं- दूसरी है क्वाकुरेली सिमण्ड्स (क्यूएस). दि पत्रिका की ओर से प्रकाशित इन रैंकिंग्स में दुनिया के बेहतरीन संस्थानों को कई मानदंडों पर रैंक किया जाता है, जैसे रिसर्च आउटपुट, एकेडमिक प्रतिष्ठा आदि. वर्ल्ड रैंकिंग्स के अलावा दि पत्रिका, एशिया रैंकिंग्स, यूरोप टीचिंग रैंकिंग्स, जापान यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स, यूएस कॉलेज रैंकिंग्स और इम्पैक्ट कॉलेज रैंकिंग्स भी निकालती है.

लेकिन भारत सरकार ने दि और क्यूएस जैसी वर्ल्ड रैंकिंग्स की आलोचना की है और मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि इनमें अवधारणा पर बहुत ज़ोर दिया जाता है.

भारत की अपनी संस्थागत रैंकिंग्स एनआईआरएफ जारी करते हुए उन्होंने कहा, ‘टाइम्स और क्यूएस रैंकिंग अवधारणा की बुनियाद पर हमारे संस्थानों को कम आंकते हैं. मैं उससे सहमत नहीं हूं. हमारे संस्थान बहुत रिसर्च कर रहे हैं, हमें अवधारणा के आधार पर जज नहीं किया जा सकता’.

भारतीय संस्थानों ने पहले भी दावा किया है कि एनआईआरएफ रैंकिंग दि और क्यूएस से बेहतर है और हाल ही में एचआरडी मंत्रालय ने एनआईआरएफ को अतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की बात की है.

कथित पारदर्शिता की कमी

आईआईटीज़ ने दि (THE) द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे मानदंडों में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए रैंकिंग के बहिष्कार का ऐलान कर दिया.

एक साझा बयान में संस्थानों ने कहा था, ‘आईआईटीज़ अगले वर्ष अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगे, अगर टाइम्स हायर एजुकेशन, रैंकिंग प्रक्रिया के मानदण्डों और पारदर्शिता से उन्हें संतुष्ट कर पाते हैं’.

लेकिन, बैटा ने दि के सिस्टम का ये कहते हुए बचाव किया: ‘दि को अपनी पारदर्शी कार्यप्रणाली पर गर्व है और हम मानते हैं कि मार्केट में मौजूद किसी दूसरी भी दूसरी विश्व यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स के मुक़ाबले, हम सक्रियता के साथ ज़्यादा पारदर्शिता दिखाते हैं.’

बैटी ने बताया कि दि की ‘मेट्रिक्स ख़ासतौर ये सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई है कि वो किसी यूनिवर्सिटी की आउटपुट के पूरे प्रदर्शन को पकड़ती है’, और पारदर्शिता सुनिश्चित कराने के लिए वो अपनी वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स को प्राइस वॉटरहाउस कूपर्स से ऑडिट कराती है.


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भारतीय संस्थानों की रिकॉर्ड संख्या

भारतीय संस्थानों के बारे में आमतौर पर बात करते हुए, बैटी ने कहा, ‘भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों के अंदर साफ तौर पर बहुत भारी भूख है कि अपने सेक्टर की पहुंच और अपील को मज़बूती देने के लिए, वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विज़िबिल और जवाबदेह हों’.

उन्होंने कहा, ‘मुझे ये देखकर ख़ुशी है कि 2021 के लिए हमारी आगामी वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में, जो शुरू के सितम्बर में रिलीज़ होने वाली हैं, रिकॉर्ड संख्या में भारतीय संस्थान शामिल हैं. हमारा मानना है कि भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित आईआईटीज़ की ग़ैरमौजूदगी एक बड़ी चूक है’.

उन्होंने ये भी कहा, ‘भारत के पास एक बड़ा अवसर है, कि दि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स जैसी मज़बूत इंटरनेशनल रैंकिंग्स के ज़रिए, अपने उच्च शिक्षा के क्षेत्र की क्वालिटी में सुधार लाए, और राष्ट्रीय, रीजनल और विश्व स्तर पर सफलता की कहानी बने’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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