मधेपुरा: ‘डॉक्टर साहब आ जाता तो तुरंत हमको जान बच पाता. इलाज नहीं हो रहा है. डॉक्टर साहब हमरा कम से कम राहत करी.’
यह गुहार है कोविड-19 पीड़ित 45 वर्षीय सरकारी स्कूल शिक्षक लक्ष्मी राम की जो बिहार में सबसे बड़े राज्य-वित्त पोषित अस्पतालों में से एक जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जेएनकेटीएमसीएच) में एक बेड पर लेटे हुए तड़प रहे हैं. वह 12 मई को पड़ोसी जिले सहरसा से आकर मधेपुरा के इस अस्पताल में भर्ती हुए थे. 800 करोड़ रुपये की लागत से बने इस अस्पताल का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले साल मार्च में किया था.
लक्ष्मी राम, जिनके ऑक्सीजन लेवल में सुधार के लिए साथ में मौजूद परिवार के चार सदस्य उनका शरीर लगातार रगड़ रहे हैं, ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि उन्होंने तो बचने की सारी उम्मीदें छोड़ दी हैं.
बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर जेएनकेटीएमसीएच का उद्घाटन राज्य की स्वास्थ्य सेवा उस स्तर तक मजबूत करने के नीतीश सरकार के वादे के तौर पर किया गया था जिसके बाद राज्य के लोगों को इलाज के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
कोविड की पहली लहर में जेएनकेटीएमसीएच ने एक समर्पित कोविड अस्पताल के तौर पर काम किया था.
जिला प्रशासन के मुताबिक, जेएनकेटीएमसीएच में 102 बेड ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ और 50 पल्स ऑक्सीमीटर के साथ हैं और 19 वेंटिलेटर और 19 आईसीयू बेड हैं.
अस्पताल राज्य के उत्तर पूर्व में कोसी-सीमांचल क्षेत्र के सात बड़े जिलों के लिए एक जीवनरेखा की तरह है. ग्रामीण क्षेत्रों के बीच इसकी ऊंची इमारतें, कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था वाला बड़ा परिसर उम्मीदों की रोशनी से भर देता है. 12 मई को अस्पताल के 83 ऑक्सीजन बेड भरे हुए थे.
हालांकि, अस्पताल की तीसरी और चौथी मंजिल, जहां क्रमशः मध्यम और गंभीर कोविड रोगियों का इलाज होता है, में भर्ती मरीज कर्मचारियों की तरफ से उपेक्षा किए जाने की बात बता रहे थे.
दिप्रिंट ने जब अस्पताल का दौरा किया तो चौथी मंजिल पर भर्ती मरीजों के परिजनों ने कहा कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, सहायता के लिए बार-बार कॉल करने के बावजूद कोई नहीं आता. बेदम होती जा रही मां को देखने के लिए बुलाने के घंटे भर बाद तक कोई नर्स वार्ड में नहीं पहुंची थी.
हालांकि, अस्पताल इन आरोपों से इनकार करता है. लेकिन यह स्वीकार जरूर करता है कि कर्मचारियों के संक्रमण की चपेट में आने से अस्पताल कर्मी दशहत में जरूर हैं. अधिकारी इससे इनकार करते हैं कि मरीजों को खुद उपकरण इस्तेमाल करने के लिए छोड़ दिया जाता है. जिला प्रशासन की तरफ से भी इसी तरह का जोरदार खंडन किया गया.
हालांकि, नाम न छापने की शर्त पर अस्पताल के कर्मचारियों ने मरीजों की बातों का समर्थन किया.
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‘कई घंटे से नर्सों को बुला रहा हूं’
चौथी मंजिल पर कई अटैंडेंट अपने मरीजों के साथ इंतजार करते दिखे, कुछ उन्हें खिलाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं कुछ उनकी मालिश भी कर रहे थे.
बुरी तरह हांफ रही एक महिला के बेटे ने कहा कि उसकी जान निकली जा रही है.
सांस लेने में मदद मिलने की उम्मीद के साथ उन्होंने अपनी मां की पीठ रगड़ते हुए कहा, ‘देखिये उनकी हालत क्या है. मैं घंटों से नर्सों को बुला रहा हूं. वे मरीजों को देखने बिल्कुल भी नहीं आती हैं.’
इस रिपोर्टर को वहीं छोड़कर वह फिर डॉक्टर के वार्ड में चला गया, जहां उसने एक नर्स से हाथ जोड़कर याचना की, ‘नर्स, उनको अखिरी सांस चल रहा है, एक बार चलकर देख लीजिए ना.’
नर्स ने कहा कि वह आती है और पीपीई किट पहनना शुरू कर दिया. रिपोर्टर एक घंटे तक कोविड वार्ड के बाहर रही, लेकिन तब तक नर्स नहीं आई थी.
इसी बीच युवक अपनी मां को हिला-जुलाकर आंखें खोलने के लिए कहने लगा. उसने कहा, ‘इतना बड़ा अस्पताल क्यों बनवाया है? वेंटिलेटर है, आईसीयू है, बेड है, ऑक्सीजन है. फिर भी मेरी मां मर रही है.’
जिला प्रशासन के मुताबिक, अस्पताल में हर दिन कोविड के कारण चार-पांच मौतें दर्ज की जाती हैं.
नवनियुक्त मेडिकल सुपरिटेंडेंट बैद्यनाथ ठाकुर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अस्पताल कर्मियों के ही संक्रमण की चपेट में आने से स्वास्थ्य कर्मचारियों का मनोबल टूट गया है. साथ ही कहा, ‘लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि नर्सें वार्ड में नहीं जा रही हैं.’
11 मई को अस्पताल का निरीक्षण करने वाले जिलाधिकारी श्याम बिहारी मीणा ने भी इस तरह के आरोप से साफ इनकार किया.
उन्होंने कहा, ‘निजी तौर पर मेरे पास वहां भर्ती प्रत्येक मरीज का ब्योरा है. उनके एसपीओ2 के स्तर से लेकर उनके तापमान तक की. दरअसल, मैंने वहां तीन पालियों में राज्य प्रशासन के तीन अधिकारियों को तैनात किया है. इसके अलावा, मैंने अस्पताल में एक एडीएम को भी अटैच किया है.’
नाम न छापने की शर्त पर एक नर्स ने अलग ही बात कही. उसने बताया, ‘हर कोई कोविड से डरा हुआ है. कोई भी कोविड वार्ड में जाकर अपनी जान नहीं देना चाहता. हम पूरा दिन वार्ड के अंदर नहीं बिता सकते.’
अस्पताल में मौजूद कुछ परिवारों ने तो ये तक कहा कि जब भी डीएम निरीक्षण के लिए आते हैं तो कर्मचारी उन लोगों को वहां से ‘भगा’ देते हैं.
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‘मर रहे हैं’
अस्पताल में 19 वेंटिलेटर हैं लेकिन जब दिप्रिंट यहां पहुंचा तो केवल चार ही उपयोग में थे. यह पूछे जाने पर कि ऐसा क्यों है, मेडिकल सुपरिटेंडेंट बैद्यनाथ ठाकुर ने इस मुद्दे पर कहा कि वेंटिलेटर का उपयोग तभी किया जा सकता है जब किसी मरीज को इसकी जरूरत हो.
हालांकि, एक नर्स ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि उनके पास इन मशीनों पर काम करने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं है.
इस बीच, ऑक्सीजन मास्क लगाकर काफी मुश्किल से बोल पा रहे लक्ष्मी नारायण ने कहा कि वह मरे जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मर रहे हैं, कोई इलाज नहीं हो पाया.’
उनके बेटे ने कहा कि उन्हें लगता था कि ‘बड़ा अस्पताल हैं, हमें ठीक से इलाज मिल पाएगा लेकिन यहां आने के बाद तो उनकी हालत बिगड़ गई है.’
उन्होंने कहा, ‘डॉक्टर साहब आते नहीं हैं, उनको मरने का डर है. बाहर से ही लिखकर देते हैं.’
उन्होंने आगे खहा, ‘हम यहां एकदम असहाय हैं जबकि हर मशीन हर दवा उपलब्ध है. हर दिन हम यहां 4 से 5 मौतें देखते हैं.’
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