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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशपंजाब सरकार को जवाब है धान की खेती की ये तकनीक, ‘पानी बचाओ, संकट से बचो’

पंजाब सरकार को जवाब है धान की खेती की ये तकनीक, ‘पानी बचाओ, संकट से बचो’

इस चिंता के मद्देनज़र कि आने वाले सालों में पंजाब में पानी एक राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, AAP सरकार धान की खेती के लिए चावल के सीधे बीजारोपण को व्यापक रूप से अपनाने पर ज़ोर दे रही है.

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चंडीगढ़: पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार अत्यधिक पानी सोखने वाली धान की खेती के लिए, डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस (डीएसआर) यानी सीधे बीजारोपण का आक्रामक रूप से प्रचार कर रही है, जिसका उद्देश्य भूजल का संरक्षण करना है, जो राज्य के लिए एक बड़ी चिंता है.

वरिष्ठ आप पदाधिकारियों और सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट से कहा कि आने वाले समय में भूजल संरक्षण एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है.

राज्य सरकार के कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इसी को ध्यान में रखते हुए आप सरकार इस साल पंजाब में धान के कम से कम 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को डीएसआर खेती के तहत लाने की कोशिश कर रही है- जोकि 2021 में केवल 5.6 लाख हेक्टेयर था.

डीएसआर तरीक़े में, एक समतल किए गए खेत में बुवाई से पहले सिंचाई की जाती है, और फिर नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई की बजाय, ट्रैक्टर से चलने वाली मशीनें से खेतों में सीधे बीज बो दिए जाते हैं.

हालांकि किसानों की ओर से कुछ विरोध रहा है, जो उपज में कमी की शिकायत कर रहे हैं, लेकिन मंडराते भूजल संकट को देखते हुए विशेषज्ञ डीएसआर इस्तेमाल किए जाने का समर्थन कर रहे हैं, और उनका कहना है कि खेती की इस तकनीक को अपनाने के ‘सही तरीक़े’ की जानकारी फैलाकर, कम उपज की समस्या पर क़ाबू पाया जा सकता है.

पानी और लागत की बचत

राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया, कि डीएसआर तरीक़े से धान की खेती में परंपरागत रूप से होने वाली पानी की खपत में 20 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है.

उसके अलावा, उन्होंने कहा कि डीएसआर में केवल क़रीब 15-18 बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है, जबकि पारंपरिक तरीक़े में 25-27 बार सिंचाई करनी पड़ती है. सरकारी पदाधिकारियों का दावा था कि इस तकनीक से एक एकड़ ज़मीन में लगने वाली लागत में क़रीब 4,000 रुपए की बचत की जा सकती है.

‘अप्रैल में पंजाब में गेहूं ख़रीद सीज़न शुरू होते ही मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों, विशेषज्ञों, वरिष्ठ अधिकारियों, किसान समूहों, और पर्यावरण विदों के साथ एक बैठक की जिसमें राज्य के जल संकट पर चर्चा की गई,’ ये कहना था राज्य कृषि विभाग के उन पूर्वकथित अधिकारी का जो उस बैठक में मौजूद थे.

‘बैठक में हर किसी को मज़बूती के साथ आभास हुआ, कि बहुत कम समय में जल संकट पंजाब में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. इसलिए राज्य सरकार ने डीएसआर तरीक़े को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने का फैसला किया’.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, कि पंजाब सीएम भगवंत मान ने अपने सभी कैबिनेट मंत्रियों को निर्देश दिया है कि अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों का दौरा करें, और डीएसआर तरीक़े को बढ़ावा देने के लिए ज़िलेवार प्रचार शुरू करें.

मान ने ख़ुद अपने गांव सतोज में 15 मई को ऐसे ही एक अभियान की शुरुआत की. 19 मई को पंजाब मंत्रिमंडल ने डीएसआर तरीक़े से धान बोने वाले किसानों को, 1,500 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देने को मंज़ूरी दे दी.

22 मई को अपने असेम्बली चुनाव क्षेत्र दिरबा में डीएसआर अभियान की शुरुआत करते हुए, राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने पत्रकारों से कहा, ‘डीएसआर हरित पंजाब की दिशा में आप सरकार का एक और क़दम है’.

राज्य सरकार के रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि 2020-21 में केंद्र ने पंजाब से क़रीब 203 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) धान की ख़रीद की, जिसके मिल से गुज़रने के बाद क़रीब 136 एलएमटी टन चावल हासिल हुआ.

राज्य सरकार के एक और वरिष्ठ अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, अनुमानों और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा, ‘औसतन, पंजाब में एक किलोग्राम चावल पैदा करने के लिए क़रीब 4,000 लीटर पानी की ज़रूरत होती है’.

उस अनुमान से 2020-21 में धान की खेती के लिए पंजाब को 54,400 बिलियन लीटर पानी चाहिए था. अधिकारी ने आगे कहा, ‘ऐसा अनुमान है कि अगर पंजाब में धान की खेती के पूरे क्षेत्र को डीएसआर के अंदर ले आया जाए, तो 8,000 to 10,000 बिलियन लीटर पानी की बचत की जा सकती है’.


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पानी का संकट

पंजाब में पानी का संकट पिछले तीन दशकों से पनपता रहा है- जिसका एक बड़ा कारण भूजल का अत्यधिक दोहन रहा है.

धान को भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता माना जाता है. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से पंजाब धान पैदा करने वाला क्षेत्र नहीं रहा है, लेकिन कृषि विशेषज्ञों तथा सरकारी अधिकारियों का कहना है, कि हरित क्रांति ने राज्य की फसल प्रणाली को गेहूं-धान के चक्र में तब्दील कर दिया.

2018 में राज्य सरकार की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के क़रीब 79 प्रतिशत इलाक़े में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है, और संभावना ये है कि 2039 तक सारा भूजल इस्तेमाल हो जाएगा, और ऊपर हवाला दिए गए कृषि विभाग के अधिकारी के अनुसार, उसके बाद केवल फिर से भरने लायक़ संसाधन ही उपलब्ध रह जाएंगे.

18 मई को जब किसान समूहों ने मान से मिलकर शिकायत की कि धान की जो खेती डीएसआर में कवर नहीं है, उसकी तिथि की सरकारी अधिसूचना बहुत देर से जारी की गई, तो मान ने कहा, ‘मैं एक किसान का बेटा हूं, मैं जानता हूं कि ये कैसे किया जा सकता है’.

उन्होंने आगे कहा कि पंजाब को भूजल संकट से बचाने के लिए वो हर संभव क़दम उठाएंगे, और उन्होंने किसान यूनियनों ये भी आग्रह किया कि नीचे गिरते भूजल स्तरों को रोकने में राज्य सरकार के प्रयासों में शामिल हों.

‘दृढ़ता बहुत ज़रूरी’

सरकारी अनुमानों के अनुसार, पंजाब में हर साल औसतन लगभग 27 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर धान की खेती होती है. इसलिए अगर सरकार इस साल कम से कम 12 लाख हेक्टेयर को डीएसआर के अंतर्गत लाने का अपना लक्ष्य पूरा कर भी लेती है, तो भी ये धान की खेती के कुल क्षेत्र का केवल 44.4 प्रतिशत के क़रीब है.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना उतना आसान नहीं है. पिछले अनुभव से पता चलता है कि सरकार अपने डीएसआर लक्ष्यों को पूरा करने में अकसर विफल हो जाती है’. मसलन, सरकारी रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि पंजाब में पिछले साल 5.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को डीएसआर खेती के अंतर्गत लाया गया, जबकि लक्ष्य 10 लाख हेक्टेयर का था.

किसानों के समूह भी विरोध ज़ाहिर कर रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन (कादियान) के प्रवक्ता रवनीत बराड़ ने कहा, ‘इस बारे में स्पष्टता नहीं है कि सिंचाई के राउण्ड कम करके डीएसआर पानी की कैसे बचत करता है. हमारा पिछला अनुभव इस दावे का खंडन करता है. इसे लेकर भी एक व्यापक चिंता है कि ये उपज को कैसे प्रभावित करता है’.

पंजाब के कृषि और किसान कल्याण विभाग के पूर्व निदेशक सुतांतर एयरी ने कहा, कि डीएसआर तरीक़े को अपनाने में पंजाब के किसानों को पेश आई मुश्किलें उस समय एक बाधा साबित हुईं, जब 2002-03 में इस तकनीक को पहली बार लागू किया गया था.

उन्होंने आगे कहा, ‘बीते कुछ सालों में बड़ी संख्या में किसानों की शिकायत थी कि इससे उपज में कमी आई है. लेकिन डीएसआर के सही तरीक़े, और वर्कशॉप्स तथा आउटरीच कार्यक्रम के ज़रिए फसल प्रबंधन तकनीकों आदि के बारे में जानकारी फैलाने से, दोनों समस्याओं को सुलझाया जा सकता था’.

‘राज्य सरकार के अंदर राजनीतिक इच्छा नहीं थी. अब भूजल संकट गंभीर हो गया है. संगरूर, मोगा, लुधियाना, और जालंधर ज़िलों में भूजल का दोहन बहुत व्यापक है. अगर अब डीएसआर जैसी चीज़ों को आक्रामक रूप से बढ़ावा नहीं दिया जाता, तो अगले क़रीब 10 सालों में इन जगहों से भूजल ख़त्म हो जाएगा’.

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में कृषि विज्ञान विभाग के प्रमुख माखन सिंह भुल्लर ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि असली चीज़ जागरूकता है.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब एक गंभीर भूजल संकट से दोचार है, और एक समय पूरे सूबे के किसानों को खेती के ऐसे तरीक़े अपनाने होंगे, जिनका लक्ष्य भूजल दोहन को कम करना होगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘किसानों का एक वर्ग है जो कामयाबी के साथ कई वर्षों से डीएसआर तकनीक से धान की खेती कर रहा है और बेहतर उपज ले रहा है. डीएसआर पर पीएयू की एडवाइज़रीज़ पहले से मौजूद हैं और व्यापक रूप से उपलब्ध हैं. अगर किसान उनका पालन करें और खरपतवार नियंत्रण सुनिश्चित करें, तो भूजल बचाने और उपज बढ़ाने दोनों में कामयाबी हासिल हो सकती है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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