नई दिल्ली: क्या आपनी कभी सोचा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पटाखा प्रतिबंध का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार लोगों के साथ बाद में क्या होता है? पुलिस अधिकारियों और वकीलों के मुताबिक, अधिकांश लोगों को पुलिस थाने से ही छोड़ दिया जाता है, और जिन पर मुकदमा चलाया जाता है, वे भी जेल में समय बिताए बिना आसानी से छूट जाते हैं.
उदाहरण के तौर पर गौतम बौद्ध नगर (नोएडा) जिले को ही ले लीजिए. इस साल पटाखों की बिक्री पर पूर्ण पाबंदी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगाई, का उल्लंघन करने पर 114 एफआईआर दर्ज की गईं और 141 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
गौतम बौद्ध नगर के अतिरिक्त डीसीपी रणविजय सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि अधिकांश को उनकी गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों के भीतर रिहा कर दिया गया.
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘उनमें से कुछ पटाखे बेचने वाले थे और कुछ उन्हें फोड़ रहे थे. हमने ऐसे सभी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. लेकिन चूंकि ये सभी मामले प्रकृति में जमानती हैं, इसलिए उन्हें सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 41 के तहत नोटिस देने के बाद थाने से जमानत दे दी गई.’
उन्होंने कहा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुताबिक, हम किसी को ऐसे कार्य के लिए जेल नहीं भेज सकते हैं जिसमें सात साल से कम सजा का प्रावधान हो. इसलिए इन निर्देशों के मुताबिक हमने उन्हें थाने से ही छोड़ दिया.’
दिल्ली में भी स्थिति यही है.
हालांकि, दिल्ली पुलिस ने इस बारे में कोई आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया है कि राष्ट्रीय राजधानी में गिरफ्तार किए गए लोगों में से कितने को रिहा कर दिया गया. एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि यह मामूली प्रकृति का अपराध है और इसलिए गिरफ्तार किए गए लोगों में से किसी को भी जेल तक नहीं लाया गया.
अधिकारी ने कहा, ‘कुछ राशि का जुर्माना भरने के बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है. जमानत मौके पर ही हो जाती है. ऐसे मामलों में पटाखों को जब्त किया जाना ज्यादा अहम है.’
दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि 28 सितंबर से लेकर 4 नवंबर को दीवाली तक के बीच 281 लोगों को—138 को पटाखों की बिक्री और आपूर्ति करने और 143 को उन्हें फोड़ने के लिए—गिरफ्तार किया गया था.
यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में काफी कम है, जब अकेले दिवाली के दिन 14 नवंबर 2020 को 850 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
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इस साल सितंबर में दिल्ली सरकार ने 1 जनवरी 2022 तक पटाखों की बिक्री और उन्हें फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें आवासीय क्षेत्रों में 10,000 रुपये और निषिद्ध क्षेत्रों में 20,000 रुपये तक जुर्माने का प्रावधान रखा गया था.
‘मामूली अपराध, तुरंत मिलती है जमानत’
क्रिमिनल लायर महमूद प्राचा कहते हैं कि ऐसे मामलों में समरी ट्रायल होता है क्योंकि इन्हें मामूली अपराध की श्रेणी में रखा जाता है (समरी ट्रायल का मतलब ऐसे मामलों से है जिन्हें सरल प्रक्रिया के तुरंत निपटा दिया जाता है).
उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर लोगों को तुरंत ही जमानत मिल जाती है, और अगर उन्हें इन मामलों में छोड़ा जाता है तो फिर आमतौर पर जुर्माना ही लगाया जाता है. मुकदमे बहुत कम होते हैं. अगर होते भी हैं तो ज्यादातर लोग शुरुआत में धारा 265-ए के तहत दलील के कारण छूट जाते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मजिस्ट्रेट किसी भी समय मामले को खत्म कर सकता है, ऐसे मुकदमे कुछ ही महीनों में खत्म हो जाते हैं. इस तरह के अपराधों के लिए कोई अधिकतम सजा नहीं है…इसके लिए वित्तीय सजा का सख्त प्रावधान होना चाहिए.’
प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक की तरफ से विधिवत घोषित आदेश का उल्लंघन), धारा 269 (जीवन के लिए खतरनाक बीमारी का संक्रमण फैलाने जैसी लापरवाही वाला कृत्य) और धारा 270 (ऐसा कोई कृत्य करना जिससे बीमारी का संक्रमण फैल सकता हो) के तहत गिरफ्तार किया जाता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भी इस तरह के अपराधों को विशेष रूप से अपने रिकॉर्ड में नहीं रखता है. उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत पर्यावरण संबंधी अपराधों और जब्ती के तहत सूचीबद्ध किया जाता है.
2020 के एनसीआरबी डाटा ने ‘ध्वनि प्रदूषण’ श्रेणी के तहत 7,318 मामलों को सूचीबद्ध किया है, लेकिन यह उल्लेख नहीं करता है कि उनमें से कितने पटाखों से संबंधित हैं.
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