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Saturday, 21 December, 2024
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देश के आईएएस-आईपीएस सोशल मीडिया पर आम लोगों को ट्रोल कर रहे हैं या जागरूक

मैक्स वैबर ने ब्यूरोक्रेसी की अवधारणा रखते हुए ये कहा था कि इसमें ब्यूरोक्रेट्स का व्यक्तित्व पीछे रहेगा, काम सामने रहेगा. लेकिन वर्तमान में व्यक्तित्व पीछे नहीं रह सकता है क्योंकि सोशल मीडिया ने पर्सनल और प्रोफेशनल चीजों को लगभग एक जगह खड़ा कर दिया है.

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नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर ना सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के तमाम मुख्यमंत्री एक्टिव हैं, बल्कि कार्यपालिका के अधिकारी भी जबरदस्त तरीके से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. नौकरशाहों के सोशल मीडिया पर एक्टिव होने से कई तरह की प्रतिक्रियाएं आती हैं. देश-दुनिया के बदलते वक्त में नौकरशाह भी लगातार खुद को बदल रहे हैं.

हालांकि मैक्स वैबर ने ब्यूरोक्रेसी की अवधारणा रखते हुए ये कहा था कि इसमें ब्यूरोक्रेट्स का व्यक्तित्व पीछे रहेगा, काम सामने रहेगा. लेकिन वर्तमान में व्यक्तित्व पीछे नहीं रह सकता है क्योंकि सोशल मीडिया ने पर्सनल और प्रोफेशनल चीजों को लगभग एक जगह खड़ा कर दिया है. नौकरशाहों के व्यक्तित्व के तमाम पहलू सोशल मीडिया पर उजागर होने से एक तरीके से जनता जुड़ भी रही है और दूसरे तरीके से नौकरी के राजनीतिक होने का भी प्रमाण मिल रहा है. जैसे वो इंस्टाग्राम पर किसी इन्फ्लुएंसर की भांति व्यवहार भी कर रहे हैं तो ट्विटर पर किसी ट्रोल की भी तरह.

मीम शेयर करना नौकरशाहों का काम है या आईटी सेल का?

कुछ दिन पहले हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी पंकज नैन ने आरक्षण को लेकर एक मीम शेयर किया था. इस ट्वीट को 43 हजार से ज्यादा लोगों ने लाइक किया और 13 हज़ार से ज्यादा लोगों ने रिट्वीट किया. इस ट्वीट पर कुछ इस तरह के कमेंट आए- क्या आप कोई ट्रोल हैं? हालांकि पंकज की ज्यादातर पोस्ट्स जानकारी वाली होती हैं. लेकिन कोरोनावायरस में लॉकडाउन के चलते उनके एक और पोस्ट को लेकर भी आलोचना हुई. इसके बाद उन्होंने ट्वीट डिलीट कर दिया.

एक अन्य युवा अधिकारी प्रणव महाजन अक्सर विपक्षी पार्टियों से जुड़े हैंडल्स को समझाते और सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों को रिट्वीट करते नजर आते हैं. यहां तक कि विपक्षी नेताओं को भी जवाब देते हैं कि उन्हें कैसे राजनीति नहीं करनी चाहिए. अधिकारियों के पोस्ट्स पर आए कमेंट्स से पता चलता है कि लोग ब्यूरोक्रेट्स को ट्रोल आर्मी के सेनापति की तरह देखने लगे हैं.

देश के बाबुओं के सोशल मीडिया पर इस व्यवहार को लेकर एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘अधिकारियों को ही वो लाइन खींचनी पड़ेगी जहां वो ट्रोल आर्मी के एक योद्धा की तरह नजर ना आएं. ऐसे माध्यमों का इस्तेमाल आपको सोच समझकर करना पड़ेगा.’


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सोशल मीडिया पर अपने विचार रखने के लालच को लेकर एक अन्य अधिकारी बताते हैं, ‘यस बैंक के मामले पर मैंने एक ट्वीट किया लेकिन थोड़ी देर बाद उसे डिलीट कर दिया. मैं सोचने लगा कि कहीं इसे राजनीतिक रंग ना दे दिया जाए. ब्यूरोक्रेट्स जनता और संविधान के प्रति जिम्मेदार हैं, हम ट्विटर जैसे माध्यमों को मनोरंजन के लिए नहीं ले सकते.’

सोशल मीडिया का इस्तेमाल जिले के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचने के लिए करें

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के आईजी दिपांशु काबरा दिप्रिंट के साथ हुए साक्षात्कार में कहते हैं, ‘सोशल मीडिया के जरिए आप पंक्ति में खड़े आखिरी व्यक्ति से भी जुड़ सकते हैं. ट्विटर जैसा पावरफुल माध्यम जानकारी लेने और देने में कितना कारगर साबित हो सकता है.’ दिपांशु अपना खुद का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘कई जिलों के लोगों ने ट्विटर आईडी बनाई ताकि वो हम तक मैसेज आसानी से पहुंचा सकें.’

दिपांशु अपने ट्विटर पर अक्सर फील्ड वर्क, घर में पूजा-पाठ और जरूरी नोटिफिकेशन की तस्वीरें ही शेयर करते हैं.

दिपांशु के ही बैच के अन्य आईपीएस अधिकारी अरूण बोथरा पिछले साल ही ट्विटर पर एक्टिव हुए हैं. उनके ट्वीट्स अक्सर वायरल होते हैं. वो साल 2019 के अपने एक इंटरव्यू में कहते हुए नजर आ रहे हैं कि ट्विटर पर इंटलेक्चुअल चर्चा होती है और जानकारी भी मिलती है.

लेकिन पिछले दिनों अरूण ने एक ट्वीट किया जहां वो रिपोर्टर्स को कोरोना के मरीजों का इंटरव्यू लेने की बात कह रहे थे. इस पोस्ट पर एक महिला पत्रकार ने उन्हें मूर्ख कहा. इसपर अरूण कहते हैं, ‘ट्विटर पर तुरंत लोगों को गलत समझा जा सकता है. अधिकारियों के लिए ट्विटर जनता से जुड़ने का सबसे तीव्र माध्यम है, इसकी मदद से कुछ दिन पहले एक बच्चे की स्कूल बस की समस्या हल कर दी. आधे घंटे में समस्या हल हुई जो कि जनता को असंभव लग रहा था. वो ये भी जोड़ते हैं कि अगर आपके जवाब ह्यूमरस हैं तो फॉलोवर बढ़ जाते हैं जो आपको कहीं भी टैग करने लगते हैं. मैं ट्विटर को एक पावरफुल प्लेटफॉर्म के तौर पर देखता हूं. मैंने ट्विटर गवर्नेंस पर एक टॉक भी दी थी.’

अरूण के बैच के एक अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘अरूण शुरू से ही हाजिरजवाब रहे हैं और मदद के लिए हमेशा तत्पर. इसलिए कई बार उनकी हाजिरजवाबी उल्टी भी पड़ जाती है और लोग छवि बना लेते हैं.’

हालांकि ये अधिकारी आगे कहते हैं, ‘ट्विटर पर मीम शेयर करने से शुरुआत होती है और आप ट्रोल्स की एक आर्मी के बीच फंस जाते हैं. वो आपको ‘मैं आपका एक बहुत बड़ा फैन हूं’ कहकर एक भ्रम में रखते हैं कि आप कोई फिल्मी स्टार हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि हम सिस्टम की बैकबोन हैं जो बिहाइंड द सीन काम करते हैं.’


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दिल्ली में कार्यरत एक अन्य अधिकारी भी इस बात की तस्दीक करते हैं,’ वाकई कुछ लोग आपकी बातों को गलत समझ लेते हैं. वो राजनीतिक प्रवक्ता समझने लगते हैं और कभी-कभी राणा अयूब या स्वरा भास्कर के ट्वीट इनबॉक्स में भेजते हैं कि इस लेडी को जल्दी से जवाब दो.’

साड़ी लुक्स और कपल गोल्स वाले इंस्टा अधिकारी

एक वरिष्ठ अधिकारी, नए बैच के अधिकारियों के बारे में कहते हैं, ‘युवा अधिकारी इंस्टाग्राम और ट्विटर पर बहुत एक्टिव हैं. सही-गलत से परे देखें तो उनके अंदर भी चाह है, टू मिनट फेम की, जो कि आज के दौर की ही चाह बन गई है.’

महिला आईएएस अधिकारियों के इंस्टा अकाउंट्स पर नजर दौड़ाने पर उनके साड़ी लुक्स के साथ हैशटैग ‘साड़ी वाइब्स’ की तस्वीरें मिलती हैं और आईपीएस अपनी तस्वीरों में काले चश्में लगाए फील्‍ड में खड़े दूर कहीं देख रहे होते हैं. कई आईएएस कपल्स अक्सर हैशटैग कपलगोल्स वाली फोटो शेयर करते हैं. 2016 बैच की आईएएस टीना डाबी और उनके पति आईएएस अतहर आमिर खान भी खूब फोटोज शेयर करते हैं.

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एक युवा आईपीएस नाम ना छापने की शर्त पर इस ट्रेंड को लेकर कहते हैं, ‘इंस्टाग्राम पर सेलिब्रिटी बनने का ट्रेंड टीना डाबी और अतहर के बाद शुरू हुआ होगा. इससे पहले सिविल सर्वेंट्स इस तरह के एप्स पर निजी अकाउंट्स के जरिए ही रहते थे. लेकिन आजकल निजी बातें भी आपको एक इन्फ्लुएंसर के तौर पर स्थापित करती हैं.’

कुछ अधिकारी सोशल मीडिया पर शंख बजाने ही आते हैं

छत्तीसगढ़ में पदस्थापित कलेक्टर अवनीश शरण कहते हैं, ‘लोग अपने हिसाब से अपनी प्राथमिकता तय करते हैं. सही और गलत का जजमेंट कोई और नहीं कर सकता, ये अधिकारी को खुद ही करना होगा कि उसे क्या करना चाहिए.’

पर ऐसे भी अधिकारी हैं, जो अपनी आईडी से आईपीएस या आईएएस हटा दें तो आपको प्रतीत होगा कि ये किसी पार्टी के प्रवक्ता हैं या ट्रोल हैं.

इस बाबत नॉर्थ ब्लॉक में काम कर रहे एक अधिकारी का कहना है, ‘जो लोग महत्वपूर्ण पदों पर नहीं हैं, वही लोग ट्रोल की तरह व्यवहार करते हैं. राष्ट्रवाद और धर्म को लेकर कुछ अधिकारी लगातार लिखते रहते हैं, उनकी मंशा और लक्ष्य अलग होते हैं. जो अधिकारी जिम्मेदारी वाले काम कर रहे हैं, फील्ड में हैं, वो कभी इस तरीके से कॉलेज किड्स की तरह सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं होंगे.’

वो आगे कहते हैं, ‘सोशल मीडिया पर ज्यादा लिखने का एक घाटा होता है कि आपको पता नहीं चलता कि लिमिट पार हो गई है. आपको ये भी नहीं पता चलता कि आपकी बातों को गंभीरता से लिया जा रहा है. हालांकि बहुत अधिकारी जान बूझकर ये हरकतें करते हैं ताकि किसी की नजर में आ जाएं. जो लोग फालतू लिख रहे हैं, उन्हें किसी ना किसी से प्रश्रय मिला होता है.’

कोरोना महामारी के मद्देनजर तान्या सेठी नाम की एक महिला ने ट्विटर पर पीएम से मदद मांगी थी कि वो गुयाना देश के वित्त मंत्रालय में इकोनॉमिस्ट फेलो हैं. लेकिन वहां की सरकार कोरोनावायरस के चलते 99 लोगों को जाने के लिए कह रही है. प्लीज मदद करें. इस पर सिविल सर्वेंट संदीप मित्तल ने जवाब दिया, ‘हम समझते हैं कि आप एक गंभीर समस्या में फंसी हुई हैं लेकिन आपको हम मूर्खों के पास वापस नहीं आना चाहिए. साथ में वो एक स्क्रीनशॉट भी लगाते हैं जहां तान्या ने कुछ दिन पहले ‘वी द इडियट्स’ हेडलाइन से एक न्यूजपेपर की कटिंग शेयर की थी.

इनता ही नहीं संदीप मित्तल कोरोना के चलते लोगों को वेदों-पुराणों की ओर भी ले जा रहे हैं. जबकि रविवार को हुए जनता कर्फ्यू के दौरान पीलीभीत के डीएम और एसपी से सरकार नाराज हो गई और एक्शन लेने की बात भी सामने आई. दरअसल दोनों जुलूस निकालते हुए शंख बजा रहे थे.


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इस घटना पर टिप्पणी करते हुए एक युवा आईपीएस अधिकारी कहते हैं, ‘सोशल मीडिया पर भी कई सिविल सर्वेंट शंख ही बजाते हैं.’ वो आगे जोड़ते हैं, ‘सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि का चसका सा लग गया है. मैंने एक दो सिविल सर्वेंट्स को अपने फेसुबक पेज के लाइक्स को गंभीरता से लेते देखा है. इतना ही नहीं ये साइंटिफिक टेंपर की बजाय वेदों के साइंटिफिक ज्ञान को व्हॉटसऐप ग्रुप्स पर भी भेजते हैं.’

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7 टिप्पणी

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