नई दिल्ली: दिल्ली में आम आदमी पार्टी के एक दशक से भी ज़्यादा लंबे शासन के दौरान हवा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ती गई. अब 2025 की दिवाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत सरकार के लिए पहला ‘प्रदूषण टेस्ट’ बन गई है. अब तक बीजेपी का कहना था कि पर्यावरणविद दिवाली को प्रदूषण के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराते हैं, लेकिन इस बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को पटाखों के बीच अपनी पहली अग्निपरीक्षा देनी है.
पिछले पांच साल से दिल्ली में हर तरह के पटाखों पर प्रतिबंध था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस प्रतिबंध में ढील देते हुए दिवाली से एक दिन पहले और दिवाली के दिन ‘ग्रीन’ पटाखों के इस्तेमाल की अनुमति दे दी — वह भी सिर्फ तीन घंटे की समय सीमा में.
दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट का यह आदेश उस दिन आया जब शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 300 के पार पहुंच गया — जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है.
गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और इसे उन दिल्लीवासियों की “भावनाओं की जीत” बताया जो रोशनी के इस त्योहार को पटाखों के साथ मनाना चाहते हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा, “दिल्ली सरकार जनता की भावनाओं और स्वच्छ-हरित दिल्ली के संकल्प का पूरा सम्मान करती है.”
फरवरी में 27 साल बाद राजधानी में सत्ता में लौटने के बाद, बीजेपी सरकार ने दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाने और यमुना को साफ करने के लिए तेज़ कार्रवाई का वादा किया था.
हालांकि, पटाखों पर प्रतिबंध में मिली ढील — जिसे दिल्ली सरकार ने कोर्ट में समर्थन भी दिया इन लक्ष्यों के लिए एक झटका मानी जा रही है.
अगस्त में दिल्ली सरकार ने शहर में पिछले आठ सालों में सबसे कम औसत एक्यूआई (172) दर्ज होने और ‘अच्छे’ एक्यूआई दिनों की संख्या बढ़ने पर अपनी पीठ थपथपाई थी. मुख्यमंत्री गुप्ता ने कहा था कि सरकार के प्रयास असर दिखा रहे हैं.
लेकिन असली परीक्षा अब दिवाली के मौसम में है. हर साल, पटाखों पर बैन के बावजूद एक्यूआई तीन से चार गुना तक बढ़ जाता है और शहर कई दिनों तक ‘गंभीर’ श्रेणी की हवा में सांस लेता है.
थिंक-टैंक एनवायरोकैटालिस्ट्स के संस्थापक और प्रमुख विश्लेषक सुनील दहिया ने दिप्रिंट से कहा, “इस साल मानसून लंबा चला, जिससे प्रदूषण कम रहा, लेकिन सर्दियों में ही हम दिल्ली के असली प्रदूषण का असर देखेंगे.”
पिछले आठ महीनों में मुख्यमंत्री गुप्ता और पर्यावरण मंत्री मन्जिंदर सिंह सिरसा ने प्रदूषण कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं — जैसे क्लाउड सीडिंग ट्रायल, नई इलेक्ट्रिक बसें और ऑटो, अतिरिक्त स्मॉग गन और धूल नियंत्रण उपाय. पंजाब में इस साल आई बाढ़ से पराली जलाने के मामलों में कमी आई, जिससे दिल्ली में पीएम2.5 प्रदूषण के स्तर पर नियंत्रण रखने में मदद मिली.
फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली को इस दिवाली भी स्मॉग झेलना पड़ सकता है. वजह हैं — पुराने वाहनों पर ईंधन प्रतिबंध हटाना, थर्मल प्लांटों को सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम करने वाले फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम लगाने में छूट, और अब ग्रीन पटाखों की अनुमति.
पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी ने कहा, “ग्रीन पटाखे प्रदूषण-मुक्त नहीं होते. ये सिर्फ 25-30% कम धूल कण (पीएम) छोड़ते हैं — वो भी लैब की परिस्थितियों में. ये प्रदूषण खत्म करने का नहीं, उसे जायज़ ठहराने का तरीका है.”
दिल्ली सरकार की उपलब्धियां और कमियां
रेखा गुप्ता सरकार ने वायु प्रदूषण कम करने पर अपना ध्यान 2025-26 के बजट से ही दिखा दिया था. इसमें प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया, छह नए लगातार वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र लगाने की योजना बनी और 5,000 नई इलेक्ट्रिक बसें मौजूदा बेड़े में जोड़ने का ऐलान किया गया. इसके अलावा, दिल्ली में पीएम2.5 के स्तर को कम करने के लिए सरकार ने नियमित अंतराल पर कई नए कदमों की घोषणा की.
जुलाई में वायु प्रदूषण नियंत्रण योजना 2025 जारी करते समय मुख्यमंत्री गुप्ता ने कहा था, “वायु प्रदूषण सिर्फ मौसमी समस्या नहीं है, यह सालभर चलने वाला स्वास्थ्य संकट है और इसे उसी तरह से निपटाना होगा.”
नई योजना में शामिल ज़्यादातर उपाय — जैसे सड़कों की सफाई, निर्माण स्थलों की निगरानी और वॉटर स्प्रिंकलर्स लगाना — वही थे जो पहले आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान किए जाते थे. इलेक्ट्रिक बसों को बेड़े में जोड़ने और क्लाउड सीडिंग जैसे कदम भी शुरुआत में AAP सरकार ने ही शुरू किए थे, जिन्हें अब बीजेपी सरकार आगे बढ़ा रही है.
पर्यावरण विभाग के साथ-साथ, आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम दिल्ली सरकार के पहले क्लाउड सीडिंग ट्रायल की निगरानी कर रही है. क्लाउड सीडिंग में कृत्रिम बारिश के ज़रिए हवा में मौजूद प्रदूषक कणों को नीचे गिराकर प्रदूषण कम करने की कोशिश की जाती है, हालांकि इसकी प्रभावशीलता पर सवाल बने हुए हैं.
मई से इस पहल को लेकर खूब चर्चा हो रही है, लेकिन दिल्ली में अब तक पहला ट्रायल नहीं हो पाया है. पर्यावरण मंत्री मन्जिंदर सिंह सिरसा ने बुधवार को कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की अनुमति मिलने के बाद दिवाली के बाद पहला ट्रायल किया जा सकता है.
एक और अहम कदम जिसने काफी बहस छेड़ी, वह था वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) का जून में जारी आदेश. इसमें कहा गया कि ‘एंड-ऑफ-लाइफ’ वाहनों — यानी 15 साल से पुराने पेट्रोल और 10 साल से पुराने डीज़ल वाहनों को दिल्ली में ईंधन भराने की अनुमति नहीं होगी.
हालांकि, एक हफ्ते के अंदर ही जनता के विरोध को देखते हुए दिल्ली सरकार ने CAQM से यह आदेश वापस लेने को कहा. अब दिल्ली में इन पुराने वाहनों की स्थिति उलझन भरी हो गई है — 2018 में इन्हें प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन अब ये शहर में चल नहीं सकते, हालांकि ईंधन भरवा सकते हैं.
जुलाई में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आदेश ने प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशों को एक और झटका दिया. इसमें थर्मल पावर प्लांट्स के लिए सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानकों में ढील दी गई. देश के 537 कोयला आधारित पावर प्लांट्स में FGD (फ्ल्यू-गैस डीसल्फराइजेशन) सिस्टम लगाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन नए आदेश के मुताबिक अब सिर्फ 22% प्लांट्स को इसे लगाना अनिवार्य किया गया है.
दिवाली से पहले ही शहर की हवा ‘खराब’ और कई जगहों पर ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच चुकी है. विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों के आते ही वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना और मुश्किल हो जाएगा क्योंकि कोहरा और कम तापमान हवा में मौजूद कणों को नीचे बैठने से रोकते हैं, जिससे प्रदूषण लंबे समय तक बना रहता है.
सुप्रीम कोर्ट के ‘ग्रीन पटाखा’ आदेश को लागू करने में भी चुनौतियां हैं — जैसे यह सुनिश्चित करना कि केवल ग्रीन पटाखे ही शहर में आएं और तीन घंटे की समय सीमा का सख्ती से पालन हो.
दहिया ने कहा, “अगर हम इस साल दिल्ली सरकार के कदमों को देखें तो उन्होंने वायु प्रदूषण पर चर्चा को फिर से शुरू ज़रूर किया है, लेकिन हम अब भी प्रदूषण के स्रोत पर हमला नहीं कर रहे हैं — जो असली ज़रूरत है.”
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