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Tuesday, 25 June, 2024
होमदेशक्या आप ऐसा सोचते हैं कि आपको शायद पहले कोरोनावायरस हो चुका है, इस स्थिति का भी एक नाम है

क्या आप ऐसा सोचते हैं कि आपको शायद पहले कोरोनावायरस हो चुका है, इस स्थिति का भी एक नाम है

थिंकआईहैडीटाइटिस उन लोगों को प्रभावित करने वाली स्थिति है, जिन्होंने कोरोनोवायरस के दुनिया को प्रभावित करने से बहुत पहले कोविड जैसी बीमारियों का अनुभव किया है.

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नई दिल्ली: क्या आपने अपने आस-पास के लोगों को यह कहते हुए सुना है कि उन्हें इस बात का शक है कि उन्हें कोरोना हो चुका है? शायद आपने अपने किसी दोस्त से सुना हो कि उसे भी कुछ समय पहले ठीक कोरोना जैसे ही लक्षण थे. ये लोग कोविड-19 से असल में प्रभावित हुए हों या नहीं, पर इस स्थिति को भी एक नाम दिया गया है- थिंकआईहैडीटाइटिस (Thinkihadititis)

वाशिंगटन पोस्ट की बुधवार की रिपोर्ट के अनुसार, ‘थिंकआईहैडीटाइटिस’ ऐसी स्थिति है जब लोग कुछ समय पहले हुई किसी बीमारी के लक्षणों की तुलना कोविड से करने लगते हैं. यह तब होता है जब समाचारों और वैज्ञानिक नतीजे मस्तिष्क के उन हिस्सों में घूमने लगते हैं जो आशा का संचार करते हैं. आप ही सोचिये- ऐसे समय में जब स्वास्थ्य व्यवस्था पहले ही चरमराई हुई है, किसी को कोविड-19 होने से बेहतर क्या है? ये मान लेना कि आप पहले ही इस बीमारी के शिकार हो चुके हो.

आशा की किरण

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कोविड-19 का अध्ययन कर रहे सहयोगी प्रोफेसर एरन बेंडविड ने द पोस्ट को बताया कि उन्हें हजारों ईमेल मिल रहे हैं, जिसमें लोग इस बात का दावा कर रहे हैं कि उन्हें निश्चित रूप से यह बीमारी थी. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने तो ये तक लिखा कि उसे 2018 में कोरोनावायरस हुआ था. ‘मुझे लगता है कि उस व्यक्ति ने तो बात को कुछ लम्बा ही खींच दिया’.

वैसे इस बीमारी में आमतौर पर कल्पना के घोड़ों को आसमान पर ले जाना कोई नई बात नहीं है.

लव आइलैंड के स्टार शौघना से लेकर एमी विजेता माइकल इम्पीओली तक, इस स्थिति ने कुछ मशहूर हस्तियों को भी प्रभावित किया है. चूंकि कुछ कोविड-19 के लक्षण मौसमी फ्लू और सामान्य एलर्जी से मेल खाते हैं, ऐसे और भी लोग हो सकते हैं जो सोचते हैं कि उन्होंने पहले ही बीमारी को मात दे दी थी.

मनुष्य की बनावट ही ऐसी है कि वो सकारात्मकता की आशा करता है, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में न्यूरो साइंस के एक प्रोफेसर टैली शारोट ने बताया. थिंकआईहैडीटाइटिस उस सकारात्मक सोच का परिणाम है. पर ये सिर्फ आशावादी नहीं है.

‘राहत की सांस’

इसकी वजह से इस बात की चिंता भी हो सकती है कि ना जाने कितने लोगों को ये बीमारी गलती से पहुंचाई होगी. इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चेतावनी दी है कि ज़रूरी नहीं जिन लोगों को पहले ही ये बीमारी हो चुकी है, उन्हें यह फिर से नहीं होगी.

हालांकि, वर्तमान डेटा ऐसे लोगों की कल्पना का समर्थन नहीं करता है जिन्हें लगता है की वो बीमारी की चपेट में थे. नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, अमेरिका में 20 प्रतिशत से कम कोविड-19 परीक्षण सकारात्मक आ रहे हैं.

यह बताता है कि जिन लोगों को लगता है कि उन्हें इस महामारी ने जकड लिया, ऐसा ज्यादातर के साथ नहीं था.

लेकिन यह जानने का एक तरीका है कि आप कोविड-19 से एक बार संक्रमित हुए थे या अभी पीड़ित हैं- एंटीबॉडी टेस्ट. एंटीबॉडी टेस्ट यह निर्धारित करता है कि क्या रोगी के रक्त में एंटीबॉडी है- एक ऐसा प्रोटीन है जो संक्रमण से लड़ने में मदद करता है, एंटीबॉडी की उपस्थिति का मतलब है कि मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही है वायरस से लड़ चुकी है.

हालांकि, ऐसा लगता है कि कोई भी थिंकआईहैडीटाइटिस से ठीक नहीं होना चाहता है.

एक एंटीबाडी टेस्ट कराने वाले टेलीमेडिसिन प्रोवाइडर प्लेटफॉर्म के मुख्य चिकित्सा अधिकारी जेम्स वेक ने कहा, ‘कुछ मरीज़ निश्चित रूप से निराश हैं,’ एंटीबॉडी टेस्ट की पेशकश करते हैं. ‘मुझे लगता है कि हर कोई यह चाहता है कि उन्हें ये स्थिति हो ताकि वो राहत की सांस ले सकें’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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